कुषाणकालीन कला एवं स्थापत्य

भूमिका

कुषाणकालीन कला एवं स्थापत्य ने अपनी उपलब्धियों से चमत्कृत कर दिया। अपने पूर्ववर्ती समय की ही तरह कला और स्थापत्य का आधार मुख्य रूप से बौद्ध धर्म ही रहा।बौद्ध कला का विकास कुषाण राजाओं के संरक्षण में भी अनवरत होता रहा। प्रसिद्ध कुषाण शासक कनिष्क एक महान् निर्माता था। उसके शासन काल में अनेक स्तूपों तथा विहारों का निर्माण हुआ। साथ ही दो प्रमुख कला शैलियों का विकास भी कुषाणों के संरक्षकों हुआ;

  • स्तूप
    • पुरुषपुर का स्तूप
    • तक्षशिला का धर्मराजिका स्तूप
    • मनिक्याला का स्तूप
  • नगरों की स्थापना
    • कनिष्कपुर
    • सिरकप
  • कला शैली
    • गन्धार कला शैली
    • मथुरा कला शैली

स्तूप

पुरुषपुर का स्तूप

कनिष्क ने अपनी राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) में ४०० फीट ऊँचा विशाल स्तूप उसने बनवाया था जिसकी वेदिका १५० फीट ऊँची थी। फाह्यान तथा ह्वेनसांग दोनों ने इसका विवरण दिया है। फाह्यान के अनुसार उसने जितने भी स्तूप देखे थे, उनमें यह सर्वाधिक प्रभावशाली था। ह्वेनसांग के विवरण से ज्ञात होता है कि यह स्तूप पाँच भूमियों में बना था तथा इसके शिखर में २५ सुनहले मण्डप बनाये गये थे। पूर्वी मुख के सोपान के दक्षिण में महाचैत्य की दो छोटी प्रतिकृतियाँ तथा भगवान् बुद्ध की दो विशाल मूर्तियाँ थीं। दक्षिण तथा दक्षिण-पश्चिम में दो और मूर्तियाँ बनी थीं। इसके निकट एक विशाल संघाराम (विहार) बना था जो ‘कनिष्क चैत्य’ कहा जाता था और सम्पूर्ण बौद्ध जगत् में प्रसिद्ध था।

इसका निर्माण यवन वास्तुकार अगिलस द्वारा किया गया था। यह अनेक शिखर, भूमि, स्तम्भ आदि से अलंकृत था। ह्वेनसांग के भारत आने के कुछ पूर्व ही यह स्तूप जलकर नष्ट हो गया था। पेशावर स्थित ‘शाहजी जी की ढेरी’ के उत्खनन में कनिष्क चैत्य के अवशेष प्राप्त होते हैं।

तक्षशिला का स्तूप

तक्षशिला का सबसे महत्त्वपूर्ण ‘धर्मराजिका स्तूप’ था। मूलतः इस स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक के समय में हुआ परन्तु कनिष्क के समय में इसका आकार में वृद्धि किया गया। ऊँचे चबूतरे पर निर्मित यह स्तूप गोलाकार है। चार दिशाओं में चार सीढ़ियाँ हैं। इसका निर्माण पाषाण से किया गया है। चौकी से स्तूप के ऊपरी भाग तक इसे विविध अलंकरणों से सजाया गया है। इसके अतिरिक्त बल्ख (बैक्ट्रिया) तथा खोतान तक अनेक स्तूप निर्मित करवाये गये थे।

मनिक्याल का स्तूप

मनिक्याल क्षेत्र में कई स्तूप बने थे। मनिक्याला, पाकिस्तान के रावलपिण्डी जनपद में स्थित हैं। यहाँ से प्राप्त एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि कनिष्क के १८वें वर्ष दण्डनायक लल द्वारा इन स्तूपों को बनवाया गया था। मनिक्याल स्तूप का चबूतरा गोल है जिस पर अर्ध गोलाकार गुम्बद १२७ फीट व्यास तथा ४०० फीट के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। स्तूप के उत्खनन में एक धातु मंजूषा मिली है जिसमें कई सिक्के तथा मोतियाँ एक स्वर्णपात्र में रखे गये थे।

उल्लेखनीय है कि गन्धार क्षेत्र से स्तूपों का वास्तु विन्यास मध्य भारतीय स्तूप जैसा नहीं था। गन्धार स्तूप काफी ऊँचे होते थे। उनके चौकोर अधिष्ठान का कई भूमियों में निर्माण होता था जिन पर चढ़ने के लिये एक या अधिक सीढ़ियाँ बनायी जाती थीं। वेदिका तथा तोरण का प्रयोग बन्द हो गया। स्तूप पर ही विविध शिल्प उत्कीर्ण किये गये थे। ये जातक कथाओं की अपेक्षा बुद्धचरित्र से अधिक सम्बन्धित थे। सम्पूर्ण स्तूप एक बुर्ज जैसा दिखायी देता था। इन स्तूपों पर गन्धार शैली विशेष कर प्लास्टर प्रतिमा (stucco figures) स्पष्टतः दिखायी देती है।

नगरों की स्थापना

स्तूपों के अतिरिक्त कनिष्क के समय में नगरों की भी स्थापना की गयी जिनमें दो प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं;

  • पुरुषपुर; वर्तमान पाकिस्तान का पेशावर।
  • कनिष्कपुर; कश्मीर स्थित वर्तमान कान्सोपुर।
  • सिरकप, तक्षशिला नामक स्थान जो कि वर्तमान पाकिस्तान के रावलपिंडी में है।

कला शैलियाँ

कनिष्क के शासन-काल में कला के क्षेत्र में कुछ स्वतंत्र शैलियों का विकास हुआ —

एक; गन्धार शैली तथा

दो; मथुरा शैली

तीन; सारनाथ शैली

इन दोनों को कनिष्क की ओर से पर्याप्त प्रोत्साहन एवं संरक्षण प्रदान किया गया।

कुषाण राजवंश (The Kushan Dynasty) या कुषाण साम्राज्य (The Kushan Empire)

कुषाण-शासनतंत्र (The Kushan Polity)

कुषाणों का योगदान (Contribution of the Kushanas)

कुषाणकालीन आर्थिक समृद्धि या कुषाणकाल में व्यापार-वाणिज्य की प्रगति

बौद्ध धर्म और कनिष्क

कनिष्क विद्वानों का संरक्षक और उसके समय साहित्यिक प्रगति

गान्धार कला शैली

मथुरा कला शैली

सारनाथ कला शैली; कुषाण काल

कौशाम्बी कला शैली

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