भूमिका
मौर्योत्तरकाल में सुदूर दक्षिण में कृष्णा और तुंगभद्रा नदी के दक्षिण में जिस सभ्यता और संस्कृति के हमें दिग्दर्शन होते हैं वह जहाँ एक ओर उत्तर भारतीय संस्कृति से भिन्न थे वहीं वे आर्य संस्कृति के तत्त्वों के लिए ग्रहणशील भी बने हुए थे। परन्तु संगमयुग की तिथि और संगम साहित्य के रचनाकाल के सम्बन्ध में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं।
प्रमुख मत
प्रमुख मत इस प्रकार हैं—
- ५०० ई०पू० से ५०० ई० :- श्रीनिवास आयंगर, रामचंद्र दिक्षितार। श्रीनिवास आयंगर ने इस तिथि का प्रतिपादन किया। इसमें महापाषाण काल से लेकर पल्लवों के उदय तक के कालखण्ड को संगम काल माना गया है। रामचंद्र दिक्षितार ने इस तिथि का समर्थन किया है।
- १०० ई० से २५० ई० :- नीलकण्ठ शास्त्री, A History of South India. दक्षिण भारत के विशेषज्ञ नीलकण्ठ शास्त्री के अनुसार संगम युग की तिथि १०० ई० से २५० ई० है। वैसे चौथी शताब्दी से ही हमें पल्लव वंश उल्लेख मिलने लगता है।
- तृतीय शताब्दी से छठी शताब्दी :- प्रो० राम शरण शर्मा ने संगम काल के साहित्य की रचना का चरमावस्था तीसरी से छठी शताब्दी तक माना है।
- ३०० ई० से ५०० ई० :- श्री एस० वैयपुरी पिल्लई के अनुसार संगम काल ३०० ई० से प्रारम्भ हुआ और ५०० ई० तक चला।
- ३०० ई०पू० से ३०० ई० :- इस मत के समर्थक श्री एन० सुब्रमण्यम अय्यर हैं।
विश्लेषण
सुदूर दक्षिण में ब्राह्मी लिपि में छोटे-छोटे अभिलेख तमिल भाषा में प्राप्त हैं। इनका काल ई०पू० द्वितीय शताब्दी माना जाता है। इन अभिलेखों के अनुशीलन से ज्ञात होता है कि तमिल भाषा अभी विकासोन्मुखी दशा में ही थी। इसमें संस्कृत मूल के अनेक शब्दों का प्रयोग मिलता है। परन्तु संगम युग की तमिल भाषा पर्याप्त विकसित अवस्था में है और कविताएँ साहित्यिक अभिव्यक्ति की दृष्टि से भी सशक्त हैं। संगम साहित्य में संस्कृत भाषा के अनेक शब्द पूर्णरूपेण से तमिल भाषा में आत्मसात हो चुके हैं। संगम साहित्यों से यह भी प्रतीत होता है कि साहित्यों में सामाजिक जीवन के चित्रण की एक मान्य परम्परा विकसित हो चुकी थी। इससे यह ज्ञात होता है कि संगम साहित्य से पूर्व तमिल भाषा अपने विकास की अवस्था में थी। यह निश्चय ही तमिल भाषा के विकास को दर्शाता है। अतएव हम मोटेतौर पर संगम साहित्य के रचनाकाल का निर्धारण कर सकते हैं। संगम साहित्य का रचनाकाल को मोटेतौर पर हम १०० ई० से २५० ई० तक माना जा सकता है।
संगम साहित्य की तिथि का एक और संकेत सीलोन (श्रीलंका) के गजबाहु प्रथम और सेनगुट्टुवन के बीच के समकालीनता से मिलता है। सेनगुट्टुवन चेर शासकों को समर्पित विशेष संकलन पदिरुप्पट्टू (पदित्रुपात्तु) में प्रसिद्ध चेर राजाओं में से एक थे। गजबाहु प्रथम के शासनकाल की तिथि लगभग १७३-९५ ई० निर्धारित की गयी है। यह संभवतः वह अवधि थी जब सेनगुट्टुवन का उत्कर्ष हुआ। इस आधार पर, संगम युग को लगभग १०० से २५० ई० तक विस्तारित माना जा सकता है। परन्तु गजबाहु प्रथम और सेनगुट्टुवन की समकालिकता किसी संगम संकलन में नहीं प्राप्त होती है। इन दोनों की समकालीनता का संकेत हमें शिलप्पादिकारम् में मिलती है। इस रचना को पाँचवीं शताब्दी से पहले का नहीं माना जा सकता है।
संगम साहित्यों के रचनाकाल के लिए सुझाये गये इस कालक्रम के समर्थन में तर्क की तृतीय और सबसे प्रबल प्रमाण इस अवधि में तमिल राज्यों के रोमनों के सम्बन्ध से प्राप्त होता है। इन सम्बन्धों पर शास्त्रीय लेखकों, विशेष रूप से स्ट्रैबो, पेरिप्लस ऑफ़ द एरिथ्रियन सी (अज्ञात लेखक), प्लिनी कृत नेचुरल हिस्ट्री और टॉलेमी कृत भूगोल आदि के विवरण में पायी जाती है।
पुरातत्त्व साहित्य के साक्ष्य को प्रमाणित करता है। दक्षिण भारत में पहली दो शताब्दियों के रोमन सम्राटों के स्वर्ण और रजत के सिक्कों की कई खोजें और हाल ही में प्रथम शताब्दी में अरिकामेडु से एक रोमन कारखाने की मौजूदगी के साक्ष्य भी मिले हैं, जो संगम युग के लिये सुझायी गयी तिथि की सत्यता की पुष्टि करते हैं।
निष्कर्ष
निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि संगम साहित्य के रचनाकाल की तिथि संगमयुग की तिथि को मोटेतौर पर प्रारम्भिक तीन शताब्दियों में रखा जा सकता है।
FAQ
प्रश्न — संगमयुग की तिथि का निर्धारण कीजिए और उसे उपलब्ध प्रमाणों द्वारा पुष्ट कीजिए। / संगम साहित्य की रचनाओं की तिथि का निर्धारण कीजिए और उसे उपलब्ध प्रमाणों द्वारा पुष्ट कीजिए।
Determine the date of the Sangam era and substantiate it with the available evidence. / Determine the date of the composition of Sangam literature and support it with available evidence.
उत्तर —
संगमयुग की तिथि और संगम साहित्य के रचनाकाल के सम्बन्ध में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं। परन्तु नीलकंठ शास्त्री द्वारा व्यक्त इसकी तिथि सर्वाधिक मान्य है। उनके अनुसार संगमकाल की तिथि १०० ई० से २५० ई० के मध्य निर्धारित की जा सकती है।
इस तिथि के प्रमाण में निम्न तथ्य प्रस्तुत किये जा सकते हैं—
- पुरातात्त्विक साक्ष्य
- अभिलेख
- तमिल क्षेत्र से प्राप्त लघु शिलालेख जोकि ब्राह्मी लिपि और तमिल भाषा में हैं। इनकी तिथि द्वितीय शताब्दी ई०पू० की है। इन अभिलेखों की भाषा अविकसित है।
- वहीं संगम साहित्यिक रचनाओं की भाषा सशक्त व विकसित है।
- इस आधार पर संगमकाल को ईशा की प्रारम्भिक शताब्दी में रखा जा सकता है।
- रोमन सिक्के
- पुरास्थल — अरिकामेडु
- अभिलेख
- साहित्यिक साक्ष्य
- क्लासिकल लेखकों की रचनाओं से प्रमाण; यथा—
- स्ट्रैबो
- पेरिप्लस ऑफ़ द एरिथ्रियन सी (अज्ञात लेखक)
- प्लिनी कृत नेचुरल हिस्ट्री
- टॉलेमी कृत भूगोल आदि के विवरण में पायी जाती है।
- चेर नरेश शेनगुट्टवन (१८० ई०) और सीलोन के राजा गजबाहु प्रथम (१७३-९५ ई०) समकालीन थे। शेनगुट्टवन का उल्लेख पदित्रपात्तु में मिलता है। शिल्पादिकारम् में पत्तिनी पूजा का विवरण मिलता है। जैसा कि हमें ज्ञात कि पत्तिनी पूजा शेनगुट्टवन के समय प्रारम्भ हुई थी। शिल्पादिकारम् संगमकाल के बाद की रचना है। इन दोनों शासकों का शासन काल दूसरी शताब्दी का उत्तरार्ध बताया गया है।
- क्लासिकल लेखकों की रचनाओं से प्रमाण; यथा—
निष्कर्ष — उपर्युक्त प्रमाणों के सुक्ष्म विश्लेषण से संगम साहित्य की रचनाओं और संगमकाल की तिथि को हम मोटेतौर पर ईशा की आरम्भिक तीन शताब्दियों में रख सकते हैं।
द्वितीय संगम या द्वितीय तमिल संगम
संगमयुग की तिथि या संगम साहित्य का रचनाकाल
सुदूर दक्षिण के इतिहास की भौगोलिक पृष्ठभूमि
शिलप्पदिकारम् (नूपुर की कहानी) / Shilappadikaram (The Ankle Bracelet)
मणिमेकलै (मणि-युक्त कंगन) / Manimekalai
जीवक चिन्तामणि (Jivaka Chintamani)
तोलकाप्पियम् (Tolkappiyam) – तोल्काप्पियर
एत्तुथोकै या अष्टसंग्रह (Ettuthokai or The Eight Collections)