मणिमेकलै (मणि-युक्त कंगन) / Manimekalai

भूमिका

मणिमेकलै का अर्थ है— मणियुक्त कंगन या मणियों की मेखला। यह शिलप्पादिकारम् की कथा को आगे बढ़ाती है। यह एक “प्रेम-विरोधी कहानी” (Anti-Love-Story) है। यह अपने अपनी पूर्ववर्ती शिल्पादिकारम् की तरह स्वाभाविक नहीं लगती वरन् धर्म की दार्शनिक व्याख्याओं और अन्य धर्मों के खंडन व अपने धर्म के मंडन से बोझिल है। इसके रचनाकार शीतलैसत्तनार मदुरा के निवासी थे।

संक्षिप्त परिचय

  • नाम — मणिमेकले / मणिमेखलै (Manimekalai / Manimekhalai)
  • कवि — शीतलै सत्तनार या सीथलै सतनार (Seethalai Satanar)
  • बौद्ध धर्म से सम्बन्धित
  • तमिल साहित्य का ओडिसी (Odyssey) कहा जाता है

मणिमेकलै की संक्षिप्त कहानी

शिल्पादिकारम् के कुछ समय बाद इस ग्रन्थ की रचना हुई। इस पर शिल्पादिकारम् का ही प्रभाव दिखायी देता है। इसकी रचना मदुरा के व्यापारी सीतलैसत्तनार ने की थी जो एक बौद्ध था।

इस महाकाव्य की नायिका मणिमेकलै, कोवलन् (शिल्पादिकारम् के नायक) की प्रेमिका नर्तकी माधवी से उत्पन्न पुत्री है। माधवी अपने पूर्व प्रेमी की मृत्यु का समाचार सुनकर बौद्ध भिक्षुणी बन जाती है।

राजकुमार उदयकुमारन् मणिमेकलै से प्रेम करता है तथा उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। परन्तु मणिमेकलै चामत्कारिक ढंग से अपने सतीत्व को बचा लेती है। अन्ततः वह भी अपनी माता के समान बौद्धधर्म का आलिंगन कर भिक्षुणी बन जाती है।

इस ग्रन्थ की कहानी दार्शनिक एवं शास्त्रार्थ सम्बन्धी बातों के लिये बनायी गयी है। इसका महत्त्व मुख्यतः धार्मिक है। इसमें तर्कशास्त्र की भ्रान्तियों की लम्बी-लम्बी व्याख्या है।

नीलकंठ शास्त्री के अनुसार यह बौद्ध लेखक दिङनाथ (पाँचवीं शती) की कृति ‘न्यायप्रवेश’ पर आधारित है। इसकी अधिकांश कवितायें हिन्दू तथा अन्य धर्मविरुद्ध सम्प्रदाय वालों के बीच वाद-विवाद और दूसरे धर्मानुयायियों के मतों के खण्डन-मण्डन सम्बन्धी विचारों से परिपूर्ण हैं। इस प्रकार मणिमेकलै का महत्त्व शिल्पादिकारम् जैसा नहीं है।

मणिमेकलै का महत्त्व

यह महाकाव्य संगमकाल के इतिहास, बौद्ध धर्म, भूगोल, समकालीन कला एवं संस्कृति और उस तत्कालीन रीति-रिवाजों के बारे में बहुत सारी जानकारी देता है। इसमें चार आर्य सत्य, प्रतीत्यसमुत्पाद, मन (चित्र), देवी, चमत्कार, मंत्र, पुनर्जन्म, पुण्य-निर्माण, भिक्षुओं और भिक्षुणियों द्वारा भिक्षाटन, अकिंचनों और जरूरतमंदों की सहायता करने के बौद्ध सिद्धांत के बारे में लेखक का दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।

ज्वेलेबिल (Zvelebil) के अनुसार— महाकाव्य बौद्ध धर्म और जैन धर्म के बीच धार्मिक प्रतिद्वंद्विता का एक दृश्य प्रस्तुत करता है, जहाँ बौद्ध विचारों और प्रचार को प्रस्तुत किया जाता है जबकि जैन धर्म पर “हमला किया जाता है और उसका उपहास किया जाता है”।

मणिमेकलै महाकाव्य में भी रामायण के कई सन्दर्भ हैं, जैसे—

  • बंदरों द्वारा समुद्र पर बनाया गया सेतु।
  • यह महाकाव्य राम के त्रिविक्रम या नेतियों के अवतार होने की बात करता है, और उन्होंने बंदरों की सहायता से सेतु का निर्माण किया, जिन्होंने पुल बनाने के लिए समुद्र में बड़ी-बड़ी चट्टानें फेंकी थीं।
  • ऋषि गौतम की पत्नी अहल्या का इंद्र द्वारा अपमान।

इससे यह संकेत मिलता है कि रामायण की कहानी तमिल भूमि में बहुत प्राचीन काल से ही प्रचलित थी और कम्बन कृत रामायणम से भी पहले राम को भगवान के रूप में स्वीकार किया जा चुका था।

प्रथम संगम या प्रथम तमिल संगम

द्वितीय संगम या द्वितीय तमिल संगम

तृतीय संगम या तृतीय तमिल संगम

संगमयुग की तिथि या संगम साहित्य का रचनाकाल

शिलप्पदिकारम् (नूपुर की कहानी) / Shilappadikaram (The Ankle Bracelet)

जीवक चिन्तामणि (Jivaka Chintamani)

तोलकाप्पियम् (Tolkappiyam) – तोल्काप्पियर 

एत्तुथोकै या अष्टसंग्रह (Ettuthokai or The Eight Collections)

पत्तुपात्तु या दस-गीत (Pattuppattu : The Ten Idylls)

पदिनेनकीलकनक्कु (Padinenkilkanakku) : अष्टादश लघु शिक्षाप्रद कविताएँ (The Eighteen Minor Didactic Poems)

सुदूर दक्षिण के इतिहास की भौगोलिक पृष्ठभूमि

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