कुषाण-सिक्के (Kushan-Coins)

भूमिका

यद्यपि पश्चिमोत्तर भारत में स्वर्ण सिक्कों का प्रचलन यवन राजाओं ने करवाया तथापि इन्हें नियमित एवं पूर्णरूपेण प्रचलित करने का श्रेय कुषाण शासकों को दिया जा सकता है। कुषाण-सत्ता में रोम तथा अन्य पाश्चात्य देशों के साथ भारत के व्यापारिक सम्पर्क बढ़ जाने से निश्चित माप के सिक्कों की आवश्यकता प्रतीत हुई। अतः कुषाण राजाओं ने विभिन्न आकार-प्रकार के स्वर्ण, ताम्र एवं रजत सिक्कों का प्रचलन करवाया। भारतीय मुद्रा इतिहास में कुषाण-सिक्के अपना विशेष स्थान रखते हैं अतः भारतीय आर्थिक इतिहास के अध्ययन के लिए इसका अध्ययन आवश्यक है।

स्मरणीय तथ्य

  • कुषाणों ने रोमन शासकों के नमूनों पर अपने स्वर्ण सिक्के चलाये।
  • कुषाणों द्वारा ढलवाये गये स्वर्ण सिक्कों का भार सामान्यतः १२४ ग्रेन है।
  • प्राचीन भारतीय इतिहास में कुषाणों ने सबसे शुद्ध सोने के सिक्के चलवाये।
  • कुषाण शासकों के शासनकाल में सर्वाधिक ताँबे के सिक्के ढलवाये गये।
  • विम कडफिसेस के सिक्कों पर सर्वप्रथम भगवान शिव की आकृति मिलती है।
  • कनिष्क के सिक्कों पर सबसे पहले महात्मा बुद्ध की आकृति मिलती है।
  • हुविष्क के सिक्कों पर सर्वाधिक देवी-देवताओं की आकृतियाँ प्राप्त होती हैं; जैसे— महात्मा बुद्ध, भगवान विष्णु, संकर्षण, भगवान शिव, कार्तिकेय, विशाख, उमा इत्यादि के साथ-साथ यूनानी देवताओं की आकृतियाँ।

कुजुल कडफिसेस के सिक्के

कुषाणवंश के संस्थापक सम्राट कुजुल कडफिसेस के केवल ताँबे के सिक्के ही प्राप्त होते हैं। मार्शल को तक्षशिला के उत्खनन से उसके बहुसंख्यक सिक्के प्राप्त होते हैं। ये दो प्रकार के हैं:—

  • पहले प्रकार के सिक्कों पर काबुल के यवन नरेश हर्मियस (यूक्रेटाइडीज वंश) तथा कुजुल दोनों का उल्लेख मिलता है। इसका विवरण इस प्रकार है —
    • मुख भाग (Obverse) — बेसिलियस बेसिलिन (Basileus Basileon) हरमेआय।
    • पृष्ठ भाग (Reverse) — खरोष्ठी में कुजुल कसस कुषाण युवगस।

कुजुल तथा हर्मियस के साथ-साथ उल्लेख से ऐसा निष्कर्ष निकाला गया है कि कुजुल पहले हर्मियस की अधीनता स्वीकार करता था। परन्तु बाद में उसने अपनी स्वाधीनता घोषित कर दिया।

  • कुजुल ने स्वतन्त्र शासक बनने के बाद जो सिक्के प्रचलित करवाये उनका विवरण निम्नलिखित है —
    • मुख भाग (Obverse) — यूनानी भाषा में उपाधि सहित नाम ‘कोसानो’ ‘कोजोलौ कैडफिजाय’ अंकित है।
    • पृष्ठ भाग (Reverse) — खरोष्ठी लिपि में ‘कुजुल कसस कुषण यवुगसध्रमिथिदस’ उत्कीर्ण मिलता है।

‘ध्रमथिदस’ अर्थात् ‘धर्म में स्थित’ से विद्वानों ने ऐसा निष्कर्ष निकाला है कि कुजुल कडफिसेस ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था।

कुजुल कडफिसेस के ताम्र सिक्कों का वजन ३० ग्रेन (=१.९५ ग्राम ≈ २ ग्राम) के लगभग है।

विम कडफिसेस के सिक्के

सर्वप्रथम स्वर्ण सिक्कों का प्रचलन इसी शासक ने करवाया था। यद्यपि उसके ताम्र तथा रजत सिक्के भी मिले हैं तथापि स्वर्ण सिक्कों की संख्या अधिक है।

  • स्वर्ण सिक्कों का विवरण इस प्रकार है —
    • मुख भाग (Obverse) — टोप धारण किये हुए राजा की आकृति है। वह अपने दायें हाथ में वज्र ग्रहण किये है तथा उसके कन्धे से अग्नि की लपटें निकल रही हैं। यूनानी भाषा में मुद्रालेख ‘सिलियस बेसिलियन ओमो कडफिसेस’ अंकित है।
    • पृष्ठ भाग (Reverse) — त्रिशूलधारी शिव की आकृति है जो नन्दी के सामने है। साथ में खरोष्ठी मुद्रालेख ‘महरजस रजदिरजस सर्वलोग इश्वरस महिश्वरस विम कडफिशस त्रतरस’ (महाराज राजाधिराज सर्वलोकेश्वर विम कडफिसेस त्राता) अंकित मिलता है।

उपर्युक्त स्वर्ण मुद्रायें १२४ ग्रेन (≈८ ग्राम) वजन की है। विम कडफिसेस का २० ग्रेन ( ≈१.३ ग्राम)  वजन का एक स्वर्ण सिक्का मिला है। इसके मुख भाग पर चौखट में राजा का सिर है तथा यूनानी लेख उत्कीर्ण है। पृष्ठ भाग पर ‘महाराज राजाधिराज विम कडफिसेस’ मुद्रालेख अंकित है। त्रिशूल की आकृति भी बनी हुई है।

  • ताम्र सिक्के : विम कडफिसेस के जो ताम्र सिक्के मिलते हैं उनका वजन २६५-७० ग्रेन (≈ १७.२ – १७.५२ ग्राम) है। इन ताम्र मुद्राओं का विवरण इस प्रकार है —
    • मुख भाग (Obverse) — राजा की खड़ी मूर्ति बनी है। वह वेदी पर आहुति दे रहा है। उसकी बायीं ओर त्रिशूल की आकृति तथा मुद्रा लेख ‘बेसिलियस बेसिलियन सोटर मेगास वोमो कैडफिसेस’ उत्कीर्ण है।
    • पृष्ठ भाग (Reverse) — शिव की आकृति है। वह दायें हाथ में त्रिशूल धारण किये है तथा बायाँ हाथ नन्दी के ऊपर टिका हुआ है। खरोष्ठी में मुद्रालेख स्वर्ण मुद्रालेख जैसा ही है।

विम कडफिसेस का अब तक केवल एक “रजत” सिक्का प्राप्त हुआ है और यह सिक्का सम्प्रति ब्रिटिश संग्रहालय में सुरक्षित है। इस पर राजा की खड़ी मूर्ति है। इसका विवरण विल्सन ने दिया है। वह पट्टीयुक्त टोप, कुरता, कोट, पायजामा धारण किये हुए है। सामने वेदी तथा त्रिशूल है। उसके दायें हाथ के पीछे गदा है तथा बायें हाथ में कोई बर्तन लिये हुए है। मार्शल को कुछ ऐसे रजत सिक्के मिले है जिनके प्रचलन का श्रेय विम को ही दिया जाता है।

विश्लेषण : विम के सिक्कों पर उत्कीर्ण चिह्न पूर्णतया भारतीय है। शिव, नन्दी, त्रिशूल की आकृतियों तथा ‘महेश्वर’ की उपाधि से उसका नैष्ठिक शैव होना सूचित होता है।

कनिष्क के सिक्के

कनिष्क के बहुसंख्यक स्वर्ण एवं ताम्र सिक्के पश्चिमोत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल तथा उड़ीसा के विभिन्न स्थलों से प्राप्त किये गये हैं।

  • स्वर्ण सिक्के: स्वर्ण सिक्के तौल में रोमन सिक्कों (≈ १२४ ग्रेन) के बराबर हैं। स्वर्ण सिक्कों का विवरण इस प्रकार है—
    • मुख भाग (Obverse) — खड़ी मुद्रा में राजा की आकृति है। वह लम्बी कोट, पायजामा, नुकीली टोपी पहने हुये है। उसके बायें हाथ में माला है तथा दायें हाथ से वह हवन-कुण्ड में आहुति दे रहा है। ईरानी उपाधि के साथ यूनानी लिपि में ‘शाओ नानो शाओ कनिष्की कोशानो’ मुद्रालेख उत्कीर्ण है।
    • पृष्ठ भाग (Reverse) — विभिन्न देवी-देवताओं की आकृतियाँ उत्कीर्ण मिलती हैं। ये यूनानी, भारतीय तथा ईरानी देव समूह से लिये गये हैं। प्रत्येक सिक्के पर एक ही देवता तथा नीचे उसका नाम उत्कीर्ण है। नाम यूनानी भाषा में है; यथा — मिइरो (सूर्य), मओ (चन्द्र), आरलेग्नो, नाना, आरदोक्षो (देवी) इत्यादि।
        • कुछ सिक्कों के पृष्ठ भाग पर चतुर्भुजी शिव की आकृति तथा यूनानी भाषा में ‘आइसो’ (शिव) अंकित है। हाथ में त्रिशूल, बकरा, डमरू तथा अंकुश है। किसी-किसी सिक्के पर प्रभामण्डलयुक्त खड़ी मुद्रा में बुद्ध प्रतिमा तथा उसके नीचे यूनानी लिपि में “वोडो” (बुद्ध) खुदा हुआ है।
  • ताम्र सिक्के— ये गोलाकार हैं। इनका विवरण इस प्रकार है—
    • मुख भाग (Obverse) — कनिष्क की आकृति तथा मुद्रालेख ‘बेसिलियस बेसेलियन’ अंकित है। यह यूनानी उपाधि है जिससे तात्पर्य ‘राजाओं का राजा’ से है।
    • पृष्ठ भाग (Reverse) — यूनानी, ईरानी अथवा भारतीय देवी-देवता की आकृति तथा यूनानी भाषा में उसका नाम उत्कीर्ण है।

कुछ ऐसे ताम्र मिले हैं जिनके ऊपर बैठी हुई मुद्रा में राजा की आकृति बनी हुई है। इन पर राजा का नाम नष्ट हो गया है। इनमें से चार सिक्कों का वजन ६८ ग्रेन है। ह्वाइटहेड ने आकार तथा शैली के आधार पर इन्हें कनिष्क का बताया है। गार्डनर (Gardner) ने कनिष्क के कुछ कांस्य सिक्कों का उल्लेख किया है। इनके मुख भाग पर राजा की खड़ी आकृति तथा यूनानी उपाधि अंकित है। पृष्ठ भाग पर यूनानी देवी-देवताओं की आकृतियाँ हैं।

विश्लेषण: कनिष्क के सिक्कों का प्रसार जहाँ एक ओर उसके साम्राज्य विस्तार को सूचित करता है वहीं दूसरी ओर उन पर उत्कीर्ण विविध देवी-देवताओं की आकृतियों से उसकी धार्मिक सहिष्णुता सूचित होती है। लगता है कि कनिष्क के विशाल साम्राज्य में विभिन्न जातियाँ निवास करती थीं। यही कारण था कि उसने सभी वर्ग के देवी-देवताओं की आकृतियों को ग्रहण कर उनकी धार्मिक भावनाओं का सम्मान किया था। इस प्रकार कनिष्क ने सभी वर्गों के लोगों की सहानुभूति तथा समर्थन प्राप्त कर लिया होगा।

हुविष्क के सिक्के

हुविष्क ने भी बहुत से स्वर्ण एवं ताम्र सिक्कों का प्रचलन करवाया था।

  • स्वर्ण सिक्कों की विशेषतायें निम्न प्रकार से है —
    • मुख भाग (Obverse)— राजा के आधे शरीर की आकृति बनी हुई है। वह गोलाकार टोप, अलंकृत कोट पहने हुए है। उसके दायें हाथ में दण्ड तथा बायें हाथ में अंकुश है। मुद्रालेख ‘शाओ नानो शाओ ओइशकी कोशानो’ अंकित है।
    • पृष्ठ भाग (Reverse)— विभिन्न देवी-देवताओं की आकृतियों तथा यूनानी लिपि में उनके नाम मिलते हैं।
  • ताम्र सिक्के— ये गोल आकार के हैं। इनका विवरण इस प्रकार है—
    • मुख भाग (Obverse) — प्रभामण्डल से युक्त राजा अंकुश, भाला के साथ हाथी पर सवार है। कुछ सिक्कों पर पलंग पर झुके हुए अथवा गद्दे पर वज्रासन में बैठे हुए राजा की आकृति है। उसके बायें हाथ में दण्ड है और वह अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाए हुए है।
    • पृष्ठ भाग (Reverse) — विभिन्न देवी-देवताओं की आकृतियाँ तथा यूनानी भाषा में उनके नाम उत्कीर्ण किये हुए हैं।

विश्लेषण— उल्लेखनीय है कि कनिष्क के सिक्कों पर उत्कीर्ण देवी-देवताओं की तुलना में हुविष्क के सिक्कों पर उत्कीर्ण देवी-देवताओं की संख्या अधिक है। भारतीय देवताओं में बुद्ध तथा शिव के अतिरिक्त विष्णु, महासेन, कुमार, विशाख, उमा आदि का भी अंकन मिलता है। उमा के हाथ में कमल अथवा समृद्धि शृंग (कार्नोकोपिया) दिखाया गया है। हुविष्क के स्वर्ण सिक्कों की भार कनिष्क के स्वर्ण सिक्कों के बराबर है। हुविष्क के कुछ रजत सिक्के भी प्राप्त हुए हैं। इनके ऊपर ईरानी वेष-भूषा में राजा की आकृति बनी हुई है।

वासुदेव के सिक्के

वासुदेव के स्वर्ण तथा ताम्र सिक्के प्राप्त हुए हैं। सभी गोलाकार है तथा तौल में रोमन सिक्कों के बराबर है। सिक्कों पर शिव तथा उनके प्रतीकों का अंकन प्रमुखता से किया गया है। जिसका विवरण निम्न प्रकार है —

  • मुख भाग (Obverse) — प्रभामण्डल युक्त राजा की खड़ी आकृति है। वह लम्बी टोप तथा पायजामा पहने हुये है। उसके बायें हाथ में त्रिशूल है तथा दायें हाथ से अग्निकुण्ड में आहुति दे रहा है। मुद्रालेख : ‘शाओ नानो शाओ बोजेड़ो वासुदेव कोशानो’ अंकित है।
  • पृष्ठ भाग (Reverse) — त्रिशूल तथा पाश लिये हुये दोभुजी शिव की आकृति है। शिव के पीछे नन्दी तथा यूनानी भाषा ‘ओएशो’ (शिव) उत्कीर्ण है।

कुछ ताम्र सिक्कों के पृष्ठ भाग पर सामने की ओर देवी (उमा) सिंहासन पर बैठी हुई है। उसके दायें हाथ में फीता (Fillet) तथा बायें हाथ में समृद्धिशृंग (Cornucopia) है।

कुछ ताम्र सिक्कों के मुख भाग पर ब्राह्मी लिपि में ‘वासु’ उत्कीर्ण है तथा पृष्ठ भाग पर वासुदेव का मोनोग्राम मिलता है। अल्तेकर ने वासुदेव के एक नये प्रकार के सिक्के का उल्लेख किया है जिसके पृष्ठ भाग पर शिव का हाथी के साथ चित्रण किया गया है। यह गजासुर का वध करते हुए शिव का चित्रण प्रतीत होता है।

इस प्रकार सभी कुषाण राजाओं के सिक्कों के अग्रभाग पर ईरानी वेष-भूषा में शासक की आकृति तथा उपाधि के साथ उसका नाम मिलता है। मुद्रालेख सदा यूनानी भाषा में है। पृष्ठ भाग पर विभिन्न देवी-देवताओं का अंकन हुआ है।

परवर्ती कुषाण राजाओं के सिक्के

परवर्ती कुषाण राजाओं के दो प्रकार के सिक्के मिलते हैं —

  • एक; शिव तथा नन्दी प्रकार।
    • मुख भाग (Obverse)— सिक्कों के मुख भाग पर कवच तथा ऊँची टोपी धारण किये हुए राजा की आकृति है। वह दायें हाथ से आहुति दे रहा है तथा उसके बायें हाथ में लम्बा त्रिशूल है। मुद्रालेख यूनानी तथा ब्राह्मी दोनों में है।
    • पृष्ठ भाग (Reverse)— पृष्ठ भाग पर शिव, नन्दी तथा देवी की आकृतियाँ मिलती हैं। कुछ सिक्कों के पृष्ठ भाग पर सिंहवाहिनी देवी का चित्रण है। वह पाश दंड धारण किये हुये है।
  • दो; सिंहासनासीन देवी प्रकार।
    • परवर्ती कुषाणों के द्वितीय प्रकार के सिक्के, जिनमें अग्रभाग पर खड़ी मुद्रा में राजा की आकृति तथा पृष्ठ भाग पर सिंहासनासीन देवी की आकृति दिखायी गयी है, इसका अनुकरण गुप्त राजाओं ने किया था। समुद्रगुप्त अपने ध्वजारोही प्रकार के सिक्कों पर कुषाण शासकों की वेषभूषा में दिखाया गया है। कुषाण सिक्कों की देवी को गुप्तकाल में लक्ष्मी के रूप में ग्रहण कर लिया गया।

निष्कर्ष

इस प्रकार कुषाण राजाओं ने भारत में मुद्रा निर्माण के क्षेत्र में एक नये युग का सूत्रपात किया। स्वर्ण मुद्राओं के नियमित प्रचलन के तो वे जनक थे। कुषाण मुद्राओं ने परवर्ती युगों के लिये प्रतिमान का काम किया था। प्राचीन भारत में सबसे शुद्ध सोने के सिक्के और सर्वाधिक ताम्र मुद्राओं का प्रचलन कुषाणों के समय ही हुआ। इससे ज्ञात होता है कि मुद्रा सामान्य जनजीवन का अंग बन गयी थी।

कौशाम्बी कला शैली

सारनाथ कला शैली; कुषाण काल

मथुरा कला शैली

कुषाणकालीन कला एवं स्थापत्य

गान्धार कला शैली

कनिष्क विद्वानों का संरक्षक और उसके समय साहित्यिक प्रगति

बौद्ध धर्म और कनिष्क

कुषाणकालीन आर्थिक समृद्धि या कुषाणकाल में व्यापार-वाणिज्य की प्रगति

कुषाणों का योगदान (Contribution of the Kushanas)

कुषाण-शासनतंत्र (The Kushan Polity)

कुषाण राजवंश (The Kushan Dynasty) या कुषाण साम्राज्य (The Kushan Empire)

विदेशी आक्रमण का प्रभाव या मध्य एशिया से सम्पर्क का प्रभाव (२०० ई०पू० – ३०० ई०)

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