भूमिका
चुटु राजवंश (Chutu Dynasty) ने गुप्त-पूर्व काल में तृतीय शताब्दी ई० में दक्षिण भारत के दक्कन क्षेत्र के कुछ हिस्सों पर शासन किया। महाराष्ट्र तथा कुन्तल प्रदेश के ऊपर तीसरी शती में चुटुशातकर्णि वंश का शासन स्थापित हुआ। इनकी राजधानी वर्तमान कर्नाटक राज्य के बनवासी (Banavasi) में थी।
ये सातवाहनों के सामन्त थे। सातवाहनों के ध्वंशावशेष पर इन्होंने अपनी सत्ता स्थापित की। कुछ इतिहासकार उन्हें सातवाहनों की ही एक शाखा मानते है जबकि कुछ लोग उनको नागकुल से सम्बन्धित करते हैं। उनके शासन का अन्त कदम्बों द्वारा किया गया।
सम्राट अशोक के शिलालेखों को छोड़कर चुटु वंश के शिलालेख कर्नाटक राज्य के उत्तरी भाग में पाये जाने वाले सबसे पुराने लेख हैं।
संक्षिप्त परिचय
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नामकरण
इस वंश का नाम “चुटु-कुल” या “चुटु परिवार” (Chutu-kula or Chutu family) समकालीन शिलालेखों में पाया जाता है।
इनके सिक्कों पर इस तरह लेख अंकित मिलते हैं —
- राणो चुटुकलानंदस (Rano Chutukalanadasa) अर्थात् राजा चुटुकलानंद के
- राणो मुलानंदस (Rano Mulanadasa) अर्थात् राजा मूलानंद के
- राणो शिवलानंदस (Rano Shivalanandasa) अर्थात् राजा शिवलानंद के
मुद्राशास्त्री ई० जे० रैप्सन (१९०८ ई०) ने “Chutu-kada-nanda” पढ़कर इसका अर्थ “चुटुओं के नगर की खुशी” (Joy of the City of the Chutus) बताया है। परन्तु यह गलत पाठन के कारण हुआ है।
कन्नड़ भाषा में “चुटु” शब्द का अर्थ “शिखर” (crest) होता है। चुटु शिलालेखों में नाग के फण का प्रतीक मिलता है। विद्वानों ने चुटु के अर्थ व नाग-फण के संकेत को मिलाकर चुटु का मतलब “नाग फण” बताया है। यदि यह अर्थ मान लिया जाये तो चुटु का सम्बन्ध नागा जनजातियों से जुड़ता है। एक और तथ्य कि नागा जनजाति भी आधुनिक बनवासी के आसपास के पश्चिमी दक्कन क्षेत्र से सम्बद्ध थे, जिसे नागर खंड (Nagara Khanda) कहा जाता है।
मुद्राशास्त्री माइकल मिचिनर (Michael Mitchiner, १९८३) के अनुसार — ये नाम मातृवंशीय प्रतीत होते हैं। उदाहरणार्थ —
- “राणो मुलानंदस” का अर्थ “राजा मुलानंद के” होता है, जहाँ “मुलानंद” का अर्थ “मुल गोत्र की रानी का पुत्र (नंद)” है।
- “शिवलानंदस” का अर्थ “शिवला गोत्र की रानी का पुत्र” है।
मुद्राशास्त्री माइकल मिचिनर के अनुसार “चुटु-कुल-नंद-स” (Chutu-kula-nanda-sa) अर्थात् “चुटु परिवार की रानी का पुत्र” एक सामान्य नाम था जिसे वंश के कई शासकों ने धारण किया था।
मुद्राशास्त्री माइकल मिचिनर का सिद्धांत इस तथ्य पर आधारित है कि राजा हारितिपुत्र विष्णुकदा चुटुकुलानंद सातकर्णि का बनवासी शिलालेख लगभग ३४५ ई० के आसपास कदंबों के बनवासी पर कब्जे से ठीक पहले जारी किया गया था। जबकि चुटुकुलानंद नामधारी सिक्के जो चंद्रवल्ली (चित्रदुर्ग, कर्नाटक) उत्खनन में मिले हैं वे लगभग दो शताब्दी पहले के हैं।
इतिहासविद् एम० राम राव ने चुटु वंश को “आनंद परिवार” कहा, क्योंकि सिक्कों पर अंकित लेखों में उन राजाओं का उल्लेख है जिनके नाम “∼नंद” पर समाप्त होते हैं। मुद्राशास्त्री पी० एल० गुप्ता और ए० वी० नरसिंह मूर्ति ने एम० राम राव के इस व्याख्या का अनुसरण किया है।
उद्भव
चुटु राजवंश के उद्भव के सम्बन्ध में इतिहासकारों ने कई मत दिये हैं, जिनमें से प्रमुख अधोलिखित हैं —
सातवाहनों से सम्बन्ध
- पुराणों के अनुसार सातवाहनों की पाँच शाखाएँ थीं।
- इन पाँच शाखओं में से एक चुटु-शातकर्णि शाखा ने कदंबों से पूर्व कुंतल (वर्तमान कर्नाटक) पर शासन किया।
- कम से कम दो चुटु राजाओं ने “सातकर्णि” / “शातकर्णि” की उपाधि धारण की थी।
- सातकर्णि की उपाधि सातवाहन वंश से जुड़ी है।
- सातकर्णि उपाधि सातवाहनकाल में मंत्रियों और साधारण लोगों द्वारा भी धारण की जाती थी।
- चुटुओं और सातवाहनों के बीच सम्बन्ध अस्पष्ट है।
- आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार —
- “सातकर्णि” की उपाधि धारण करने के कारण चुटु परिवार सातवाहनों की एक शाखा थी। सम्भव है कि वे सातवाहन राजकुमारियों के सम्बन्धित हों।
- यह भी हो सकता है कि वे दक्कन में सातवाहनों के राजनीतिक उत्तराधिकारी मात्र हों।
शकों से सम्बन्ध
- मुद्राशास्त्री माइकल मिचिनर चुटुओं को शकों से सम्बद्ध करते हैं। उनके अनुसार कुछ चुटु सिक्के शक-सिक्कों की अनुकृतियाँ हैं। इसकी पुष्टि के लिए वे कोण्डापुर (मेढक, तेलंगाना) से मिले सीसे के दो सिक्कों का सहारा लेते हैं।
- वी० वी० मिराशी के अनुसार इन सिक्कों के जारीकर्ता स्वयं को विभिन्न रूप से शक या चुटु परिवार के सदस्य कहते हैं।
- इतिहासकार डी० सी० सरकार इस मत से असहमत हैं।
श्रीशैलम से सम्बन्ध
- आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जनपद और तेलंगाना के दक्षिणी हिस्से से चुटुकुल वंश के सिक्के मिले हैं।
- यह प्रमाणित करते हैं कि चुटुओं का श्रीशैलम (कुरनूल, आंध्र प्रदेश) या श्रीपर्वत क्षेत्र के आसपास प्रभाव था।
- यह उनके श्रीपर्वतीय (श्रीपर्वत क्षेत्र के स्वामी) शीर्षक को बहुत उपयुक्त प्रमाणित करता है।
- मध्यकाल में श्रीशैलम क्षेत्र या श्रीपर्वत क्षेत्र को कन्नाडु (Kannadu) और कन्नविषय (Kannavisaya) के नाम से जाना जाता था। यह सातकर्णिनाडु (Satakarninadu) और सातकर्णिविषय (Satkarnivisaya) का ही छोटा रूप प्रतीत होता है।
- सातकर्णिनाडु और सातकर्णिविषय पुलुमावि के म्याकडोनी (Myakadoni) शिलालेख के सातवाहनिहार (Satavahanihar) या हिरहदगल्ली (Hirahadagalli) अनुदान के सातवाहनिरत्ता (Satavahaniratta) के समान प्रतीत होते हैं।
- चुटु लोगों ने अपने नाम और क्षेत्रों के साथ सातकन्नी (Satakanni) उपाधि का उपयोग करना जारी रखा, लेकिन बाद में सातकन्नी के “सात” वाला भाग हटा दिया और केवल कन्नी उपाधि का प्रयोग किया। यहाँ सातकन्नी (Satakanni), सातकर्णि का ही रूप प्रतीक होता है।
फिरभी चुटु वंश के उद्भव की गुत्थी अभी तक अनसुलझी बनी हुई है।
राजनीतिक इतिहास
चुटु राजवंश ने वर्तमान कर्नाटक के बनवासी नगर (उत्तर कन्नड़, कर्नाटक) के आसपास केंद्रित एक राज्य पर लगभग दो शताब्दियों (लगभग १२५ ई० से ३४५ ई०) तक शासन किया।
चुटु राजवंश सम्भवतया प्रारम्भ में सातवाहनों के अधीन एक सामन्त थे। चुटु राजवंश सम्भवतया उन कई वंशों में से एक थे जिन्हें पुराणों में सामूहिक रूप से “आंध्र-भृत्य” (आंध्रों का भृत्य) के रूप में वर्णित किया गया है। अर्थात् चुटु वंश सातवाहनों के सामन्त थे।
मुद्राशास्त्रीय साक्ष्य से कि चुटु वंश के साथ-साथ अन्य सातवाहन सामंतों के सम्बन्ध में ज्ञात होता है जो आसपास शासन करते थे, यथा —
- कोल्हापुर के कूरा (Kura)
- चंद्रवल्ली (चित्रदुर्ग, कर्नाटक) के सादकाना महारथी (Sadakana Maharathis)
इन तीन राज-परिवारों द्वारा जारी किये गये सिक्के समान हैं। इन सिक्कों में से अधिकांश को द्वितीय शताब्दी ई० का माना गया है।
चंद्रवल्ली और कोण्डापुर में खोजे गये सिक्कों पर “महारथी सादकाना चुटु कृष्ण” अंकित है। इन मुद्राशास्त्रीय साक्ष्यों से इतिहासकारों ने यह सुझाया है कि चुटुओं ने अन्य सामंती परिवारों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करके अपनी शक्ति को मजबूत किया। ऐसे वैवाहिक राजनय ने पूर्व में मगध साम्राज्य के उत्थान में योगदान दिया था और कालान्तर में भी गुप्त साम्राज्य के उदय में भूमिका निभाने वाला था। इसलिए ऐसे वैवाहिक सम्बन्धों से मना नहीं किया जा सकता है।
जैसा कि हम जानते हैं कि सातवाहन वंश का अंतिम शक्तिशाली शासक यज्ञश्री शातकर्णि (१७४-२०३ ई०) था। उसके बाद विजय, चन्द्रश्री और पुलोमा (पुलुमावि चतुर्थ) के नाम मिलते है। पुलोमा (२२५ या २२७ ई०) को सातवाहनों का अंतिम शासक माना जाता है।
यज्ञश्री शातकर्णि (१७४-२०३ ई०) के बाद सातवाहन वंश की प्रमुख शाखा का पश्चिमी प्रांतों पर नियंत्रण जाता रहा। ये पश्चिमी प्रान्त सातवाहन वंश के एक अन्य परिवार के नियंत्रण में आ गये जिसे चुटु-कुल कहा गया है। इस चुटु वंश का अंत सम्भवतया तृतीय शताब्दी के पहले या दूसरे भाग में हुआ, अर्थात् लगभग २५०-२७५ ई० के आसपास किसी समय।
चुटु वंश के दो राजाओं के सम्बन्ध में हमें शिलालेखों के माध्यम से जानकारी मिलती है —
- हारीतिपुत्र चुटु-कदानंद शातकर्णि (Hariti-putra Chutu-kadananda Satakarni)।
- हारीतिपुत्र शिव-स्कंद-वर्मन (Hariti-putra Siva-skanda-varman), यह हरितिपुत्र चुटु-कदानंद शातकर्णि का पौत्र था।
चुटु-कदानंद और शिव-स्कंद-वर्मन ने कदंब वंश से पूर्व बनवासी / वैजयंतीपुर (Banawasi / Vaijayantipura) पर शासन किया।
२२२ ई० में हम पश्चिमी क्षत्रप (शक) शासक पृथ्वीसेन (रुद्रसेन प्रथम का पुत्र) को शासन करता हुआ पाते हैं। पृथ्वीसेन ने हरितिपुत्र शिव-स्कंद-वर्मन के बाद शासन किया।
इक्ष्वाकु वंश के एक अभिलेख में उल्लेख है कि “वनवास का महाराजा” (सम्भवतया बनवासी का चुटु शासक) ने इक्ष्वाकु राजा वीर-पुरुष-दत्त की पुत्री से विवाह किया।
मिचिनर (Mitchiner) के अनुसार चुटु राजाओं के नामों में “सातकर्णि” का होना यह इंगित करता है कि चुटुओं के सातवाहन परिवार में वैवाहिक सम्बन्ध थे।
- विष्णुरुद्र शिवलानंद सातकर्णि (Vishnurudra Sivalananda Satakarni)
- हारितिपुत्र विष्णुकदा चुटुकुलानंद सातकर्णि (Haritiputra Vishnukada Chutukulananda Satakarni)
चुटु राजा शिवलानंद का उल्लेख २७८ ई० के नागार्जुनकोण्डा के आभीर शासक वसुषेण के एक शिलालेख में मिलता है।
विद्वान लेखक दिनेशचन्द्र सरकार निम्नलिखित अभिलेखों का विश्लेषण करते हैं —
- हारितिपुत्र विष्णुकदा चुटुकुलानंद शातकर्णि का कन्हेरी अभिलेख (Kanheri inscription of Haritputra Visnukada Cutukulananda Satakarni)
- हारितिपुत्र विष्णुकदा चुटु-कुलानंद शातकर्णि के १२वें वर्ष का बनवासी अभिलेख (Banavasi inscription of the twelfth year of Haritiputra Visnukada Cutu-kulananda Satakarni)
- मानव्य-स-गोत्र हारितिपुत्र विष्णुकदा चुटु-कुलानंद शातकर्णि के प्रथम वर्ष का मालवल्ली अभिलेख (The Malavalli inscription of the first regnal year of Manavya-sagotra Haritiputra Visnukadda Cutukulananda Satakarni)
उपर्युक्त अभिलेखों के गहन विश्लेषणोपरांत अधोलिखित चुटु राजवंश के शासकों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है* —
- वैजयंतीपुर-राजा मानव्य-स-गोत्र हारीतिपुत्र चुटुकुलानंद शातकर्णि (Vaijayantipura-raja Manavya-sagotra Haritiputra Vishnukada Cutu-kulananda Satakarni)
- वैजयंती-पति मानव्य-स-गोत्र हरीतिपुत्र शिवस्कंदवर्मन (Vaijayanti-pati Manavya-sagotra Haritiputra Shivaskandavarman)
— Successors of the Satavahanas, p. 222; Dineschandra Sircar.*
कुल मिलाकर चुटु राजवंश का राजनीतिक इतिहास इतना उलझा हुआ है कि स्पष्टता से कुछ भी कहना कठिन है।
निष्कर्ष रूप में बस इतना कहा जा सकता है कि तृतीय शताब्दी के प्रथमार्ध अथवा उत्तरार्ध में सातवाहन शक्ति के पतन के बाद उन्होंने (चुटु वंश) स्वतंत्रता प्राप्त कर ली। उनके शासन का प्रमाण कम से कम चार शिलालेखों से मिलता है जो २६० और ३४० ई० के बीच के हैं।
बनवासी अभिलेख
मुद्रा
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धार्मिक नीति
- चुटु वंशी शासक धर्म सहिष्णु थे।
- मुद्राशास्त्री मिचिनर सिक्कों के आधार पर उन्हें बौद्ध बताते हैं।
- हालाँकि उन्होंने हिंदू धर्म को भी संरक्षण प्रदान किया।
- दक्षिणी कर्नाटक के मालवल्ली नगर (मांड्य, कर्नाटक) से मिले एक शिलालेख के अनुसार राजा हारीतिपुत्र सातकर्णि (Haritiputra Satakarni) ने बेलगाम ग्राम को हिंदू पुजारियों के एक समूह को दान दिया था। बेलगाम मध्य कर्नाटक के शिमोगा जिले में स्थित था और वर्तमान में इसे बल्लिगावी के नाम से जाना जाता है। पुजारियों ने यहाँ ५ मठ, ३ पुर और ७ गुरुकुल बनाये। परिणामस्वरूप बेलगाम एक महत्त्वपूर्ण शिक्षा और ज्ञान केंद्र के रूप में विकसित हुआ। मूल अनुदान को हरितिपुत्र शिव-स्कंदवर्मन द्वारा पुनर्जीवित किया गया और पवित्र नगर को कालांतर में कदंब शासकों द्वारा विस्तारित किया गया।
उत्तराधिकारी
- मयूरशर्मन के नेतृत्व में कदंब वंश की स्थापना हुई जोकि चुटु राजवंश के उत्तराधिकारी थे।
- बादामी (वातापी) के चालुक्य स्वयं को हारिति-पुत्र और मानव्य गोत्र का बताया है। चालुक्यों ने इस वंशावली को कदंब वंश से अपनाया और कदंबों ने इसे चुटु वंश से।
- इतिहासकार शैलेन्द्र नाथ सेन के अनुसार बादामी के चालुक्य किसी न किसी रूप में चुटु और कदंब वंश से सम्बन्धित थे।
बड़वा का मौखरि वंश (Maukhari Dynasty of Barwa)
आंध्र इक्ष्वाकु या विजयपुरी के इक्ष्वाकु
बृहत्पलायन वंश या बृहत्फलायन वंश