भूमिका
संगम युगीन राज्यों में सर्वाधिक शक्तिशाली चोल राज्य था और साथ ही संगमकाल के तीन प्रमुख राज्यों में से सर्वप्रथम चोलों का अभ्युदय हुआ।
चोल राज्य का अभ्युदय कावेरी नदी के डेल्टा और आस-पास के क्षेत्रों पर हुआ। कांची का क्षेत्र भी चोल राज्य का भाग था। और स्पष्ट रूप से कहें तो चोल राज्य पेन्नार (Pennar) तथा दक्षिणी वेल्लार (Vellar) नदियों के बीच में स्थित था। इसको प्रारम्भिक मध्यकाल में चोलमंडलम या कोरोमंडल (Colamandalam or Coromandal) कहा जाता था। यह पांड्य साम्राज्य के उत्तर-पूर्व में स्थित था। इसके अन्तर्गत चित्तूर, उत्तरी अर्काट, मद्रास से चिंगलपुत्त तक का भाग, दक्षिणी अर्काट, तंजौर, त्रिचनापल्ली का क्षेत्र सम्मिलित था।
चोलों की प्रारम्भिक राजधानी ‘उत्तरी मनलूर’ थी, परन्तु ऐतिहासिक युग में ‘उरैयूर’ बन गयी। उरैयूर सूती वस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध थी। कालान्तर में करिकाल के शासनकाल में चोलों की राजधानी ‘पुहार’ (कावेरीपत्तनम्) बनी। चोलों के वैभव का मुख्य स्रोत सूती वस्त्रों का व्यापार था। उनके पास कुशल नौसेना भी थी।
संक्षिप्त परिचय
|
शासक
संगमकालीन चोल शासकों का इतिहास बहुत ही उलझा हुआ है और समय निर्धारण में भी बहुत भ्रांतियाँ हैं। प्रारम्भिक चोल शासकों के कई नाम मिलते हैं और उनके सम्बन्ध में बहुत से कपोल कल्पनाओं से साहित्य भरा हुआ है जिसे इतिहास के रूप में प्रयोग करने में बहुत सावधानी की आवश्यकता है। कुछ शासकों के विवरण अधोलिखित हैं—
उरुवप्पहरैइलंजेतिचिन्नि
- चोल राजवंश के पहला ऐतिहासिक शासक उरुवप्पहरैइलंजेतिचेन्नि का हमें उल्लेख मिलता है।
- यह अपने सुंदर रथों के लिए प्रसिद्ध था।
- इसने उरैयूर को अपनी राजधानी बनायी।
एलारा (Elara)
- दूसरी शताब्दी ई०पू० में एलारा ने शासन किया।
- यह चोल राजवंश कि प्रथम शासक था जिसने श्रीलंका की विजय की।
- इसने लगभग ५० वर्षों तक शासन किया।
करिकाल (Karikala)
संगम काल का सबसे प्रथम एवं महत्त्वपूर्ण शासक करिकाल है। करिकाल का अर्थ है— जले हुए पैर वाला व्यक्ति (the man with the charred leg)। करिकाल के पिता का नाम इलंजेतचिन्नि (Ilanjetchinni) मिलता है। उसके प्रारम्भिक जीवन के विषय में जो सूचना मिलती है उसके अनुसार उसका बचपन बड़ी कठिनाई में व्यतीत हुआ। बचपन में उसका पैर जल गया तथा बाद में वह अपने शत्रुओं द्वारा बन्दी बना कर कारागार में डाल दिया गया। इस प्रकार उसका पैतृक राज्य भी उससे छिन गया।
करिकाल बड़ा ही साहसी तथा वीर था। १९० ई० के लगभग उसने अपने समस्त शत्रुओं को पराजित करके अपने राज्य पर पुन: अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् करिकाल का समकालीन चेर और पाण्ड्य राज्य से युद्ध हुआ। करिकाल ने दो युद्धों में विजय प्राप्त की जिसके कारण वह संगमकाल का प्रसिद्ध शासक बन बैठा, ये दो युद्ध हैं— वेणी / वेण्णि का युद्ध और वाहैप्परन्दलई / वाहैप्परण्डले का युद्ध।
- वेणी / वेण्णि (Venni) का युद्ध— वेण्णि (तंजौर) के समीप उसने चेर-पाण्ड्य राजाओं सहित उनके सहयोगी ११ सामन्त शासकों के एक संघ को भी पराजित किया। इस युद्ध में चेर शासक ‘पेरुमशेरलआदन’ ने अपनी पराजय के बाद आत्महत्या कर ली।
- वाहैप्परण्डले (Vahaipparandalai) का युद्ध— वेण्णि युद्ध के बाद ‘वाहैप्परण्डले के युद्ध’ में उसने ९ शत्रु राजाओं के एक संघ को पराजित किया।
इन विजयों के परिणामस्वरूप कावेरी नदी घाटी में करिकाल की स्थिति अत्यन्त सुदृढ़ हो गयी।
करिकाल की उपलब्धियों का अत्यन्त अतिशयोक्तिपूर्ण विवरण प्राप्त होता है। बताया गया है कि उसने हिमालय तक सैनिक अभियान किया तथा वज्र, मगध और अवन्ति राज्यों को जीत लिया।
इसी प्रकार कुछ अनुश्रुतियों में उसकी सिंहल विजय का वृत्तान्त मिलता है। बताया गया है कि करिकाल ने सिंहल से १२,००० युद्ध बन्दियों को लाकर पुहार के समुद्री बन्दरगाह के निर्माण में लगा दिया था। कावेरी नदी पर उसने १६० किलोमीटर लम्बा तटबन्ध इन्हीं युद्धबन्दियों से करवाया। करिकाल ने उरैयूर से अपनी राजधानी पुहार (कावेरीपत्तनम्) में स्थानान्तरित कर दी। यह नगर संगमकाल में व्यापार-वाणिज्य का बड़ा केन्द्र था। इसका गोदीबाड़ा बहुत विशाल था।
परन्तु इस प्रकार के विवरण काल्पना की उड़ान हैं। हिमालय तक की विजय निश्चित ही कोरी कल्पना है। हाँ सिंहल के साथ युद्ध हुआ हो इससे इंकार नहीं किया जा सकता पर इसमें भी अतिशयोक्ति ही है और इसे पुष्ट करने के लिये हमारे पास कोई प्रमाण नहीं है।
करिकाल ब्राह्मण मतानुयायी था तथा उसने इस धर्म को राजकीय संरक्षण प्रदान किया। वह स्वयं एक विद्वान्, विद्वानों का आश्रयदाता तथा महान् निर्माता था। पुहार पत्तन का निर्माण इसी के समय में हुआ। इसके अतिरिक्त उसने कावेरी नदी के मुहाने पर बाँध बनवाया तथा उसके जल का उपयोग सिंचाई करने के उद्देश्य से नहरों का निर्माण करवाया था। पोरुनारारुप्पत्तै (Porunararruppatai) में करिकाल को संगीत के सप्तस्वरों का विशेषज्ञ बताया गया है।
इस प्रकार करिकाल एक महान् विजेता एवं प्रजावत्सल शासक था। प्रारम्भिक चोल शासकों में वह महानतम् है।
करिकाल ने अपने राज्य की आर्थिक उन्नति के लिए कृषि और व्यापार को पर्याप्त प्रोत्साहन दिया। जंगली भूमि को साफ करवाकर कृषि योग्य बनवाया, सिंचाई के लिए तालाब निर्मित कपवाये।
पत्तिनपालै (पत्थुपात्तु) के रचयिता रुद्रनकन्नार को करिकाल ने १६ लाख स्वर्ण मुद्राएँ प्रदान की थीं। इस ग्रन्थ में कावेरीपत्तनम् के क्षेत्रों में उद्योग और व्यापार की उन्नति का विवरण सुरक्षित है।
शिल्पादिकारम् महाकाव्य में करिकाल की पुत्री आदिमंदी (Adi Mandi) का उल्लेख मिलता है। इसका विवाह चेर राजकुमार आत्तन अत्ति (Attan Atti) से हुआ था। ये दोनों पेशेवर नर्तक (Professional dancer) थे। आत्तन (Attan) का अर्थ नर्तक होता है। आत्तन अत्ति कावेरी नदी में डूबकर मर गया जिसे आदिमंदी ने अपने सतीत्व से पुनर्जीवित कर दिया था।
विस्तृत विवरण के लिए देखें — करिकाल (Karikala)
तोंडाइमन इलैंडिरायन (Tondaiman Ilandiraiyan)
- करिकाल के समकालीन कांचीपुरम में शासन करने वाले तोंडाइमन इलैंडिरायन (Tondaiman Ilandiraiyan) का उल्लेख मिलता है।
- यह उल्लेख पट्टिनप्पपालै (Pattinappalai) के कवि रुद्रनकन्नार ने ‘दस गीत’ (पत्तुप्पातु) में एक अन्य कविता में किया है।
- तोंडाइमन इलैंडिरायन के बारे में कहा जाता है कि वे भगवान विष्णु के वंशज थे और समुद्र की लहरों द्वारा दिये गये तिरैयार (Tiraiyar) के परिवार से थे।
- तोंडाइमन इलैंडिरायन स्वयं एक कवि थे और उनके द्वारा रचित चार गीत मौजूद हैं, उनमें से एक अच्छे शासन को बढ़ावा देने में राजा के व्यक्तिगत चरित्र के महत्त्व पर है।
विस्तृत विवरण के लिए देखें — तोंडैमान इलांडिरैयान (Tondaiman Ilandiraiyan)
करिकाल के उत्तराधिकारी
करिकाल के पश्चात् चोलों की शक्ति निर्बल पड़ने लगी। करिकाल के तीन पुत्र थे—
- नालंकिल्लि
- नेडुमुदुक्किलि और
- मावलत्तान।
नालंकिल्लि
करिकाल के पुत्रों में नालनगिल्लि या नलंगिल्ली के सम्बन्ध में हमें कुछ ज्ञात है। ऐसा लगता कि इस समय चोल वंश दो शाखाओं में विभक्त हो गया। नलंगिल्ली ने करिकाल के तमिल राज्य पर शासन किया। उसकी एक प्रतिद्वन्दी शाखा नेडुनकिल्लि (Nedunkilli) के अधीन संगठित हो गयी। दोनों के बीच एक दीर्घकालीन गृहयुद्ध छिड़ गया। अन्ततोगत्वा ‘कारियारु के युद्ध’ (battle of Kariyaru) में नेडुनगिल्ली पराजित हुआ तथा मार डाला गया। इस युद्ध का विवरण मणिमेकलै में प्राप्त होता है।
एत्तुथोकै (अष्ट संग्रह) के संग्रह पुरूनानूरू (Purananuru) में कम से कम १४ कविताओं में नालनकिल्लि का विवरण मिलता है।
विस्तृत विवरण के लिए देखें — नालनकिल्ली या नालंकिल्ली (Nalankilli)
किल्लिवलवान (Killivalavan)
किलिवलवान (Killivalavan) चोल राजवंश का ही था जो उरैयूर में राज्य करता था। वह एक शक्तिशाली शासक था जिसने चेरों को हराकर उनकी राजधानी करूर के ऊपर अधिकार कर लिया था।
हमारे पास किलिवलवान और उसके शासनकाल के सम्बन्ध में कोई निश्चित विवरण नहीं है। उसके सम्बन्ध में हमें पुरनानुरू (Purananuru) में बिखरे हुए अथवा अपूर्ण कविताओं (fragmentary poems) में मिलता विवरण प्राप्त होते हैं। पुरनानुरू एत्तुथोकै (अष्ट संग्रह) का भाग है।
करूर विजय
चेर की राजधानी करूर (Karur) की घेराबंदी और उस पर अधिकार करना किल्लिवलवान के शासनकाल की सबसे बड़ी सैन्य उपलब्धि थी। करूर घेराबंदी और विजय कई कविताओं का विषय रहा है। कवि अलत्तुर किलार (Alattur Kilar) ने किल्लिवलवान के आक्रमण से करूर को बचाने के लिए उसका ध्यान भटकाने का प्रयास किया और उसे अपने पराक्रम के अयोग्य प्रतिद्वंद्वी के विरुद्ध युद्ध करने से झिड़का। परन्तु अलत्तुर किलार (Alattur Kilar) अपने प्रयास में विफल रहा और करूर नगर पर किल्लिवलवान ने अधिकार कर लिया।
विस्तृत विवरण के लिए देखें — किल्लिवलवान (Killivalavan)
पेरूनरकिल्लि
पेरुनारकिल्ली (Perunarkilli) के शासनकाल के बारे में कोई निश्चित विवरण नहीं है। एकमात्र उपलब्ध जानकारी का पुरुनानुरू (Purananuru) कविताएँ हैं।
यह अत्यन्त पराक्रमी चोल शासक था। प्रारम्भिक चोल राजाओं में एकमात्र इसी राजा ने राजसूय जैसे महान यज्ञ का अनुष्ठान किया।
शेनगणान
शेनगणान (Senganan) या कोच्चेन्गणान (Kochchenganan) के शासनकाल की जानकारी का स्रोत पुरुनानुरू (Purananuru) कविताएँ हैं। शेनगणान के सम्बन्ध में प्रचलित है कि पूर्व जन्म में वह मकड़ा था। इसने सम्पूर्ण देश में शैव मन्दिरों का निर्माण करवाया।
‘कलावली नारपथु’ (Kalavali Narpathu) नामक कविता संग्रह (पदिनेनकीलकनक्कु का भाग) के अनुसार इसने एक युद्ध में चेर राजा ‘कणैक्काल इरुम्पोरै’ (Kanaikkal Irumporai) को पराजित कर बन्दी बना लिया था, लेकिन चेर राजा के मित्र ‘पोइगयार’ (Poigayaar) ने चोल विजेता की प्रशंसा करके चेर राजा को मुक्त करा लिया। यह कालूमालन युद्ध (the battle of Kalumalam) के नाम से जाना जाता है।
अन्य शासक
उपर्युक्त शासकों के अतिरिक्त संगम साहित्य में चोल वंश के कुछ अन्य राजाओं के नाम भी प्राप्त होते हैं—
- कोप्परुन्जोलन,
- पेरुनरकिल्लि आदि।
इनके सम्बन्ध में जो विवरण सुरक्षित है, उनकी ऐतिहासिकता संदिग्ध है। इनकी उपलब्धियाँ काव्य का विषय है, इतिहास की नहीं।
निष्कर्ष
संगम युगीन चोल शासकों ने तीसरी चौथी शती तक शासन किया। तत्पश्चात् उरैयूर के चोलवंश का इतिहास अन्धकारपूर्ण हो जाता है। ९वीं शताब्दी के मध्य विजयालय के नेतृत्व में पुनः चोल सत्ता का उत्थान हुआ। प्रारम्भिक मध्यकालीन चोल शासकों ने विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की।
पाण्ड्य राजवंश या पाण्ड्य राज्य : संगमकाल (The Pandya Dynasty or Pandya Kinds: The Sangam Age)
चेर राज्य या चेर राजवंश : संगमकाल (The Chera Kingdom or The Chera Dynasty : The Sangam Age)