सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — ३

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — ३

 

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल का मानचित्रण भाग - ३
सांस्कृतिक-ऐतिहासिक स्थल – ३

अखनूर

अखनूर वर्तमान केन्द्र शासित प्रांत जम्मू और कश्मीर में स्थित एक जनपद है। सैंधव युगीन माण्डा नामक स्थान यहीं पर स्थित था। माण्डा सैंधव सभ्यता का सबसे उत्तरी स्थल है। यहाँ से प्राक्, विकसित और उत्तरकालीन हड़प्पा अवशेष मिले हैं।

उदयगिरि-खण्डगिरि

ओडिशा के खोर्धा जनपद में भुवनेश्वर से कुछ दूरी पर उदयगिरि-खण्डगिरी की पहाड़ियाँ स्थित हैं। ई॰पू॰ प्रथम शताब्दी में यहाँ पर कलिंग नरेश खारवेल ने उदयगिरि में १९ और खण्डगिरि में १६ जैन गुफाओं का निर्माण कराया था। उदयगिरि के हाथीगुम्फा अभिलेख से खारवेल के शासन के १३ वर्षों का क्रमबद्ध इतिहास मिलता है। इस अभिलेख में भारतवर्ष शब्द का प्रथम बार उल्लेख हुआ है।

कार्ले

महाराष्ट्र के पुणे जनपद में कार्ले स्थित है। यहाँ स्थित भोरघाट नामक पहाड़ी पर कार्ले की गुफाएँ खोदी गयीं। यहाँ पर एक भव्य चैत्यगृह और तीन विहार है। इनका निर्माण सातवाहनकाल में हुआ था। यहाँ के अभिलेखों में भूतपाल श्रेष्ठि और हरफान नामक पारसीक का उल्लेख है।

कुशीनगर

उ॰प्र॰ के कुशीनगर जनपद में स्थित कसया और पावा बुद्धकाल में मल्ल गणराज्य की राजधानी थी। कसया की पहचान कुसीनगर से और पावा की पडरौना से की गयी है। कुशीनगर के शालवन विहार में बुद्ध रुकते थे। यहीं पर उनका महापरिनिर्वाण ( ४८३ ई॰पू॰ ) भी हुआ था। मल्लों ने उनके धातु अवशेष पर स्तूप बनवाया था। अजातशत्रु के समय यह मगध साम्राज्य का अंग बन गया। अशोक ने यहाँ स्तूप व विहार बनवाये थे। फाह्यियान और हुएनसांग ने यहाँ की यात्री थी। यहाँ से बुद्ध की शयनावस्था में मूर्ति मिली है जिसपर धातु की चादर चढ़ी है।

कोटदीजी

कोटदीजी पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सिंधु नदी के बायें तट पर स्थित है। इसका एक नाम कैचीबेग भी मिलता है। यहाँ से प्राक् और परिपक्व हड़प्पा संस्कृति के अवशेष मिलते हैं। कोटदीजी का अंत अग्निकाण्ड से होने के साक्ष्य मिलते हैं।

गिरिनार

गिरिनार गुजरात के जूनागढ़ जनपद में स्थित है। यहाँ से अशोक का बृहद् शिला प्रज्ञापन मिला है। यहीं से शक महाक्षत्रप रुद्रदामन का अभिलेख ( १५० ई॰ ) और स्कंदगुप्त के दो अभिलेख ( ४५५ – ४६७ ई॰ ) मिलते हैं। ये सभी अभिलेख एक ही शिलाखण्ड पर मिले हैं। रुद्रदामन का अभिलेख संस्कृति भाषा का पहला अभिलेख है। इसका सम्बन्ध जैन तीर्थंकर नेमि से है।

गोप

यह गुजरात के जामनगर जनपद में है। यहाँ से गुप्तकालीन ( ६ठवीं शताब्दी ) गोप मंदिर ( सूर्य को समर्पित ) मिला है जोकि भग्न अवस्था में है।

ग्यासपुर ( ? )

महाराष्ट्र में पुणे जनपद में इनामगाँव के पास स्थित एक ताम्रपाषाणिक स्थल है।

चन्द्रकेतुगढ़

पश्चिम बंगाल के उत्तरी चौबीस परगना जनपद चन्द्रकेतुगढ़ स्थित है। यह स्थल उत्तरी काले चमकीले मृद्भाण्ड संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है।

जौगढ़

जौगढ़ ओडिशा के गंजाम जनपद में स्थित है। सम्राट अशोक ने कलिंग विजय के बाद इसे दो भागों में विभाजित किया — धौली ( तोसली ) और जौगढ़। इन दोनों स्थानों से अशोक के बृहद् शिला प्रज्ञापन मिलते हैं। इन दोनों स्थानों पर ११, १२ और १३वाँ लेख नहीं है और उसके स्थान पर दो पृथक कलिंग शिला प्रज्ञापन मिलते हैं। इन पृथक कलिंग शिला प्रज्ञापनों पर अशोक की शासन नीति का उल्लेख है, वह कलिंग के नगर व्यावहारिकों को न्याय के मामले में उदार और निष्पक्ष होने का निर्देश देता है। इसी में कहा गया है कि, ‘सभी प्रजा मेरी संतान है…।’

तक्षशिला

पाकिस्तान के रावलपिण्डी जनपद में स्थित है। यहाँ पर भीर का टीला, सिरकप और सिरमुख की पुरातात्विक अन्वेषण हुआ है। रामायण के अनुसार इसकी स्थापना भरत के पुत्र तक्ष ने की थी। यह महाजनपदकाल में पूर्वी गंधार की राजधानी थी जबकि पश्चिमी गंधार की राजधानी पुष्कलावती थी। तक्षशिला की प्रसिद्धि का कारण ‘तक्षशिला विश्वविद्यालय’ के कारण थी। यहीं पर यहीं से कोशल नरेश प्रसेनजित, मगध के राजवैद्य जीवक, चन्द्रगुप्त मौर्य आदि ने शिक्षा पायी थी। चाणक्य यहीं के आचार्य थे। सिकन्दर के आक्रमण के समय यहाँ का शासक आम्भी था जिसने उसकी मदद की थी। मौर्यकाल में यह उत्तरापथ की राजधानी थी। गुप्तकाल में यह गुप्तों के प्रभाव में रहा। पश्चिमोत्तर में होने के कारण यह बार-२ आक्रांत होता रहा। हुणों के आक्रमण से यह उजाड़ो गया। तक्षशिला विश्वविद्यालय

तिगवाँ

मध्य प्रदेश के जबलपुर जनपद में तिगवाँ से गुप्तकालीन प्रस्तर का विष्णु मंदिर मिला है।

धमनार की गुफाएँ

म॰प्र॰ के मंदसौर जनपद में स्थित है। यहाँ पर शैल काटकर ५१ बौद्ध गुफाओं का निर्माण ७वीं शताब्दी में कराया गया है।

धाम्नेर

बिहार राज्य के गया जनपद में स्थित है। इसे बोधगया भी कहते हैं।  यहाँ एक बौद्ध स्तूप था जिसे शायद अशोक ने बनवाया था।

नचना

म॰प्र॰ के पन्ना जनपद में अजयगढ़ के समीप नचना-कुठार नामक स्थल है। यहाँ से गुप्तकालीन पार्वती देवी का मंदिर है। मंदिर का छत सपाट है।

पुरुषपुर

पाकिस्तान का पेशावर जनपद प्राचीनकाल का पुरुषपुर है। इसकी स्थापना कुषाण शासक कनिष्क ने प्रथम शताब्दी ईसवी में की थी। यह कुषाण साम्राज्य की राजधानी बनी थी। यहाँ से कनिष्क चैत्य के अवशेष मिले हैं। यह गंधार कला का भी प्रमुख  केन्द्र था। कनिष्क की सभा में अश्वघोष, वसुमित्र, असंग, नागार्जुन, चरक जैसे विद्वान रहते थे।

भगवानपुरा

हरियाणा के कुरुक्षेत्र जनपद में सरस्वती ( घग्घर ) नदी के तट पर स्थित भगवानपुरा एक सैंधव युगीन स्थल है। इस स्थल का महत्त्व यह है कि यहाँ से परवर्ती हड़प्पा और चित्रित धूसर मृद्भाण्ड संस्कृतियों में अतिव्याप्ति के साक्ष्य मिले हैं। अब या तो यह माना जाये कि परवर्ती हड़प्पा संस्कृति ११०० ई॰पू॰ तक रही अथवा चित्रित धूसर मृद्भाण्ड संस्कृति की शुरुआत १७०० ई॰पू॰ के आसपास हुई। यह प्रश्न अभी तक अनुत्तरित है।

भूमरा

मध्य प्रदेश के सतना जनपद में भूमरा स्थित है। यहाँ से गुप्तकालीन शिव मंदिर मिला है जिसकी छत चपटी है। यहाँ से परिव्राजक महाराज हस्तिन् और उच्चकल्प महाराज सर्वनाग से सम्बंधित एक अभिलेख मिलता है।

भोगत्राव ( भगतराव )

भोगत्राव गुजरात में किम सागर संगम पर स्थित है। यह हड़प्पा सभ्यता से सम्बंधित स्थल है।

बराबर

बिहार के गया से कुछ दूरी पर स्थित बराबर और नागार्जुन की पहाड़ियाँ हैं। बराबर की पहाड़ियों में अशोक ने सुदामा, कर्ण चौपड़ और विश्व झोपड़ी का निर्माण कराकर आजीवक सम्प्रदाय को दान किया। अशोक के पौत्र दशरथ ने बराबर की पहाड़ी में लोमश ऋषि की गुफा बनवायी थी।

नागार्जुनी पहाड़ी में अशोक के पौत्र गोपी की गुफा, वहियक और वडियक की गुफा का निर्माण कराया था।

बराबर और नागार्जुन की पहाड़ी से मौखरिवंश के तीन अभिलेख मिले हैं। ये बिहार की मौखरि शाखा के थे।

बाघ

मध्य प्रदेश के धार जनपद में नर्मदा की सहायक बघारनी नदी के तट पर बाघ की पहाड़ियाँ स्थित है। बाघ की पहाड़ियों में गुप्तकाल में ९ गुफाओं का निर्माण हुआ। बाघ गुफाओं की चित्रकला अजंता की चित्रकला से इस बात में भिन्न हैं कि इनका विषय धार्मिक न होकर लौकिक है।

महेन्द्रगिरि

महेन्द्रगिरि नामक दो पहाड़ियाँ हैं — एक, ओडिशा में ( १५०१ मी॰ ) और दूसरी, तमिलनाडु में ( १६५४ मी॰ )।

मार्तण्ड

यह स्थल कश्मीर में है। यहाँ कार्कोट वंशी शासक के लालितादित्य मुक्तापीड ( ७२४ – ७४० ई॰ ) ने सूर्य का प्रसिद्ध मार्तण्ड मंदिर बनवाया जिसके भग्नावशेष आज भी वर्तमान हैं।

मुखलिंगम

मुखलिंगम् आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम् जनपद में वंशधारा नदी तट पर स्थित है। यहाँ पूर्वी गंग शासकों के बनवाये गये वास्तुकला के अवशेष मिलते हैं।

मोहेनजोदड़ो

पाकिस्तान में सिंध प्रांत के लरकाना जनपद में सिंधु नदी दायें तट पर स्थित है। इसकी खोज राखालदास बनर्जी ने १९२२ ई॰ में की थी। मोहनजोदड़ो सैंधव सभ्यता का स्थल है। यहाँ से विशाल भवन, पुरोहित की मूर्ति, नर्तकी की कांस्य मूर्ति, एक पशुपति मुद्रा आदि मिले हैं। यहाँ का नगर नियोजन उत्कृष्टतम् है।

रत्नगिरि

बिहार प्रांत के नालंदा जनपद में राजगृह ( गिरिव्रज ) को आवृत किये हुए ५ पहाड़ियों में से एक है। ये पाँच पहाड़ियाँ हैं — विपुलगिरि, रत्नगिरि, उदयगिरि, सोनगिरि और वैभवगिरि। रत्नगिरि का एक नाम ‘गृद्धकूट’ भी मिलता है और यहाँ बुद्ध का प्रिय निवास था।

रत्नागिरी

महाराष्ट्र में पश्चिमी तट पर स्थित एक जनपद है। यहाँ कई दुर्गों का निर्माण किया गया था। इसे शिवाजी ने अधिकृत किया था।

राजिम

राजिम छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जनपद में स्थित है। यहाँ से प्रसिद्ध राजीवलोचन मंदिर मिलता है। इसे छत्तीसगढ़ का संगम भी कहते हैं ( महानदी, पैरी और सोढुर नदी का संगम )।

लुम्बिनी

लुम्बिनी की पहचान नेपाल के तराई में स्थित रुम्मिनदेई से की जाती है। यह उ॰प्र॰ के महराजगंज जनपद में स्थित नौतनवा स्टेशन से कुछ दूरी पर है। यहाँ मिला अशोक का रुम्मिनदेई लघु शिलालेख बुद्ध के लुम्बिनी का जन्मस्थान होने का अभिलेखीय साक्ष्य है। अशोक ने अपने राज्याभिषेक के २०वें वर्ष यहाँ की यात्री थी। अश्वघोष कृत बुद्धचरित में और  फाह्यियान व हुएनसांग लुम्बिनी का उल्लेख करते हैं।

वल्लभी

गुजरात के काठियावड़ के आधुनिक भावनगर जनपद में स्थित वल नामक स्थान की पहचान वल्लभी से की जाती है। यहाँ पर वल्लभी विश्वविद्यालय की स्थापना मैत्रकवंशी शासक भट्टार्क ने गुप्तकाल में की थी। हुएनसांग और इत्सिंग ने इसका उल्लेख किया है। ८वीं शताब्दी में अरबों के आक्रमण ने इस विश्वविद्यालय को बहुत क्षति पहुँचायी थी। गुप्तकाल में यहीं पर तृतीय जैन संगीति हुई थी। बलभी विश्वविद्यालय

शिशुपालगढ़

शिशुपालगढ़ ओडिशा के खोर्धा जनपद में स्थित है। यह एक उत्तरी काली पालिश मृद्भाण्ड संस्कृति का स्थल है। यहाँ पर संस्कृति का प्रस्फुटन मौर्यकाल में हुआ।

श्रवणबेलगोला

श्रवणवेलगोला कर्नाटक के हास्य जनपद में चन्द्रगिरि और इन्द्रगिरि नामक पहाड़ियों मध्य स्थित है। चन्द्रगुप्त मौर्य अपने जीवन के अंत में जैन साधु भद्रबाहु के साथ यहीं चले आये थे और उपवास द्वारा अपना जीवन त्याग किया था। उन्हीं के नाम पर चन्द्रगिरि पहाड़ी है। गंग शासक रचमल्ल के मंत्री और सेनापति चामुण्डराय ने यहाँ पर महाबली गोमतेश्वर की ५७ फुट ऊँची ग्रेनाइट पत्थर की एकाश्मक प्रतिमा बनवायी थी। आज भी बाहुबली की स्मृति में प्रत्येक १२ वर्षों में महामस्तकाभिषेक किया जाता है।

श्रावस्ती

उ॰प्र॰ के श्रावस्ती जनपद में स्थित सहेत-महेत जो अचिरावती ( राप्ती ) नदी तट पर स्थित है। श्रावस्ती कोशल महाजनपद की राजधानी थी। बुद्ध के समकालीन शासक प्रसेनजित थे। श्रावस्ती में तीन प्रसिद्ध विहार थे — जेतवन, पूर्वाराम और मल्लिकाराम। बुद्ध ने यहाँ सर्वाधिक २१ वर्षाकाल व्यतीत किये थे। फाह्यियान और हुएनसांग दोनों ने इसकी यात्री थी।

संघोल

पंजाब के फतेहगढ़ साहिब जनपद में स्थित संघोल एक पुरातात्विक स्थल है। यहाँ से उत्तर हड़प्पा सभ्यता से लेकर मौर्योत्तर काल तक के अवशेष मिलते हैं। यह मथुरा कला का केन्द्र भी था।

सागर

मध्य प्रदेश में सागर जनपद में स्थित एरण नामक स्थान से गुप्तकालीन अभिलेखों के लिए प्रसिद्ध है। समुद्रगुप्त के एरण अभिलेख में एरण को उसका भोगनगर कहा गया है। यहाँ से रामगुप्त के ताम्र सिक्के मिलते हैं जिससे उसकी ऐतिहासिकता पर प्रकाश पड़ता है। एरण के भानुगुप्तकालीन अभिलेख ( ५१० ई॰ ) से सती प्रथा का प्रथम अभिलेखीय साक्ष्य मिला है। यहीं से वाराह प्रतिमा पर तोरमाण का एक अभिलेख अंकित है।

सित्तनवासल

सित्तनवासल तमिलनाडु के पुदुकोट्टा जनपद में स्थित है। यह शैल गुहा मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। यह जैन धर्म से सम्बंधित है। इन गुफाओं की दीवारों पर भित्तिचित्रों के अवशेष हैं यद्यपि इनके रंग धूमिल पड़िये हैं फिरभी जो मिले हैं वे उत्कृष्टता का आभास कराते हैं। इसका निर्माण पूर्वमध्यकाल का माना जाता है।

सिरपुर

छत्तीसगढ़ के महासमंद जनपद में सिरपुर से गुप्तकालीन लक्ष्मण मंदिर मिला है।  सिरपुर का यह मंदिर ईंटों का बना है। इस मंदिर का अब गर्भगृह ही बचा है। यहीं पर समीप में राम और जानकी मंदिर के अवशेष भी मिले हैं।

सुत्कांगेनडोर

पाकिस्तान के मकरान तट पर दाश्त नदी के तट पर स्थित एक सैंधव सभ्यता का स्थल है।

सुरकोटदा

गुजरात के कच्छ में स्थित एक सैंधवयुगान स्थल है। यहाँ से कलश शवाधान और घोड़े की अस्थियों के अवशेष मिले हैं।

सुल्तानगंज

बिहार प्रांत के भागलपुर जनपद में सुल्तानगंज स्थित है। यहाँ से गुप्तकालीन ताम्र निर्मित साढ़े सात फुट ऊँची बुद्ध की अभयमुद्रा की मूर्ति मिली है। सम्प्रति यह वर्तमान में इंग्लैंड के बर्मिंघम संग्रहालय में है। यहाँ से बौद्ध विहार व स्तूपों के अवशेष मिले हैं।

सोंख

उ॰प्र॰ के मथुरा जनपद में है। यह एक कुषाणकालीन स्थल है। सोंख की खुदाई में कुषाणकालीन भवनों के ७ स्तर और गुप्तकालीन भवनों के एक या दो ही स्तर है।

हड़प्पा

पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में रावी नदी के तट पर स्थित है। हड़प्पा सभ्यता सर्वप्रथम इसी स्थल की खोज रायबहादुर साहनी ने १९२१ ई॰ में की थी। यह हड़प्पा सभ्यता का यह प्रतीक स्थल है और इसी के नाम पर इस सभ्यता को ‘हड़प्पा सभ्यता’ कहा गया है।

हरवान

महाराष्ट्र और गुजरात की सीमा पर स्थित परवर्ती हड़प्पा सभ्यता के अवशेष मिले हैं।

 

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — १

 

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — २

 

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — ४

 

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल — ५

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