सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — ५

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — ५

 

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल का मानचित्रण भाग - ५
सांस्कृतिक-ऐतिहासिक स्थल – ५

 

अनेगोंडी

कर्नाटक के कोप्पल जनपद में तुंगभद्रा नदी के उत्तरी तट पर स्थित है। हरिहर प्रथम ने इसे ही विजयनगर की प्रथम राजधानी बनायी थी। तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी तट पर हंपी स्थित था। तालीकोटा के युद्धोपरांत ( १५६५ ई॰ ) दक्कन के ४ मुस्लिम सल्तनत सेनाओं ने अनेगोंडी और हंपी दोनों को नष्ट कर दिया। ओंचा-अप्प मठ के स्तम्भ और गणेश मंदिर की पाषाण जालियाँ और सुंदर उत्कीर्ण मूर्तियाँ कला के सुन्दर नमूने हैं।

अम्बेर

राजस्थान की वर्तमान राजधानी का पुराना नाम अम्बेर या आमेर था। ग्वालियर से आये कछवाहा राजपूत दुल्हाराय ने आम्बेर में कछवाहा वंश की नींव डाली। ११२८  १७२७ ई॰ तक आमेर कछवाहा राजपूतों की राजधानी रही। १७२७ ई॰ में सवाई राजा जयसिंह ने जयपुर को लाल पत्थर से निर्मित कराकर अपनी राजधानी बनायी थी। १५६२ ई॰ में यहीं के राजा भारमल ने स्वेच्छा से अपनी पुत्रकाम विवाह अकबर से किया था। जयपुर में ही शीशमहल, सिटी पैलेस, हवा महल, जंतर-मंतर व भव्य किला आदि स्थित हैं।

कन्नौज ( कान्यकुब्ज )

उ॰प्र॰ में गंगा नदी के तट पर स्थित कन्नौज एक जनपद है। इसके अन्य नाम हैं — महोदय नगर, कुशस्थल। महाभारत में कान्यकुब्ज को विश्वामित्र के पिता गाधि की राजधानी कही गयी है। गुप्तोत्तर काल की प्रमुख घटना यह थी कि पाटलिपुत्र के स्थान पर कन्नौज का महत्व बढ़ने लगा। यह मौखरिवंश की राजधानी रही और हर्षवर्धन ने जब इसे अपनी राजधानी बनायी तब कान्यकुब्ज उत्तरी भारत के राजनीति का केन्द्र बनकर उभरी। हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद कन्नौज त्रिकोणात्मक संघर्ष का केन्द्र रहा ( गुर्जर-प्रतिहार, पाल और राष्ट्रकूट )। महमूद गजनवी ने इसपर आक्रमण करके लूटा था। बाद में यहाँ पर गहड़वाल वंशी शासकों ने शासन किया। इस वंश के अंतिम शासक जयचंद को मु॰ गोरी ने चंदावर के युद्ध ( ११९४ ई॰ ) पराजित करके अधिकार कर लिया था। चीनी यात्रियों फाह्यियान और हुएनसांग ने इसका उल्लेख किया है।

कालिंजर

उ॰प्र॰ के बाँदा जनपद में स्थित कालिंजर का किला बहुत ही सुदृढ़ था। यहाँ पर चंदेलवंशी शासकों का राज्य था। १०२२ में महमूद गजनी ने यहाँ आक्रमण किया पर इसे जीत न पाया और तत्कालीन शासक विद्याधर से संधि करके वापस लौट गया। १२०२-०३ ई॰ में कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसे परमर्दिदेव से विजित कर लिया था। १५४५ ई॰ में शेरशाह सूरी की मृत्यु इसी किले से लौटकर गिरने वाले बारूद से हुई थी परन्तु वह किला विजित कर पाया था। १५६९ ई॰ में अकबर ने इसे जीत लिया। कालान्तर में यह किला छत्रसाल बुन्देला के अधिकार में आ गया था।

कालीकट

केरल में मालाबार तट पर स्थित वर्तमान कोझिकोड ही कालीकट है। किसी समय कैलिको या मलयल के उत्पाद हेतु प्रसिद्धि के कारण इसका नाम कालीकट पड़ा। २७ मई, १४९८ ई॰ में पुर्तगाली यात्री वास्कोगिगामा भारत के इसी बंदरगाह पर आया था। इस समय यहाँ के शासक जमोरिन की उपाधि धारण करके शासन करते थे। यहाँ से कालीमिर्च आदिक गर्म मसालों का निर्यात होता था।

कोल्हापुर

महाराष्ट्र में स्थित है। यह मध्ययुग में मराठों का केंद्र था। १७०७ ई॰ में शिवाजी के छोटे पुत्र राजाराम की पत्नी ताराबाई ने कोल्हापुर को अपना केन्द्र बनाकर शाहू के विरुद्ध संघर्ष किया था। यहाँ से प्राप्त एक विशाल स्तूप में अशोक कालीन लेख से युक्त एक डिबिया मिली है।

गोलकुंडा

तेलंगाना के हैदराबाद जनपद में मुसी नदी तट पर गोलकुंडा स्थित है। यहाँ से मध्यकालीन स्थापत्य के अवशेष मिलते हैं। गोलकुंडा के क़िले की स्थापना वरंगल के शासकों ने कराया था। कालान्तर में यहाँ पर १५१८ ई॰ में कुली कुतुबशाह ने गोलकुंडा के कुतुबशाही वंश की नींव डाली। १६८७ ई॰ में इसे औरंजजेब ने विजित कर मुगल साम्राज्य का अंग बना लिया। गोलकुंडा हीरों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध था।

चंदेरी

मध्य प्रदेश के अशोक नगर जनपद में स्थित चंदेरी के शासक मेदिनीराय को ही बाबर ने १५२८ ई॰ में पराजित किया था। मेदिनीराय राणा सांगा के सहायक थे। १८वीं शताब्दी के अंतिम चरण में यह सिंधिया के अधीन था।

चिटगाँव ( चटगाँव )

वर्तमान में बांग्लादेश का एक बंदरगाह है। १९३० ई॰ में क्रांतिकारी सूर्यसेन द्वारा चटगाँव शस्त्रागार छापा के लिए प्रसिद्ध है।

तालीकोटा

कर्नाटक के बीजापुर ( विजयपुर ) जनपद में स्थित है। यहाँ पर विजयनगर की सेना और दक्कन सल्तनत की सेनाओं ( बीजापुर, अहमदनगर, गोलकुंडा और बीदर ) के मध्य २५ जनवरी १५६५ ई॰ युद्ध में हुआ। इस युद्ध में विजयनगर की पराजय हुई। इस युद्ध को बन्नाहट्टी या राक्षस-तांगड़ी का युद्ध भी कहा जाता है। भारतीय इतिहास में यह एक विनाशकारी युद्ध था क्योंकि विजयनगर की पराजय के बाद मुस्लिम सेनाओं ने जिस नृशंसता का परिचय दिया वह दक्षिण भारत के इतिहास अपनी सानी नहीं रखता।

त्रिपुरी

मध्य प्रदेश के जबलपुर जनपद में स्थित तेवर नामक स्थान का ऐतिहासिक नाम त्रिपुरी था। इसका उल्लेख महाभारत और पुराणों में हुआ है। यह कलचुरि वंश ( ८५४ – १०७० ई॰ ) की राजधानी रही थी। यहाँ के ध्वंसावशेष से त्रिपुरेश्वर महादेव की मूर्ति, गजलक्ष्मी की मूर्ति और कई शैव मंदिर के अवशेष मिले हैं।

थट्टा

थट्टा पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सिंधु नदी के तट पर स्थित है। मध्यकाल में थट्टा सिंध प्रांत की राजधानी थी। थट्टा में ही विद्रोह का दमन करते हुए मुहम्मद तुगलक की मृत्यु २० मार्च, १३५१ ई॰ हुई थी।

दिउ ( देवबंदर )

दिउ गुजरात के काठियावाड़ तट से सटा अरब सागर में एक छोटा सा दीप है। मध्यकाल में यह गुजरात के सुल्तानों के अधिकार में था। पुर्तगालियों ने महमूद बेगड़ा से दिउ को प्राप्त करके एक बस्ती बसायी थी ( १५३५ ई॰ )। १९६१ ई॰ में यह भारतीय गणराज्य का अंग बना लिया गया।

देबल

देबल सिंधु नदी के मुहाने पर अरब सागर के तट पर स्थित एक पूर्व-मध्यकालीन बंदरगाह था। इसपर मीरकासिम ने ७१२ ई॰ में अधिकार कर लिया था। वर्तमान में यह पाकिस्तान में है।

द्वारसमुद्र ( हलेबिडु )

कर्नाटक के हासन जनपद में द्वारसमुद्र स्थित है। होयसल वंश की राजधानी द्वारसमुद्र का आधुनिक हलेबिडु है। यहाँ पर ११४९ से १३३९ ई॰ तक होयसलों का शासन रहा। बल्लाल तृतीय के शासनकाल में सन् १३१० में सल्तनत की सेना ने मलिक काफूर के नेतृत्व में आक्रमण किया। हलेबिडु में होयसलेश्वर मंदिर स्थित है जिसका निर्माण विष्णुवर्धन ने कराया था। यहाँ पर जैन मंदिरों में पार्श्वनाथ मंदिर तथा अन्य दो मंदिरों में ऋषभदेव व शान्तिनाथ की प्रतिमाएँ उल्लेखनीय हैं।

पट्टडकल

पट्टडकल कर्नाटक के बागलकोट जनपद में मालप्रभा नदी के तट पर स्थित है। यहाँ से १० मंदिर मिले हैं जिनमें से ४ नागर और ६ द्रविड़ शैली में निर्मित हैं। यहाँ की वास्तुकला को उत्तर और दक्षिण मध्य एक कड़ी माना जाता है। पापनाथ, विरुपाक्ष, त्रैलोकेश्वर, मल्लिकार्जुन आदि मंदिर। ये बादामी या वातापी के चालुक्यों के काल में बनाये गये थे।

पाटलिपुत्र ( पटना )

पाटलिपुत्र बिहार राज्य में गंगा, गंडक और सोन नदियों के संगम पर स्थित है। इसकी स्थापना हर्यंक वंशी उदायिन या उदयभद्र ( ४६० – ४४४ ई॰पू॰ ) ने करके मगध साम्राज्य की राजधानी बनायी थी। इसकी स्थापना से लेकर गुप्त साम्राज्य के पतन तक ( ५५० ई॰ ) पाटलिपुत्र भारत के शक्ति-प्रतिष्ठा और साम्राज्यवाद के गौरव का केन्द्र रही। अशोक के समय यहाँ तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ। पटना के कुमराहार और बुलंदीबाद से चन्द्रगुप्त मौर्य के राजप्रासाद के अवशेष मिले हैं। मेगस्थनीज ने इस राजप्रासाद का वर्णन किया है। फाह्यियान ने इस राजप्रासाद को देखा था। गुप्तोत्तर काल में इसकी प्रतिष्ठा जाती रही। मध्यकाल में पटना नाम से शेरशाह शूर ने इसकी स्थापना की थी। पाटलिपुत्र अन्य नाम हैं — कुसुमपुर, कुसुमध्वज, पुष्पपुर, पालिब्रोथा आदि।

पुरी

ओडिशा प्रांत में स्थित एक जनपद है। यहाँ पर अनंतवर्मन् चोडगंग ने १०७८ ई॰ में पुरी के जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया था। यहीं पर शंकराचार्य ने चार मठों में से एक गोवर्धन मठ की स्थापना की थी। पुरी जनपद में ही कोणार्क का सूर्यमंदिर स्थित है जिसका निर्माण नरसिंह प्रथम ( १२३८ – १२६४ ई॰ ) के शासनकाल में हुआ था। पुरी जनपद के धौली से सम्राट अशोक का बृहद् शिला प्रज्ञापन मिलता है।

फतेहपुर सीकरी

उ॰प्र॰ के आगरा जनपद में स्थित फतेहपुर सीकरी की स्थापना मुगल शासक अकबर ने १५७२-७३ ई॰ में करायी थी। यह कुछ समय के लिए मुगल साम्राज्य की राजधानी भी रही थी। यहाँ पर अकबर ने एक किला बनवाया और उसमें अनेक निर्माण कार्य करवाये थे। यहीं पर बुलंद दरवाजा स्थित है।

बीजापुर

बीजापुर कर्नाटक प्रांत में स्थित एक जनपद है जो कृष्णा और भीमा नदियों के बीच स्थित है। पूर्व-मध्यकाल में इसका नाम विजयपुरी था और अब इसे विजयपुर कहा जाता है। आरंभ में यह यादवों की राजधानी थी बाद में बहमनी साम्राज्य के अंतर्गत रही। यूसूफ आदिलशाह ने स्वतंत्र बीजापुर के आदिलशाही वंश की स्थापना की थी। यहाँ का गोल गुम्बद ( १६५९ ई॰, आदिलशाह का मकबरा ) प्रसिद्ध है।

भीमबेटका

मध्य प्रदेश के रायसेन जनपद में भीमबेटका स्थित है। भीमबेटका एक पुरापाषाणिक तथा मध्यपाषाणिक स्थल है। यहाँ से मानव शैलाश्रयों की प्राप्ति हुई है। इन्हीं शैलाश्रयों से उत्तर पुरापाषाणिक और मध्य पाषाणिक चित्रकला के साक्ष्य मिले हैं।

माण्डू

म॰प्र॰ के धार जनपद में माण्डू स्थित है। मालवा के शासक सुल्तान हुसंगशाह ने धार के स्थान पर माण्डू को अपनी राजधानी बनायी। १५३१ ई॰ में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने इसे जीता था। अकबर के समय यहाँ का सुल्तान बाज बहादुर था। अबकर के सेनापति अधम खाँ और पीर मुहम्मद ने इसे जीत लिया। यहाँ पर हिंडोला भवन, जहाज महल, रानी रूपमती का महल आदि माण्डू के दुर्ग में स्थित है।

मुर्शिदाबाद

पश्चिम बंगाल में भागीरथी-हुगली नदी के तट पर स्थित एक जनपद है। अकबर ने इसकी स्थापना मखसूदाबाद नाम से की थी। १७०४ ई॰ में मुर्शीद कुली खाँ ने इसे अपनी राजधानी बनायी और इसका नाम मुर्शिदाबाद रखा ( इससे पहले ढाका राजधानी थी। )। मीर कासिम ने मुर्शिदाबाद से अपनी राजधानी मुंगेर स्थानांतरित कर दी थी। १७७३ ई॰ तक कोलकाता ( कलकत्ता ) के राजधानी बनने तक यह बंगाल की राजधानी रही। यहाँ का हजारद्वारी महल प्रसिद्ध है।

वारंगल

वर्तमान में वारंगल तेलंगाना में स्थित है। मध्यकाल में वारंगल काकतीय वंश की राजधानी रही है। रानी रुद्रम्मा देवी यहीं की शासिका थीं। प्रतापरुद्रदेव के समय में अलाउद्दीन के सेनापति मलिक काफूर ने दक्षिण अभियान किया था जिसमें काकतीयों को अधीनता माननी पड़ी थी। प्रतापरुद्रदेव के समय में ही मु॰ तुगलक की सेना ने इस पर आक्रमण करके इसे विजित करते सल्तनत का हिस्सा बना लिया।

श्रीरंगपट्टनम् ( सेटिंगपट्टनम् )

श्रीरंगपट्टनम् कर्नाटक के मांड्या जनपद में कावेरी नदी में एक नदी द्वीप है। विजयनगर साम्राज्य के पतनोपरान्त श्रीरंगपट्टनम् को केन्द्र बनाकर वाडेयर वंशी शासकों ने मैसूर राज्य की स्थापना की थी। इसे हैदर अली और टीपू सुल्तान के समय में प्रसिद्धि मिली। यहीं पर टीपू ने स्वतंत्रता का वृक्ष लगाया था। अंग्रेजों और मैसूर के बीच चार युद्ध हुए और अंततः १७९९ ई॰ में वैल्जली ने इसे विजित कर वाडेयर वंशी शासन की स्थापना करके सहायक संधि थोप दी।

सन्नति ( सन्नाती )

सन्नाती गुलबर्गा जनपद, कर्नाटक में स्थित है। यहाँ से सम्राट अशोक लघु शिलालेख मिला है।

सासाराम

बिहार प्रांत के रोहतास जनपद का मुख्यालय सासाराम है। यहाँ से सम्राट अशोक का एक लघु शिलालेख मिलता है। शेरशाह सूरी ने अपने लगान सम्बन्धी प्रयोग की शुरुआत यहीं से की थी। जलाशय के मध्य शेरशाह सूरी का मकबरा वास्तुकला का सुन्दर नमूना है।

सिद्धपुर

कर्नाटक के चित्तलदुर्ग जनपद में सिद्धपुर स्थित है। यहाँ से सम्राट अशोक के लघु शिलालेख प्राप्त हुआ है।

सोमनाथ

सोमनाथ गुजरात के काठियावाड़ / सौराष्ट्र के गिर सोमनाथ या वेरावल जनपद में स्थित भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक के लिए प्रसिद्ध है। किंवदंती के अनुसार इसकी स्थापना सोमदेव अर्थात् चन्द्रदेव ने इसकी स्थापना की थी। यह मंदिर मुस्लिम आक्रांताओं के निशाने पर रहा। १०२४-२५ ई॰ में महमूद गजनी ने इसपर आक्रमण किया था। स्वतंत्र्योत्तर काल में इसका पुनर्निर्माण किया गया।

हम्पी

कर्नाटक प्रांत के बेलारी जनपद में तुंगभद्रा नदी तट पर स्थित हम्पी विजयनगर साम्राज्य की राजधानी रही है। इस नगर को तालीकोटा ( राक्षस तांगड़ी ) के युद्धोपरांत १५६५ ई॰ में बहमनी साम्राज्य के उत्तराधिकारी सल्तनतों के संगठन ने नष्ट कर दिया था। यहाँ का विरुपाक्ष मंदिर प्रसिद्ध है।

हलेबिडु

कर्नाटक के हासन जनपद में स्थित है। होयसल वंश की राजधानी द्वारसमुद्र का आधुनिक हलेबिडु है। यहाँ पर ११४९ से १३३९ ई॰ तक होयसलों का शासन रहा। बल्लाल तृतीय के शासनकाल में सन् १३१० में सल्तनत की सेना ने मलिक काफूर के नेतृत्व में आक्रमण किया। हलेबिडु में होयसलेश्वर मंदिर स्थित है जिसका निर्माण विष्णुवर्धन ने कराया था। यहाँ पर जैन मंदिरों में पार्श्वनाथ मंदिर तथा अन्य दो मंदिरों में ऋषभदेव व शान्तिनाथ की प्रतिमाएँ उल्लेखनीय हैं।

हल्दीघाटी

राजस्थान में अरावली की पहाड़ियों में स्थित एक दर्रा है। यहीं पर इतिहास प्रसिद्ध हल्दीघाटी युद्ध ( १८ मई, १५७६ ) हुआ था जो अनिर्णीत रहा।  युद्ध में एक तरफ महाराणा प्रताप की सेना तो दूसरी ओर मानसिंह के नेतृत्व में अकबर की सेना थी।

 

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — १

 

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — २

 

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — ३

 

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — ४

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