पदिनेनकीलकनक्कु (Padinenkilkanakku) : अष्टादश लघु शिक्षाप्रद कविताएँ (The Eighteen Minor Didactic Poems)

भूमिका

‘पदिनेनकीलकनक्कु’ या ‘पदिनेनकीलकणक्कु’ अष्टादश लघु शिक्षाप्रद कविताएँ (The Eighteen Minor Didactic Poems) हैं, अर्थात् यह १८ लघु कविताओं का संग्रह है जो सभी उपदेशात्मक (Didactic) हैं।

संक्षिप्त परिचय

  • नाम — ‘पदिनेनकीलकनक्कु’ या ‘पदिनेनकीलकणक्कु’ या पतिनेनकीलकणक्कु (Padinenkilkanakku or Patinenkilkanakku)
  • यह १८ लघु कविताओं का संग्रह है।
  • अष्टादश कविताओं की रचना सामान्यतः एक कवि द्वारा की गयी है। अपवाद:- कैन्निलै या कैन्निलाई (Kainnilai) और इन्निलाई या इन्निलै (Innilai)
  • यह रचना सामान्यतः नैतिकता और आचार सम्बन्धी विषयों पर केन्द्रित है।
  • अधिकतर रचना वेनपा छंद (Venpa metre) में है।

पदिनेनकीलकनक्कु की १८ कविताएँ

  • नालदियर (Nalathiyar)
  • नान्माणिक्काडैकाई (Nanmanikkadaikai)
  • ना-नरपथु (Na-narpathu) — इसमें चार संग्रह हैं—
    • कारनार्पटु (Kaar Narpathu)
    • कलवलिनारपथु (Kalavali Narpathu)
    • इनियनॉर्पदु (Iniyavai Narpathu)
    • इन्नार्नापदु (Inna Narpathu)
  • ऐन्थिनै  (Ainthinai) — इसमें चार संग्रह है—
    • ऐन्तिणैम्पदु (Aintinai Aimpathu)
    • ऐन्दिणैइलुपदु (Aintinai Elupathu)
    • तिणैमालेएम्बदु (Tinaimoli Aimpathu)
    • तिणैमालैनूरैम्बदु (Tinaimalai Nurraimpathu)
  • कूरल / तिरुक्कुरल (Kural / Tirikkaral) – ११वाँ संग्रह
  • तिरिकडुकम (Tirikadukam / Thirikatukam) – १२वाँ संग्रह
  • इन्निलै (Innilai)
  • आशारक्कोवै / आचारकोवै (Acharakovai)
  • सिरुपंचमूलम् (Sirupanchamulam) – १५वाँ संग्रह
  • पलमोलि नानुरु (Palamoli Nanuru)
  • मुदुमोलिक्कांजि (Mudumolik-Kanchi)
  • एलादि (Eladi / Elathi)

पदिनेनकीलकनक्कु की १८ कविताओं का संक्षिप्त विवरण

नलदियर या नलडियर (Narthiyar / Naladiyar)

  • यह पदिनेनकीलकन्क्कु का प्रथम संग्रह है।
  • नलदियर विभिन्न जैन भिक्षुओं द्वारा रचित ४०० चौपाइयों (वेनबास-Venbas) का संकलन है।
  • नालदियार शब्द तमिल शब्द नालु (Naalu) से लिया गया है, जो नांगु (Naangu) का एक बोलचाल का रूप है जिसका अर्थ है “चार”, आदि (adi) का अर्थ है छंद विधान या काव्यात्मक छंद, और अर एक प्रत्यय है। इस प्रकार नलदियर उस काव्य को संदर्भित करता है जिसमें चार पंक्तियों वाला छंद अर्थात् ‘चौपाइयाँ’ कहा जाता है। इस कृति को नालदी नानूरू / नालदी नन्नूरू (Naaladi Naanooru / Naladi Nannurru) भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है — “चार सौ चौपाइयाँ”।
  • इसकी रचना वेनबा छंद (venba metre) में की गयी है।
  • इसका दृष्टिकोण निराशावादी (pessimistic) है।
  • यह तीन खंडों में विभाजित है—
    • पहला खंड; पवित्र जीवन के महत्त्व पर केंद्रित है।
    • दूसरा खंड; धन के शासन और प्रबंधन पर केंद्रित है।
    • तीसरा खंड; सुखों पर केंद्रित है।
  • नलदियर उपमा अलंकार (similes) के उपयोग में अद्वितीय है।
  • आचार सम्बन्धी उद्धरण प्रायः दैनिक जीवन से लिये गये हैं—
    • जैसे गायों के विशाल झुंड के सामने छोड़ा गया बछड़ा अपनी माँ को बिना किसी गलती के पहचान लेता है और उसके पास पहुँच जाता है, वैसे ही अतीत के कर्म कर्ता पर हावी हो जाते हैं और कर्मफल पाते हैं। (like a calf placed in front of a vast herd of cows seeks out its mother unerringly and attaches itself, the deeds of the past home in on the doer and exact their price unfailingly.)
    • “जिस तरह बरगद और नीम का पेड़ किसी के दाँतों के लिए अच्छा है, उसी तरह नालडियार और कुरल किसी की वाणी के लिए अच्छे हैं।” (“Just as the banyan and the neem tree are good for one’s teeth, Naladiyar and Kural are good for one’s speech.”)  [“आलुम  वैलकम पाल्लुक्कुरुथी; नालुम इरांदम सोल्लुक्कुरुथी” / Aalum vaelum pallukkuruthi; naalum irandum sollukkuruthi) “बरगद और नीम मुख के लिए स्वास्थकर हैं; चार और दो नैतिक स्वास्थ्य के लिए। (“चार” और “दो” क्रमशः नालदियर और तिरुक्कुरल की चौपाइयों और दोहों को संदर्भित करते हैं।)]
  • नलदियर से आचार सम्बन्धी कुछ उदाहरण अधोलिखित है—

“मूर्खों की मित्रता की अपेक्षा उनकी घृणा अच्छी है।”

XXX

“दीर्घकाल तक के रोग की अपेक्षा मृत्यु श्रेष्ठ है।”

XXX

“अधिक प्रशंसा से मृत्यु श्रेयस्कर है।”

XXX

” बरगद तथा नीम के वृक्ष दाँत के लिए उपयोगी होते हैं।”

नान्माणिक्काडैकाई (Nanmanikkadaikai)

  • यह पदिनेनकीलकन्क्कु का द्वितीय संग्रह है।
  • नान्माणिक्काडैकाई में कवि विलम्बी नागनार (Vilambi Naganaar) द्वारा रचित में १०० चौपाइयाँ हैं।
  • नान्माणिक्काडैकाई की कविताएँ वेनपा छंद (Venpa meter) में लिखी गयी हैं।
  • इसकी प्रत्येक कविता में चार अलग-अलग विचार हैं। नान्माणिक्काडैकाई नाम इस तथ्य को दर्शाता है कि चार विचारों की तुलना प्रत्येक कविता को सजाने वाले चार अच्छी तरह से चुने गए तथ्यों से की जाती है। जैसे— चार अलग-अलग समूहों के लोगों का वर्णन करती है जो रात में ठीक से सो नहीं पाते हैं, अर्थात् एक चोर, एक प्रेम-विह्वल व्यक्ति, एक ऐसा व्यक्ति जो धन के लिए लालायित रहता है और एक व्यक्ति जो अपने धन की रक्षा करना चाहता है।
  • इसमें सूक्तिपरक रचनाएँ मिलती हैं—

हीरा खदान से निकलता है;

प्रियतम की वाणी से प्रसन्नता निकलती है;

पुण्य कर्म उदार हृदय से निकलता है;

और ये सब धन से आते हैं।

(The diamond comes out of the quarry;

Happiness comes out of the beloved’s speech;

Virtuous action comes out of a generous heart;

And all come out of wealth)

अगले चार संग्रह : ना-नरपथु (Na-narpathu)
पदिनेनकीलकन्क्कु के अगले चार संग्रह संयुक्त रूप से ना-नरपथु (Na-narpathu) या “चवालीसवें” (Four Forties) कहलाते हैं।

  • कार नारपथु या कारनार्पथु (Kaar Narpathu)
    • यह मुल्लई या मुल्लै (mullai) से सम्बन्धित है।
    • कार नारपथु मदुरई में रहने वाले कवि कन्ननकूथनार (Kannankoothanaar) द्वारा लिखी गयी है।
    • इसमें चालीस कविताएँ शामिल हैं।
    • कार नरपथु की कविताएँ आगम (अमूर्त) विषयों से सम्बन्धित हैं। संगम साहित्य में आगम उन विषयों को दर्शाता है जो जीवन के अमूर्त पहलुओं, यथा— मानवीय भावनाओं, प्रेम, वियोग, प्रेमियों के झगड़े इत्यादि से सम्बन्धित हैं।
    • इसमें एक महिला की भावनाओं को दर्शाया गया है जिसका अपने प्रेमी से वियोग हो गया है।
    • इसमें प्रभावशाली वर्णन हैं, और यह एक मार्मिक प्रणय कविता है।
    • कार नरपथु की अधिकांश कविताएँ नायिका द्वारा अपनी सहेली को वर्षा ऋतु (तमिल शब्द कार / Kaar का अर्थ वर्षा है) की सुंदरता का वर्णन करके सांत्वना देने के रूप में हैं।
  • कलावली-नरपथु / कलवलिनारपथु (Kalavali-narpathu) 
    • इसमें चालीस कविताएँ हैं।
    • इसकी कविताएँ पुरम (लौकिक) विषयों से सम्बन्धित हैं। संगम साहित्य में पुरम उन विषयों को दर्शाता है जो युद्ध, राजनीति, धन, इत्यादि से संबंधित हैं।
    • एक चेर राजा कणैक्कालइरुम्पोरै और एक चोल राजा शेनगणान के बीच युद्ध का एक विशद वर्णन है।
    • इसमें चोल नरेश की विजय और चेर शासक के बंदी बनाये का विवरण सुरक्षित है।
    • इसके रचयिता की पहचान कुछ लोग पोइकाई-अलवर (Poikai-Alvar) से करते हैं, जो महान वैष्णव भक्तों में से एक थे। जबकि कुछ विद्वानों के अनुसार इसके रचयिता कवि पोइगयार (Poigayaar) हैं।
  • इन्ना नार्पथु (Inna Narpathu)
    • शाब्दिक अर्थ है — ‘चालीस अनवांछनीय चीजें’ (The Forty Undesirable Things)।
    • यह उपदेशात्मक प्रकृति का है।
    • इन्ना नरपथु की कविताएँ वेनपा छंद (Venpa meter) में लिखी गयी हैं।
    • इसके लेखक कपिलर हैं।
    • इन्ना नरपथु ४० कविताओं का एक संग्रह है जिसमें सबसे अवांछनीय चीजों (undesirable things) का वर्णन किया गया है जिनसे किसी को बचना चाहिए।
    • तमिल शब्द इन्ना (Inna) का एक अर्थ है— वह जो दुख लाता है (one that brings unhappines)।
    • इन्ना नरपथु में हानिकारक चीजों की चार श्रेणियाँ शामिल हैं जिनसे किसी को बचना चाहिए; जैसे — एक सुंदर लेकिन बेवफा पत्नी, एक कंजूस का धन, एक अत्याचारी के अधीन जीवन, बिना सुगंध वाले फूल की सुंदरता।
    • प्रस्तुत है एक और उदाहरण —

“दरिद्रों का दान करने की इच्छा व्यर्थ है;

दरिद्रों का महलों वाले नगर में रहना व्यर्थ है।

रसोई घर की शोभा देखकर आनंदित होना व्यर्थ है;

जो मित्र विपत्ति में साथ छोड़ देते हैं,  उन्हें गले लगाना व्यर्थ है।”

(The desire of the destitute to act generously is vain;

For the poor, to dwell in a city of palaces is vain.

To feast upon the sight of a kitchen is vain;

To hug the friends who desert you in need is vain.)

  • इनियावै-नरपथु / इनियावै-नारपथु (Iniyavai Narpathu / Iniavai Narpathu)
    • यह पुथम सेरनथार (Putham Sernthanar) द्वारा लिखी गई ४० कविताओं का एक संग्रह है।
    • जिसमें जीवन की सबसे वांछनीय विषयों का वर्णन किया गया है।
    • यह वेनपा छंद (Venpa meter) में लिखी गयी हैं।

इनियावै-नरपथु / इनियावै-नारपथु (Iniyavai Narpathu / Iniavai Narpathu) और इन्ना-नरपथु / इन्ना नार्पथु (Inna Narpathu) एक-दूसरे के पूरक हैं। इनियावै-नारपथु जहाँ सकारात्मक उपदेश हैं वहीं इन्ना नार्पथु नकारात्मक उपदेशों से युक्त हैं।

अगले चार संग्रह : ऐन्थिनै (Ainthinai)

अगले चार संकलनों के समूह को ऐन्थिनै या ऐन्थिणै (Ainthinai) कहा जाता है। ये सभी प्रेम कविताएँ हैं जो प्रेम के उतार-चढ़ाव और प्रकृति के बदलते पहलुओं के बीच तोलकाप्पियम् में वर्गीकृत शास्त्रीय विधा पर आधारित हैं। कविताओं में ५० से १०० तक छंद हैं। ये चार रचनाएँ हैं-

  • ऐन्तिणै ऐम्पदु (Aintinai Aimpathu)
    • ऐंथिनाई ऐम्पाथु (Ainthinai Aimpathu) में कवि मारण पोरैयनार (Maran Poraiynar) द्वारा लिखी गयी ५० कविताएँ हैं।
    • ऐंथिनै ऐम्पथु की कविताएँ आगम (आंतरिक) विषयों से सम्बन्धित है।
    • संगम साहित्य में आगम उन विषयों को दर्शाता है जो जीवन के अमूर्त पहलुओं जैसे मानवीय भावनाओं, प्रेम, वियोग, प्रेमियों के नोक-झोंक आदि से संबंधित हैं।
    • ऐंथिनै ऐम्पथु की कविताओं को संगम कविता के पंच-तिणै (Five TinaI) या परिदृश्यों में से प्रत्येक के लिये दस कविताओं में वर्गीकृत किया गया है और प्रत्येक परिदृश्य के लिए विशिष्ट स्थिति और भावनाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। संगम कविता के पाँच परिदृश्य हैं—
      • मुल्लई – जंगल (Mullai – forest)
      • कुरिंजी – पहाड़ (Kurinji – mountains)
      • मरुथम – खेत (Marudam – farmland)
      • पलाई – शुष्क भूमि (Paalai – arid)
      • और नीथल – समुद्र तट (Neythal – seashore)
  • ऐन्तिणै इलुपदु (Aintinai Elupathu)
    • इसमें कवि मुवथियार (Muvathiyaar) द्वारा लिखी गयी ७० कविताएँ सम्मिलित हैं।
    • ऐन्तिणै इलुपदु आगम अवधारणाओं पर केंद्रित है। आगम (आन्तरिक) मानवीय भावनाओं और जीवन के अमूर्त पहलुओं जैसे प्रेम, अलगाव और झगड़े से सम्बन्धित हैं।
    • इसकी ७० कविताएँ १४-१४ के समूह में पाँच भागों में बाँटा गया है। ये पाँचों शास्त्रीय पंच तिणै (Five Tinai) से सम्बन्धित हैं।
    • परंपरागत रूप से पाँच क्षेत्र (तिणै / Tinai) थे और प्रत्येक क्षेत्र प्रेम या युद्ध के किसी विशेष पहलू से जुड़ा हुआ था—
      • पहाड़ियाँ (कुरिंजी / kurinji) — विवाह-पूर्व प्रेम (pre-nuptial love) और पशु-लूट (cattle-raiding) से सम्बन्धित
      • शुष्क भूमि (पलाई / palai) — प्रेमियों के लंबे वियोग (the long separation of lovers) और देश के उजाड़ होने (the laying waste of the country-side) से सम्बन्धित
      • जंगल और वनभूमि (मुल्लई / mullai) — प्रेमियों के संक्षिप्त वियोग (brief parting) और छापामार अभियानों (raiding expeditions) से सम्बन्धित
      • खेती योग्य मैदान (मरुदम / marudam) — विवाह-पश्चात प्रेम (post-nuptial love) या वेश्याओं की चालों (wiles of courtezans) और घेराबंदी (siege) से सम्बन्धित
      • तट (नेयडल या नीथल / Neydal – Neithal) — मछुआरों की पत्नियों के अपने स्वामियों से अलग होने और घमासान युद्ध से सम्बन्धित
  • तिणैमोली ऐम्पथु / तिनैमोझी ऐम्पातु (Tinaimoli Aimpathu / Tinaimozhi Aimpatu)
    • इसमें ५० कविताएँ हैं।
    • इसकी रचनाकार कन्नन चेंथनार (Kannan Chenthanaar) हैं।
    • इसकी कविताएँ आगम (आंतरिक) विषयों से संबंधित हैं। आगम उन विषयों को दर्शाता है जो जीवन के अमूर्त पहलुओं जैसे मानवीय भावनाओं, प्रेम, वियोग, प्रेमियों के झगड़े आदि से संबंधित हैं।
    • तिणैमोली ऐम्पतु की कविताओं को संगम कविता के पाँच तिणै (Tinai) या भू-परिदृश्यों (Landscape) में से प्रत्येक के लिए दस कविताओं में वर्गीकृत किया गया है और प्रत्येक परिदृश्य के लिए विशिष्ट स्थिति और भावनाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है।
    • इसकी कविता के पाँच परिदृश्य हैं—
      • मुल्लई (mullai) — जंगल
      • कुरिंजी (kurinji) — पहाड़
      • मरुथम (marutham) — खेत
      • पलाई (paalai) — शुष्क भूमि
      • नीथल (neithal) — समुद्र तट
  • तिणैमालै नूरैम्पथु / तिनईमलाई नूरैम्पतु (Tinaimalai Nurraimpathu / Tinaimalai Nurraimpatu)
    • इसके रचनाकार कनिमेतावियर (Kanimeytaviyar) हैं।
    • इसमें १५४ कविताएँ शामिल हैं।
    • इसकी कविताएँ आगम (आंतरिक या अमूर्त) अवधारणाओं से सम्बन्धित हैं। आगम उन विषयों को दर्शाता है जो जीवन के अमूर्त पहलुओं जैसे मानवीय भावनाओं, प्रेम, अलगाव, प्रेमियों के झगड़े आदि से सम्बन्धित हैं।
    • तिणैमालै नूरैम्पथु की कविताओं को पाँच तिणै या भू-परिदृश्यों में से प्रत्येक के लिए ३१ कविताओं में वर्गीकृत किया गया है और प्रत्येक परिदृश्य के लिए विशिष्ट स्थिति और भावनाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है।
    • ये पाँच भू-परिदृश्य हैं —
      • मुल्लई (mullai) — जंगल
      • कुरिंजी (kurinji) — पहाड़
      • मरुथम (marutham) — खेत
      • पलाई (paalai) — शुष्क भूमि
      • नीथल (neithal) — समुद्र तट

कूरल / तिरुक्कुरल (Kural / Tirikkaral)

  • यह पदिनेनकीलकन्क्कु का ११वाँ संग्रह है।
  • कूरल (Kural) वल्लुवर (Valluvar) की कृति है जिनका पूरा नाम तिरुवल्लुवर (Tiruvalluvar) है।
  • कूरल का एक अन्य नाम तिरुक्कुरल (Tirukkural) भी है।
  • इसमें सूत्रात्मक रूप में शिक्षाएँ हैं जिसे ३ खंडों में विभाजित किया गया है—
    • धर्म (अरम – aram)
    • अर्थ (पोरुल – porul)
    • काम (इनबाम – inbam)
  • इसमें १,३३० छोटे दोहे  या कूरल हैं और प्रत्येक में ७ शब्द हैं।
  • इसमें कुल १३३ अध्याय है।
  • इसकी रचना में वेंबा छंद (Venba metre) का प्रयोग किया गया है।
  • नीलकण्ठ शास्त्री इसे ईस्वी सन् की पाँचवी शताब्दी में रखते है।
  • श्रीलंका नरेश इलल तिरुवल्लुवर का मित्र था। तिरुवल्लुवर ने इसकी रचना श्रीलंका के शासक ‘इलल’ के पुत्र को शिक्षित करने के लिए की थी।
  • परम्परानुसार तिरुवल्लुवर भगवान ब्रह्मा के अवतार माने जाते हैं।
  • हालाँकि परम्पराओं का दावा है कि वह कपिलर, तिरुवल्लुवर और अथियामन की बहन थीं, वी० आर० रामचंद्र दीक्षितार ने अपने अध्ययन के आधार पर इस दावे का खंडन किया है कि वे चारों सम्भवतया अलग-अलग जीवन स्तर से थे, इसलिए अलग-अलग जातीय पृष्ठभूमि से थे और इसलिए उनका भाई-बहन होना असंभव है। इसलिए अव्वाई या अव्वै या अव्वैयार (Avvai / Avvaiyar) को तिरुवल्लुवर की काव्य बहन (poetic sister) मानना अधिक तर्कसंगत है। तिरुवल्लुवर और अव्वै की बहुत सारी रोचक कहानियाँ बतायी जाती हैं।
  • कुरल उन कुछ तमिल कृतियों में से एक है जो तमिलों की लोकप्रिय संस्कृति का एक अंग है। यह एकमात्र तमिल क्लासिक भी है जिसका कई आधुनिक भारतीय और यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
  • पदिनेनकीलकन्क्कु में कूरल सर्वोत्कृष्ट है। इस कालजयी (classic) रचना को तमिल साहित्य का एक आधारभूत ग्रन्थ (cornerstones) बताया जाता है।
  • इसके विषय त्रिवर्ग, आचारशास्त्र, राजनीति, आर्थिक जीवन एवं प्रणय से  सम्बन्धित हैं। इसका रचयिता कौटिल्य, मनु, कात्यायन आदि के विचारों से प्रभावित लगता है।
  • सद्गुण (Virtue), धन (wealth), प्रेम (love), नैतिकता (morals), समृद्धि (prosperity), खुशी (happiness), ये तिरुवल्लुवर के वर्ण्य विषय हैं।
  • इसे ऐसे छंदों में गाया गया है कि जिनमें जापानी हाइकु (Japanese haikku) की सुंदरता (beauty), संक्षिप्तता (brevity) और सप्रयोजनता (finality) की प्रतीति होती है।
  • नैतिकता (Ethics), राजकौशल (statecraft), राजकाज (kingeraft), नागरिकता (citizenship), वैवाहिक प्रेम (married love), जीवन की कला (the art of life) इन सभी समस्याओं के रहस्य तिरुवल्लुवर को ज्ञात हैं।
  • इतने विशद विवरण होने के कारण कूरल को तमिल साहित्य का ‘पंचम वेद’ या ‘लघु वेद’ (Veda in miniature) माना जाता है। इसे तमिल साहित्य का बाइबिल भी कहा जाता है। इसके सम्बन्ध में कहा गया है— “एक सरसों का बीज जिसमें सात समुद्रों की संपत्ति समाहित है” (“a mustard seed into which is comprehended the riches of the seven seas.”)।
  • अनुवाद में मूल रचनाओं की संक्षिप्तता (brevity), तेजस्विता (brilliance) और सुंदरता (beauty) को सामने लाना असंभव है, फिर भी कुछ विचारों को इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है—

“जब किसी व्यक्ति को अच्छी पत्नी का साथ मिलता है, तो उसे इस दुनिया में कुछ भी नहीं चाहिए; जब उसे साथ नहीं मिलता, तो उसे हर चीज की कमी महसूस होती है।”

(“When a man is blessed with a good wife, he wants nothing in this world; when he is not so blessed, he lacks everything.”)

XXX

“आग से लगे घाव ठीक हो सकते हैं; लेकिन कड़वे बोल से लगे घाव कभी ठीक नहीं हो सकते।”

(“Wounds inflicted by fire may be cured; those caused by a biting tongue can never be cured.”)

XXX

“अपराधों को माफ करना अच्छा है, भूल जाना और भी बेहतर है।”

(“To forgive trespasses is good, to forget is even better.”)

XXX

“केवल वे ही लोग हैं जिन्होंने अपने बच्चों की तुतलाहट नहीं सुनी है, वे ही वीना और बाँसुरी में संगीत पाते हैं।”

(“Only those who haven’t heard the prattle of their children find music in the vina and the flute.”)

पदिनेनकीलकन्क्कु का १२वाँ और १५वाँ संग्रह

  • तिरिकडुकम / थिरिकाटुकम (Tirikadukam / Thirikatukam) —
    • यह पदिनेनकीलकन्क्कु का १२वाँ संग्रह है।
    • इसकी रचना नल्लाथनार (Nallathanaar) द्वारा की गयी है।
    • इसमें १०० कविताएँ हैं।
    • थिरिकाटुकम की कविताएँ वेनपा छंद (Venpa meter) में लिखी गयी है।
    • थिरिकादुकम में पारंपरिक आयुर्वेदिक औषधियों के उदाहरण मिलते हैं —
      • पेट की बीमारियों को ठीक करने के लिए तीन जड़ी-बूटियों के प्रयोग का उदाहरण —
        • सूखी अदरक – सुक्कू (sukku)
        • काली मिर्च – मिलकु (milaku)
        • पिप्पली – थिप्पिली (thippili)।
      • थिरिकाटुगम में भी सही व्यवहार को दर्शाने के लिए तीन अलग-अलग कहावतों का इस्तेमाल किया गया है।
    • तिरिकादुकम (Tirikadukam) में छंदों का एक क्रम है, जिनमें से प्रत्येक तीन सह-संबद्ध विचारों (correlated thoughts) विचारों पर आधारित है, उदाहरणार्थ —

      “दरिद्रता के तीन निश्चित रास्ते हैं—

      अपने धन का अहंकारपूर्ण प्रदर्शन,

      बिना किसी उद्देश्य के उत्साह,

      और सम्पूर्ण विश्व पर अधिकार करने की प्रबल इच्छा।”

      (The three sure ways of impoverishment are—

      Arrogant exhibition of your riches,

      Excitement for no purpose,

      And an inordinate need to possess the whole world.)

  • सिरुपंचमूलम् (Sirupanchamulam) —
    • यह पदिनेनकीलकन्क्कु का १५वाँ संग्रह है।
    • इसके रचनाकार करियासन (Kariyaasaan) हैं। वह संभवतः धार्मिक विचारधारा से जैन थे।
    • इसमें १०० कविताएँ हैं।
    • सिरुपंचमूलम् की कविताएँ वेनपा छंद (Venpa metre) में लिखी गयी हैं।
    • सिरुपंचमूलम् पारंपरिक हर्बल दवा के सादृश्य का उपयोग करता है, जो इलाज के लिए पाँच जड़ी-बूटियों की जड़ों का उपयोग करता है —
      • भटकटैया – कंडनकात्थिरी (Solanum xanthocarpum)
      • सिरुवझुथुनाई (siruvzhuthunai)
      • सिरुमल्ली (sirumalli)
      • पेरुमल्ली (perumalli)
      • नेरुंजी (गोखरु या गोक्षुर -Tribulus terrestris) की जड़ों का उपयोग करता है।
    • इसी प्रकार सिरुपंचमूलम में भी सही व्यवहार को दर्शाने के लिए पांच विभिन्न कहावतों का प्रयोग किया गया है।
    • सिरुपंचमूलम् (Sirupanchamulam) का प्रत्येक कविता पाँच सह-सम्बद्ध विचारों (correlated thoughts) पर आधारित है; उदाहरणार्थ —

एक पवित्र पत्नी अपने पति के लिए अमृत है;

अपने लोगों के लिए एक प्रतिभाशाली व्यक्ति;

अपने राजा के लिए एक मेहनती प्रजा;

अपने देश के लिए एक शक्ति का स्तंभ;

और अपने स्वामी के लिए एक वफादार नौकर।

(A chaste wife is ambrosia to her husband;

A genius to his people;

An industrious subject to his king;

A pillar of strength to his country;

And a loyal servant to his master.)

शेष पाँच संग्रह

अष्टादश लघु उपदेशात्मक कविताओं के शेष पाँच संग्रह हैं— आशारक्कोवै / आचारकोवै (Acharakovai), पलमोलि नानुरु (Palamoli Nanuru), मुदुमोलिक-कांची (Mudumolik-Kanchi), इन्निलै (Innilai) और एलादि (Eladi / Elathi)।

  • आशारक्कोवै / आचारकोवै (Acharakovai)
    • इसकी रचना पेरुवायिन मुलियार (Peruvaayin Mulliyaar) द्वारा की गयी है।
    • इसमें १०० कविताएँ हैं।
    • यह रचना वेनपा छंद (Venpa metre) में की गयी है।
    • ये सभी आचरण की समस्याओं पर उपदेशों के संग्रह हैं, आचारकोवै से प्रस्तुत है एक उदाहरण—

“इन चार—

एक व्यक्ति का शरीर, पत्नी, ट्रस्ट का धन, और भरण-पोषण के साधन—

को सोने की तरह संजोकर रखना चाहिए,

नहीं तो अपूरणीय बुराई का पालन करना चाहिए।”

(These four—

one’s body, wife, trust money, and means of maintenance—

must be treasured like gold,

lest irremediable evil should follow.)

  • पलमोलि नानुरु (Palamoli Nanuru)
    • इसकी रचना जैन कवि मुनरुराई अरैयनार (Munrurai Araiyanaar) द्वारा की गयी है।
    • इसमें ४०० कविताएँ हैं।
    • पलमोलि नानुरु की रचना वेनपा छंद (Venpa metre) में की गयी है।
  • मुदुमोलिक-कांची / मुथुमोझिक्कांची (Mudumolik-Kanchi / Muthumozhikkanchi)
    • इसके रचनाकार मथुराइक्कुदलार किलार (Mathuraikkoodalaar Kilaar) हैं, जो सम्भवतः मदुरा निवासी थे।
    • इसमें १०० कविताएँ हैं।
    • मुथुमोझिक्कांची की कविताओं को १०-१० कविताओं के १० समूहों में वर्गीकृत किया गया है और सामान्य लोगों को संदेश समझने में सक्षम बनाने के लिए सरल काव्यात्मक शैली का उपयोग किया गया है। सभी कविताएँ एक ही वाक्यांश से शुरू होती हैं — “इस संसार के सभी लोगों के लिए”  (For all the people of this world) एक प्रस्तावना के रूप में और पहली पंक्ति का शेष भाग खंड की शेष दस पंक्तियों द्वारा बतायी गयी विशेषता को स्पष्ट करता है।
  • एलादि / इलाथी (Eladi / Elathi)
    • इसकी रचना कवि मेथवियार (Kani Methaviyar) द्वारा की गयी है।
    • इसमें ८० कविताएँ सम्मिलित हैं।
    • इलाथी की कविताएँ वेनपा छंद (Venpa meter) में लिखी गयी हैं।
    • एलाथी पारंपरिक आयुर्वेदिक औषधियों के सादृश्य का उपयोग करता है जिसे एलादि के रूप में जाना जाता है।
    • इसमें ६ जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाता है—जैसे;
      • इलायची – एलम (Elam)
      • दालचीनी – इलावंका पट्टाई (Ilavanka pattai)
      • नागकेसरम (सीलोन आयरनवुड के पुंकेसर से बना)
      • काली मिर्च – मिलगु (Milagu)
      • पिप्पली – थिप्पली (Thippili)
      • सूखी अदरक – सुक्कु (Sukku)।
    • एलाथी भी सही व्यवहार को दर्शाने के लिए छह अलग-अलग कहावतों का उपयोग करता है।
    • यह हर कविता में चार पंक्तियों में जीवन के हर पहलू के छह मूल्यों के बारे में बताता है।
    • निम्नलिखित कविता में छः चीजें सूचीबद्ध की गयी हैं— प्रसिद्धि, धन, प्रशंसा, साहस, शिक्षा और उदारता— जो शास्त्रों का पालन करने वालों की शोभा बढ़ाती हैं—

“प्रसिद्धि, धन, प्रशंसा, साहस,

शिक्षा, उदारता –

सदैव/आलिवंतर पुष्प-छिपी

नदियाँ/अनुयायी, सौंदर्य आता है कि

कुदृष्टि, सौंदर्य को उजागर करता है।”

(Fame, wealth, praise, courage,

education, munificence –

forever/AAlivantar flowershide

rivers/Follower, comes Beauty that

evokes the evil eye, Beauty.)

  • इन्निलै (Innilai) और कैन्निलै (Kainnilai)
    • कैन्निलै या कैन्निलाई (Kainnilai) और इन्निलाई या इन्निलै (Innilai) तमिल काव्य रचनाएँ हैं जो तमिल साहित्य के अठारह लघु ग्रंथों (पथिनेनकीलकनक्कु) संकलन से संबंधित हैं। ये दोनों पुस्तकें मिलकर संकलन में १८वाँ संकलन बनाती हैं।
    • कैन्निलै (Kainnilai)
      • कैन्निलै में कवि पुलंगकाथनार (Pullangkaathanaar) द्वारा लिखी गई ६० कविताएँ सम्मिलित हैं।
      • कैन्निलै या कैन्निलाई (Kainnilai) बहुत क्षतिग्रस्त स्थिति में उपलब्ध है, जिसकी कई कविताएँ केवल आंशिक रूप से उपलब्ध हैं।
      • कैन्निलई व्यक्तिपरक (आगम) अवधारणाओं से सम्बन्धित है। आगम उन विषयों को दर्शाता है जो जीवन के अमूर्त पहलुओं जैसे मानवीय भावनाओं, प्रेम, अलगाव, प्रेमियों के नोक-झोंक आदि से सम्बन्धित हैं।
      • कैन्निलई की कविताओं को संगम कविता के पाँच तिणै (Tinai) या भू-परिदृश्यों (Landscape) में से प्रत्येक के लिए १२ कविताओं में वर्गीकृत किया गया है और प्रत्येक परिदृश्य के लिए विशिष्ट स्थिति और भावनाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। ये पाँच भू-परिदृश्य हैं—
        • मुल्लई (mullai) – जंगल
        • कुरिंजी (kurinji) – पहाड़
        • मरुथम (marutham) – खेत
        • पलाई (paalai) – शुष्क भूमि
        • नीथल (neithal) – समुद्र तट
    • इन्निलाई या इन्निलै (Innilai)
      • इसमें ४५ कविताएँ हैं।
      • इसके रचनाकार पोइगयार (Poigayaar) हैं।
      • इन्निलाई या इन्निलै (Innilai) का वर्ण्य विषय है— धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष (आरम-पोरुल-इंपम-वीडु)। इस तरह यह तिरुक्कुरल (Tirukkural) के समान है जो इन अवधारणाओं से भी संबंधित है। 

पत्तुपात्तु या दस-गीत (Pattuppattu : The Ten Idylls)

एत्तुथोकै या अष्टसंग्रह (Ettuthokai or The Eight Collections)

तोलकाप्पियम् (Tolkappiyam) – तोल्काप्पियर 

जीवक चिन्तामणि (Jivaka Chintamani)

मणिमेकलै (मणि-युक्त कंगन) / Manimekalai

शिलप्पदिकारम् (नूपुर की कहानी) / Shilappadikaram (The Ankle Bracelet)

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