भूमिका
चूँकि तोलकाप्पियम् एक व्याकरण सम्बन्धी ग्रन्थ है, इसलिए स्पष्ट है कि इससे पहले सदियों तक साहित्यिक गतिविधियाँ हुई होगी। इसकी रचना ऋषि अगस्त्य के शिष्य तोल्काप्पियर ने की है।
तोलकाप्पियम एक यौगिक शब्द है—
- जिसमें तोल का अर्थ है—प्राचीन, पुराना
- काप्पियम का अर्थ है— पुस्तक, पाठ, कविता, काव्य
- इस तरह तोल्काप्पियम का अर्थ है— “प्राचीन पुस्तक”, “प्राचीन कविता” या “पुरानी कविता”।
- ‘काप्पियम’ शब्द संस्कृत के काव्य से लिया गया है।
संक्षिप्त विवरण
- नाम — तोलकाप्पियम् या तोलकाप्पियम या तोल्काप्पियम (Tolkappiyam)
- रचनाकार — तोल्काप्पियर (Tolkappiyar)
- यह द्वितीय संगम का एकमात्र उपलब्ध ग्रन्थ है।
- तोल्काप्पियम् को संगम युग और तमिल साहित्य का प्राचीनतम् ग्रन्थ माना जाता है।
- तोल्काप्पियर ऋषि अगस्त्य के शिष्य थे। इन्होंने ऋषि अगस्त्य के बाद द्वितीय संगम की अध्यक्षता की थी।
- यह एक व्याकरण ग्रन्थ है।
- इसकी रचना सूत्र शैली में की गयी है।
- इसकी रचना नूर्पा छंद (Nurpa Metre) में की गयी है।
वर्ण्य विषय
- इसमें चातुर्वर्ग / धर्मार्थकाममोक्ष (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) का भी उल्लेख मिलता है—
- धर्म — आराम (Aram)
- अर्थ — पोरुल (Porul)
- काम — इनबम (Inbam)
- मोक्ष — विदु (Vidu)
- तोलकाप्पियर ने अपने व्याकरण के तीसरे भाग में प्रेम की पाँच अवस्थाओं पर चर्चा की है और उसे प्रकृति की संगत अवस्था से तुलना की है—
- मिलन — पहाड़ (कुरिंजि – Kurinchi)
- वियोग — मरुस्थल (पलै – Palai)
- प्रतीक्षा — जंगल (मुलै – Mullai)
- विलाप — समुद्र तट (Neithal)
- नाराजगी — खेत (Marutham)
- तोलकाप्पियम की रचना सूत्रों के रूप में है। इसमें तीन भाग (atikaram) हैं और प्रत्येक भाग को नौ-नौ खंडों या अध्यायों (iyal) में विभाजित किया गया है। ये तीन भाग क्रमशः सम्बन्धित हैं—
- एलुथा (Elutha or Eluttatikaram) — वर्तनी (orthography)
- सोल (Sol or Sollatikaram) — व्युत्पत्ति (etymology)
- पोरुल (Porul or Porulatikaram) — पदार्थ (matter), यह हमें छंदशास्त्र और अलंकारशास्त्र के सम्बन्ध में बताती है।
- तोल्काप्पियम के तीन खंडों में कुल १,६१० (४८३+४६३+६६४) सेयुलगल (seiyulgal) नूर्पा छंद में हैं।
- वास्तव में यह पुस्तक अपने दायरे में बहुत बड़ी है और उत्कृष्ट लेखन का उदाहरण है। इसमें अलंकार और छंद, प्रेम जैसे व्यक्तिपरक अनुभवों और युद्ध जैसे वस्तुनिष्ठ अनुभवों की अभिव्यक्ति, फूलों की भाषा, समकालीन तौर-तरीके और रीति-रिवाज इत्यादि सभी पर विस्तार से चर्चा की गयी है।
- इसमें विभिन्न देवताओं का उल्लेख मिलता है—
- माय्योन (Mayyon) — विष्णु
- सेयोन (Seyyon) — स्कंद
- वेंधन (Vendhan) — इंद्र
- वरुण (Varuna)
- कोट्रवई (Kotravai) — देवी या भगवती
तोल्काप्पियर
तोल्काप्पियम की रचना तोल्काप्पियर ने की। तोलकाप्पियर वैदिक ऋषि अगस्त्य के १२ शिष्यों में से थे।
ऋषि अगस्त्य से सम्बन्धित आख्यान हमें वेदों, पुराणों में प्राप्त होते हैं। पारम्परिक किंवदंती के अनुसार मूल तमिल व्याकरण की रचना ‘अकट्टियम’ (Akattiyam) या ‘अगस्त्यम’ थी जिसकी रचना स्वयं ऋषि अगस्त्य ने की थी। परम्परानुसार तमिल भाषा और व्याकरण का ज्ञान स्वयं भगवान शंकर ने ऋषि अगस्त्य को दिया था।
अगस्त्य से संबंधित अकट्टियम किंवदंतियों का सबसे पहला उल्लेख लगभग ८वीं या ९वीं शताब्दी के ग्रंथों में मिलता है। परन्तु जलप्रलय के बाद यह रचना लुप्त हो गयी।‘अकट्टियम’ या ‘अगस्त्यम’ के आधार पर ही तोल्काप्पियर ने तोल्काप्पियम की रचना की।
निष्कर्ष
यह प्रकार तोल्काप्पियम् भाषा पर उतना ही ग्रंथ है जितना कि धर्मार्थकाममोक्ष जैसे विषयों पर। इस उत्कृष्ट कृति पर कई लेखकों ने टिप्पणी की है, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध नच्चिनारकिनियार (Nacchinarkiniyar) हैं।
सुदूर दक्षिण के इतिहास की भौगोलिक पृष्ठभूमि
संगमयुग की तिथि या संगम साहित्य का रचनाकाल
द्वितीय संगम या द्वितीय तमिल संगम
शिलप्पदिकारम् (नूपुर की कहानी) / Shilappadikaram (The Ankle Bracelet)
मणिमेकलै (मणि-युक्त कंगन) / Manimekalai
जीवक चिन्तामणि (Jivaka Chintamani)
एत्तुथोकै या अष्टसंग्रह (Ettuthokai or The Eight Collections)