पत्तुपात्तु या दस-गीत (Pattuppattu : The Ten Idylls)

भूमिका

पत्तुपात्तु में दस कविताओं का संग्रह है। इनमें दो नक्कीरर, दो रुद्रनकन्ननार तथा बाद के छः पद क्रमशः मरुथनार (Maruthanar), कन्नियार (Kanniar), नथ्थाथानार (Naththathanar), नप्पूथनार (Napputhanar), कपिलर (Kapilar) और कौसिकनार (Kousikanar) नामक कवियों द्वारा रचित हैं।

इन दस कविताओं में से पाँचवें (मदुरैक्काँची) को छोड़कर बाकी सभी विभिन्न राजाओं को समर्पित हैं; जैसे— करिकाल-चोल, नेदुनजेलियन- पाण्ड्य और इलांदिरैयन। ये सभी उत्कृष्ट वर्णनात्मक कविताएँ हैं, जो प्रकृति को उसके सर्वाधिक विशिष्ट भावों में चित्रित करती हैं।

संक्षिप्त परिचय

  • नाम — पत्तुपात्तु या पत्थुपात्तु (दस संग्रह) / Pattupattu or Patthuppattu (Ten Ten Idylls)
  • यह १० लम्बी कविताओं का संकलन है।
  • इन १० लम्बी कविताओं में लगभग ३,५७४ पंक्तियाँ हैं।
  • इसे ८ कवियों ने लिखा है

पत्तुपात्तु : दस गीत

‘पत्थुप्पातु’ १० संक्षिप्त पदों का संग्रह है। इनके नाम कवि अधोलिखित हैं—

क्र० सं० नाम कवि
१. तिरुमुरुकात्रुप्पदै (Tirumurukattruppadai) नक्कीरर (Nakkirar)
२. नेडुनलवाडै (Nedunalvadai) नक्कीरर (Nakkirar)
३. पोरुनर्रुप्पदै (Porunararrupadai) रूद्रनकन्नार (Rudran Kannanar)
४. पट्टिनपालै (Pattianappalai) रूद्रनकन्नार (Rudran Kannanar)
५. मदुरैक्काँची (Maduraikkanchi) मरुथनार (Maruthanar)
६. पोरुनारात्रुप्पदै (Porunaratruppadai) कन्नियार (Kanniar)
७. सिरुपाणात्रुप्पादै (Sirupanatruppadai) नथ्थाथानार (Naththathanar)
८. मुल्लैप्पात्तु (Mullaippattu) नप्पूथनार (Napputhanar)
९. कुरिंचिप्पात्तु (Kurinchippattu) कपिलर (Kapilar)
१०. मलैपाडुकादम (Malaipadukadam) कौसिकनार (Kousikanar)

पत्तुपात्तु कविताओं का संक्षिप्त विवरण

नक्कीरर (Nakkirar) की दो कविताएँ हैं

  • तिरुमुरुकात्रुप्पदै (Tirumurukattruppadei)—
    • इसका अर्थ है — “भगवान मुरुगन की मार्गदर्शिका” (Guide to Lord Murugan)।
    • यह भगवान मुरुगन को समर्पित है।
    • यह अकवल (Akaval) छंद में है।
    • इसमें ३१२ पंक्तियाँ हैं।
    • इसमें भगवान मुरुगन और उन विभिन्न मंदिरों की प्रशंसा मिलती है। साथ ही जहाँ उनकी पूजा की जाती है उसका विवरण सुरक्षित है।
  • नेडुनलवादै (Nedunalvadai)—
    • इसका अर्थ है — “अच्छी दीर्घकालिक उत्तरी हवा” (Good long northern wind)
    • इसमें नेदुनजेलियन का विवरण मिलता है।
    • यह मुख्यतः वंसी (Vanci) और गौणतः अकवल (Akaval) छंद में रचा गया है।
    • इसमें १८८ पंक्तियाँ हैं।
    • यह एक विलक्षण रचना है। इसमें एक साथ दो घटनाओं को आधुनिक हॉलीवुड या बॉलीवुड की तरह दर्शाया गया है— “इस चित्र को देखो और उस तस्वीर को देखो” (“look-upon-this picture-and-on-that”)। उदाहरणार्थ इसमें जहाँ एक ओर नेडुनजेलियन को युद्ध के मैदान में अपने शिविर में दर्शाया गया है वहीं दूसरी ओर उनकी रानी को अपने शयन कक्ष में अकेले तड़पते हुए दिखाया गया है।
  • नक्कीरर की दो कविताओं में से नेडुनलवादै अपेक्षाकृत सुसंगत और सुरुचिपूर्ण है। नेडुनलवादै के सम्बन्ध में श्री पूर्णलिंगम पिल्लई की टिप्पणी उल्लेखनीय है—

“जिस स्वाद और चातुर्य के साथ हर पंक्ति को राजा और उनकी रानी को उदास सर्दियों की रात अकेले और एक दूसरे से दूर बिताते हुए प्रस्तुत करने के एक ही कलात्मक प्रभाव को पूरा करने के लिए बनाया गया है, वह पाठक का ध्यान आकर्षित किए बिना नहीं रह सकता है।”

“the taste and tact with which every line is made to subserve to the one single artistic effect of presenting the king and his queen spending the dreary winter night alone and apart and away from each other, cannot but arrest the reader’s attention.”— Mr. Purnalingam Pillai

  • इन दो कविताओं के अतिरिक्त, नक्कीरार ने कई अन्य लघु रचनाएँ भी लिखीं। उनके व्यक्तित्व का उनके समकालीनों और उत्तराधिकारियों पर प्रभाव उनकी वास्तविक साहित्यिक उपलब्धियों से कहीं अधिक थी।

रुद्रन कन्ननार (Rudran Kannanar) की दो कविताएँ—

  • पोरुनर्रुप्पदै (Porunararrupadai) —
    • इसका अर्थ है — “बड़े वीणा वाले चारणों या भाटों के लिए मार्गदर्शिका” (Guide to bards with large lutes)
    • यह ५०० पंक्तियों की कविता है।
    • इसमें तोंडैमान इलांतीरैयान का विवरण मिलता है।
    • यह अकवाल (Akaval) छंद में है।
    • इसमें अन्य रोचक विवरणों के अतिरिक्त कांचीपुरम् का यादगार विवरण भी सुरक्षित है।
  • पट्टिनपाले (Pattianappalai) —
    • इसका अर्थ है — “विभाजन और शहर के बारे में कविता” (Poem about the separation and the city)।
    • इसमें ३०१ पंक्तियाँ हैं।
    • इसे अकवाल (Akaval) और वंसी (Vanci) छंद में लिखा गया है।
    • इसमें चोल नरेश करिकाल का विवरण सुरक्षित है।
    • यह प्रेम का एक मार्मिक गीत है। प्रेम और युद्ध-नगाड़ों की ध्वनि के मध्य फँसे नायक ने अन्ततः प्रेम के आगे समर्पण करके अपनी प्रेमिका के साथ रहने का निर्णय लिया।
    • इस कविता में हमें चोलों की तत्कालीन राजधानी पुहार का एक चित्रात्मक और विस्तृत विवरण प्राप्त होता है।
    • यह कहा जाता है कि इसके रचयिता को करिकाल से एक बड़ी राशि (१६ लाख स्वर्ण मुद्राएँ) का पुरस्कार मिला था।

मरुथानार की मदुरैक्काँची

  • इसका अर्थ है — मदुरई पर चिंतन (Reflection on Madurai)।
  • इसमें नेडुनजेलिन का विवरण मिलता है।
  • इसमें ७८२ पंक्तियाँ हैं।
  • इसकी रचना मुख्यतः वंसी (Vanci) और गौणतः अकवल (Akaval) छंद की गयी है।
  • इसमें नेडुनजेलियन के समय के पाण्ड्य राज्य का महिमामंडन मिलता है। साथ ही यह प्राचीन तमिलों की सभ्यता को दर्शाती है।

कन्नियार की पोरुनारात्रुप्पदै

  • इसका अर्थ है — “युद्ध कवियों के लिए मार्गदर्शिका” (Guide for the war bards)
  • इसमें चोल शासक कलिकाल का विवरण सुरक्षित है।
  • इसमें २४८ पंक्तियाँ हैं।
  • इसकी रचना अकवाल (Akaval) और वंसी (Vanci) छंदों में की गयी है।
  • यह रचना फटे-पुराने कपड़ों में घूमते हुए एक औसत अकिंचन साहित्यकार की एक ठोस तस्वीर पेश करती है।

नत्थाथानार की सिरुपाणात्रुप्पादै

  • इसका अर्थ है — “छोटे वीणा वाले चारणों / भाटों के लिए मार्गदर्शिका” (Guide to bards with small lutes)।
  • यह नल्लिया-कोडन को समर्पित है।
  • इसमें २९६ पंक्तियाँ हैं।
  • यह अकवल (Akaval) छंद में है।
  • यह रचना समकालीन सामाजिक रीति-रिवाजों के संदर्भों से भरी पड़ी है। इसमें नल्लिया-कोडन (Nallia-Kodan) के गुणों के वर्णन के माध्यम से नत्थाथानार वास्तव में आदर्श राजा की अपनी कल्पना को चित्रित करते हैं।

नप्पुथानार की मुल्लैप्पात्तु

  • इसका अर्थ है — वन्य गीत (जीवन) / Song about the forest (life)।
  • इसमें १०३ पंक्तियाँ हैं।
  • यह अकवल (Akaval) छंद में लिखी गयी है।
  • इसमें एक रानी के वियोग का विवरण मिलता है।
  • १०० मंगलमय छंदों में रानी की अपने अनुपस्थित पति के लिए उत्कट अभिलाषा का वर्णन है। वह बेचैन है, वह अधीर है, वह शगुनों पर विचार करती है, वह उदास पूर्वाभासों का शिकार है, परन्तु वियोग की लंबी रात आखिरकार समाप्त हो जाती है, वह तुरही की कामुक ध्वनि सुनती है कि उसका स्वामी जल्द ही उसके पास होगा।

कपिलर की कुरिचिंपात्तु

  • इसका अर्थ है — पहाड़ी गीत (Song about the hills)।
  • इसमें २६१ पंक्तियाँ हैं।
  • यह अकवल (Akaval) छंद में है।
  • इसमें ग्रामीण जन-जीवन का विवरण मिलता है।
  • इसमें एक पर्वत-प्रमुख (mountain-chief) और एक सुन्दर लड़की की प्रेम कहानी है जिसे पहली दृष्टि में प्रेम हो जाता है। वे सभी बाधाओं को पार करते हुए अन्ततः सुखी वैवाहिक बंधन में बँध जोते हैं।

कौसिकनार का मलयपादुकाडम

  • इसका अर्थ है — “पहाड़ी ध्वनि की कविता” (Poem of the sound pertaining to the mountains)।
  • १० कविताओं में से यह अंतिम है।
  • इसमें नन्नान (Nannan) का विवरण सुरक्षित है।
  • कौसिकनार कृत मलयपादुकाडम लगभग ६०० पंक्तियों / छंदों की एक लंबी कविता है।
  • यह अकवल (Akaval) छंद में है।
  • प्रकृति के बहुत ही सराहनीय वर्णन के साथ-साथ यह कविता नृत्यकला का भी आलोचनात्मक विवरण देती है।

अभिलेखीय साक्ष्य

तमिलनाडु में दो शैव हिंदू मंदिर शिलालेख खोजे गए हैं जो पट्टुप्पाट्टू संग्रह से पंक्तियों का उल्लेख करते हैं और उन्हें उद्धृत करते हैं।

  • पहला शिलालेख वीरतेश्वरर मंदिर (Veerateeswarar temple) के एक शिलालेख में पाया गया है जिसकी तिथि १०१२ ई० है और इसका श्रेय राजराज प्रथम को दिया जाता है। यह शिलालेख पत्तुपात्तु के पोरुनर्रुप्पदै (Porunararrupadai) के रूप में उसी छंद में है जैसा कि पत्तुपात्तु में पाया जाता है। यह कवि कपिलर का उल्लेख करता है।
  • दूसरा शिलालेख सेंगम / चेंगम (Sengam / Chengam) के ऋषभेश्वर मंदिर (Rishabheshwarar temple) में पाया गया है। इसके लेखक और संरक्षक अज्ञात हैं। परन्तु पुरालेखीय रूप से यह १२वीं शताब्दी के चोल काल का है। शिलालेख में इस संग्रह की पंक्तियों को उद्धृत किया गया है और शीर्षक माली-काटम-पट्टू — Mali-katam-pattu (मलैपाडुकादम — Malaipadukadam का विपर्यय) का उल्लेख किया गया है।

निष्कर्ष

ये दस ग्राम्य गीत (ten idylls) साहित्यिक विरासत (literary heritage) का एक बहुत बड़ा हिस्सा हैं। ये कवि प्राकृतिक परिवर्तन का सूक्ष्मावलोकन करते हैं। ये कवि प्रकृति के रंगों और ध्वनियों की समृद्धि से आकर्षित होते हैं। साथ ही वे मानवीय हृदय को एक खुली किताब की तरह पढ़ते हैं।

इन १० कविताओं में से २ करिकाल-चोल और २ नेदुन-जेलियन को समर्पित हैं। इन पदों का समय द्वितीय शती ईस्वी के लगभग का है।

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