गुप्त— मूल निवास-स्थान

भूमिका

उत्पत्ति के ही समान गुप्त— मूल निवास स्थान का प्रश्न भी बहुत कुछ अंशों में अनुमानपरक ही है। विद्वानों ने गुप्तों के मूल निवास स्थान के सम्बन्ध में जिन स्थलों के नामों पर विचार किया है, वह अधोलिखित हैं—

मूल निवास स्थानसमर्थक इतिहासकार
बंगालएलन, गांगुली तथा रमेश चन्द्र मजूमदार
मगधविंटरनित्ज, रायचौधरी
पूर्वी-उत्तर प्रदेश (प्रयाग)एस० आर० गोयल
पंजाबडॉ० जायसवाल

इस सम्बन्ध में कुछ प्रमुख मत इस प्रकार है—

बंगाल

एलन, गांगुली तथा रमेश चन्द्र मजूमदार जैसे विद्वान् गुप्तों का मूल निवास स्थान बंगाल में निर्धारित करते हैं। इस मत का मुख्य आधार चीनी यात्री इत्सिग का यात्रा विवरण है। यह लिखता है कि ‘उसके ५०० वर्षों पूर्व हुई-लुन (Hui-Lun) नामक एक चीनी यात्री नालन्दा आया था। यहाँ चिलिकितो (श्रीगुप्त) नामक राजा ने चीनी भिक्षुओं के लिये मन्दिर बनवाया था तथा उसके निर्वाह के लिये २४ गाँवों की आमदनी दान में दिया था। यह ‘चीन का मन्दिर’ कहा जाता था और ‘मि-लि-किया-सि-किया-पो-नो’ (Mi-li-Kia-Si-Kia-Po-No) (मृगशिखावन) नामक मठ के पास स्थित था जिसकी दूरी नालन्दा से ४० योजन पूर्व की ओर गंगा नदी के किनारे स्थित था।

इन विद्वानों ने श्रीगुप्त को गुप्तवंश का संस्थापक माना है। गांगुली का विचार है कि इत्सिंग के आधार पर यदि नालन्दा से पूर्व की ओर गंगा नदी के किनारे की ४० योजन (२४० मील) वाली दूरी नापी जाय तो यह स्थान आधुनिक पश्चिमी बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में पड़ेगा। यहीं गुप्तवंश के संस्थापक का मूल निवास था। मजूमदार के मतानुसार हमें इसे एक सम्भावित परिकल्पना (Provisional hypothesis) के रूप में मान लेना चाहिए।

  • History of Bengal, Vol. 1, p. 69-70; R. C. Majumdar

परन्तु इस मत के विरुद्ध दो बातें कही जा सकती है—

  1. गुप्तवंश के संस्थापक का नाम ‘महाराज गुप्त’ था जबकि चिलिकितो का भारतीय रूपान्तर श्रीगुप्त होता है।
  2. चिलिकितो (श्रीगुप्त) का समय इत्सिंग के अनुसार उसके ५०० वर्षों पूर्व था। इत्सिंग ६७१ ईसवी में भारत आया था। अतः उसने जिस शासक की चर्चा की है उसका समय १७१ ईसवी (६७१ – ५०० = १७१ ईसवी) हुआ। गुप्तवंश के संस्थापक का काल २७५ ईसवी के पूर्व नहीं हो सकता। अतः श्रीगुप्त तथा महाराज गुप्त दोनों भिन्न-भिन्न व्यक्ति प्रतीत होते हैं। इस प्रकार हम गुप्तों का आदि राज्य बंगाल में नहीं मान सकते।

इस प्रसंग में एक अन्य विचारणीय बात यह है कि चिलिकितो द्वारा चौबीस गाँवों की आय दान में दिया जाना यह सिद्ध करता है कि वह एक शक्तिशाली तथा समृद्ध शासक था। किन्तु यह स्थिति श्रीगुप्त की स्थिति से मेल नहीं खाती जो मात्र एक साधारण तथा सम्भवतः अधीनस्थ राजा था।

जे० एस० नेगी के अनुसार यह गुप्तवंश का कोई महान् सम्राट था। ऐसा लगता है कि चीनी यात्री ने राजा का व्यक्तिगत नाम नहीं दिया है, अपितु मात्र उसके वंश का उल्लेख किया है जिसका अर्थ है— ‘गुप्तवंश का प्रसिद्ध शासक।’ अतः गुप्तों के मूल स्थान के निर्धारण में इत्सिंग के विवरण को आधार नहीं बनाया जा सकता।

मगध

पुराणों पर दृष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि गुप्तों का आदि सम्बन्ध मगध से था। विन्टरनित्ज का विचार है कि विष्णुपुराण गुप्तकालीन रचना है, अतः इसे गुप्तों के इतिहास के सम्बन्ध में प्रामाणिक माना जा सकता है। विष्णु पुराण की कुछ पांडुलिपियों में “अनुगंगा प्रयागं मागधाः गुप्ताश्च भोक्ष्यन्ति” अर्थात् “प्रयाग तथा गङ्गा के किनारे के प्रदेश पर मगध के गुप्त लोग शासन करेंगे” उल्लिखित मिलता है। ढाका से प्राप्त इस पुराण की तीन पाण्डुलिपियों में “अनुगङ्ग प्रयागं च मागधाः गुप्ताश्च मागधान् भोक्ष्यन्ति” उल्लेख है। दोनों पाठों का अन्तर इस प्रकार है—

  1. प्रथम पाठ में ‘अनुगङ्गा’ तथा द्वितीय पाठ में ‘अनुगङ्ग’ मिलता है।
  2. द्वितीय पाठ में गुप्ताश्च तथा भोक्ष्यन्ति के बीच में ‘मागधान्’ शब्द निरर्थक जुड़ा हुआ है क्योंकि गुप्ताश्च का विशेषण मागधाः है। अतः प्रथम पाठ अधिक शुद्ध लगता है।

उपर्युक्त दोनों ही पाठों में ‘मागधाः’ शब्द ‘गुप्ताश्च’ के विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुआ है। इससे स्पष्ट है कि या तो मगध गुप्तों का मूल निवास था या यह उनके राज्य में सम्मिलित था।

वायुपुराण में किसी गुप्तशासक की साम्राज्य सीमा का वर्णन करते हुए बताया गया है कि “गंङ्गा नदी के किनारे प्रयाग तथा साकेत और मगध के प्रदेशों का गुप्तवंश के लोग उपभोग करेंगे”।

“अनुगंगा (अनुगंगं) प्रयागञ्च साकेतम् मगधानतथा।

एतान् जनपदान् सर्वान् भोक्ष्यन्ते गुप्तवंशजाः॥”

— The Purana Text of The Dynasties of the Kali Age, p. 53; F. E. Pargiter

रायचौधरी का विचार है कि प्रयाग तथा कोशल (साकेत) के प्रदेश गुप्तवंश के तीसरे शासक महाराजाधिराज चन्द्रगुप्त प्रथम द्वारा जीतकर गुप्त राज्य में मिलाये गये थे।

  • Political History of Ancient India, p. 531-532; H. C. Raychaudhury

उत्तरी बिहार को चन्द्रगुप्त ने लिच्छवियों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करके प्राप्त किया था। इस प्रकार ऐसा निष्कर्ष निकलता है कि गुप्तों का आदि राज्य मगध में ही था। मगध के साथ उनके मूल सम्बन्ध को ध्यान में रखकर ही पुराण उन्हें ‘मागध गुप्त’ कहते हैं।

पूर्वी उत्तर-प्रदेश (प्रयाग)

एस० आर० गोयल ने गुप्तों की मूल भूमि का प्रश्न पुरातात्त्विक आधार पर हल करने का प्रयास किया है। उनके अनुसार किसी भी वंश के प्रारम्भिक लेख तथा सिक्के प्रायः उसी स्थान से प्राप्त होते हैं जो उसका आदि निवास होता है। बख्त्री-यवन शासकों के सिक्के बैक्ट्रिया से मिलते हैं। कनिष्क के अधिकांश लेख उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र में तथा वाकाटकों के लेख भी उनके आदि स्थान से ही मिले हैं। चूँकि गुप्तवंश के प्रारम्भिक लेख तथा सिक्के पूर्वी उत्तर-प्रदेश से प्राप्त हुए है, अतः उनका मूल निवास स्थान इसी क्षेत्र में कहीं रहा होगा।

इस प्रसंग में उल्लेखनीय है कि गुप्तों के प्राचीनतम स्वर्ण सिक्के ‘चन्द्रगुप्त कुमारदेवी प्रकार’ (राजा-रानी प्रकार) हैं। इनमें से अधिकांश पूर्वी उत्तर प्रदेश से ही मिले हैं। प्रारम्भिक गुप्त लेखों में आठ इसी क्षेत्र से मिलते हैं। गुप्तों का सबसे महत्त्वपूर्ण लेख प्रयाग से मिला है जो समुद्रगुप्त की सैनिक उपलब्धियों का विवरण देता है। इस प्रकार का लेख शासक की स्थान के प्रति अभिरुचि का सूचक है। इस कोटि का दूसरा लेख यशोधर्मन् का मन्दसौर लेख है जो उसी स्थान से मिलता है जो उसकी शक्ति का केन्द्र था। पूर्वी उत्तर प्रदेश से गुप्तों के जो लेख मिले हैं वे न केवल संख्या में अधिक है, अपितु वे अन्य स्थानों के लेखों से प्राचीनतर भी है। इससे गुप्तों का आदि सम्बन्ध इस भाग से, बंगाल अथवा मगध की अपेक्षा कहीं अधिक अच्छे ढंग से सिद्ध किया जा सकता है। प्रयाग प्रशस्ति के आधार पर यह कहा जा सकता है कि गुप्तों का मूल निवास स्थान इसी भाग में रहा होगा।

  • A History of The Imperial Guptas, p. 45-50, S. R. Goyal

किन्तु इस मत के विरुद्ध यह कहा जा सकता है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश से गुप्तों के लेख सबसे पहले चन्द्रगुप्त द्वितीय तथा कुमारगुप्त प्रथम के समय से ही मिलते हैं। प्रारम्भिक काल का कोई लेख इस भाग से प्राप्त नहीं होता। समुद्रगुप्त, रामगुप्त तथा चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय के अधिकांश लेख पूर्वी मालवा क्षेत्र से मिले हैं। जहाँ तक प्रयाग प्रशस्ति का प्रश्न है यह एक अशोक स्तम्भ है जो मूलतः कौशाम्बी में गड़वाया गया था और कालान्तर में इसी के ऊपर समुद्रगुप्त ने अपना लेख अंकित करवा दिया। अतः इसके आधार पर गुप्तों के मूल स्थान की समस्या हल नहीं की जा सकती।

इस प्रकार उत्पत्ति के ही समान गुप्तों के मूल निवास स्थान का प्रश्न भी स्पष्ट प्रमाणों के अभाव में विवाद का विषय बना हुआ है।

FAQ

गुप्तों के मूल निवास स्थान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
Write a brief note on the original place of residence of the Guptas.

गुप्तों के मूल निवास इतिहासकारों में विवाद बना हुआ है। विद्वानों ने इनके मूल निवास स्थानों के चार क्षेत्रों की पहचान करके अपने-अपने ढंग से प्रमाणित करने का प्रयास किया है—

  • मगध — विंटरनित्ज, रायचौधरी
  • बंगाल — एलन, गांगुली तथा रमेश चन्द्र मजूमदार
  • पंजाब — डॉ. जायसवाल
  • पूर्वी उत्तर प्रदेश (प्रयाग) — एस० आर० गोयल

मगध और बंगाल

  • चीनी यात्री इत्सिंग ने महाराज श्रीगुप्त द्वारा मृगशिखावन में मंदिर निर्माण और २४ गाँव के दान का उल्लेख किया।
  • श्रीगुप्त की बोधगया में हुई चीनी यात्रियों से भेंट के आधार पर, कुछ विद्वान मानते हैं कि उनका निवास मगध था।
  • इस मंदिर की स्थान-परिचय सुनिश्चित नहीं है; इसे नालंदा, सारनाथ, या बंगाल के अन्य स्थानों में माना गया है।

पूर्वी उत्तर प्रदेश (प्रयाग)

  • साहित्यिक और पुरातात्त्विक साक्ष्यों से पता चलता है कि गुप्तों का निवास पूर्वी उत्तर प्रदेश में था।
  • वायुपुराण और विष्णुपुराण में गुप्त शासकों का निवास स्थान प्रयाग, साकेत (अवध), और मगध बताया गया है।
  • आरंभिक गुप्तों के सिक्के और अभिलेख अधिकांशतः उत्तर प्रदेश से प्राप्त हुए हैं।
  • चंद्रगुप्त प्रथम के अधिकांश सिक्के अयोध्या, लखनऊ, गाजीपुर, बनारस आदि से मिले हैं।
  • गुप्त शासकों के अभिलेखों में से १५ में से ८ पूर्वी उत्तर प्रदेश में मिले हैं।
  • समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति का साक्ष्य भी इसी ओर इंगित करती है।

इन आधारों पर गुप्तों का आदि निवास पूर्वी उत्तर प्रदेश माना जा सकता है

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