भारत के प्राचीन बंदरगाह (Ancient ports)

भूमिका

बढ़ते समुद्री व्यापार भारतीय उपमहाद्वीप के तटों पर विकसित पत्तनों के कारण सम्भव हुआ। एक ओर तो ये पत्तन पश्चिम में रोमन साम्राज्य से सम्बद्ध थे तो वहीं पूर्व में ये दक्षिण-पूर्व एशिया से जुड़े हुए थे। इस पत्तनों के सम्बन्ध में पुरातत्त्व और साहित्यों से मिलते हैं। ‘पेरिप्लस ऑफ द इरिथ्रियन सी’ में मौर्योत्तर काल के लगभग २४ बन्दरगाहों का वर्णन प्राप्त होता है। वहीं टॉलेमी के भूगोल से भी कई पत्तनों का विवरण प्राप्त होता है। इन विदेशी स्रोतों के अतिरिक्त तत्कालीन संस्कृत, प्राकृत के साथ-साथ संगम साहित्यों में भी बंदरगाहों का विवरण सुरक्षित है। इनमें से कुछ पत्तनों का विवरण अधोलिखित है—
भारत के प्राचीन बंदरगाह

प्रमुख बंदरगाह

इसे हम दो भागों में बाँट सकते हैं—

  • पूर्वी तट के पत्तन
  • पश्चिमी तट के पत्तन

पूर्वी तट के पत्तन

पर्वी तट के पत्तनों को हम सुविधा के लिए निम्न भागों में बाँटकर अध्ययन कर सकते हैं —

  • गंगा डेल्टा के पत्तन
  • उत्कल तट के पत्तन
  • उत्तरी सरकार / आंध्र तट के पत्तन
  • कोरोमंडल तट के पत्तन

गंगा डेल्टा के बंदरगाह

चंद्रकेतुगढ़ (Chandraketugarh)

  • यह पश्चिम बंगाल के २४ परगना जनपद में स्थित है।
  • इस बंदरगाह की पहचान आमतौर पर चंद्रकेतुगढ़ (Chandraketugarh) के पुरातात्विक स्थल से की जाती है।
  • पेरिप्लस ऑफ इरिथ्रियन सी में उल्लिखित गंगे बंदरगाह (Gange port)  की पहचान चंद्रकेतुगढ़ से की गयी है।
  • इसकी मलमल (muslin) प्रसिद्ध थी।
  • मलमल को गंगा घाटी के माध्यम से भृगुकच्छ के बंदरगाह तक निर्यात किया जाता था साथ ही तट के रास्ते तमिल क्षेत्र में भी पहुँचाया जाता था। वहाँ से इसे रोमन बाज़ारों में निर्यात किया जाता था।

ताम्रलिप्ति / तामलुक 

  • बंगाल प्रांत के पूर्व मेदिनीपुर जनपद में स्थित आधुनिक तामलुक है।
  • टॉलेमी के भूगोल में उल्लिखित तामलाइट्स (Tamalites) का बंदरगाह की पहचान ताम्रलिप्ति से की गयी है।  मेदिनीपुर के आधुनिक तामलुक क्षेत्र में ताम्रलिप्त के बंदरगाह के समान है।

उत्कल तट या कलिंग तट के बंदरगाह

पल्लूर

  • कलिंग का प्रसिद्ध बंदरगाह।
  • यह ओडिशा के गंजाम जनपद में स्थित था।

आंध्र तट / उत्तरी सरकार तट के बंदरगाह

घण्टाशाला / कोडाकशाला

  • कोंटाकोसिला या घण्टाशाला (Kontakossylla / Ghantasala) बंदरगाह आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा नदी के तट पर स्थित था।
  • यहाँ से समुद्री जहाज प्राचीन भारतीय साहित्यों में वर्णित स्वर्ण भूमि (सुवर्णभूमि) को आते-जाते थे। यह म्यांमार, थाईलैंड और दक्षिण पूर्व एशिया के द्वीपों के दक्षिणी तट को संदर्भित करता था।
  • नागार्जुनकोंडा के इक्ष्वाकु अभिलेखों में श्रीलंका और वंग के साथ कृष्णा-गोदावरी डेल्टा के बीच नियमित संपर्कों का उल्लेख है। सीलोन (श्रीलंका) के भिक्षु कृष्णा-गोदावरी क्षेत्र के बौद्ध संघों में आये थे। यह सांस्कृतिक संपर्क व्यापार संबंधों पर आधारित हो सकता है।

बन्दर (Bandar)

  • इसकी पहचान मछलीपट्ट्नम् से की गयी है। इसे मसुला (Masula) नाम से जाना जाता था।
  • सातवाहन काल के दौरान इसके अस्तित्व के प्रमाण मिलते हैं।
  • यहाँ समुद्री व्यापार खूब फलता-फूलता था। यहाँ का मुख्य व्यापारिक सामान मलमल (Muslin) के कपड़े थे।

कोरोमंडल तट के बंदरगाह

सोपातमा (Sopatma)

  • इसकी पहचान संदिग्ध रूप से महाबलीपुरम से की जाती है।

अरिकामेडु (Arikamedu)

  • आधुनिक पाण्डिचेरी में स्थित इस बन्दरगाह का नाम पेरिप्लस में पोडुके (Poduke) मिलता है।
  • १९४५ में कराये गये विस्तृत उत्खनन में एक रोमन बस्ती मिली है। यहाँ से रोम की बनी हुई अनेक वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं; जैसे— दीप का टुकड़ा, बर्तन, सुराही आदि
  • यहाँ से रोम निवासियों की रूचि तथा उनके द्वारा दिए गये नमूनों के अनुसार मलमल तथा अन्य वस्तुओं का निर्माण करके रोम भेजा जाता था।
  • यहाँ पर आयातित वस्तुओं में मिट्टी के बर्तन, काँच एवं मिट्टी की मूर्तियाँ, मदिरा एवं सोने-चांदी के सिक्के प्रमुख थे।
  • निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में मलमल और मोती का विशेष महत्व था।

विस्तृत विवरण के लिए देखें— अरिकामेडु या पुडुके

उरैयूर (Urayur) 

  • यह चोल राज्य की पहली राजधानी थी।
  • यह तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली जनपद में कावेरी नदी के तट पर स्थित थी।
  • इसको पेरीप्लस ऑफ इरिथ्रियन सी में अरगरू (Argaru) मिलता है।

कावेरीपट्टनम् (Kaveripattanam)

  • यह तमिलनाडु राज्य के कावेरी नदी तट के मुहाने पर स्थित था।
  • इसका उल्लेख संगम साहित्य के साथ-साथ पेरीप्लस और टॉलेमी के भूगोल में भी मिलता है।
  • पेरीप्लस में इसे कामरा (Camara) कहा गया है जबकि टॉलेमी इसे खाबेरास (Khaberos) कहता है।
  • इसके अन्य नाम कलाकट्टन (Kalapattana) भी मिलता है।
  • यह आधुनिक नाम पुहार (Puhar) और पमपुहार / पुम्पुहार (Pumpuhar / Poompuhar) भी मिलते हैं।

कोरकई / कोर्कई (Korkai)

  • यह पाण्ड्यों की बन्दरगाह राजधानी थी।
  • यह तमिलनाडु के ताम्रपर्णी नदी के तट पर स्थित था।
  • पेरिप्लस में इसका नाम काल्ची / कोल्ची (Colchi) मिलता है।
  • यह मोतियों के लिए प्रसिद्ध था।

पश्चिमी तट के पत्तन

मकरान तट के बंदरगाह

ओरिया (Oraea)

  • पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त मकरान तट पर वर्तमान ओरमारा (Ormara) के पास स्थित था। इसका उल्लेख पेरिप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी में किया गया है।

सिंधु के मुहाने का बंदरगाह

बारबैरिकम (Barbaricum) 

  • यह सिन्धु नदी के मुहाने पर स्थित था। यहाँ आयातित वस्तुओं में क्षौम वस्त्र, पुखराज, मूँगा, लोहबान, काँच, मदिरा और सोने-चाँदी के सिक्के प्रमुख थे।
  • यहाँ से निर्यातित वस्तुओं में अनेक प्रकार के मसाले, फिरोजा, नीलम, मलमल, रेशम के धागे, नील आदि शामिल थे।
  • चीनी रचना होउ हान शू (Hou-Han-Shu) के आधार पर यह ज्ञात है कि व्यापारियों ने शेन्टू (Shentu) और रोम के बीच समुद्री व्यापार से अच्छा मुनाफा कमाया। शेन्टू (Shentu) निचली सिंधु के लिए प्रयुक्त हुआ है।

गुजरात तट के बंदरगाह

भरूच

  • यह भारत के पश्चिमी तट पर गुजरात प्रांत में खंभात की खाड़ी के किनारे नर्मदा नदी के मुहाने पर स्थित है।
  • इसका उल्लेख टॉलेमी और पेरिप्लस दोनों में मिलता है।
  • पेरीप्लस ऑफ इरिथ्रियन सी में इसे बैरीगाजा (Barigaza) कहा गया है।
  • भारतीय स्रोतों में भृगुकच्छ (संस्कृत), भरुकच्छ (प्राकृत), भरूच और भड़ौच नामों से किया गया है।
  • भरूच भारत का सबसे प्राचीन तथा सबसे बड़ा बंदरगाह था। पश्चिमी देशों के साथ अधिकांश व्यापार इसी के माध्यम से होता था।
  • यहाँ की आयातित वस्तुओं में इटली, यूनान और अरब की मदिरा प्रमुख थी। इसके अतिरिक्त ताँबा, टिन, जस्ता, मूंगा, पुखराज, मीठी तिपतिया घास, काँच, लालहरताल, सुरमा, विभिन्न प्रकार के मरहम एवं सोने तथा चाँदी की मुद्राएँ भी प्रमुख आयातित वस्तुएं थीं।
  • यहाँ से निर्यातित वस्तुओं में मसाले, जटामासी, मालाबारथम, हीरे, नीलम, कछुए की पीठ की हड्डी, हाथी दाँत एवं उससे बनी वस्तुएं तथा रेशम के वस्त्र प्रमुख थे।
  • हालाँकि उथले पानी के कारण इस बंदरगाह तक जहाजों को ले जाने में कठिनाई होती थी। इसलिए नंबनस (Nambanus अर्थात् नहपान, शक क्षत्रप) ने दूसरे देशों से आने वाले जहाजों को बंदरगाह तक पहुँचने में मदद करने के लिए नाविकों (oarsmen) को नियुक्त किया। वे विदेशी जहाजों को बंदरगाह में प्रवेश करने या वहाँ से बाहर जाने के लिए ट्रैपगा और कोट्ट्यंबा (trappga and Kottymba) नामक छोटी नावों का प्रयोग करते थे।
  • सम्भवतया सातवाहन राजाओं ने भी इस मामले में शक क्षत्रपों का अनुसरण किया। कन्हेरी के एक शिलालेख में सागरपालों का उल्लेख है जिन्हें विदेशी जहाजों को बंदरगाह तक ले जाने के लिए उसी तरह नियुक्त किया गया होगा।
  • बैरीगाजा अपने पृष्ठ-प्रदेश से अच्छी तरह जुड़ा हुआ था। पेरिप्लस के अनुसार बैलगाड़ियों द्वारा तगर और प्रतिष्ठान (मध्य दक्कन में) से बैरीगाजा तक पहुँचने में क्रमशः ३० और २० दिन लगते थे। पूर्व में बैरीगाजा उज्जयिनी से जुड़ा हुआ था।
  • पेरिप्लस के अनुसार चीन से व्यापार के सामान बैक्ट्रिया से काबुल, पुष्कलावती और निचली सिंधु तक पहुँचाए जाते थे और भूमि मार्ग से बैरीगाजा पहुँचते थे।
  • मौर्योत्तर काल में भारत के किसी अन्य बंदरगाह से इतना विस्तृत पृष्ठ-प्रदेश (hinterland) जुड़ा हुआ नहीं था।

सिरास्त्रीन (Syrastrene)

  • गुजरात तट पर तापी नदी के मुहाने पर सिरास्त्रीन (Syrastrene) बंदरगाह था।
  • इसकी पहचान वर्तमान सूरत से की गयी है।

कोंकण तट के बंदरगाह

उत्तरी कोंकण तट पर स्थित पेरिप्लस तीन बंदरगाहों का उल्लेख करता है—

  • सुप्पारा या  सौप्पारा ( Suppala or Souppara) वर्तमान मुंबई के पास सोपारा
  • कल्लिएने (Calliena or Kalliene) वर्तमान कल्याण और
  • सेमाइला (Semmylla) या चौल, मुंबई से २३ मील दक्षिण में स्थित।

सोपारा

  • इसका नाम शूर्पारक भी मिलता है।
  • पेरीप्लस ऑफ इरिथ्रियन सी में इसे सुप्पाला (Suppala) कहा गया है।
  • आधुनिक महाराष्ट्र में स्थित पश्चिमी तट पर प्रसिद्ध बन्दरगाह था।

कल्याण

  • यह आधुनिक महाराष्ट्र में स्थित था।
  • पेरीप्लस ऑफ इरिथ्रियन सी में इसे कलिएना (Calliena) कहा गया है।
  • यह सोपारा की एक तरह से मंडी थी।
  • पेरिप्लस हमें बताता है कि सातकर्णी प्रथम* के शासनकाल तक कल्याण एक व्यस्त बंदरगाह था।
    • पेरीप्लस सातकर्णी प्रथम को Elder Saraganus कहा है।
  • पेरीप्लस के अनुसार मेम्बरस (Membarus) के आक्रमण के कारण कल्याण असुरक्षित था और यहाँ आने वाले यूनानी मालवाहक जहाजों को शक रक्षकों द्वारा भरूच पत्तन पर बलपूर्वक ले जाया जाता था। मेम्बरस की पहचान क्षहरात वंश के नहपान से की गयी है।
  • शक-सातवाहन संघर्ष के कारण कल्याण बंदरगाह का महत्त्व जाता रहा इसीलिए जहाँ प्रथम शताब्दी की रचना पेरीप्लस कल्याण पत्तन का उल्लेख करता है वहीं द्वितीय शताब्दी (१५० ई०) की रचना टॉलेमी का भूगोल इस पत्तन का उल्लेख नहीं करता है।

चौल

  • यह आधुनिक महाराष्ट्र में स्थित था।
  • पेरीप्लस ऑफ इरिथ्रियन सी में इसे सेमाइला (Semmylla) कहा गया है।

दक्षिणी कोंकण के बंदरगाह

पश्चिमी तट के दक्षिणी कोंकण तट के निम्नलिखित पत्तनों के विवरण मिलते हैं—

  • मंडागोरा (Mandagora),
  • पलापटमे (Palaepatme),
  • मेलिज़िगरा (Melizigara),
  • बाइज़ेंटियम (Byzantium),
  • तोगुरूम (Togurum),
  • औरन्नाबाओस (Aurnnaboas)

मांडागोरा (Mandagora)

  • इसका उल्लेख टॉलेमी के भूगोल और पेरीप्लस ऑफ इरिथ्रियन सी दोनों में मिलता है।
  • यह कोंकण तट पर मुम्बई के दक्षिण में कहीं स्थित था।
  • कुछ विद्वान इसकी पहचान महाराष्ट्र के वर्तमान मांडवा से करते हैं और कुछ लोगों के अनुसार यह रत्नागिरि का वर्तमान बैंकोट (Bankot) है। परन्तु ये पहचान संदिग्ध है।

पलाइपैटमो (palaepatmoe)

  • यह मांडागोरा से दक्षिण में कोंकण तट पर स्थित था।
  • इसकी पहचान संदिग्ध है। परन्तु कुछ विद्वान इसकी पहचान रत्नागिरी जनपद के दाभोल से करते हैं जो कि वाशिष्ठी नदी के तट पर स्थित है।

मेलिजिगारा (Melizigara)

  • मेलिजिगारा महाराष्ट्र के रत्नागिरी जनपद का आधुनिक जयगढ़ (Jaygarh) या राजापुर हो सकता है।

बाइजैंटियम (Byzantium)

  • यह वाघोटन नदी के दक्षिणी तट पर विजयदुर्ग हो सकता है अथवा यह वैजयंती या जयंतीपुरा हो सकता है, जिसे उत्तर कन्नड़ जिले में बनवासी के नाम से जाना जाता है।

टोगारम (Togarum)

  • तोगारम या तोगुरूम (Togaram or Togurum) की पहचान भारत के दक्षिणी कोंकण तट पर महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जनपद के मालवान (Malvan) से की गयी है।
  • पेरीप्लस ऑफ इरिथ्रियन सी में इसका उल्लेख मिलता है।

औरान्नोबाओस / तुरन्नबाओस (Aurnnaboas / Turnnabaoas)

  • दक्षिणी कोंकण तट पर स्थित यह एक पत्तन था।
  • पेरीप्लस ऑफ इरिथ्रियन सी में इसका मिलता है।

दक्षिणी कोंकण तट की अपेक्षा उत्तरी कोंकण तट के बंदरगाह अधिक महत्त्वपूर्ण थे। इसमें से भी कल्याण पत्तन सबसे महत्त्वपूर्ण था। उत्तरी कोंकण के बंदरगाह इसलिए अधिक महत्त्वपूर्ण थे क्योंकि उत्तरी कोंकण कृषि की दृष्टि से अधिक समृद्ध था और उनके बंदरगाह पृष्ठप्रदेशों से से अच्छी तरह से जुड़े हुए थे। प्लिनी और टॉलेमी दोनों ने दक्षिणी कोंकण में समुद्री डाकुओं की गतिविधियों का उल्लेख किया है।

मालाबार तट के पत्तन

नौरा (Naura)

  • मालाबार तट पर आधुनिक किन्नौर में स्थित था।

टिंडिस (Tyndis)

  • मालाबार तट पर आधुनिक पोन्नानी में स्थित।

मुसिरी / मुजिरिस (Muziris)

  • यह चेर राज्य में स्थित था।
  • इसकी वर्तमान स्थिति की पहचान मालाबार तट पर पेरियार नदी तट पर स्थित कोंडुन्गल्लूर (Kondunllur) / क्रांगानोर (Cranganore) (थ्रीसूर जनपद, केरल) से की गयी है।
  • इसका उल्लेख हमें संगम साहित्यों के अतिरिक्त पेरीप्लस ऑफ इरिथ्रियन सी और टॉलेमी के भूगोल में भी मिलता है।
  • संगम साहित्य में इसे मुचिरिपट्टनम (Muchiripattanam) कहा गया है।
  • संगम रचना में एक स्थान पर विवरण आता है कि यवन जहाज सोने के सिक्के लेकर मुजिरिस आते थे और अपनी वापसी यात्रा में काली मिर्च भर लेते थे।
  • यहाँ सोने और चाँदी के सिक्के आयात किये जाते थे।
  • निर्यातित वस्तुओं में हाथी दाँत की बनी वस्तुएँ, लंका से लाए गए मोती, मसाले, मालाबारथम, उबटन, लोहे एवं लकड़ी की बनी वस्तुएँ प्रमुख थी।
  • रोमन पाठ में यहाँ रोमन सम्राट ऑगस्टस की याद में एक मंदिर बनवाने का उल्लेख मिलता है। इससे ज्ञात होता है कि मुजिरिस में रोमन रहते थे।
  • द्वितीय शताब्दी के मध्य में पपीरस (papyrus) पर लिखे गए एक ऋण अनुबंध दस्तावेज में दर्ज है कि कैसे मुजिरिस में लंगर डाले एक जहाज को गंगा के नार्ड (एक सुगंधित तेल), उत्कृष्ट वस्त्र, हाथीदांत के उत्पाद आदि से भरा गया था। मुजिरिस से इसे लाल सागर में एक बंदरगाह के लिए रवाना होना था जहाँ इन सामानों को उतारा जाता था। अंततः यह मिस्र के अलेक्जेंड्रिया बंदरगाह पर पहुँचता था। इस तरह ओर गंगा डेल्टा और दूसरी ओर अलेक्जेंड्रिया के साथ मुजिरिस के दूर-दराज के वाणिज्यिक संपर्क इस आकर्षक दस्तावेज़ द्वारा प्रकाशित होते हैं।

नेलसिंडा (Nelcynda)

  • आधुनिक केरल के कोट्टायम में स्थित।

निष्कर्ष

इस तरह प्राचीन बंदरगाह भारतीय तटों से समुद्री व्यापार को सुगम बनाते थे। ये अपने पृष्ठप्रदेशों (hinterlands) से सुसम्बद्ध थे। एक ओर जहाँ ये पश्चिम में रोमन साम्राज्य से जुड़े थे वहीं पूर्व में ये सुवर्ण द्वीपों से जुड़े थे। आगे ये समुद्री मार्ग चीन तक जाते थे। इसी के साथ रेशम मार्ग भी इन तटीय पत्तनों से जुड़ा था। कुल मिलाकर स्थलीय व समुद्री मार्ग के सुव्यवस्थित जाल ने भारतीय व्यापार को लाभकारी बनाया था। इन पत्तनों का विवरण जहाँ एक ओर स्वदेशी व विदेशी रचनाओं में प्राप्त होता है वहीं इसकी पुष्टि पुरातत्त्व से भी होती है।

मौर्योत्तर नगरीय विकास (Post-Mauryan Urban Growth)

मौर्योत्तर व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देने वाले कारक

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Index
Scroll to Top