मृद्भाण्ड परम्परायें ( Pottery traditions )

भूमिका

प्रारम्भ में मृद्भाण्डों के महत्त्व को नहीं समझा जाता था। उत्खनन के दौरान जो मृदभाण्डों के जो टुकड़े प्राप्त होते थे उन्हें महत्त्वहीन समझकर फेंक दिया जाता था। सर्वप्रथम फ्लिंडर्स पेट्री ( Flinders Petry ) नामक पुरातत्ववेता ने मिस्र में उत्खनन के दौरान प्राप्त मृद्भाण्डों के महत्त्व का आकलन करते हुए बताया कि प्रत्येक युग में विशेष प्रकार के मृद्भाण्ड ( मृद्भांड ) बनाये जाते है। उनका प्रकार लम्बे समय तक बना रहता है जिनका अध्ययन करके हम काल विशेष की संस्कृति सम्बन्धी कुछ बातें जान सकते हैं।

महत्त्व

फ्लिंडर्स पेट्री के निष्कर्ष के पश्चात् पुराविदों ने मृद्भाण्डों का महत्त्व समझा और अब मृदभाण्डों को पुरातत्त्व की वर्णमाला ( Alphabet of Archaeology ) के रूप में मान्यता प्राप्त है।

जिस प्रकार वर्णमाला के ज्ञान से ही हम तत्सम्बन्धी साहित्य का ज्ञान प्राप्त कर सकते है, उसी प्रकार विभिन्न कालों एवं कौशल तकनीक से निर्मित मृद्भाण्डों का अध्ययन एवं परीक्षण करके हम काल विशेष एवं स्थल विशेष की संस्कृति के विविध पक्षों को उद्घाटित कर सकते हैं।

इतिहास एवं संस्कृति के अन्य स्रोतों के समान मृद्भांड भी एक उपयोगी स्रोत हैं। इनके आधार पर कुछ ऐसी गूढ़ पहेलियों को सुलझाने में सहायता मिलती है जो अन्य स्रोतों के माध्यम से नहीं ज्ञात हो पाते। इनके विश्लेषण से उत्खनित स्तर को तिथि निश्चित करने में भी सहायता मिलती है। अतः मृद्भांड प्राचीन संस्कृतियों के अध्ययन के लिये अत्यन्त उपयोगी है।

प्रायः समस्त ताम्रपाषाणिक तथा ऐतिहासिक काल के पूर्व तक की संस्कृतियों की पहचान मृद्भांडो के आधार पर ही होती है। एक प्रकार से मृद्भांड ही इनके नैदानिक लक्षण है।

  • Ceramics have to stay as the main diagnostic attribute of all Chalcolithic and subsequent cultural stages till proper history came up. – K. Bhattacharya: An Outline of Indian Pre-history

प्रमुख मृदभाण्ड परम्पराएँ

विश्व के विभिन्न देशों के समान भारत में भी पुरातात्विक उत्खनन के फलस्वरूप विविध प्रकार के मृद्भाण्ड प्रकाश में आये है। प्रमुख मृद्भाण्ड परम्पराएँ निम्न हैं —

गैरिक या गेरुवर्णी मृद्भाण्ड ( Ochre Coloured Pottery – OCP )

चित्रित धूसर मृद्भाण्ड ( Painted Grey Ware — PGW )

कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड या काले लाल मृद्भाण्ड ( Black and Red Ware — BRW )

उत्तरी कृष्ण मार्जित मृद्भाण्ड ( Northern Black Polished Ware — NBPW )

गैरिक मृद्भाण्ड संस्कृति ( Ochre Coloured Pottery Culture )

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