भूमिका
गुप्त-पूर्व और गुप्तकाल में कृष्णा और गोदावरी के बीच शासन करनेवाले शालंकायन वंश के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है। उनके समय में तेलुगु की लिपि अन्य दक्षिण भारतीय और उत्तर भारतीय भाषाओं से स्पष्ट रूप से भिन्न होने लगी। उन्होंने कई शिलालेख जारी किये, जैसे – कनकोल्लू अभिलेख (Kanakollu inscription) और गुंटापल्ली अभिलेख (Guntapalli inscription)।
संक्षिप्त परिचय
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स्रोत
- पाणिनि कृत अष्टाध्यायी
- टॉलेमी कृत भूगोल में इन्हें सालकेनोई (Salakenoi) कहा गया है। वह इनकी राजधानी को बेनागौरों (Benagouron) कहता है जो सम्भवतया वेंगपुर या वेंगीपुर (Vengapura or Vengipura) का यूनानी रूप है।
- प्रयाग प्रशस्ति
- शालंकायन वंश के अभिलेख
राजनीतिक इतिहास
- शालंकायन एक प्राचीन राजवंश था —
“शालंकायनों के बारे में काशिक (Kashika) ने कहा है कि वे राजन्य वर्ग के थे, और वे एक प्राचीन समुदाय प्रतीत होते हैं, क्योंकि पतंजलि ने भी उन्हें त्रिक (Trika) नाम से उल्लेख किया है।”
(The Shalankayana are stated by the Kashika to have belonged to the Rajanya class, and they seem to have an ancient community, as even Patanjali mentions them by the name of Trika.) — India as known to Panini, p. 443, V.S. Agrawala.
- कृष्णा और गोदावरी के बीच शालंकायन वंश का शासन था।
- ये पहले इक्ष्वाकुओं के अधीन थे।
- इन्होंने कुछ समय के लिये स्वतन्त्रता प्राप्त कर ली थी।
- शालंकायनों की राजधानी वेंगी में थी।
- वेंगी की पहचान —
- इसकी पहचान वर्तमान पेड्डवेगी (Peddavegi / Pedavegi) से की गयी है।
- पेड्डवेगी, आंध्र प्रदेश के पश्चिमी गोदावरी जनपद में स्थित है।
देववर्मन्
- देववर्मन् (Devavarman) को शालंकायन वंश का संस्थापक था।
- शालंकायन राजवंश का सबसे पहला ज्ञात शासक देववर्मन है।
- यद्यपि उसके पिता का नाम अज्ञात है, लेकिन भट्टारक की उपाधि के आधार पर नीलकंठ शास्त्री देववर्मन के पिता को एक स्वतंत्र राजा मानते हैं।
“The earliest known member of the dynasty is Devavarman whose father was evidently an independent king. as he was given the title bhattaraka.”
– A History of South India, p. 100, N.K. Shashtri.
- इसका शासनकाल चतुर्थ शताब्दी के प्रारम्भ में माना जाता है।
- इसके राज्य का विस्तार पूर्वी समुद्रतट से लेकर उत्तर में दक्षिण कोसल तक था।
- ऐसा माना जाता है कि देववर्मन् ने अपने विजयाभियान में सफलता के उपरान्त अश्वमेध यज्ञ किया था।
“It was presumably after the completion of his conquest that Devavarman celebrated the Asvamed ha sacrifice.”
— Ancient Indian History and civilization, p. 433, Shailendra Nath Sen.
हस्तिवर्मन् प्रथम
- अगला शासक हस्तिवर्मन् (हस्तिवर्मा) प्रथम हुआ।
- देववर्मन् और हस्तिवर्मन् (हस्तिवर्मा) प्रथम का सम्बन्ध अज्ञात है।
- शासनकाल – लगभग ३५० ई०, समुद्रगुप्त का समकालीन।
- प्रयाग प्रशस्ति की २०वीं पंक्ति में वेंगी के हस्तिवर्मा का उल्लेख उन १२ शासकों के साथ मिलता है जिनको सम्राट समुद्रगुप्त ने अपने दक्षिणापथ अभियान में जीता और फिर कृपा करके मुक्त कर दिया। इस हस्तवर्मा की पहचान शालंकायन वंश के हस्तिवर्मन् से की गयी है।
“कौसलक-महेन्द्र-माह[ ]कान्तारक-व्याघ्रराज-कौरालक-मण्टराज-पैष्टपुरक-महेन्द्रगिरि- कौट्टूरक-स्वामिदत्तैरण्डपल्लक-दमन-काञ्चेयक- विष्णुगोपावमुक्तक-
नीलराज-वैङ्गेयक हस्तिवर्म्म-पालक्ककोग्रसेन-दैवराष्ट्रक-कुबेर-कौस्थलपुरक-धनञ्जय-प्रभृति-सर्व्वदक्षिणापथ-राज-ग्रहण-मोक्षानुग्रह-जनित-प्रतापोन्मिश्र-माहाभाग्यस्य”
— प्रयाग प्रशस्ति, पं०- १९, २०
नन्दिवर्मन् प्रथम
- हस्तिवर्मन प्रथम का पुत्र और उत्तराधिकारी नन्दिवर्मन प्रथम बना।
- इसका शासनकाल लगभग ३७५ ई० के आसपास पड़ता है।
हस्तिवर्मन् द्वितीय
- नन्दिवर्मन प्रथम का पुत्र हस्तिवर्मन द्वितीय अगला शासक बना।
- हस्तिवर्मन द्वितीय के सम्बन्ध में हमें पेणुगोंडा और कनुकोल्लू पट्टिकाओं (Penugonda and Kanukollu plates) से जानकारी मिलती है।
- पेणुगोंडा और कनुकोल्लू पट्टिकाओं हस्तिवर्मन द्वितीय के पुत्र स्कन्दवर्मन द्वारा जारी किये गये थे।
स्कन्दवर्मन्
- हस्तिवर्मन् द्वितीय का पुत्र स्कन्दवर्मन अगला शासक बना।
- स्कन्दवर्मन एक शक्तिशाली शासक सिद्ध हुआ।
- उसने कृष्णा नदी के दक्षिण में आनंद (Ananda) वंश को पराभूत करके राज्य का विस्तार किया।
चन्द्रवर्मन्
- स्कन्दवर्मन का कोई सन्तान नहीं थी, इसलिए उसका चाचा चन्द्रवर्मन् (चन्दवर्मन्) उत्तराधिकारी बना।
- यह नन्दिवर्मन प्रथम का द्वितीय पुत्र था।
- चन्द्रवर्मन् के समय राज्य सुरक्षित व अक्षुण्ण बना रहा।
नन्दिवर्मन् द्वितीय
- चन्द्रवर्मन् ((चन्दवर्मन्) का पुत्र नन्दिवर्मन द्वितीय अगला शासक हुआ।
- नन्दिवर्मन द्वितीय को परम-भागवत कहा गया है, अर्थात् वह भगवान विष्णु का भक्त था।
- इसका शासनकाल लगभग ४३० ई० के आसपास पड़ता है।
- नन्दिवर्मन द्वितीय शालंकायन वंश का अतिम ज्ञात शासक है। (…the last known king of the line. A History of South India, p. 101, N.K. Shastri)
पतन
- ५वीं शताब्दी के अंत में, वाकाटक नरेश हरिषेण (४७५-५१० ई०) ने आंध्र प्रदेश पर आक्रमण करके शालंकायन शासक को पदच्युत कर दिया और उसके स्थान पर राज्य की बागडोर विष्णुकुंडी राजा गोविंदवर्मन को सौंप दी।
“Towards the close of the fifth century A.D., the mighty Vakataka emperor, Harishena, raided the Andhra country, deposed the Salankayana ruler and entrusted the kingdom to the charge of the Vishnukundi king Govindavarman.”
— Ancient Indian History and civilization, p. 434, Shailendra Nath Sen
- एत अन्य मतानुसार बाद में शालंकायन वंश पल्लवों के उत्थानोपरांत उनके अधीन आ गये थे।
- दक्षिण भारतीय इतिहास विशेषज्ञ नीलकंठ शास्त्री कहते हैं कि वेंगी पर शालंकायनों के बाद विष्णुकुण्डिन वंश (Vishnukundin Dynasty) का शासन स्थापित हुआ।
“In Vengi the Shalankayanas were followed by the Vishnukundins who had Shriparvatasvami (Lord of Shriparvata ‘) for their family deity.”
— A history of south India, p. 101; N.K. Shastri
संस्कृति
धर्म
- प्रारंभिक पल्लव चार्टर की तरह, शालंकयान ताम्रपत्रों पर दायीं ओर बैठे वृषभ का प्रतीक दिखायी देता है। इससे ज्ञात होता है कि शालंकयान शैव थे। शिव के बैल नंदी को शालंकयान शब्द से दर्शाया गया है।
- नन्दिवर्मन द्वितीय को परम-भागवत कहा गया है।
- राजवंश के संरक्षक सूर्य देवता थे और वे इसके अलावा शिव या विष्णु की भी पूजा करते थे।
- इस तरह शालंकयान लोग धर्म सहिष्णु थे।
- शालंकयान ताम्रपत्रों में यह भी मिलता है कि विजय देववर्मन बप्पा भट्टारक के चरणों में ध्यान करते थे और एक अश्वमेधजिन थे। अर्थात् वे अपने पूर्वजों की भी पूजा करते थे।
राजव्यवस्था
- शालंकायनों की प्रशासनिक व्यवस्था समकालीन पल्लवों की व्यवस्था से बहुत मिलती-जुलती थी।
- गाँव के मुखिया को मुतुदा (Mutuda) या नगरवृद्ध (Alderman) कहा जाता था। यह उपाधि अन्यत्र नहीं मिलती।
भाषा, लिपि व प्रभाव
- उनके राज्यदेशों की लिपि में की इंडो-चीन और मलेशिया के हिंदू उपनिवेशों के प्रारम्भिक शिलालेखों से काफी समानता है।
- इससे यह मानने के अच्छे कारण हैं कि तेलुगु क्षेत्र ने विदेशों में उपनिवेशीकरण की मुहिम में प्रमुख भूमिका का निर्वहन किया।
बड़वा का मौखरि वंश (Maukhari Dynasty of Barwa)
आंध्र इक्ष्वाकु या विजयपुरी के इक्ष्वाकु
चुटु राजवंश या चुटुशातकर्णि राजवंश