चेर राज्य या चेर राजवंश : संगमकाल (The Chera Kingdom or The Chera Dynasty : The Sangam Age)

भूमिका

संगमयुगीन तीन अभिषिक्त राज्यों में चेर राज्य भी था। यह आधुनिक केरल प्रान्त में स्थित था। इसके अन्तर्गत कोयम्बटूर का कुछ भाग तथा सलेम (प्राचीन कोंगू जनपद) भी सम्मिलित थे। संगमकालीन कवियों ने चेरों की प्राचीनता महाभारत के युद्ध से जोड़ने का प्रयास किया है जोकि काल्पनिक है। रोमनों ने अपने हितों की रक्षा के लिये सेना की दो टुकड़ियाँ क्रमशः मुजिरिस और क्रांगानोर में रखी हुई थीं। बताया जाता है कि रोमनों ने रोमन सम्राट ऑगस्टस के सम्मान में मंदिर का निर्माण भी चेर राज्य में करवाया गया था।

चेर राज्य

संक्षिप्त परिचय

  • राजधानी — वंजि या करूर
  • बंदरगाह राजधानी — तोण्डी / मुजिरिस
  • राजचिह्न — धनुष
  • क्षेत्र — केरल और तमिलनाडु का कुछ भाग
  • पहला ऐतिहासिक शासक — उदियनजेरल
  • संगम साहित्य में सर्वाधिक उल्लेख चेर शासकों का मिलता है

प्रमुख शासक

संगम साहित्य में तीन अभिषिक्त शासकों में से सर्वाधिक उल्लेख चेर राजाओं का मिलता है| यद्यपि इन विवरणों में अतिशयोक्ति अधिक और ऐतिहासिकता कम है| फिरभी तत्कालीन विदेशी स्रोतों और पुरातत्त्व को संगम साहित्य के साथ मिलकर चेर वंश का इतिहास लेखन किया गया है| कुछ प्रमुख चेर राजाओं का विवरण अधोलिखित है|

उदियनजेरल

  • संगम युग का प्रथम ऐतिहासिक चेर शासक उदियनजेरल (Udiyanjeral) हुआ और इसका शासनकाल लगभग १३० ई० के आसपास पड़ता है।
  • उदियनजेरल के सम्बन्ध में यह कहा गया है कि उसने महाभारत युद्ध में भाग लेने वाले सभी योद्धाओं को भोजन कराया था और इसी कारण से इसे ‘महाभोजन उदियनजेरल’ (Udiyanjeral of the great feeding) की उपाधि मिली| परन्तु यह कपोल कल्पना है|
  • इसके किसी भी उपलब्धि की जानकारी हमें नहीं मिलती।

इसे भी देखें – उदियन चेरन आदन (Uthiyan Cheralathan)

नेदुनजेरल आदन्

  • उदियंजेरल का पुत्र तथा उत्तराधिकारी नेदुनजेरल आदन् (Udiyanjeral Adan) हुआ|
  • इसका शासनकाल लगभग १५५ ई० के आसपास है।
  • नेदुनजेरल आदन् की राजधानी मरन्दै या मरन्दई / मरन्दै (Marandai) थी।
  • नेदुनजेरल आदन् के सम्बन्ध में यह सूचना मिलती है कि उसने मालाबार-तट पर किसी शत्रु को पराजित किया तथा कुछ यवन व्यापारियों को बन्दी बना लिया और बाद में धन लेकर (ransom) मुक्त कर दिया। यहाँ यवनों से तात्पर्य सम्भवतः रोम तथा अरब के व्यापारियों से है।
  • एक अनुश्रुति में बताया गया है कि उसने सैनिकों के साथ शिविर में रहकर कई वर्षों तक युद्ध करके सात अभिषिक्त राजाओं को हराकर ‘अधिराज’ (adhiraja) की उपाधि धारण की थी।
  • यह भी विवरण मिलता है कि नेदुनजेरल आदन् ने हिमालय तक अपने राज्य का विस्तार करके उस पर्वत पर चेर ‘राज्य-चिह्न’ (धनुष) अंकित कर दिया और इस उपलब्धि के परिणामस्वरूप उसने ‘ईमयवरम्बन’ (Imayavaramban) की उपाधि ग्रहण धारण की थी। परन्तु यह पूर्णतया काल्पना की उड़ान है।
  • ईमयवरम्बन का अर्थ है — वह जिसकी सीमा हिमालय थी (he who had the Himalaya for his boundary)।
  • नेदुनजेरल आदन् किसी चोल शासक (सम्भवतया इलंजेतचिन्न) के विरुद्ध युद्ध किया और लड़ते हुए दोनों शासक वीरगति को प्राप्त हुए। दोनों की पत्नियाँ सती हो गयीं।
  • नेदुनजेरल आदन् के समय पश्चिमी जगत से अच्छा व्यापार होता था जिसने ‘कदम्बु’ नामक जनजाति बाधा डालती थी जिसका इसने दमन किया।
  • नेदुंजेरल आदन् के दो पुत्र अलग अलग रानियों से थे—
    • कालनकैक कण्णि नारमुडिचेर (Kalankaik Kanni Narmudijera) तथा
    • सेनगुट्टवन।
  • इनमें सेनगुट्टवन ही अधिक महत्त्वपूर्ण है।

कुट्टुवन

  • कुट्टुवन (Kuttuvan) नेदुनजेरल आदन् का छोटा भाई था|
  • उसने कोन्गु (kongu) के युद्ध में सफलता प्राप्त की और चेर राज्य को पूर्वी तथा पश्चिमी समुद्र तक विस्तृत कर दिया|
  • इसने अनेक सामंतों को भी हराया।
  • इसके पास बड़ी संख्या में हाथी थे इसलिए इसको ‘कई हाथियों वाला कुट्टवन’ (Kuttuvan of many Elephant) भी कहा जाता है||
  • इसने भी ‘अधिराज’ की उपाधि धारण की।

कालनकैक कण्णि नारमुडिचेर

  • कालनकैक कण्णि नारमुडिचेर (Kalankaik Kanni Narmudichera) अर्थात् ‘कलंगाय तोरण और फाइबर मुकुट वाला चेर’ (the Chera with the kalangay festoon and the fibre crown) नेदुनजेरल का पुत्र और कुट्टवन का भतीजा था|
  • इसको कलंगाय तोरण और फाइबर मुकुट वाला चेर (the Chera with the kalangay festoon and the fibre crown) इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसने राज्याभिषेक के समय जो मुकुट पहना था वह ताड़ के रेशे से बना था और उस पर लगे तोरण में कलंगाय (एक छोटा काला बेर) लगा था। मुकुट में सुनहरा फ्रेम और कीमती मोतियों की झालरें लगी थीं (golden frame and festoons of precious pearls)| परन्तु राजा ने ऐसा मुकुट क्यों पहनना था, इसका कहीं भी स्पष्टीकरण नहीं मिलता है।
  • कहा जाता है कि उसने तगदुर के सरदार (the cheiftaaain of Tagadur) आदिगैमान अंजी (Adigaiman Anji) को हराया|
  • यह भी बताया जाता है की उसने नन्नन (Nannan) के विरुद्ध एक अभियान का नेतृत्व किया जिसका क्षेत्र मालाबार के उत्तर में तुलु क्षेत्र (Tulu area) में था।
  • वह भी सात मुकुटों की माला पहनने वाला अधिराज था।

शेनगुट्टवन

  • शेनगुट्टवन (Senguttuvan) नेदुनजेरल आदन का पुत्र था|
  • शेनगुट्टवन को धर्मपरायण सेनगुट्टवन (the Righteous Kuttava), भला चेर और लाल चेर भी कहा कहा जाता है।
  • वह १८० ई० के लगभग शासक बना।
  • सेनगुट्टवन का यशोगान संगम युग के सुप्रसिद्ध कवि परणर (Paranar) ने किया है।
  • सेनगुट्टवन एक वीर योद्धा तथा कुशल सेनानायक था।
  • वह घुड़सवारी, हाथी की सवारी और दुर्ग की घेराबंदी में कुशल था।
  • उसके पास घोड़े, हाथी तथा नौसैनिक बेड़ा भी था।
  • परणर ने इसके समुद्री अभियान का उल्लेख किया है, जिससे उसके नौसैनिक बेड़े का ज्ञान मिलता है।
  • उसने अधिराज की उपाधि ग्रहण की थी।
  • उसने पूर्वी तथा पश्चिमी समुद्र के बीच अपना राज्य विस्तृत किया।
  • इसको ‘कदलपिरक्ककोत्तिय’ अर्थात् ‘समुद्र को पीछे हटानेवाला’ कहा गया है।
  • बलिपुरम के युद्ध में इसने ९ चोल शासकों को पराजित किया और कदम्बों का विनाश किया।
  • शेनगुट्टुवन का चोल राजनीति में हस्तक्षेप करने का कारण उनमें चल रहा उत्तराधिकार का युद्ध था|
  • वह साहित्य और कला का उदार संरक्षक था।
  • पत्तनी पूजा –
    • उसने पत्तिनी (पत्नी) नामक धार्मिक सम्प्रदाय को समाज में प्रतिष्ठित किया।
    • इसमें पवित्र पत्तिनी की देवी के रूप में मूर्ति बनाकर पूजा जाता था।
    • इसको ‘कण्णगी’ की पूजा भी कहा गया है।
    • बताया गया है कि सेनगुट्टवन ने इस मूर्ति का पत्थर किसी आर्य राजा को युद्ध में हराकर प्राप्त किया तथा गंगा नदी में स्नान कराने के बाद उसे अपनी राजधानी ले आया था। इस आख्यान का विद्वानों ने यह अर्थ निकाला है कि ‘पत्तनी पूजा’ का सम्बन्ध किसी-न-किसी अर्थ में उत्तरी भारत से अवश्य रहा है।
    • इतिहासकार द्विजेन्द्र नारायण झा और कृष्ण मोहन श्रीमाली की कृति ‘प्राचीन भारत का इतिहास’ पत्तनी पूजा के सम्बन्ध में अपना विचार व्यक्त करते हुए कहते हैं कि— ‘पत्नी की एक आदर्श और पवित्र देवी के रूप में पूजा तत्कालीन समाज की मानसिकता की ओर संकेत करता है, जहाँ नारी पर पुरुष का सर्वाधिकार हो।’ परन्तु जैसा कि हमें ज्ञात है कि  मेगस्थनीज के अनुसार पाण्ड्य राज्य में नारी के शासन करने के उल्लेख से वहाँ मातृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था का संकेत मिलता है। इस तरह द्विजेन्द्र नारायण झा और कृष्ण मोहन श्रीमाली का यह विचार स्वीकारणीय नहीं है।
    • शिलप्पदिकारम् के अनुसार ‘पत्तिनी पूजा’ के प्रचलन में पांड्य तथा चोल शासकों के साथ ही श्रीलंका के शासक भी विशेष सहायक हुए।
    • ‘पत्तिनी पूजा’ से समाज के पितृसत्तात्मक प्रथा की ओर अग्रसर होने का संकेत मिलता है।
  • ऐसा प्रतीत होता है कि सेनगुट्टवन के बाद चेर राजवंश कई उप-शाखाओं में विभाजित हो गया। उसके बाद के महत्त्वपूर्ण चेर शासक अन्दुवन् (Anduvan) तथा उसका पुत्र सेल्वाक्काडुंगो वाली आदन (Selvakkadungo Vali Adan) थे।

अन्दुवन्

  • अंदुवन (Anduvan) शासक बहुश्रुत विद्वान के रूप में विख्यात है।
  • विद्वानों ने इसकी प्रशंसा वीरता और उदारता के लिए की है|

सेल्वाक्काडुंगो वाली आदन

  • अन्दुवन् का पुत्र सेल्वाक्काडुंगो वाली आदन (Selvakkadungo Vali Adan) वैदिक यज्ञ करने के लिए विख्यात था।
  • विद्वानों ने इसकी प्रशंसा वीरता और उदारता के लिए की है|

आय और पारि

  • अन्य प्रसिद्ध छोटे शासकों में अय / आय  (Ay) और पारि (Pari) की कवियों ने बहुत प्रशंसा की है।
  • ये दोनों वेल या वेलि शासक थे।
  • अनुश्रुति के अनुसार वेलों की उत्पत्ति उत्तरी भारत के किसी ऋषि के अग्निकुंड से हुई।
  • एक अन्य आख्यान में भी वेलों का सम्बन्ध भगवान विष्णु और अगस्त्य से जोड़ा गाया हैं।
  • कालांतर में उत्तर भारत के ‘राजपूतों के अग्निकुंड उत्पत्ति का सिद्धांत’ सर्वविदित है जिसके अनुसार प्रतिहार, परमार, चौलुक्य और चाह्मान वंश ऋषि वसिष्ठ के अग्निकुंड से उत्पन्न हुए हैं।
  • आय ने उरैयूर के ब्राह्मण कवि को संरक्षण दिया| आय संभवतया इस वंश के राजाओं की उपाधि थी| इसलिए उरैयूर के ब्राह्मण कवि के सरंक्षक आय राजा का नाम अंदीरान (Andiran) भी मिलता है| अंदीरान एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ वीर (Hero) होता है|
  • अंदीरान एक शांतिप्रिय शासक प्रतीत होता है| कई कविताएँ उसके राज्य की समृद्धि और उदारता की प्रशंसा करती हैं| उसकी सैन्य सफलता का एकमात्र उल्लेख मिलता है कि किसी कोंगर (Kongar) को पश्चिमी समुद्र तक खदेड़ दिया था| अंदीरान की मृत्यु के बाद कवियों के अनुसार उसका देवताओं ने स्वागत किया और इन्द्र के महल में उसके आगमन पर ढोल-नगाड़े बजाए गए|
  • प्रसिद्ध संगम कवि कपिलार (Kapilar) का मित्र और संरक्षक पारि था। पारि की मृत्यु के बाद कपिलार चेर राज्यसभा में आ गये जहाँ उनका स्वागत सेल्वाक्काडुंगो वाली आदन (अन्दुवन का पुत्र) ने किया।
  • इन सभी ने अल्पकाल तक शासन किया।
  • वे ब्राह्मण धर्म तथा साहित्य के संरक्षक थे।
  • ये सभी उपशाखा के शासक प्रतीत होते हैं।

पिरुन्जेरल इरुमपौर

  • चेरवंश की मुख्य शाखा में सेल्वाक्काडुंगो वाली आदन का पुत्र पिरुन्जेरल इरुमपौर / पेरुन्जेरल इरंमपोरई (Perunjeral Irumporai) शासक बना।
  • यह चोल शासक करिकाल (लग० १९० ई०) का समकालीन था।
  • वह महान् विजेता था।
  • उसके विरुद्ध सामन्त आडिगैमान / नेडुमान आन्जी (Adigaiman / Neduman Anji) ने चोल तथा पाण्ड्य राजाओं को मिलाकर एक मोर्चा तैयार किया। किन्तु पिरुन्जेरल इरुमपौर ने अकेले ही तीनों को पराजित कर दिया तथा तगदूर (Tagdur) नामक किले पर अपना अधिकार कर लिया।
  • बाद में अडिगैमान उसका मित्र बन गया।
  • अडिगैमान की गणना विद्वानों के सात संरक्षकों में से होती है।
  • आदिगैमान (Adigaiman) ने प्रसिद्ध कवि औवैयार (Auvaiyar) को संरक्षण प्रदान किया।
  • औवैयार (दक्षिण भारत में) गन्ने की खेती प्रारम्भ करने का श्रेय आडिगैमान के देता है।
  • ऐसा विवरण मिलता है कि उसने कुलवूल नामक चरवाहे सरदार को अधीन करके उसके किले पर अधिकार कर लिया था|

कुडक्को इलंजीराल इरुमपोरई 

  • चेरवंश का अगला राजा कुडक्को इलंजीराल इरुमपोरई (Kudakko Ilanjeral Irumporai; १९० ई०) हुआ।
  • यह तगडूर के विजेता पिरुन्जेरल इरुमपौर / पेरुन्जेरल इरंमपोरई का चचेरा भाई था|
  • उसने भी चोल तथा पाण्ड्य राजाओं के विरुद्ध सफलता प्राप्त की।

सईये या शेय 

  • संगम काल का अन्तिम चेर शासक सईये या शेय (Sey) हुआ|
  • इसका शासनकाल लगभग लगभग २१० ई० या २९० ई० बताया जाता है|
  • इसका नाम ‘हाथी की आँख वाला शेय’ (Sey of the elephant look) था|
  • इसकी उपाधि ‘मांदरनजेरल इरुम्पोरई’ (Mandaranjeral Irumporai) थी।
  • उसके समकालीन पाण्ड्य शासक नेडुजेलियन तलैयालंगानम ने उसे पराजित कर चेर राज्य की स्वाधीनता का अन्त कर दिया|

पाण्ड्य राजवंश या पाण्ड्य राज्य : संगमकाल (The Pandya Dynasty or Pandya Kinds: The Sangam Age)

चोल वंश या चोल राज्य : संगमकाल (The Cholas or The Chola’s Kingdom : The Sangam Age)

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