अपरान्त

भूमिका

अपरान्त प्राचीनकाल में भारतीय उप-महाद्वीप के पश्चिम में स्थित उत्तरी कोंकण को कहा जाता था। अपरान्त ( अपर + अन्त ) का अर्थ है ‘पश्चिम का अंत’ अर्थात् भारतीय उप-महाद्वीप का पश्चिमी भू-भाग।

वर्तमान में यह महाराष्ट्र प्रांत में स्थित है। प्राचीन शूर्पारक बंदरगाह अपरांत में ही स्थित था। पुरातन साहित्यों में उत्तरी कोंकण के लिए अपरांत शब्द का प्रयोग मिलता है।

अपरांत को अपरान्तिक और अपरान्तक भी कहा जाता था। वायुपुराण में इसको को अपरिक कहा गया है। बृहत्संहिता में इस भूभाग के निवासियों को ‘अपरान्तक’ कहा गया है। टॉलमी ने अपनी कृति भूगोल में इसके लिए ‘अरिआके’ या ‘अबरातिके’ शब्द का प्रयोग किया है।

 

अपरान्त
अपरान्त : उत्तरी कोंकण

अपरान्त : साहित्यिक उल्लेख

महाभारत, विष्णुपुराण, वायुपुराण, रघुवंश, महावंश इत्यादि प्राचीन ग्रन्थों में अपरांत का विवरण सुरक्षित है। जिसमें का कुछ अधोलिखित हैं।

महाभारत के शान्ति पर्व में अपरांत को भगवान परशुराम की भूमि बताया गया है। अर्थात् शूर्पारक नामक देश जो अपरांत भूमि में स्थित था, परशुराम के लिए सागर ने रिक्त कर दिया था। पुनश्च महाभारत के सभा पर्वमें कहा गया है कि अपरांत का निर्माण परशुरामजी ने अपने तीक्ष्ण फरशे से किया था।

‘ततः शूर्पारकं देशं सागरस्तस्य निर्ममे, सहसा जामदग्न्यस्य सोऽपरान्तमहीतलम्।

×××

अपरान्त समुद्रभूतांस्तथैव परशूञ्छितान्।

विष्णुपुराण में भी अपरांत का उल्लेख मिलता है।

तथापरान्ताः सौराष्ट्राः शूराभीरास्तथार्बुदाः।

रघुवंश में भी अपरांत का विवरण सुरक्षित है। कालिदास के रघुवंश में महाराज रघु की दिग्विजय यात्रा के दौरान अपरांत को विजित करने का विवरण सुरक्षित है।

तस्यानीकैर्विसर्पदिभरपरान्तजयोद्यतैः।

कोशकार यादव

अपरान्तास्तु पाश्चात्यस्ते।

बौद्ध ग्रंथ महावंश के अनुसार सम्राट अशोक ने धर्मरक्षित को अपरान्त में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भेजा था। यहाँ उल्लिखित अपरांत शब्द का अर्थ पश्चिमी देशों से है।

अपरांत : अभिलेखीय उल्लेख

वाशिष्ठीपुत्र पुलुमावि का नासिक गुहालेख में अपरांत का उल्लेख मिलता है।

मदर-पवत सम-सारस असिक-असक-मुलक-सुरठ कुकुर-अपरांत-अनुप-विदभ-आकरावंति- राजस विझछवत-परिचात-सय्ह-कण्हगिरि-मच-सिरिटन-मलय-महिद-

( हिन्दी अनुवाद :- मन्दर पर्वत के समान बलवान, असिक, अश्मक, मूलक, सुराष्ट्र, कुकुर, अपरांत, अनूप, विदर्भ, आकर, अवन्ति देशों के राजा, विन्ध्य, क्षवत्‌, पारियात्र, सह्य, कृष्णगिरि, मत्स्य, सिरिटन, मलय, महेन्द्र, )

( द्वितीय पंक्ति : वाशिष्ठीपुत्र पुलुमावि का नासिक गुहालेख )

शक शासक रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख में अपरान्त को सातवाहनों से विजित करने का विवरण मिलता है।

जनपदानां स्ववीर्य्यर्जितानामनुरक्त-सर्व्व-प्रकृतीनां पूर्व्वापराकरान्त्यनूपनीवृदानर्त्त-सुराष्ट्र- श्व[ भ्र-मरु-कच्छ-सिन्धु-सौवी ]र-कुकुर-अपरांत-निषादादीनां समग्राणां तत्पप्रभावाद्य [ थावत्माप्तधर्मार्थ |-काम-विषयाणां विषयाणां पतिना सर्व्वक्षत्राविष्कृत-

( हिन्दी अर्थ :- तथा जनपदयुक्त अपने पराक्रम से प्राप्त प्रजा के अनुराग से युक्त, पूर्व तथा पश्चिम आकर तथा अवन्ति, अनूप, नीवृत, आनर्त, सूराष्ट्र, श्वभ्र, भरु कच्छ, सिन्धु, सौवीर, कुकुर, अपरांत, निषाद आदि समस्त को अपने प्रभाव के कारण यथोचित प्राप्त धर्म, अर्थ और काम विषयों के स्वामी, समस्त क्षत्रियों में प्रमुख — )

( ग्वारहवीं पंक्ति : रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख )

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