शाक्तधर्म : सिद्धान्त और आचार

शाक्तधर्म : सिद्धान्त और आचार

शाक्तधर्म के सिद्धान्त त्रिपुरा रहस्य, मालिनी विजय, महानिर्वाण, डाकार्णव, कुलार्णव आदि ताँन्त्रिक ग्रन्थों में उल्लिखित है।

शाक्त धर्मानुयायियों की विशेषताएँ निम्न हैं :—

  • मातृदेवी को आदिशक्ति मानकर आराधना की जाती है।
  • यही आदि शक्ति सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार करती है।
  • शक्ति को शिव का क्रियाशील रूप माना गया है।
  • इस मत में भक्ति, ज्ञान और कर्म तीनों का महत्व है। इसके साथ तन्त्रमन्त्र, ध्यान, योग आदि का भी इस मत में स्थान है।
  • साधना और मन्त्रों द्वारा जब यह शक्ति जागृत हो जाती है तब उपासक को मुक्ति मिलती है।

 

कौलमर्गी शाक्त अनुयायीपञ्चमकारोंमें विश्वास विश्वास रखते हैं। इनके आचरण अत्यंत घृणित हैं। ये पञ्चमकार निम्न हैं :—

  • मदिरा
  • माँस
  • मत्स्य
  • मुद्रा
  • मैथुन

 

शाक्त धर्मावलंबियों में देवी की स्तुति के तीन तरीक़े हैं :—

  • महापद्मवन में शिव की गोद में बैठी हुई देवी का ध्यान करना। यह ध्यान मन और हृदय को आह्लादित करता है क्योंकि देवी स्वयं आनन्दस्वरूपा हैं।
  • इसमेंश्रीचक्रबनाया जाता है। वस्तुतः श्रीचक्र में नौ योनियों का वृत्त बनाकर उसके मध्य एक योनि का चित्र बनाकर चक्र बनाया जाता है। इसकी पूजा के दो तरीक़े हैंएक जीवित स्त्री की योनिपूजाकाल्पनिक योनि की पूजा
  • इसमें दार्शनिक ढंग से ज्ञाते द्वारा देवी की उपासना की जाती है। इसमें ज्ञान और अध्ययन को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। इसमें कुत्सित आचारों की निन्दा करते हुए उसे त्याज्य बताया गया है। इस विधि से देवी का आराधन करने वाले आराधकशुद्ध और सात्विकहोते हैं।

 

शाक्त धर्म वर्तमान में भी लोकप्रिय है। देवी की पूजा देश के विभिन्न भागों में श्रद्धा और उल्लास से की जाती है। बंगाल और असम इस मत का गढ़ है। दुर्गा पूजा ( शारदीय नवरात्रि के समय ) पूरे देश में मनायी जाती है। चैत्र एवं शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है जिसमें आराधक नव दिनों ( दोनों में ) तक व्रत, जप, आराधना आदि करता है। यह दोनों समय सम्पूर्ण भारत में त्योहार का वातावरण लाता है।

 

शाक्त धर्म

शाक्त-धर्म की तान्त्रिक विचारधारा

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