भूमिका
गुप्त राजवंश की स्थापना लगभग २७५ ईसवी में महाराज श्रीगुप्त () द्वारा की गयी थी। हमें यह निश्चित रूप से पता ज्ञात नहीं है कि उनका नाम श्रीगुप्त था अथवा केवल गुप्त।
संक्षिप्त परिचय

नाम | श्रीगुप्त |
शासनकाल | २७५ से ३०० ईसवी |
स्रोत | उसके उत्तराधिकारियों के अभिलेख; जैसे— प्रयाग प्रशस्ति, भीतरी अभिलेख, प्रभावती गुप्ता का पूना ताम्र-पत्र, इत्यादि |
इत्सिंग का विवरण | |
दो मुहरें (संदिग्ध) | |
उत्तराधिकारी | घटोत्कच |
गुप्त राजवंश की स्थापना
गुप्त वंश की स्थापना और राज्य से साम्राज्य में विकास कैसे हुआ? यह अस्पष्ट है।
मगध के साथ गुप्त वंश के सम्बन्ध का पहला साक्ष्य एक विदेशी स्रोत से प्राप्त होता है। यह विदेशी स्रोत चीनी यात्री इत्सिंग (I-Tsing) कृत “काओ-फा-काओ-सांग” से प्राप्त होता है। इत्सिंग (I-Tsing) ६७२ ई० में भारत आये थे।
इत्सिंग (I-Tsing) ने चे-ली-की-टो (Che-li-ki-to) का विवरण दिया है। चे-ली-की-टो (Che-li-ki-to) की पहचान “महाराज श्री-गुप्त” से किया गया है। इत्सिंग ने चे-ली-की-टो का विवरण देते हुए बताया है कि— उसने चीनी तीर्थयात्रियों के लिए मृगशिखावन (Mrigashikhavana) के पास एक मंदिर बनवाया था और उसे २४ गाँव दिये थे।
शासनकाल का निर्धारण
राधा कुमुद मुखर्जी कृत “The Gupta Empire” (p. 11-12) में श्री-गुप्त के शासनकाल का विश्लेषण कुछ इस तरह किया गया है—
- इत्सिंग के अनुसार चे-ली-की-टो (श्री-गुप्त) का समय ५०० साल पहले का है। इत्सिंग ने यह बात ६९० ई० में लिखी थी और इसलिए श्री-गुप्त ने लगभग १९० ई० (६९० – ५०० = १९० ई०) में शासन किया होगा।
- परंतु ५०० साल बाद बतायी गयी घटना का समय पूरी तरह सटीक नहीं हो सकता। कुछ हद तक गलती की गुंजाइश हो सकती है।
- राधा कुमुद मुखर्जी इत्सिंग की गणना से केवल लगभग ५० वर्षों का अंतर मानते हुए श्रीगुप्त की सम्भावित तिथि २४०-२८० ई० मानते हैं।
- श्रीगुप्त के पुत्र घटोत्कच को उनके शासनकाल की अवधि २८०-३१९ ई० बताया है।
परंतु अधिकतर इतिहासकार श्रीगुप्त का शासनकाल २७५ से ३०० ई० तक माना है और घटोत्कच का शासनकाल ३०० से ३१९ पर सहमत हैं।
अभिलेखों में विवरण
महाराज गुप्त का कोई भी लेख अथवा सिक्का नहीं मिलता। बनारस के पास से इसकी मुद्राएँ (seals) प्राप्त हुई हैं (यद्यपि कुछ इतिहासकार इसे संदिग्ध मानते हैं)। दो मुहरें (seals)—
- जिनमें से एक के ऊपर संस्कृत तथा प्राकृत मिश्रित मुद्रालेख ‘गुप्तस्य’ तथा
- दूसरे के ऊपर संस्कृत में ‘श्रीगुप्तस्य’ अंकित है।
हम पाते हैं कि गुप्त अभिलेखों में “महाराज श्रीगुप्त” का उल्लेख राजवंश के संस्थापक के रूप में किया गया है—
- प्रभावती गुप्त वाकाटक के पूना ताम्र-पत्र में श्रीगुप्त को आदिराज कहा गया है और उन्हें इत्सिंग द्वारा उल्लिखित गुप्त राजा के साथ पहचाना जा सकता है, जिन्होंने उन्हें वही नाम और उपाधि दी है।
- इससे पूर्व प्रयाग प्रशस्ति में गुप्त राजवंश का प्रारम्भ श्रीगुप्त से होता है।
राज्य-क्षेत्र का निर्धारण
मृगशिखावन और उसके मठ को दिये गये गाँव सभी मगध और गुप्त क्षेत्र में स्थित थे। इत्सिंग हमें बताते हैं कि मृगशिखावन गंगा के नीचे नालंदा से लगभग ५० स्टेज (stages) पूर्व में था, जबकि नालंदा महाबोधि से ७ स्टेज (stages) उत्तर-पूर्व में था। इससे ज्ञात होता है कि इत्सिंग का १ स्टेज लगभग ५ या ६ मील के बराबर है। इस गणना के आधार पर गुप्तों का क्षेत्र नालंदा से २५० मील की दूरी पर बिहारशरीफ स्थित मुर्शिदाबाद जिले तक विस्तृत होगा।
चीनी यात्री इत्सिंग के विवरण से ऐसा आभास मिलता है कि बनारस का निकटवर्ती क्षेत्र श्रीगुप्त के अधीन था। यह भी संभावना है कि श्रीगुप्त का राज्य पश्चिम में कुछ दूर तक प्रयाग और साकेत की ओर और पूर्व में मगध की ओर भी कुछ दूर तक विस्तृत हो। यह राज्य-विस्तार अनुमान पुराणों के विवरण पर आधारित है। श्रीगुप्त ने सारनाथ के निकट चीनी यात्रियों के लिए एक मंदिर बनवाया तथा इसकी देखरेख के लिए २४ गाँव भी दान में दिये।
नामकरण (श्रीगुप्त या गुप्त) और गोत्र
राधा कुमुद मुखर्जी के अनुसार इस राजा का नाम ‘गुप्त’ होना चाहिए, जिसमें ‘श्री’ एक सम्मान सूचक उपसर्ग के रूप में जोड़ा गया हो।
इसी तरह एलन, फ्लीट, जायसवाल आदि विद्वानों का मानना है कि गुप्तवंश के प्रथम राजा का नाम सिर्फ ‘गुप्त’ था, ‘श्री’ की उपाधि उसने राजा बनने के बाद धारण की।
महाराज गुप्त का कोई भी लेख अथवा सिक्का नहीं मिलता। यद्यपि बनारस के पास से इसकी मुद्राएँ (seals) प्राप्त हुई हैं। दो मुहरें (seals) जिनमें से एक के ऊपर संस्कृत तथा प्राकृत मिश्रित मुद्रालेख ‘गुतस्य’ (Gutasya) तथा दूसरे के ऊपर संस्कृत में ‘श्री-र-गुप्तस्य’ (Sri-r-Guptasya) अंकित है,१ उससे सम्बन्धित की जाती है परन्तु इस सम्बन्ध में हम निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कह सकते। परमेश्वरी लाल गुप्त इन मुहरों के श्रीगुप्त की राजकीय मुहर होने में संदेह प्रकट करते हैं।
It is generally believed that the seal with the legend Gutasya, a hybrid form of Sanskrit Guptasya, published by Rapson (JRAS, 1905, p. 814, Pl. VI. 23) and a clay seal reading Sri-r-Guptasya which was in possession of Hoernle (Allan, BMC, GD, Intro., p. xiv) may be ascribed to the first Gupta king. Another seal with the name Śrīgupta inscribed on it, has recently been discovered from Rajghat. Palaeographically it may be assigned to fourth century A. D. Jagannath Agrawal has also reported the discovery of a clay sealing from Sunet in the Ludhiana District (Punjab) with the legend Sri-r-Guptasya inscribed on it in the script of 4th century A. D. (JNSI, XXVII, Pt. I, p. 98 f.) The ascription of all these seals to the first Gupta king is rather problematical. As regards Ghatotkacha, Bloch ascribed to him the seal bearing the inscription Sri Ghatotkachaguptasya found at Vaiśāli (ASI, AR 1903-4, p. 102). Smith (JRAS, 1905, p. 153) and Basak (HNEI, p. 67) accepted this suggestion, but now it has become almost certain that the prince of this seal belonged to the fifth century A. D. (Allan, BMC, GD, p. xvi-xvii, Sinha, DKM, p. 35; infra, Ch. V, App. i). १ — A History of The Imperial Guptas, p. 82-83; S. R. Goyal
गुप्त राजवंश का गोत्र धारण था। यह जानकारी हमें प्रभावती गुप्ता के पूना ताम्र-पत्र शिलालेख में बताया गया है।
विविध
- श्रीगुप्त संभवतः कुछ वर्षों तक मुरुंडों का अधीनस्थ शासक था, परंतु बाद में स्वतंत्रता प्राप्त कर उसने “महाराज” की उपाधि धारण की। परंतु यह तथ्य अनुमानपरक ही है।
- श्री गुप्त ने ‘महाराज’ की उपाधि धारण की। श्रीगुप्त के समय में महाराज की उपाधि सामन्तों को प्रदान की जाती थी, अतः श्रीगुप्त किसी के अधीन शासक था। प्रसिद्ध इतिहासकार के० पी० जायसवाल के अनुसार श्रीगुप्त भारशिवों के अधीन छोटे से राज्य प्रयाग का शासक था। परंतु यह तथ्य भी अनुमानपरक ही है।
- गुप्त राजा स्वयं बौद्ध नहीं थे, पर क्योंकि बौद्ध तीर्थ स्थानों का दर्शन करने के लिए बहुत से चीनी इस समय भारत में आने लगे थे। अतः महाराज श्रीगुप्त ने उनके आराम के लिए यह महत्त्वपूर्ण दान दिया था।
- श्रीगुप्त के द्वारा धारण की गयी उपाधि ‘महाराज’ सामंतों द्वारा धारण की जाती थी, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि श्रीगुप्त किसी शासक के अधीन शासन करता था।
- गुप्तवंश के द्वितीय शासक महाराज घटोत्कच हुए जो श्रीगुप्त के पुत्र थे। प्रभावती गुप्ता के पुना तथा रिद्धपुर ताम्रपत्रों में उसे ही गुप्त वंश का प्रथम शासक (आदिराज) बताया गया है।
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