भूमिका
जीवक चिन्तामणि संगमकाल के बहुत बाद की रचना है। इसकी रचना का श्रेय जैन भिक्षु तिरुत्तक्कदेवर को दिया जाता है। उपलब्ध तीन महाकाव्यों में से यह तृतीय महाकाव्य है।
संक्षिप्त परिचय
- नाम — जीवक चिन्तामणि (Jivaka Chintamani)
- कवि — तिरुत्तक्कदेवर (Tiruttakkadevar)
- जैन धर्म से सम्बन्धित
- इसे ‘विग्रह का महाकाव्य’ या ‘विग्रह की पुस्तक’ कहा जाता है
जीवक चिन्तामणि की संक्षिप्त कहानी
यह एक आदर्श नायक ‘जीवक’ की जीवन कथा है जो युद्ध तथा शान्ति दोनों कलाओं में निपुण है। वह एक ही साथ सन्त तथा प्रेमी भी है। युवावस्था में वह अनेक साहसपूर्ण कार्य करता है तथा प्रारम्भ में ही एक विशाल साम्राज्य का स्वामी बन जाता है। प्रत्येक सैनिक अभियान में वह अपने लिये एक-एक रानी लाता है और इस प्रकार आठ पत्नियों के साथ आनन्द मनाता है।
अन्ततोगत्वा उसे सांसारिक जीवन से विरक्ति हो जाती है और अपने पुत्र के पक्ष में सिंहासन त्यागकर वह वनगमन करता है। वहीं उसे मुक्ति प्राप्त होती है।
वर्तमान रूप में इस महाकाव्य में ३,१५४ छन्द हैं जिनमें केवल २,७०० मूल कवि द्वारा रचित हैं। दो छन्दों को उसके गुरु तथा शेष को बाद के किसी कवि ने लिखा था। तिरुत्तक्कदेवर की इस रचना में श्रेष्ठ काव्य के सभी गुण विद्यमान है।
कहा जाता है कि वह पहले चोल राजकुमार था जो बाद में जैन भिक्षु बन गया।
सुदूर दक्षिण के इतिहास की भौगोलिक पृष्ठभूमि
संगमयुग की तिथि या संगम साहित्य का रचनाकाल
द्वितीय संगम या द्वितीय तमिल संगम
शिलप्पदिकारम् (नूपुर की कहानी) / Shilappadikaram (The Ankle Bracelet)
मणिमेकलै (मणि-युक्त कंगन) / Manimekalai
तोलकाप्पियम् (Tolkappiyam) – तोल्काप्पियर
एत्तुथोकै या अष्टसंग्रह (Ettuthokai or The Eight Collections)