मौर्योत्तर मुद्रा अर्थव्यवस्था (Post-Mauryan monetary economy)

भूमिका

मौर्योत्तर मुद्रा अर्थव्यवस्था भारतीय आर्थिक इतिहास में इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है कि अपने पूर्वगामी व्यवस्था किस पर विकसित थी और परवर्ती काल के लिये आधार प्रदान करने वाली थी। इस काल में सिक्के (विशेषकर ताँबे व सीसे) सामान्य जन द्वारा विनिमय के अंग बन गये थे। साथ ही आन्तरिक व्यापार जहाँ निरन्तर प्रगति पर था वहीं विदेशी व्यापार (विशेषकर रोम के साथ) भारत के पक्ष में थे। परिणामस्वरूप प्रभूत मात्रा में रोमन स्वर्ण सिक्के आने लगे थे।

मौर्योत्तर काल में सिक्कों के प्रचलन और विदेशी व्यापार अधिशेष से एक सामान्य सी जिज्ञासा होती है कि — रोम से भारत आये चाँदी और सोने के सिक्कों का भारतीयों ने किस प्रकार प्रयोग किया? 

स्वर्ण के स्रोत

  • रोम से व्यापार के लेनदेन में स्वर्ण सिक्के की प्राप्ति
  • कुषाणों ने मध्य एशिया के अल्ताई के पहाड़ियों से सोना प्राप्त किया
  • कर्नाटक के कोलार खानों से

विश्लेषण

रोमन साम्राज्य के स्वर्ण सिक्के स्वाभाविक रूप से उनके आंतरिक मूल्य के लिये मूल्यवान थे और साथ ही वे प्रमुख लेन-देन में भी प्रचलन में रहे होंगे।

पश्चिमोत्तर भारत में भारतीय-यूनानी शासकों ने कुछ सोने के सिक्के जारी किये, परन्तु कुषाणों ने बड़ी संख्या में स्वर्ण सिक्के जारी किये। यह सोचना सही नहीं है कि कुषाणों ने जो स्वर्ण सिक्के ढलवाये वे सभी रोमन सोने से बने थे।

पाँचवीं शताब्दी ई०पू० के प्रारम्भ में पश्चिमोत्तर भारत (शतगु और गदर) ने अखामनी साम्राज्य को ३६० टैलेंट सोने का कर दिया था। यह स्वर्ण सिंध में सोने की खदानों से निकाला गया हो सकता है।

कुषाणों ने सम्भवतया मध्य एशिया से सोना प्राप्त किया। साथ ही स्वर्ण का स्रोत कर्नाटक कोलार अथवा झारखंड में धालभूम की सोने की खदानों से भी प्राप्त किया हो सकता है।

रोम के सम्पर्क के कारण कुषाणों ने दीनार प्रकार के सोने के सिक्के जारी किये जो गुप्त शासन के दौरान प्रचुर मात्रा में हो गये।

यद्यपि स्वर्ण सिक्कों का उपयोग दैनंदिन लेन-देन में नहीं किया गया होगा। दैनंदिन लेन-देन ताँबे, सीसे और पोटिन के सिक्कों में किये जाते थे। आंध्र क्षेत्र में सीसे और ताँबे के भंडार पाये जाते हैं। कर्नाटक में सोने के भंडार पाये जाते हैं।

सातवाहनों ने बड़ी संख्या में सीसा या पोटिन के सिक्के जारी किये। हालाँकि सातवाहनों ने सोने के सिक्के जारी नहीं किये, परन्तु संग्रहालयों से पता चलता है कि उन्होंने सबसे अधिक संख्या में सिक्के जारी किए। सुदूर दक्षिण में प्रायद्वीप के सिरे पर कुछ पंचमार्क और प्रारंभिक संगम युग के सिक्के पाये गये हैं।

कुषाणों ने उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी भारत में सबसे अधिक संख्या में ताम्र सिक्के जारी किये। निचले सिंध में कुषाणों के उत्तराधिकारी इंडो-ससानियनों ने भी कई सिक्के जारी किये।

ताँबे और काँसे के सिक्कों का प्रयोग कुछ स्वदेशी राजवंशों के शासकों द्वारा बड़ी मात्रा में किया गया था जैसे कि मध्य भारत में शासन करने वाले नाग, पूर्वी राजस्थान में हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के आस-पास के क्षेत्रों में शासन करने वाले यौधेय और कौशाम्बी, मथुरा, अवंन्ती और अहिच्छत्र (उत्तर प्रदेश में बरेली जिला) में शासन करने वाले मित्र।

लगभग २०० ई०पू० से ३०० ई० के बीच की अवधि में सबसे अधिक सिक्के चलते थे और ये सिक्के न केवल शासकों द्वारा बल्कि गणराज्यों और श्रेणियों द्वारा भी जारी किए गये थे। मौर्योत्तर काल में सिक्कों के निर्माण के लिये सर्वाधिक संख्या में मुहर और साँचे (dies & moulds) प्राप्त होते हैं।

निष्कर्ष

सम्भवतया किसी अन्य अवधि में मुद्रा अर्थव्यवस्था ने शहरों और उनके उपनगरों के आम लोगों के जीवन में इतनी गहराई से प्रवेश नहीं कर पायी जितना कि मौर्योत्तर काल में। यह विकास कला और शिल्प के विकास और रोमन साम्राज्य के साथ भारत के संपन्न व्यापार के साथ अच्छी तरह से मेल खाता है। इतिहासकार रामशरण शर्मा के शब्दों में—

“Perhaps in no other period had money economy penetrated so deeply into the life of the common people of the towns and their suburbs as during this period.”* — R. S. SHARMA

FAQ

मौर्योत्तर मुद्रा अर्थव्यवस्था पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।

Write a short note on post-Mauryan monetary economy.

मौर्यकाल के अंत तक सिक्कों पर केवल कोई चिह्न अंकित होता था और वे लेखयुक्त भी नहीं होते थे। मौर्योत्तर काल में ही सबसे पहले लेखयुक्त और राजाओं की आकृतियों से युक्त सिक्के अस्तित्व में आये। मुद्राओं की कलात्मकता और विनिमय में नियमित रूप से मुद्रा का प्रयोग वास्तव में मौर्योत्तर काल की सर्वप्रमुख विशेषताओं में से एक है।

इसी काल में सोने, चाँदी, ताँबे, पोटीन, सीसे इत्यादि के सिक्के बड़ी मात्रा में प्रचलन में आये। यद्यपि सोने व चाँदी दैनंदिन प्रयोग में नहीं होते थे परन्तु ताँबे व सीसे के सिक्के दैनंदिन विनिमय का अंग बन गये थे। युनानियों, शकों, पह्लवों, कुषाणों, सातवाहनों, गणराज्यों, श्रेणियों इत्यादि सभी ने सिक्के ढलवाये।

श्रेणियों ने भी मुद्रा अर्थव्यवस्था में प्रमुख भूमिका का निर्वहन किया। वे महाजनी का कार्य करते थे और कुछ तो सिक्के भी चलाते थे।

कुषाण-सिक्के (Kushan-Coins)

मौर्योत्तर सिक्के

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