मालव गणराज्य

भूमिका

मालव (Malava) एक प्राचीन भारतीय जनजाति थी। लम्बे समय तक उनके अधिवास के कारण पंजाब और मध्य भारत में मालवा क्षेत्र का नाम उनके नाम पर रखा गया है।

कुछ विद्वान मालव सम्वत् (विक्रम सम्वत्) को प्रचलित करने का श्रेय मालवों को देते हैं, परन्तु (सम्भवतः) मालवों के द्वारा इसके प्रयोग और मालवा से सम्बद्ध होने के कारण ऐसा भ्रम हो सकता है।

मालव शब्द का अर्थ

मालव शब्द मलय शब्द से व्युत्पन्न हुआ। मलय सम्भवतया द्रविड़ भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ पहाड़ी होता है।

“The name of the Malavas, like that of the Malaya Mountain range, is probably derived from the Dravidian word malai, meaning hill.”

— The Age Of Imperial Unity, p. 163, A.K. Majumdar.

प्राचीन उल्लेख

  • मालवों का उल्लेख हमें कई प्राचीन ग्रन्थों में प्राप्त होता है, जैसे – अष्टाध्यी, महाभाष्य, महाभारत।
  • पाणिनि ने उनका उल्लेख ‘आयुधजीवी संघ’ के रूप में किया है।
  • मालवों का उल्लेख सिकंदर के आक्रमण के समय मिलता है। इनके लिए यूनानी लेखकों ने मलोई / मल्लोई (Malloi) शब्द का प्रयोग किया है।

राजनीतिक इतिहास

सिकंदर का प्रतिरोध

  • सिकंदर के आक्रमण के समय चतुर्थ शताब्दी ईसा पूर्व में मालव या मालब गणराज्य रावी और चिनाब नदी के संगम (पंजाब) पर स्थित था।
  • लौटते समय सिकंदर को मालव और क्षुद्रक गणों के संगठित प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था।
  • यूनानी लेखक कार्टियस के अनुसार मालव और क्षुद्रक गणों की सेना में ९०,००० पदाति, १०,००० अश्वारोही और ९०० युद्ध रथ सम्मिलित थे। यह संख्या निश्चय ही अतिशयोक्तिपूर्ण है।
  • इस युद्ध में सिकंदर गम्भीर रूप से घायल हो गया था। कुपित यूनानी सेना ने मालव गण के सभी नर, नारी और बालकों को मौत के घाट उतार दिया था।

दक्षिण की ओर आकर बसना

  • मालवों का दक्षिण की ओर स्थानांतरण सम्भवतः मौर्योत्तर काल में तब शुरू हुआ होगा जब पश्चिमोत्तर से आक्रमण होने लगे। इस क्रम में पंजाब पर पहले इंडो-यूनानियों का आक्रमण हुआ और शकों का।
  • ऐसे में मालवों को पंजाब से विस्थापित होना पड़ा। विस्थापन की प्रक्रिया सम्भवतया इंडो-यूनानियों के समय प्रारम्भ होकर शकों के विजय तक चलती रही होगी।
  • कालान्तर में वे पंजाब से दक्षिण की ओर आकर बस गये थे। इस संदर्भ में वर्तमान के तीन क्षेत्रों में मालव अधिवसित हुए थे –
      • पूर्वी राजपूताना
      • गुजरात
      • मालवा

मालवों ने समकालीन शक्तियों का बार-बार प्रतिरोध किया था, जैसे –

शक और पल्लव

  • पश्चिमी क्षत्रप (दूसरी शताब्दी ई०)
  • नहपान (क्षहरात वंश) नासिक लेख से पता चला है कि उसने मालवों* को पराजित किया था।

 “भटारका-अञातिया च गतोस्मिं वर्षारतुं मालये [ हि ] हि रुधं उतमभाद्र मोचयितुं ( । )

ते च मालया प्रनादेनेव अपयाता उतमभद्रकानं च क्षत्रियानं सर्वे परिग्रहा कृता ( । )”

 —  नहपानकालीन उषावदत्त का तिथिविहीन नासिक गुहालेख

गुप्त साम्राज्य

  • गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त (चौथी शताब्दी)
  • गुप्तों के उदय के पूर्व संभवतः वे मन्दसौर (प्राचीन दशपुर) में राज्य करते थे। मन्दसौर से प्राप्त लेखों में मालव-सम्वत् का ही प्रयोग मिलता है।
  • चौथी शती के अन्त तक उनका राजनीतिक अस्तित्व बना रहा।
  • समुद्रगुप्त ने उन्हें पराजित कर अपने अधीन कर लिया था।

“समतट-डवाक-कामरूप-नेपाल-कर्तृपुरादि-प्रत्यन्त-नृपतिभिर्म्मालवार्जुनायन-यौधेय-माद्रकाभीर-प्रार्जुन-सनकानीक-काक-खरपरिकादिभिश्च-सर्व्व-कर-दानाज्ञाकरण-प्रणामागम-”

प्रयाग प्रशस्ति, पं०- २२

गुप्तोत्तर काल

  • ५३० ई० में हम मालवा पर यशोधर्मन को शासन करता हुआ पाते हैं। इतिहासकारों के अनुसार वह औलिकर वंश का था, जोकि मालवों की एक शाखा बतायी जाती है।  गुप्तोत्तर काल में मालवा में हम उत्तरगुप्त शासकों को शासन करता हुआ पाते है। ध्यान रहे कि ये उत्तरगुप्त शासक चक्रवर्ती गुप्तों से भिन्न थे।
  • अपने ऐहोल अभिलेख में चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय (सातवीं शताब्दी) मालवों को पराजित करने का दावा करता है —

“प्रतापापनता यस्य लाटमालवगुर्जराः।

दण्डोपनतसमन्तचर्य्या चार्या इवाभवन्॥ २२ ॥”

ऐहोल अभिलेख

  • परन्तु पुलकेशिन द्वितीय का समकालीन शासक हर्षवर्धन थे और मालवा उनके साम्राज्य का अंग था। जैसा कि अप्रत्यक्ष रूप से ज्ञात होता है कि हर्षवर्धन को दक्षिण अभियान में सफलता नहीं प्राप्त हुआ थी। सम्भव है कि मालवों ने हर्षवर्धन के सामन्त के रूप में इस अभियान में भाग लिया हो जिसका पुलकेशिन द्वितीय ने सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया। इसीलिए पुलकेशिन द्वितीय मालवों का उल्लेख करता हो।
  • एक और बात कि मालवा में रहनेवाले लोगो को गुप्तोत्तर काल में सामान्यतः मालव कहा जाने लगा था।

राजस्थान में मालव

  • राजस्थान में मालव गणराज्य की राजधानी मालव नगर (Malava-nagara) थी।
  • मालव नगर की पहचान टोंक जनपद में स्थित नगर (Nagar) / कार्कौट नगर (Karkota-nagar) से की जाती है।
  • नगर या कर्कौट नगर टोंक से दक्षिण-दक्षिण-पूर्व में और बूँदी से लगभग उत्तर-पूर्व में स्थित है।
  • यह ज्ञात होता है कि द्वितीय शताब्दी के प्रारम्भ में ही राजस्थान के मालवों ने अपने पड़ोसियों, अजमेर क्षेत्र के उत्तमभद्रों (Uttamabhadras) के साथ-साथ उनके सहयोगी पश्चिमी भारत के क्षहरात-शकों के साथ भी युद्ध किया था।
  • लेकिन कुषाणों के पतन के तुरंत बाद, ऐसा प्रतीत होता है कि मालवों ने अपने राज्य का चतुर्दिक विस्तार किया। भरतपुर, कोटा और उदयपुर राज्यों में पाये गये तृतीय और चतुर्थ शताब्दी के अभिलेखों में कृत युग के उपयोग से इसका संकेत मिलता है।
  • राजस्थान के भीलवाड़ा जनपद से मिले नंदसा यूप स्तम्भ-लेख, २२६ ई० (Nandsa Yupa Stambha Inscription, A.D. 226) के अनुसार, उस तिथि से पूर्व मालव देश में स्वतंत्रता और समृद्धि लौट आयी थी, जो एक मालव प्रमुख की शानदार उपलब्धियों के कारण थी, जिसका नाम पढ़ा नहीं सका है।
  • ऐसा लगता है कि यह सन्दर्भ मुख्य रूप से शकों के विरुद्ध मालव लोगों की सफलता से सम्बन्धित है। यह सम्भव है कि मौखरि महासेनापति बल मालव गणराज्य के प्रति निष्ठा रखता था। मौखरि महासेनापति बल से सम्बन्धित जानकारी के श्रोत बड़वा-यूप-लेख (२३८ ई०) है।
  • हाल ही में नगर में खोजे गये विक्रम सम्वत् १०४३ (९८६ ई०) के एक शिलालेख में इस स्थान को मालव-नगर के रूप में संदर्भित किया गया है। शिलालेख में मालव-नगर की समृद्धि का वर्णन किया गया है (भारत-कौमुदी, राधाकुमुद मुखर्जी, २७१-२७२)। इस लेख में शासक के नाम के स्थान पर लोकनृप विरुद का प्रयोग मिलता है।
  • इस स्थल को प्रायः कार्कोट-नगर नाम दिया जाता है, जो यह सुझाता है कि यह कुछ समय के लिए नागाओं के अधिकार में भी रहा होगा।
  • बाद के मालव सिक्के पद्मावती के नागों के सिक्कों के समान हैं।
  • यह समानता दर्शाती है कि मालव पद्मावती के नागों से निकटता से जुड़े रहे होंगे।

मालवा में मालव

  • ऐसा लगता है कि तृतीय और चतुर्थ शताब्दी ई० में कृत सम्वत् का उपयोग करने वाले मालवों और शक सम्वत् का उपयोग करने वाले कार्दमकों (पश्चिमी क्षत्रपों) के बीच दीर्घकालीन संघर्ष चला था। परन्तु दोनों ही शक्तियों पर शीघ्र ही गुप्तों ने अपनी प्रभुसत्ता स्थापित कर दी।
  • हालाँकि, शक वंश को विजेताओं (चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य) द्वारा नष्ट कर दिया गया था, परन्तु औलिकर वंश गुप्त सम्राटों के अधीन दशपुर में फला-फूला।
  • औलिकर वंश स्पष्ट रूप से एक मालव वंश था।
  • दशपुर की पहचान आधुनिक मंदसौर से की गयी है। दशपुर पहले कार्दमकों के राज्य में था।
  • सम्भवतः औलिकर वंश, विशेषकर से शक्तिशाली औलिकर वंशी राजा यशोधर्मन (५३२ई०) ही थे, जिन्होंने अवन्ति और आकर या दशार्ण के पुराने जनपदों सहित मध्य और पश्चिमी भारत के एक विस्तृत क्षेत्र पर मालव नाम के प्रचलन में लाने के लिए जिम्मेदार थे।
    • अवन्ति – उज्जयिनी के आसपास का भू-भाग
    • दशार्ण – विदिशा के आसपास का भू-भाग
  • ध्यातव्य है कि मालव राजा जब गुप्तों के अधीन थे तब भी कृत सम्वत् को गुप्त सम्वत् पर वरीयता देते थे। इसे उस समय मालव लोगों या उनके गणराज्य का सम्वत् भी कहा जाता है।
  • चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य और सन्भवतः उनके पिता समुद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा शकों और उनके सम्वत् को समाप्त करने के प्रयास के विपरीत औलिकरों के मालव परिवार और मालव सम्वत् को दी गयी अनुग्रह ने सम्भवतः शकारि विक्रमादित्य की लोकप्रिय गाथा के विकास में योगदान दिया होगा, जिसमें ५७ ईसा पूर्व के सम्वत् की नींव राजा विक्रम को श्रेय दिया गया है।

मालव सम्वत्  

  • मालव सबसे पहले भारतीय लोग थे, जिनके सम्बन्ध में निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि उन्होंने एक ऐसे कालगणना का प्रयोग किया जिसका समय ५७ ईसा पूर्व है।
  • मालव सम्वत् को विक्रम-सम्वत् और कृत सम्वत् के नाम से भी जानते हैं।
  • कुछ विद्वानों के अनुसार मालवों ने अपने इतिहास की किसी महत्त्वपूर्ण घटना के उपलक्ष्य में इस सम्वत् की शुरुआत की थी।  सम्भवतया राजस्थान में अपने गणराज्य की स्थापना के उपलक्ष्य में इस सम्वत् की शुरुआत की हो।
  • लेकिन, यह भी सम्भावना है कि मालवों ने पंजाब में शकों से ५८ ईसा पूर्व के द्रांगियन सम्वत् (Drangian era) का उपयोग अपनाया और इसे राजस्थान में अपने साथ में ले आये हों। राजस्थान में मालवों द्वारा प्रयुक्त द्रांगियन सम्वत् (Drangian era) को शीघ्र ही कृत के नाम से जाना जाने लगा, जो सम्भवतः इसी नाम के एक प्रसिद्ध मालव नेता के नाम पर था, जिसने विदेशी शासन से अपनी जनजाति की स्वतंत्रता सुनिश्चित की थी।*

“But, as suggested above, it is more probable that they adopted the use of the Drangian era of 58 B.C. from the Sakas in the Punjab and carried it to their settlement in Rajasthan. The Drangian era, used by the Malavas in Rajasthan, soon came to be known as Krita probably after an illustrious Malava leader of that name, who secured the independence of his tribe frome foreign yoke.!” *

— The Age Of Imperial Unity, p. 163, 164, A.K. Majumdar.

विक्रमादित्य

  • यदि कृत मालव नेता थे जिन्होंने विदेशियों से अपने राज्य और लोगो की स्वतंत्रता प्राप्त की, तो उनकी उपलब्धियों को शकों के संहारक विक्रमादित्य की उपलब्धियों के साथ भ्रमित करना आसान था।
  • परन्तु जैन साहित्यों में वर्णित और स्वीकार्य मान्यतानुसार विक्रम सम्वत् की शुरुआत उज्जयिनी के प्रतापी राजा विक्रमादित्य ने की थी।
  • उनका शासनकाल सतयुग (कृतयुग) के समान था, इसलिए विक्रम सम्वत् को कृत या सतयुग सम्वत् भी कहा जाता है।
  • मालवा से सम्बन्धित और मालवों द्वारा प्रयोग करने के कारण इसको मालव सम्वत् भी कहा जाने लगा।

विक्रम सम्वत् की गणना

  • सन् ईसवी से विक्रम सम्वत् ५७ वर्ष आगे है।
  • अर्थात् सन् ईसवी में ५७ जोड़कर विक्रम सम्वत् ज्ञात किया जा सकता है।
  • विक्रम सम्वत् का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है।
  • आज जब मैं यह लेख लिख रहा हूँ, की तिथि है — पौष माह, शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि, विक्रम सम्वत् २०८१ (३ / ०१ / २०२५ सन् ईसवी)।
  • विक्रम सम्वत् २०८२ का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नवरात्रि के शुभारम्भ से होगा और यह ३० मार्च, २०२५ को है।

मालव सिक्के व अभिलेख

मालव गणराज्य के सिक्के मालव नगर और उसके आसपास के क्षेत्रों में बड़ी संख्या में पाये गये हैं।

नगर से मिले सिक्के

  • नगर राजपूताना के महत्त्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों में से एक है।
  • नगर या कार्कोट नगर का टीला ≈ १०.३६ वर्ग किमी० के क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • यहाँ से मालवों के लगभग ६,००० ताम्र सिक्के प्राप्त हुए हैं।
  • कार्लाइल (Carlleyl) के अनुसार सिक्कों पर दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर चौथी शताब्दी ईस्वी तक की ब्राह्मी लिपि में लेख हैं। इस अवधि के दौरान नागर एक महत्त्वपूर्ण नगर रहा होगा। — (Bharat Kaumudi- 1 , p. 270; R. K. Muokerji)
  • उन पर ‘मालवानाम्‌जय’, ‘मालवजय’ तथा ‘मालवगणस्य’ उत्कीर्ण है।
  • विद्वानों ने इन सिक्कों की प्राचीनता ईसा की द्वितीय शताब्दी से तृतीय शताब्दी के मध्य तक निर्धारित की है।
  • सिक्कों पर अंकित लेख इस बात के सूचक हैं कि उनमें गणतन्त्र शासन पद्धति थी।

रायढ़ (Rairh) से मिले सिक्के

  • पूर्व जयपुर राज्य के रायढ़ (Rairh) में कुछ मालव सिक्के एक सीसे की मुहर के साथ मिले हैं जिस पर मालव-जनपद अंकित है।
  • कुछ मालव सिक्के प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व के हैं और उनमें से अधिकांश बाद के हैं। सिक्कों को आमतौर पर दो बड़े समूहों में विभाजित किया जाता है —
    • एक, जिनपर ‘जयो मालवानाम्’ या ‘मालवानाम् जयः’ अंकित है।
    • द्वितीय श्रेणी के सिक्कों पर छोटे-छोटे विरुद अंकित मिलते हैं, यथा – भापम्यान (Bhapamyana), माजूपा (Mapuja), मापोजय (Mapojaya), मापय (Mapaya), ​​मगजश (Magajash), मगोजवा (Magojava), मापक (Mapaka), यम (Yama), पाछा (Pachha), जमपाया (Jamapaya), जमकु (Jamaku) आदि।
  • इनमें से अधिकांश का अर्थ और महत्त्व अज्ञात है। कभी इन्हें विदेशी मूल के प्रमुखों के नाम मान लिया जाता है। यह भी सुझाव दिया गया है कि —

“वे नाम नहीं हैं, बल्कि ज़्यादातर मामलों में मालवानाम् जयः के कुछ हिस्सों को फिर से बनाने के अर्थहीन प्रयास हैं।” (they are not names, but in most cases meaningless attempts to re-produce parts of malavānām jayah.)

– The Age of Impeial Unity, p. 165

  • हालाँकि, निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।

निष्कर्ष

उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि मालव लोग बहुत स्वाभिमानी थे। वे स्वातंत्र्य-प्रिय लोग थे। मालवों का सिकन्दर से लेकर शकों तक के समय तक एक लम्बा व सतत प्रतिरोध का इतिहास है।

नागवंश

बड़वा का मौखरि वंश (Maukhari Dynasty of Barwa)

मघ राजवंश

आभीर राजवंश (Abhira dynasty)

आंध्र इक्ष्वाकु या विजयपुरी के इक्ष्वाकु

चुटु राजवंश या चुटुशातकर्णि राजवंश

बृहत्पलायन वंश या बृहत्फलायन वंश

शालंकायन वंश (Shalankayana Dynasty)

अर्जुनायन गणराज्य

यौधेय गणराज्य

शिबि या शिवि

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