पाषाणकाल : काल विभाजन

भूमिका

वास्तव में पाषाणकाल या प्रस्तर युग ( Stone Age ) मानव इतिहास का वह समय है जिसमें उसने अपने उपयोग के लिए प्रस्तर उपकरणों का प्रयोग किया, यथा – प्रस्तर उपकरणों ( Stone Tools ) का उपयोग करना, प्राकृतिक पर्वतीय गुफाओं में निवास आदि। जैसे ही धातु के उपयोग की जानकारी मानव को हुई वह धातुकाल कहलायी।

प्रस्तर युग वर्तमान से लगभग २० या २५ लाख वर्ष पूर्व शुरू होता है। हमारे पास अधिक से अधिक २५०० वर्ष का लिखित इतिहास है। यह मानव इतिहास का मोटेतौर पर लगभग ०.१% ही है। अतः सुदूर अतीत का मानवीय इतिहास अर्थात् प्रस्तरकाल जिसे प्रागितिहास ( Pre-History ) कहते हैं, के अध्ययन का एकमात्र साधन पुरातत्त्विक स्रोत ( Archaeological Source ) ही हैं।

प्रागैतिहासिक पंचांग व मानव उद्विकास

मानव के विकास को जलवायु ने सबसे अधिक प्रभावित किया है। मानव संस्कृति के निर्माता मोटे तौर पर आज से लगभग ५० लाख वर्ष पूर्व हुए। इसलिए उस समय को प्रागैतिहासिक पंचांग को शून्य के स्तर पर रखना होगा।

भू-वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी की आयु ४.६ अरब वर्ष है। पृथ्वी पर आज से लगभग ३.५ अरब वर्ष पहले जीवन की शुरुआत हुई।

पृथ्वी की भू-वैज्ञानिक समय सारणी को महाकल्पों ( Eras ) में बाँटा गया। प्रत्येक महाकल्प को कल्पों ( Periods ) में बाँटा गया। पुनः कल्प को अनेक युगों ( Epochs ) में विभाजित किया गया।

पृथ्वी के भू-वैज्ञानिक इतिहास का अंतिम महाकल्प ( Era ) नूतनजीव महाकल्प ( Cainozoic Era ) है। इस नूतनजीव महाकल्प का विभाजन निम्न प्रकार से किया गया है :-

  • नूतनजीव महाकल्प ( Cainozoic Era ) : दो कल्पों में विभाजन :-
    • तृतीयक कल्प ( Tertiary Period ) : पाँच युगों में विभाजन
      • पुरानूतन ( Palaecene )
      • आदिनूतन ( Eocene )
      • अल्पनूतन ( Oligocene )
      • मध्यनूतन ( Miocene )
      • अतिनूतन ( Pliocene )
    • चतुर्थ कल्प ( Quarternary Period ) : दो युगों में विभाजन
      • अत्यंतनूतन ( Pleistocene )
      • नूतनतम ( Holocene )

अत्यंतनूतन युग ( Pleistocene Epoch ) आज से लगभग २० लाख वर्ष पूर्व शुरू हुआ। इसको हिमयुग ( Ice Age ) भी कहते हैं। प्राज्ञ मानव ( Homo sapiens ) इसी समय अस्तित्व में आया।

वर्तमान से लगभग १०,००० वर्ष पूर्व जलवायु में बड़ा बदलाव आया। हिमयुग की समाप्ति हो गयी। यह जलवायु अब तक चल रहा है। इसी को नूतनतम ( Holocene Epoch ) कहा जाता है। इसमें आधुनिक मानव ( Modern Man ) अस्तित्त्व में आया।

अत्यंतनूतन युग ( Pleistocene Epoch ) या हिमयुग के अंतर्गत पुरापाषाणकाल ( the Palaeolithic Age ) को रखा जाता है। दूसरी ओर हिमयुग की समाप्ति पर नूतनतम युग ( Holocene Epoch ) की शुरुआत होती है और इसके तहत मध्य पुरापाषाणकाल ( the Mesolithic Age ) और नवपाषाणकाल ( the Neolithic Age ) को रखा जाता है। मध्य पुरापाषाणकाल ( the Mesolithic Age ) एक प्रकार से पुरापाषाणकाल और नवपाषाणकाल के बीच संक्रमणकाल माना जाता है।

मानव उद्विकास ( Human Evolution )

पाषाणकाल : अध्ययन की शुरुआत

पुरातात्त्विक स्थलों की खोज का कार्य ‘भारतीय पुरातत्त्व एवं सर्वेक्षण विभाग’ करता है। इस विभाग के जन्मदाता ‘एलेक्जेंडर कनिंघम’ माने जाते हैं। किन्तु इसकी स्थापना १९०४ ई० में लार्ड कर्जन के समय में हुई थी।

भारत में मानव का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से प्रारम्भ होता है। प्रागैतिहासिक काल इतिहास का वो कालखंड है जिसके कोई लिखित अभिलेखीय साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। इस काल के इतिहास का निर्माण पुरातात्त्विक साक्ष्यों पर आधृत है। इन पुरातात्त्विक साक्ष्यों में सम्मिलित हैं — प्रस्तर उपकरण, मृद्भाण्ड, कलाकृतियाँ और धातु के उपकरण। ये पुरातात्त्विक साक्ष्य प्रागैतिहासिक मानवों के जनजीवन, सभ्यता-संस्कृति को जानने का साधन है।

प्रागैतिहासिक काल को दो भागों में विभाजित किया गया — प्रस्तर युग या पाषाणकाल और धातु युग। प्रस्तर काल को पुनः तीन भागों में विभाजित किया गया है — पुरापाषाण (पुराना पाषाण युग), मध्यपाषाण (मध्य पाषाण युग), नवपाषाण (नया पाषाण युग)। धातु युग को भी तीन भागों में बाँटा गया है — ताम्र काल, काँस्य काल और लौह युग। हालाँकि ये अवधि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में एक समान नहीं थी।

इन संस्कृतियों के निर्धारण के लिए विभिन्न वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है; जैसे — रेडियो कार्बन तिथि निर्धारण पद्धति, वृक्ष-वलय तिथि-निर्धारण पद्धति / वृक्ष कालानुक्रमिकी ( dendochronology )।

 

महत्वपूर्ण तथ्य

भारतीय प्रागैतिहास को उद्घाटित करने का श्रेय डॉ० प्राइमरोज को प्राप्त है। इन्होंने १८४२ ई० में कर्नाटक के रायचूर जनपद के लिंगसुगूर से प्रागैतिहासिक उपकरणों को खोज निकाला जिसमें छुरे और तीर के फलक शामिल थे।

सन् १८५३ ई० में जॉन इवांन ने जबलपुर के पास नर्मदा घाटी से मिले कुछ प्रस्तरों का विवरण प्रकाशित कराया जो कारीगरी की प्रक्रिया से गुजरे थे।

कर्नल मीडोजटेलर ने १९वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हैदराबाद में उत्खनित महापाषाणकाल के शवाधान की कई रिपोर्टों का प्रकाशन किया।

भारतीय उप-महाद्वीप में प्रस्तरयुगीन सभ्यता का अनुसंधान सर्वप्रथम १८६३ ई० प्रारम्भ हुआ जब भारतीय भूतत्त्व सर्वेक्षण विभाग ( Geological Survey Of India – GSI ) के विद्वान राबर्ट ब्रूस फूट ( Robert Bruce Foote ) ने पल्लवरम् ( चेन्नई के पास ) नामक स्थान से पूर्व पाषाण काल के एक उपकरण प्राप्त किया। राबर्ट ब्रूस फूट पेशे से एक भू-वैज्ञानिक ( Geologist ) थे। भारतीय पुरातत्त्व में उनके योगदान के लिए राबर्ट ब्रूस फूट को भारतीय प्रागितिहास का पिता कहा जाता है।

१९३० ई० में एम० सी० बर्किट ने कृष्णा घाटी में अनुसंधान करके एक विवरण प्रकाशित कराया।

तदुपरांत विलियम किंग, ब्राउन, काकबर्न, सी० एल० कार्लाईल सरीखे विद्वानों ने भारतीय उप-महाद्वीप के विविध भागों में पूर्व-पाषाणकालीन उपकरण प्राप्त किये।

१९३५ ई० में येल-कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के अनुसंधान दल ने पोतवार पठार का गहन अनुसंधान किया। इस दल का नेतृत्व डी० टेरा और पीटरसन ने किया।

मार्टीमर व्हीलर के प्रयासों से भारत विश्व के प्रागैतिहासिक मानचित्र पर प्रतिष्ठित हुआ।

सन् १९५० में स्टुअर्ट पिग्गट की कृति ‘Prehistoric India’ ने भारतीय प्रागैतिहासिक अध्ययन को एक नयी दशा-दिशा प्रदान की।

इतिहास में कालविभाजन : लिपिज्ञान के आधार पर

मानव इतिहास की शुरुआत सुदूर भूतकाल से होती है। अध्ययन की सुविधा के लिए इतिहासकारों ने इसे कई भागों में बाँटा है जिसके आधार लिपिज्ञान, उपकरण प्रयोग, जलवायु और बाद में जैसे-जैसे हम वर्तमान की ओर बढ़ते हैं विशेषीकृत आधार हो जाते हैं।

लिपिज्ञान या लिखित विवरण के आधार पर

इतिहास को सम्पूर्ण रूप से लिखित साक्ष्य के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया गया है :-

  • एक, प्रागितिहास ( Pre-History ) : यह वह कालखंड है जब मानव को लिपि या लेखन कला का ज्ञान नहीं था।
  • द्वितीय, आद्य इतिहास ( Proto-History ) : ऐसी संस्कृतियाँ जिनमें लिपि के साक्ष्य तो मिले है परन्तु उनका उद्वाचन नहीं हो सका है, जैसे – सिंधु घाटी सभ्यता। साथ ही वैदिक काल में शिक्षा मौखिक थी। अत: सिंधु घाटी सभ्यता व वैदिक काल को इसके अन्तर्गत रखते हैं।
  • तृतीय, इतिहास ( History ) : वह समय जबसे मानव इतिहास के लिखित साक्ष्य मिलने लगते हैं। इसमें मानव लिखना-पढ़ना जानता था। भारतीय संदर्भ में ऐतिहासिक काल छठवीं/पाँचवीं शताब्दी से माना जाता है।

पाषाणकाल : काल विभाजन

प्रागैतिहासिक काल के अध्ययन में सबसे पहले इसके काल विभाजन की समस्या आती है। सन् १७७६ ई० में पी० एफ० शुम ( Peter Frederik Suhm ) ने डेनमार्क के प्रागैतिहास को तीन कालखण्डों में विभाजित किया –

  • पाषाण काल ( Stone Age )
  • कांस्य काल ( Bronze Age )
  • लौह काल ( Iron Age )

लार्तेत ( Lartet ) ने पाषाण उद्योगों के अनुसार चलनेवाले प्राणिसमूह में परिवर्तन को देखते हुए १८७० के दशक में पाषाणकाल को तीन भागों में विभाजित किया जिसे सामान्यतः वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त है —

  • प्रारम्भिक पूर्व पाषाण
  • मध्य पूर्व पाषाण
  • उच्च पूर्व पाषाण

भारतीय संदर्भ में १९६० ई० के पहले पूर्व पाषाण काल को प्रस्तर युग ( Stone Age ) कहा जाता था क्योंकि यह माना गया कि भारत में कोई उत्तर पुरापाषाण युग ही नहीं था। अतः समस्त अत्यन्त नूतन कालीन संस्कृति ( Pleistocene culture ) का विभाजन पूर्व प्रस्तर काल ( Early Stone Age ) एवं मध्य प्रस्तर काल ( Middle Stone Age ) में कर दिया गया। परन्तु हाल ही में ‘पुरापाषाण काल’ और ‘परम्परागत तीन वर्गीय काल विभाजन का प्रयोग पुनः प्रारम्भ किया गया क्योंकि भारतीय उप-महाद्वीप के कई भू-भागों से उत्तर पुरापाषाण कालीन साक्ष्यों के विवरण प्राप्त हुए हैं। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि उत्तर पुरापाषाणकाल के विशिष्ट प्रस्तर उपकरण ब्लेड ब्यूरिन ( Blade Burin ) हैं।

पूर्व या पुरा पाषाणकाल के विषय में सुव्यवस्थित व क्रमबद्ध अनुसंधान विशेषकर फ्रांस में प्रारम्भ हुआ था। इसलिए वहीं की शब्दावली को मानकरूप में स्वीकार किया जाता है। अफ्रीका में पुरापाषाणकाल के लिये प्रारम्भिक (Early), मध्य (Middle) तथा उत्तर (Late) पाषाणकाल नाम दिया गया। युरोप में इसका नामकरण निम्न (Lower), मध्य (Middle) तथा उच्च (Upper) पूर्व या पुरापाषाणकाल के रूप में हुआ।

क्योंकि भारत के विभिन्न भागों से अब उच्च पुरा पाषाण संस्कृति के साक्ष्य प्रकाश में आ चुके हैं, अतः भारतीय पाषाणकालीन संस्कृति का नामकरण भी युरोप के अनुसार ही किया जा सकता है जो निम्नवत् है-

(१) पूर्व या पुरा पाषाणकाल ( the Palaeolithic Age ) : उपकरणों में भिन्नता और जलवायु परिवर्तन के आधार पर तीन कालों में विभाजित किया जाता है :-

(क) निम्न पूर्व पाषाणकाल या पूर्व पुरापाषाणकाल ( the Early or Lower Palaeolithic Age )

(ख) मध्य पूर्व पाषाणकाल या मध्य पुरापाषाणकाल ( the Middle Palaeolithic Age )

(ग) उच्च पूर्व पाषाणकाल या उत्तर पुरापाषाणकाल ( the Upper or Late Palaeolithic Age )

(२) मध्य पाषाणकाल ( the Mesolithic Age )

(३) नव पाषाणकाल ( the Neolithic Age )

पाषाणकाल : काल विभाजन ( मोटेतौर पर )

क्रम नाम : समय
१. पुरापाषाणकाल : ६,००,००० ई०पू० से १०,००० ई०पू० तक

२. मध्यपाषाणकाल : १०,००० ई०पू० से ४,००० ई०पू० तक
३. नवपाषाणकाल : ७,००० ई०पू० से १,००० ई०पू० तक

पाषाणकाल : नामकरण

पाषाणकाल ( Stone Age ) के आरम्भिक काल को हिन्दी में पुरापाषाणकाल और अँग्रेजी में Palaeolithic Age कहा गया है। इनकी उत्पत्ति इस तरह है :-

  • पुरापाषाण = पुरा + पाषाण। पुरा का अर्थ है प्राचीन और पाषाण का अर्थ है प्रस्तर या पत्थर।
  • Palaeolithic = Palaeo + Lithos। palaeo और lithos दोनों यूनानी शब्द हैं। Palaeo का अर्थ है – old अर्थात् प्राचीन और lithos का अर्थ है – stone अर्थात् पत्थर।

इस तरह पुरापाषाणकाल मानव इतिहास की वह प्राचीन या आरम्भिक अवस्था है जिसमें वह प्रस्तर उपकरणों का प्रयोग करता था।

पुरापाषाणकाल २० लाख वर्ष से लेकर १२,००० आद्य पूर्व ( before present –  B.P. ) या १०,००० ई०पू० तक फैला हुआ है। मानव इतिहास की लगभग ९९ % घटनाएँ पुरापाषाणकाल ( Palaeolithic Age ) के अंतर्गत आती हैं।

पुनश्च पुरापाषाणकाल को बदलते औजार प्रौद्योगिकी के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया गया :- ‘पूर्व’, ‘मध्य’ व ‘उत्तर’ पुरापाषाणकाल।

जिस काल में हमें पर्यावरणीय परिवर्तन मिलते हैं, उसे मध्यपाषाणकाल ( Mesolithic Age ) नाम दिया गया। यह भी दो शब्दों से मिलकर बना है :- 

  • मध्यपाषाण = मध्य + पाषाण। अर्थात् पुरा व नव पाषाण के बीच या मध्य की अवस्था।
  • Mesolithic = mesos + lithos। दोनों यूनानी शब्द है। mesos का अर्थ है – middle ( मध्य ) और lithos का अर्थ है –  stone ( पत्थर )।

इसका समय लगभग १२,००० वर्ष पहले से लेकर १०,००० वर्ष पहले तक माना गया है। मध्यपाषाणकाल के पाषाण औजार ( stone tools ) आमतौर पर बहुत छोटे होते थे। इन्हें ‘लघुपाषाण’ ( microliths )  कहा जाता है। प्रायः इन प्रस्तर औजारों में अस्थियों या लकड़ियों के मुट्ठे लगे हँसिया और आरी जैसे उपकरण मिलते थे। इन लघुपाषाण उपकरणों के साथ-साथ पुरापाषाण युग के औजार भी प्रयोग में चलते रहे।  मध्य पुरापाषाणकाल को पुरापाषाणकाल व नवपाषाणकाल के मध्य संक्रमणकाल ( transition stage ) माना जाता है।

पाषाणकाल की अंतिम अवस्था को नवपाषाणकाल ( Neolithic Age ) नाम दिया गया है। नवपाषाण या Neolithic दो शब्दों से मिलकर बना है :-

  • नवपाषाण = नव + पाषाण। नव का अर्थ है – नवीन या नया। पाषाण का अर्थ है प्रस्तर या पत्थर।
  • Neolithic = neos + lithos। दोनों यूनानी शब्द हैं, जिनका क्रमशः अर्थ है – new ( नव )  stone ( पाषाण या पत्थर )।

नवपाषाणकाल की शुरुआत लगभग १०,००० वर्ष पहले होती है। नवपाषाणकाल में मानव के जीवन में स्थायित्व आया और इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं –

  • कृषि कार्य,
  • पशुपालन,
  • मद्भाण्ड निर्माण और
  • पत्थर के औजारों का घर्षण और उनपर पॉलिश करना।

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