सारनाथ कला शैली; कुषाण काल

भूमिका

वाराणसी जनपद में स्थित सारनाथ के दो अन्य नाम ‘ऋषिपत्तन’ और ‘मृगदाव’ भी मिलता है। यहीं पर महात्मा बुद्ध ने ‘धर्मचक्रप्रवर्तन’ (प्रथम उपदेश) दिया। इसलिए यह बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिये पवित्र स्थान बन गया। सम्राट अशोक के समय में यहाँ अनेक निर्माण कार्य किये गये। कुषाणकाल में भी यह कार्य रुका नहीं और गुप्तकाल में यह अपनी पूर्णता को उपलब्ध हुआ। प्रस्तुत लेख में हम कुषाण काल की कला की चर्चा की गयी है। इसे सामान्यतः ‘सारनाथ कला’ शैली कह दिया जाता है।

सारनाथ कला

गान्धार तथा मथुरा के अतिरिक्त सारनाथ से भी कुषाणकाल की एक बोधिसत्व की विशाल मूर्ति मिली है जो खड़ी मुद्रा में है। इसके ऊपर कनिष्क सम्वत् ३ की तिथि अंकित है। इससे सूचित होता है कि वाराणसी के महाक्षत्रप खरपल्लान ने दान देकर भिक्षु बल द्वारा यहाँ बोधिसत्व की प्रतिमा तथा छत्रयष्टि स्थापित करवाया था।

“भिक्षुस्य बलस्य त्रेपिटकस्य बोधिसत्वो प्रतिष्ठापितो। महाक्षत्रपेन खरपल्लानेन सहा क्षत्रपेन वनष्परेन॥” — सारनाथ बोधिसत्व प्रतिमा अभिलेख

इसी तरह आन्ध्र प्रदेश के अमरावती (गुन्टूर जनपद) से भी बैठी तथा खड़ी मुद्रा में निर्मित कई बुद्ध मूर्तियाँ प्राप्त होती हैं। इनमें बुद्ध के बाल घुँघराले हैं, उनके कन्धों पर संघाटिवस्त्र है तथा वे अपने बायें हाथ से संघाटि को पकड़े हुए हैं। अमरावती की बुद्ध मूर्तियों का समय ईसा की दूसरी शती माना जाता है।

मथुरा कला शैली

कुषाणकालीन कला एवं स्थापत्य

गान्धार कला शैली

कौशाम्बी कला शैली

कुषाण-सिक्के (Kushan-Coins)

कनिष्क विद्वानों का संरक्षक और उसके समय साहित्यिक प्रगति

बौद्ध धर्म और कनिष्क

कुषाणकालीन आर्थिक समृद्धि या कुषाणकाल में व्यापार-वाणिज्य की प्रगति

कुषाणों का योगदान (Contribution of the Kushanas)

कुषाण-शासनतंत्र (The Kushan Polity)

कुषाण राजवंश (The Kushan Dynasty) या कुषाण साम्राज्य (The Kushan Empire)

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