जैन धर्म के विभिन्न उप-सम्प्रद्राय

जैन धर्म के विभिन्न उप-सम्प्रद्राय

 

चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में मगध में १२ वर्षीय अकाल पड़ा था। इस समय भद्रबाहु के नेतृत्व में जैन धर्म का एक समुदाय दक्षिण भारत चला गया। जबकि स्थूलभद्र अपने अनुयायियों के साथ मगध में ही रहे। दक्षिण से जब भद्रबाहु का अपने अनुयायियों के साथ उत्तरी भारत ( मगध ) में पुनरागमन हुआ तो इन दो समुदायों के मध्य मतभेद उभर आये। इन मतभेदों के कारण जैन धर्म दो भागों में बंट गया :—

  • श्वेताम्बर 
  • दिगम्बर
श्वेताम्बर दिगम्बर
इनका नेतृत्व स्थूलभद्र ने किया।इनका नेतृत्व भद्रबाहु ने किया।
ये श्वेत वस्त्र धारण करते थे अतः इनका नाम श्वेताम्बर पड़ा। ये लोग वस्त्र को मोक्ष प्राप्ति में बाधक नहीं मानते हैं।ये नग्न रहते थे। इनके अनुसार वस्त्र मोक्ष प्राप्ति में बाधक था।
श्वेताम्बर जैनियों को यति, आचार्य और साधु कहा गया।ये ऐल्लक, झुल्लक और निर्ग्रंथ कहलाये।
इनके अनुसार ज्ञान प्राप्ति के बाद भी भोजन आवश्यक है।इनका मानना था कि ज्ञान प्राप्ति के बाद भोजन आवश्यक नहीं है।
इन लोगों का मानना था कि महावीर स्वामी का विवाह हुआ था और इनको एक पुत्री थी।दिगम्बरों का मानना है कि महावीर स्वामी अविवाहित थे।
श्वेताम्बरों के अनुसार १९वें तीर्थंकर मल्लिनाथ स्त्री थीं।ये लोग मल्लिनाथ को पुरुष मानते हैं।
स्त्री के लिए मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है, ऐसा इन लोगों का मत है।इनके अनुसार स्त्री मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकती।
ये लोग प्राचीन जैन ग्रंथों को मान्यता देते हैं।दिगम्बर प्राचीन जैन साहित्य को अप्रामाणिक मानते हैं और मान्यता नहीं देते हैं।
कालांतर में श्वेताम्बर सम्प्रदाय का भी विभाजन हो गया -
१- पुजेरा या डेरावासी
२- ढुढ़िया या स्थानक वासी
दिगम्बर सम्प्रदाय भी विभाजित हुआ -
१- बीस पंथी
२- तेरा पंथी
३- समैयापंथी या तारण पंथी : इसके अंतर्गत तोतापंथी व गुमानपंथी शामिल हैं।

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