नागवंश

भूमिका

नागवंश का इतिहास रूपकों के रूप में हमारे धार्मिक साहित्यों में भरा पड़ा है जिसका सावधानी से प्रयोग करके हम इतिहास का निर्माण कर सकते हैं।

पौराणिक आख्यान

एक प्राचीन ऋषि थे – कश्यप। इन्हीं कश्यप ऋषि के नाम पर भारतवर्ष के एक राज्य का नाम कश्मीर पड़ा है। कश्यप ऋषि की दो पत्नियाँ थीं – एक, कद्रू और द्वितीय, विनिता। ऋषि कश्यप और कद्रू से नागों का जन्म हुआ। अनंत (शेषनाग) और वासुकी इन्हीं की संतानें थीं।

महाभारत व पुराणों के अनुसार –

  • खाण्डव वन जलाते समय अर्जुन का नागों से संघर्ष हुआ था।
  • अर्जुन ने नागकन्या उलूपी से विवाह किया था।
  • श्रीकृष्ण और कालीया नाग प्रसंग।
  • जनमेजय नाग यज्ञ।

इन पौराणिक आख्यानों का सावधानीपूर्वक उपलब्ध पुरातात्त्विक साक्ष्यों से मिलान करके हम इतिहास का निर्माण कर सकते हैं।

गुप्त-पूर्व नागवंश

  • कुषाणों के पतन के पश्चात् मध्यभारत और उत्तर प्रदेश के भू-क्षेत्रों पर शक्तिशाली नागवंशों का उदय हुआ। गंगाघाटी में कुषाण सत्ता के विनाश का श्रेय नागवंशियों को ही दिया जाता है।
  • पुराणों के विवरण से ज्ञात होता है कि प‌द्मावती (पद्मपवैया, ग्वालियर), मथुरा तथा कान्तिपुर में नागवंश का शासन था।
  • पुराणों के अनुसार मथुरा में ७ तथा प‌द्मावती में ९ नागवंशी राजाओं ने शासन किया।*

“नव नागास्तु भोक्ष्यन्ति पुरीं चम्पावतीं नृपः।

मथुरां च पुरीं रम्यां नागाभोक्ष्यन्ति सप्त वै॥”*

— The Purana Text of The Dynasties of The Kali Age – P.E.Pargiter, पृष्ठ ५३.

  • गुप्तों के उदय के पूर्व प‌द्मावती तथा मथुरा के नागवंश काफी शक्तिशाली थे।
  • इनमें भी प‌द्मावती का नागवंश अधिक महत्त्वपूर्ण था।
  • प‌द्मावती की पहचान मध्य प्रदेश के ग्वालियर के समीप स्थित आधुनिक पद्मपवैया नामक स्थान से की गयी है।
  • प‌द्मावती के नाग लोग भारशिव कहलाते थे। वे अपने कन्धों पर शिवलिंग वहन करते थे, अतः वे भारशिव कहलाये।
  • भारशिवों और वाकाटकों में वैवाहिक सम्बन्ध था। भारशिव कुल के शासक भवनाग (३०५-४० ई०) की पुत्री का विवाह वाकाटक नरेश प्रवरसेन प्रथम के पुत्र के साथ हुआ था।

प्रयाग प्रशस्ति में उल्लेख

  • समुद्रगुप्त के समय प‌द्मावती के भारशिव नागवंश का शासक नागसेन था। प्रयाग प्रशस्ति में उसका उल्लेख मिलता है।

“उद्वेलोदित-बाहु-वीर्य्य-रभसादेकेन येन क्षणादुन्मूल्याच्युत-नागसेन-ग[णपत्यादीननान्- संगरे…”

समुद्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्ति, पंक्ति – १३

  • मथुरा में समुद्रगुप्त के समय में गणपतिनाग का शासन था।

“रुद्रदेव-मतिल-नागदत्त-चन्द्रवर्म्म-गणपतिनाग-नागसेनाच्युत-नन्दि-बल-वर्म्माद्यनेकार्य्या- वर्त्त-राज-प्रसभोद्धरणोवृत्त-प्रभाव-महतः परिचारकीकृत-सर्व्वाटविक-राजस्य …”

समुद्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्ति, पंक्ति – २१

  • अर्थात् प्रयाग प्रशस्ति में दो नागवंशी शासकों का उल्लेख मिलता है, जिनको समुद्रगुप्त ने पराजित किया था —
    • प‌द्मावती का नागसेन 
    • मथुरा का गणपतिनाग

निष्कर्ष

तीसरी शताब्दी के अन्त में प‌द्मावती तथा मथुरा के नाग लोग मथुरा, धौलपुर, आगरा, ग्वालियर, कानपुर, झाँसी और बाँदा के भूभागों पर शासन करते थे। इनके सम्बन्ध में धार्मिक ग्रंथों और पुरातत्त्व (सिक्कों, अभिलेखों) से जानकारी मिलती है।

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