अश्मक

भूमिका

अश्मक षोडश महाजनपदों में से एक था। यह एकमात्र ऐसा महाजनपद था जो कि दक्षिण भारत में स्थित था। इसको अस्सक और अश्वक भी कहते है। इसकी राजधानी पोटिल या पोटलि या पोतन या पोतना नाम से जानी जाती थी। पोतना की पहचान बोधन से की गयी है जो वर्तमान में निज़ामाबाद जनपद, तेलंगाना प्रांत में गोदावरी सरिता के दायें तट पर स्थित है।

साहित्यों में अश्मक का विवरण

  • ‘महागोविन्दसूत्तन्त’ के अनुसार यह प्रदेश रेणु और धृतराष्ट्र के समय में विद्यमान था। इस ग्रन्थ में अस्सक के राजा ब्रह्मदत्त का उल्लेख है।
  • सुत्तनिपात में अस्सक को गोदावरी तट पर स्थित बताया गया है। इसकी राजधानी पोतन, पौदन्य या पैठान थी।
  • पाणिनि कृत अष्टाध्यायी में भी अश्मकों का उल्लेख किया है।
  • सोननंदजातक में अस्सक को अवंती से सम्बंधित कहा गया है।
  • अश्मक नामक राजा का उल्लेख वायु पुराण और महाभारत में है- ‘अश्मकों नाम राजर्षिः पौदन्यं योन्यवेशयत्। सम्भवत: इसी राजा के नाम से यह जनपद अश्मक कहलाया।

स्थिति

अश्मक महाजनपद की स्थिति गोदावरी नदी तट पर बतायी गयी है।

अश्मक के पहचान की दो सम्भावनाएँ :

  • एक, दक्षिणी भारत में : जिसकी की प्रबल सम्भावना है और अधिकतर साक्ष्य इसे ही सिद्ध करते हैं। यह गोदावरी तट पर स्थित था।
  • द्वितीय, उत्तरी भारत में : इस सम्बन्ध में दो तथ्य विचारणीय हैं —
    • अश्मक की पहचान के संबंध में एक संभावना यह भी हो सकती है कि वह सिंधु नदी की निम्न घाटी अथवा मुहाने पर स्थित ऐसे ही हो, जिसका उल्लेख यूनानी लेखकों ने किया है और जो सिकंदर के आक्रमण के समय भी मौजूद थे। यूनानी लेखकों ने अस्सकेनोई लोगों का उत्तर-पश्चिमी भारत में उल्लेख किया है। इनका दक्षिणी अश्वकों से ऐतिहासिक सम्बन्ध रहा होगा या यह अश्वकों का रूपान्तर हो सकता है।
    • इस संबंध में एक और तथ्य दृष्टव्य है- बौद्ध साहित्य में अश्मक सहित जिन १६ महाजनपदों का उल्लेख है, उनमें से सभी १५ उत्तरी भारत में ही उपस्थित थे।
अश्मक
अश्मक

अश्मक का इतिहास

अंगुत्तर निकाय में १६ महाजनपदों में अश्मक महाजनपद का भी वर्णन है। इसकी राजधानी पोतना थी। यह जनपद गोदावरी नदी के किनारे स्थित था।

अश्मक और मूलक प्रदेश एक दूसरे के पड़ोसी थे। दोनों ही राज्यों की स्थापना इक्ष्वाकु वंशी क्षत्रियों ने की थी।

दीघ निकाय के ‘महागोविंदसुत्त’ में इस बात का उल्लेख है कि रेणु नामक सम्राट के ब्राह्मण पुरोहित महागोविंद ने अपने साम्राज्य की सात अलग-अलग राज्यों में बांटा था। इनमें से अश्मक भी एक था।

जैसा की सर्वविदित है कि इक्ष्वाकुवंशी शासक अयोध्या के शासक थे। जिस वंशावली में भगवान श्रीराम का भी जन्म हुआ था। क्योंकि अस्सक के राज्य की स्थापना इक्ष्वाकुवंशी राजाओं ने की थी अतः इसका सम्बन्ध अयोध्या से भी कहीं न कहीं जुड़ता है। इसी इक्ष्वाकु वंश यहाँ के शासकों में अश्मक नामक राजा हुए जिनका विवरण महाभारत और वायुपुराण में मिलता है। सम्भवतः इन्हीं के नाम पर इस राज्य का नाम अश्मक हो गया हो।

इस तरह अश्वक के राजतंत्र की स्थापना ईक्ष्वाकुवंशी शासकों ने की थी। जिसमें अश्मक नामक राजा हुए और उन्हीं के नाम पर इस राज्य का नामकरण हुआ।

चुल्लकलिंग जातक के अनुसार अस्सक नरेश अरुण ने कलिंग के राजा को हराया था।

बुद्धकाल से पहले अस्सक व अवंति का निरंतर संघर्ष चला। बुद्धकाल में अवंति ने अश्वक को जीतकर अपनी सीमा में समाहित कर लिया। बौद्ध साहित्य से ज्ञात होता है कि अश्वक का सम्बन्ध अवन्ति जनपद से था।

नासिक अभिलेख में इसका विवरण सुरक्षित है जिसको गौतमीपुत्र सातकर्णि ने जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया था।

मंढर-पवत सम-सारस असिक-असक-मुलक-सुरठ कुकुरापरांत-अनुप-विदभ-आकरावंति- राजस! विह्वछवत-परिचात“-सय्ह-कण्हगिरि-मच-सिरिटन-मलय-महिद-

हिन्दी अनुवाद : मन्दर पर्वतकेसमान बलवान, असिक, अश्मक, मूलक, सुराष्ट्र,कुकुर, अपरान्त, अनूप, विदर्भ, आकर, अवन्तिकेराजा,विन्ध्य,क्षवत्‌,पारियात्र,सह्य,कृष्णगिरि,मत्स्य,सिरिटन,मलय,महेन्द्र,

(वाशिष्ठीपुत्र पुलुमावि का नासिक अभिलेख की द्वितीय पंक्ति)

अपरान्त

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