भूमिका
मौयर्योत्तर युग कलात्मक विकास की दृष्टि से बहुआयामी था। कला धर्म से प्रभावित थी वह भी मुख्यतया बौद्ध धर्म से और गौणतया हिन्दू व जैन धर्म से। मौर्योत्तर कला की प्रमुख विशेषता है— विभिन्न शैलियों का विकास; यथा— मथुरा कला, गांधार कला, अमरावती कला इत्यादि। आर्थिक समृद्धि ने स्थापत्य कला और मूर्तिकला के विकास को अच्छा सम्बल प्रदान किया।
जहाँ उत्तरी भारत में हमें स्तूपों और मूर्तियों का विकास दिखता है वहीं दक्षिण भारत में हमें स्तूपों के साथ-साथ पर्वत शृंखलाओं को खोदकर चैत्य व विहार के निर्माण की परम्परा दिखायी देती है। साथ ही इन गुहाओं की दीवारों पर चित्रकारी की परम्पराओं का भी विकास दिखायी देता है।
कला और स्थापत्य
ललित कलाओं में नृत्य, संगीत, नाटक और चित्रकला का भी इस समय विकास हुआ। साथ ही स्थापत्य की दृष्टि से मौर्योत्तर काल बहुत महत्त्वपूर्ण रहा।
धनी व्यापारियों की विभिन्न श्रेणियों एवं शासकों द्वारा इसे बहुत प्रोत्साहन दिया गया। इस समय के कला-स्मारक, स्तूप, गुहा मंदिर (चैत्य) और संघाराम (विहार) के साथ-साथ मूर्तियों का निर्माण बड़े पैमाने पर हुआ। हैं। पर्वतों में खोदी गयी गुफाएँ मंदिरों और भिक्षुओं के निवास स्थान के रूप में प्रयुक्त होती थीं।
स्थापत्य कला
स्थापत्य के क्षेत्र में इस समय भवनों में बड़े पैमाने पर पकाई ईंटों के व्यवहार का भी उल्लेख किया जा सकता है। नगरों का निर्माण एक सुनिश्चित योजना के अनुसार हुआ। सातवाहन और कुषाणकालीन स्थलों के उत्खनन से ईंट-निर्मित अनेक भवनों के अवशेष मिले हैं। इनके आधार पर गैर-धार्मिक भवनों की रूप-रेखा और नगर-निर्माण योजना के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है।
चित्रकला
चित्रकला के सबसे अधिक प्राचीन उदाहरण अजन्ता की गुफा मख्या ९ व १० में मिलते हैं। गुफा संख्या ९ में सोलह उपासकों को स्तूप की ओर बहते हुए दर्शाया गया है। गुफा सं० १० में जातक कथाएँ अंकित की गयी हैं। इसमें उपासकों को बोधिवृक्ष और स्तूप की पूजा करते हुए निरूपित किया गया गया है। इस काल की अधिकतर कलाकृतियाँ बौद्ध धर्म से सम्बन्धित हैं और इनमें से अधिकतर धनी व्यापारियों की बनवायी गयी हैं। विस्तृत विवरण के लिये देखें — अजन्ता की गुफाएँ
विभिन्न कला पद्धतियाँ
इस समय कला की कुछ विशिष्ट शैलियों का विकास हुआ।
- शुंगकला कला
- गांधार कला
- मथुरा कला
- सातवाहन कला
- चित्रकला
- मूर्तिकला
शुंग कला
स्तूप, चैत्यघर, विहार, स्तंभ, वेदिका समेत तोरण और देवस्थल शुंग कला की मुख्य निर्माण हैं। शुंगकालीन कला के मुख्य केंद्र भरहुत, साँची और गया थे।
विस्तृत विवरण के लिये देखें — शुंगकालीन संस्कृति
गांधार कला
कुषाणकाल में गांधार क्षेत्र में कला की एक विशिष्ट शैली का विकास हुआ जिसे गांधार कला के रूप में जाना जाता है। इस कला के मुख्य केंद्र तक्षशिला, पुष्कलावती, नगरहार, स्वातघाटी या उड्डीयान, कापिशी, बामियान तथा बाहलीक या बैक्ट्रिया थे। इन सभी स्थलों में स्थापत्य और मूर्तिकला का विकास देखा जा सकता है।
गांधार कला का विशेष महत्त्व इस कारण है कि भारतीय विषयों पर यूनानी/रोमन ढंग से मूर्तियाँ बनायी गयीं। बुद्ध और बोधिसत्व की मूर्तियाँ विभिन्न मुद्राओं में बनीं। ये मूर्तियाँ यूनानी देवता अपोलो की मूर्ति से मिलती-जुलती हैं।
गांधारकला के साथ-साथ पश्चिमोत्तर क्षेत्र में चैत्य और स्तूप निर्माण की परंपरा भी विकसित हुई। तक्षशिला और अन्य क्षेत्रों से अनेक स्तूपों का प्रमाण मिलता है। इनमें सबसे अधिक विख्यात है तक्षशिला का धर्मराजिका या चीर स्तूप। पुरुषपुर में कनिष्क ने भी एक भव्य स्तूप का निर्माण करवाया।
विस्तृत विवरण के लिये देखें — गान्धार कला शैली
मथुरा कला
कुषाणकाल में गांधार कला शैली के अतिरिक्त मथुरा कला शैली का भी विकास हुआ। गांधार कला में यूनानी-रोमन प्रभाव दिखायी देता है, परंतु मथुरा कला मूलतः भारतीय शैली में विकसित हुई। मथुरा में लाल रंग के पत्थरों से बुद्ध और बोद्धिसत्व की सुंदर मूर्तियाँ बनीं। इसके अतिरिक्त जैन तीर्थंकरों, ब्राह्मणधर्म से संबद्ध देती-देवताओं, अलौकिक शक्तियों की भी मूर्तियाँ बनायी गईं। नाग, यक्ष, कुबेर, बलराम, कनिष्क, वेम तक्षम की मूर्तियाँ भी मथुरा से मिली हैं।
विस्तृत विवरण के लिये देखें — मथुरा कला शैली
सातवाहन कला
मौर्योत्तर युग में दक्कन में स्थापत्य कला विशेष रूप से विकसित हुई। इस कला में मुख्यतः चैत्य, स्तूप और विहार बनाये गये।
विस्तृत विवरण के लिये देखें — सातवाहनयुगीन संस्कृति
FAQ
प्रश्न — मौर्योत्तरकालीन कला और स्थापत्य पर एक समीक्षात्मक टिप्पणी लिखिए।
Write a critical note on post-Mauryan art and architecture.
उत्तर —
जहाँ मौर्य कला राजकीय अधिक थी वहीं मौर्योत्तर कला लोककला अधिक। इस काल में हमें विभिन्न शैलियों के विकास दिखायी देता है। भक्ति भावना के उदय ने विभिन्न धर्मों में प्रतीक चिह्नों के स्थान पर मूर्तिकला को प्रेरित और प्रोत्साहित ही किया।
ललित कलाओं में नृत्य, संगीत, नाटक और चित्रकला का भी इस समय विकास हुआ।
स्थापत्य के क्षेत्र में इस समय भवनों में बड़े पैमाने पर पकाई ईंटों के व्यवहार का भी उल्लेख किया जा सकता है। नगरों का निर्माण एक सुनिश्चित योजना के अनुसार हुआ। सातवाहन और कुषाणकालीन स्थलों के उत्खनन से ईंट-निर्मित अनेक भवनों के अवशेष मिले हैं।
विविध कला शैलियाँ —
- शुंग कला — भरहुत व साँची के स्तूप और बोधगया संघाराम का संवर्धन, विदिशा का गरुड़ स्तम्भ इत्यादि।
- कुषाणों के शासन काल में मुख्य रूप से दो शैलियाँ का विकास हुआ —
- गान्धार कला
- मथुरा कला
- सातवाहनों व उनके उत्तराधिकारियों के अधीन दक्षिण भारत में बहुत सारी गुफाओं और स्तूपों का निर्माण हुआ—
- स्तूप
- अमरावती स्तूप
- नागार्जुनीकोंडा स्तूप
- गुहा निर्माण
- भाजा की गुफाएँ
- कोण्डाने की गुफाएँ
- पीतलखोरा की गुफाएँ
- अजन्ता की गुफाएँ
- वेडसा की गुफाएँ
- नासिक की गुफाएँ
- कार्ले की गुफाएँ
- कन्हेरी की गुफाएँ
- स्तूप
- खारवेल द्वारा निर्मित गुफाएँ
- उदायगिरि और खण्डगिरि की गुफाएँ
चित्रकला
- चित्रकला के सबसे अधिक प्राचीन उदाहरण अजन्ता की गुफा मख्या ९ व १० में मिलते हैं। गुफा संख्या ९ में सोलह उपासकों को स्तूप की ओर बहते हुए दर्शाया गया है। गुफा सं० १० में जातक कथाएँ अंकित की गयी हैं। इसमें उपासकों को बोधिवृक्ष और स्तूप की पूजा करते हुए निरूपित किया गया गया है। इस काल की अधिकतर कलाकृतियाँ बौद्ध धर्म से सम्बन्धित हैं और इनमें से अधिकतर धनी व्यापारियों की बनवायी गयी हैं।
मौर्योत्तर काल में विदेशियों के सामाजिक आत्मसातीकरण में धर्म की भूमिका
मौर्योत्तर अर्थव्यवस्था (२०० ई०पू० – ३०० ई०) / Post-Mauryan Economy (200 BC – 300 AD)