भारत का पश्चिमी देशों से सम्पर्क

भारत और पाश्चात्य विश्व के साथ सम्बन्ध

भूमिका

भारत का पश्चिमी देशों से सम्बंध मुख्यतया व्यापारिक रहा है। इन सम्बन्धों की प्राचीनता प्रागैतिहासिक युग तक जाती है। इन सम्बन्धों के साक्ष्य पुरातात्विक और साहित्यिक दोनों तरह के मिलते हैं।

सैंधव लोगों के पाश्चात्य सभ्यता से सम्पर्क

वर्तमान ईराक के दजला-फरात नदी घाटी में मेसोपोटामिया सभ्यता का विकास हुआ था। वर्तमान में दजला और फरात नदी को क्रमशः टाइग्रिस ( Tigris river ) और यूफ्रेटस नदी ( Euphrates river ) कहते हैं। इस सभ्यता से सैन्धव लोगों का व्यापार पर्याप्त रूप से विकसित था। इस व्यापारिक सम्पर्क का चरमकाल वहाँ के शासक सारगोन के शासन में था।

  • मेसोपोटामिया उत्पत्ति की वस्तुएँ सैन्धव स्थलों और सैन्धव उत्पत्ति की वस्तुएँ मेसोपोटामियाई स्थलों पर पाई गयी हैं।
  • उर से सैंधव मूल का ताम्र शृंगारदान मिला है।
  • मोहनजोदड़ो से एक ऐसी मुहर और ठीकरा मिला है जिस पर सुमेरियन पोत का चित्र है। यह समुद्री व्यापार का द्योतक है।
  • सारगोन काल के लेख में मेलुहा, ढिल्मुन और मकन नामक स्थानों का उल्लेख है। विद्वानों ने मेलुहा का सम्बन्ध मोहनजोदड़ो से जोड़ा है।

सैन्धव वासियों ने हिन्दुकुश पार अफगानिस्तान में व्यापारिक उपनिवेश स्थापित किये थे जिसमें प्रमुख थे — मुंडीगाक और शोर्तुघोई। शोर्तुधोई के बदख्शाँ क्षेत्र से लाजवर्द मणि प्राप्त करते थे। इसके अलावा इस क्षेत्र से वे चाँदी और टिन भी प्राप्त करते थे।

फारस से सैन्धव निवासी संगाश्म / हरिताश्म, फिरोजा, टीन और चाँदी प्राप्त करते थे।

मिश्र से सैन्धव गुरियों के प्रमाण मिलते हैं।

सारगोन युगीन लेख में ढिल्मुन का उल्लेख है जिसकी पहचान बहरीन से की गयी है। इसे सूर्योदय का देश, साफ-सुथरे नगरों का देश और हाथियों का देश कहा गया है। यह सैन्धव और मेसोपोटामिया के व्यापार में बिचौलिये का काम करता था।

कुवैत के समीप रस-अल-फैल्का द्वीप की खुदायी से स्पष्ट होता है कि यह भी मेसोपोटामिया और हड़प्पा सभ्यता के व्यापारिक सम्बन्धों में मध्यस्थता करता था।

रूस के दक्षिण में स्थित तुर्कमेनिस्तान के अल्तिनडेपे, नामज्गाडेपे, आनाउ आदि से भी सैन्धव सम्पर्क के साक्ष्य मिले हैं।

तिब्बत से सम्भवतः से शीशे का आयात होता था।

सैन्धव लोगों का सम्पर्क एशियाई और अफ्रीकी देशों से स्थापित हो चुका था। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि अभी चीन, श्रीलंका, दक्षिण-पूर्व एशिया और यूरोपीय देशों से भारतीय सम्पर्क स्थापित नहीं हुआ था।

वैदिक काल

वैदिक संस्कृति ग्रामीण और चरवाहा संस्कृति थी। इस काल में व्यापार का स्पष्ट उल्लेख कम मिलता है। पूर्व-वैदिक काल में आर्यों का मुख्य केन्द्र सप्त-सैन्धव क्षेत्र था जबकि उत्तर-वैदिक काल में लौह युग का अवतरण हुआ जिसने द्वितीय नगरीय क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार की।

बौद्ध काल से पूर्व-मौर्य काल तक

इस समय सूर्पारक और भृगुकच्छ जैसे बंदरगाहों का उल्लेख मिलता है। बाबेरू जातक में उल्लेख है कि भारतीय व्यापारी बेबीलोन तक व्यापार करने जाते थे। इसमें मयूर और कौओं के व्यापार का वर्णन है।

एक ओर जहाँ गंगा की घाटी में मगध साम्राज्य का उदय हो रहा था वहीं दूसरी ओर फारस में हखामनी साम्राज्य का। दारा प्रथम ( ५२२ – ४८६ ई० ) ने सिन्धु और पंजाब को अपने साम्राज्य का भाग बना लिया। स्काइलैक्स ( दारा का नौसेनाध्यक्ष ) ने एक नये समुद्री मार्ग का पता लगाया जो लाल सागर तक जाता था।

सिकन्दर के आक्रमण से और उसके द्वारा विभिन्न नगरों की स्थापना से भारत और पश्चिमी देशों के मध्य सम्बन्ध और प्रगाढ़ हुआ। सिकन्दर ने निकैया, बउकेफला, सिकन्दरिया आदि उपनिवेशों की स्थापना की थी।

मौर्य युग

मौर्य काल में भारत ने पहली बार अभूतपूर्व राजनीतिक एकता देखी। भारत ने प्रथम बार स्थायी रूप से कूटनीतिक / राजनयिक सम्बन्ध अन्य ज्ञात राज्यों से स्थापित किये।

  • ३०५ ईसा पूर्व में चन्द्रगुप्त मौर्य और सेलूकस निकेटर के बीच युद्ध हुआ जिसमें चन्द्रगुप्त मौर्य की विजय हुई। दोनों में संधि हो गयी। सेलूकस निकेटर ने मेगस्थनीज को अपना राजदूत बनाकर मौर्य राजसभा में भेजा था।
  • सीरिया के शासक एण्टियोकस प्रथम ने डाइमेकस नामक राजदूत बिन्दुसार मौर्य की राजसभा में भेजा था।
  • बिन्दुसार ने एक पत्र लिखकर एण्टियोकस से सूखी अंजीर, मदिरा और दार्शनिक की माँग की थी। जिसमें से दार्शनिक को छोड़कर अन्य दो वस्तुएँ एण्टियोकस ने भेंज दी थीं।
  • मिश्र के शासक टालमी फिलाडेल्फस द्वितीय ने डायनोसियस को राजदूत बनाकर मौर्य दरबार में भेंजा था।
  • सम्राट अशोक के शिलालेख संख्या – १३ में कुछ पश्चिमी नरेशों का उल्लेख मिलता है :—

( १ ) तुलमाय ( मिश्र का यवनराज टालमी फिलाडेल्फस द्वितीय )

( २ ) अंतेकिन ( मेसोडोनिया के यवनराज एण्टीगोनस गोनातास )

( ३ ) मगा ( उत्तरी अफ्रीका में सरीन के यवनराज )

( ४ ) अलिकसुन्दर ( ऐपीरस या कोरिन्थ के यवनराज एलेक्जेंडर )

  • सम्राट अशोक ने तत्कालीन ज्ञात विश्व के विभिन्न भागों में सद्भावना मिशन भेजे थे; जैसे – यूनान देश, हिमालय देश, श्रीलंका, सुवर्ण भूमि आदि।
  • पश्चिमी देशों से व्यापारिक सम्पर्क जल और स्थल दोनों मार्गों से होता था। एक मुख्य स्थल मार्ग तक्षशिला से काबुल, बैक्ट्रिया और वहाँ से पश्चिमी देशों तक जाता था। समुद्री मार्ग भारत के पश्चिमी तट से फारस की खाड़ी होते हुए अदन तक जाता था।
  • मिश्र के शासक टालमी फिलाडेल्फस ने व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिए लाल सागर के तट पर ‘बरनिस’ नामक बंदरगाह की स्थापना की थी। यहाँ से मिश्र के प्रसिद्ध बंदरगाह ‘सिकन्दरिया’ के लिये ३ स्थल मार्ग जाते थे।

 

भारत और रोम सम्बन्ध

 

भारत और मध्य एशिया

 

भारत-चीन सम्बन्ध

 

भारत और तिब्बत सम्पर्क

 

भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के सम्बन्ध

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