गैरिक मृद्भाण्ड संस्कृति ( Ochre Coloured Pottery Culture )

भूमिका

हड़प्पा की परिपक्व सभ्यता के उत्तरकाल में, गंगा के मैदान के ऊपरी भागों में एक ऐसी संस्कृति फल-फूल रही थी, जो अपने चमकीले लाल लेप वाले और काले रंग से चित्रित मृद्भांडों के लिए पहचानी जाती है। इसको गैरिक मृद्भाण्ड संस्कृति या गेरुवर्णी मृद्भाण्ड संस्कृति  ( Ochre Coloured Pottery Culture – OCP Culture ) कहा गया है। ये मृद्भाण्ड गंगा के मैदान के उत्तरी भागों में सर्वत्र पाये गये हैं।

प्रमुख स्थल

  • सैपई ( Saipai ), इटावा जनपद; उत्तर प्रदेश
  • बहदराबाद, हरिद्वार जनपद; उत्तराखण्ड
  • नरसीपुर, हरिद्वार जनपद; उत्तराखण्ड
  • राजपुर-परशु, मेरठ जनपद; उत्तराखण्ड
  • बिसौली, बदायूँ जनपद; उत्तर प्रदेश
  • बहेड़िया, शाहजहाँपुर जनपद; उत्तर प्रदेश

गंगा-यमुना दोआब में खुदाई के दौरान यह पाया गया है कि जिन पुरास्थलों से ये मृद्भाण्ड मिले हैं, वहाँ कभी जोरदार बाढ़ें आयी थीं। कुछ इतिहासकारों का विचार विचार है कि गंगा का समस्त ऊपरी मैदान काफी लंबे समय तक पानी में डूबा रहा था।

गैरिक मृद्भाण्ड संस्कृति के लोग ताँबे के औजारों का इस्तेमाल करते थे और चावल, जौ, चना और खेसरी की खेती करते थे। गैरिक मृद्भाण्डों और हड़प्पाई भाण्डों की आकृतियों में काफी समानता पायी जाती है।

उत्खनन कार्यों के दौरान, एटा जिले के सैपई ( Saipai ) स्थल पर ‘ताम्र संचय की वस्तुएँ’, गैरिक मृद्भाण्डों के साथ पायी गयी हैं। इसी प्रकार, गंगा-यमुना दोआब में जहाँ-जहाँ ताम्र संचय मिले हैं, वहाँ लगभग सभी स्थलों पर गैरिक मृद्भाण्ड भी पाये गये हैं।

इसे देखते हुए कुछ विद्वानों का विचार है कि दोआब में, ताम्र संचय संस्कृति का सम्बन्ध गैरिक मृद्भाण्ड संस्कृति के लोगों से रहा है।

लेकिन बिहार, बंगाल और ओडिशा में उनका सांस्कृतिक साहचर्य स्पष्ट नहीं है। ताम्र संचयों की कुछ चीजें प्रमुख रूप से आदिम कुल्हाड़ियाँ, ताम्रपाषाणीय लोगों से संबद्ध भी पायी गयी हैं।

इसके अतिरिक्त, ऊपरी गंगा घाटी के कुछ अन्य स्थलों; जैसे- बहदराबाद, नसीरपुर ( हरिद्वार ), राजपुर-परशु ( मेरठ ), बिसौली ( बदायूँ ) और बहेड़िया ( शाहजहाँपुर ) में पहले की खुदाइयों में ताम्र संचय पाये गये थे, वहीं बाद वाली खुदाइयों में गैरिक मृदभाण्डों के ठीकरे ( OCP sherds ) मिले हैं।

ताम्र संचय संस्कृति व गैरिक मृद्भाण्ड संस्कृति का सम्बन्ध

ऊपरी गंगाघाटी तथा गंगा-यमुना के दोआब वाले प्रदेश के विभिन्न स्थलों से एक विशिष्ट प्रकार के मिट्टी के पात्र मिलते हैं जिन्हें गेरुवर्णी या गैरिक मृद्भाण्ड (Ochre Coloured Pottery – O.C.P. ) कहा जाता है। यहाँ से अनेक ताम्रनिधियाँ भी पायी गयी है। गंगा-यमुना दोआब से सबसे बड़ी ताम्र निधियाँ ( Copper hoards ) मिलती है। इनमें दो धारवाली कुल्हाड़ियाँ, हार्पून, फरसे, भाले, दुसिंगी तलवार आदि शामिल है। कुछ आकृतियाँ मनुष्यों से मिलती-जुलती हैं।

अधिकांश पुराविद गैरिक मृद्भाण्डों तथा ताम्रनिधियों को एक ही संस्कृति से सम्बद्ध करते है।

इसका काल ई०पू० २,००० से १,५०० सामान्यतः स्वीकार किया जाता है।

इसके बाद की पात्र परम्परा चित्रित धूसर मृद्भाण्ड ( Painted Grey Ware – PGW ) की है जिसका सम्बन्ध लोहे से जोड़ा जाता है।

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