कुणिंद गणराज्य

भूमिका

कुणिंद (Kuninda) एक प्राचीन गणराज्य था। कुणिंदों का उल्लेख मौर्योत्तर काल से लेकर गुप्त-पूर्व काल तक मिलता है। अर्थात् मोटोतौर पर इनका समय हम लगभग द्वितीय शताब्दी ई०पू० से तृतीय शताब्दी ई० के मध्य रख सकते हैं। इनका गणराज्य सतलुज और व्यास के मध्य स्थित था।

कुणिंदों के नाम के विभिन्न वर्तनी रूप या पाठांतर मिलते हैं, यथा –

  • कुणिंद (Kuninda) 1
  • कुलिंद (Kulinda)2
  • कुविंद (Kuvinda) 3
  • कुलुना (Kuluna) 4
  • कुलिंद्रिनी (Kulindrini) 5
  • काइलिंड्रिन (Kylindrine) 6

संक्षिप्त परिचय

  • शासनकाल – द्वितीय या प्रथम शताब्दी ई०पू० से तृतीय शताब्दी ई० तक
  • शासन – गणतंत्र
  • शासन क्षेत्र – सतलुज और व्यास के मध्य
  • उत्तराधिकारी – गुप्त साम्राज्य
  • प्रमुख शासक –
    • अमोघभूति, द्वितीय शताब्दी ई०पू०, पहला ज्ञात शासक
    • छत्रेश्वर (लगभग २०० ई०)

भौगोलिक स्थिति

प्रचीन साहित्यों के विवरण से ज्ञात होता है कि कुणिन्द गणराज्य आधुनिक उत्तराखंड राज्य और हिमाचल प्रदेश के दक्षिणी क्षेत्रों में स्थित था। इस सम्बन्ध में कुछ साहित्यिक उद्धरणों पर दृष्टिपात करना समीचीन होगा –

कुणिंद गणराज्य

क्लॉडियस टॉलेमी

टॉलेमी ने सतलुज, व्यास, यमुना और गंगा के उद्गम स्रोत उत्तुंग पहाड़ी क्षेत्र को काइलिंड्रिन (Kylindrine) कहा है। इस क्षेत्र के लोग कुलिंद कहलाते थे जिसका उल्लेख महाभारत में मिलता है। अर्थात् मैक्रिंडल महोदय यूनानी भूगोलवेत्ता टॉलेमी द्वारा उल्लिखित काइलिंड्रिन (Kylindrine) को महाभारत के कुलिंदों से जोड़ते हैं जहाँ गंगा, यमुना और सतलज नदियों का उद्गम होता है। (Ancient India as described by Ptolemy, p. 109,110; Mc Crindle)।

India As known to Panini के पृष्ठ संख्या ५४ पर Ancient India as described by Ptolemy को उद्धृत करते हुए उल्लेख मिलता है कि, “Kulinda (Gk. Kulindrini) was known to Ptolemy as an extensive country including the region of the lofty mountains wherein the Beas, the Sutlej, the Yamuna and the Ganga had their sources.

विजयेन्द्र कुमार माथुर कृत ऐतिहासिक स्थानावली की पृष्ठ संख्या २०९, २१० पर कुणिंद गणराज्य की स्थिति सतलुज और व्यास के मध्य बतायी गयी है। इस प्रसंग में वे वाल्मीकि कृत रामायण और महाभारत का श्लोक उद्धृत करते हैं।

रामायण और महाभारत

वाल्मीकि कृत रामायण के अनुसार शरदंड नदी को पार करके कुलिंग में प्रवेश करने का उल्लेख है। पुनः आगे कई पर्वतों व नदियों को पार करने के विवरण में व्यास नदी को पार करने का उल्लेख है। इस आधार पर विजयेन्द्र कुमार माथुर कुलिंग नगरी की स्थिति सतलुज और व्यास के बीच बताते हैं।

“ते प्रसन्नोदकां दिव्यां नानाविहगसेवितम्।

उपातिजग्मुर्वेगेन शरदण्डां जनाकुलाम्॥१५॥”

“निकूलवृक्षमासाद्य दिव्यं सत्योपयाचनम्।

अभिगम्याभिवाद्यं तं कुलिङ्गा प्राविशन्पुरीम्॥१६॥”

“विष्णोः पदं प्रेक्षमाणा विपाशां चापि शाल्मीलम्।

नदीर्वापीस्तटाकानि पल्वलानि सरांसि च॥१९॥”

— सर्ग-६८; अयोध्याकाण्ड

सम्भव है कि कुलिंग नगरी का सम्बन्ध महाभारत में उल्लिखित कुलिंदों से हो।

महाभारत के अधोलिखित श्लोकों में जरासंध के भय से कई राजवंशियों के भागकर अन्यत्र चले जाने का उल्लेख है, जिसमें कुलिंद लोग भी थे।

“उदीच्याश्च तथा भोजाः कुलान्यष्टादश प्रभो।

जरासंधभयादेव प्रतीचीं दिशमास्थिताः॥२५॥

शूरसेना भद्रकारा बोधाः शाल्वाः पटच्चराः।

सुस्थलाश्च सुकुट्टाश्च कुलिन्दाः कुन्तिभिः सह॥२६॥

शाल्वायनाश्च राजानः सोदर्यानुचरैः सह।

दक्षिणा ये च पञ्चालाः पूर्वाः कुन्तिषु कोशलाः॥२७॥

तथोत्तरां दिशं चापि परित्यज्य भयार्दिताः।

मत्स्याः संन्यस्तपादाश्च दक्षिणां दिशमाश्रिताः॥२८॥”

— अध्याय १४, सभापर्व, महाभारत

वी० एस० अग्रवाल लिखते हैं कि पाणिनि कृत अष्टाध्यायी में जनपद कालकूट (Kalakut) का उल्लेख है। (India as known to Panini, p. 54; V. S. Agrawala)

महाभारत में विवरण मिलता है कि अर्जुन ने अपनी दिग्विजय यात्रा में कुलिंदों के साथ-साथ कालकूट राज्य को भी जीत लिया था।

“पूर्व कुलिन्दविषये वशे चक्रे महीपतीन्।

धनंजयो महाबाहुर्नातितीव्रेण कर्मणा॥३॥

आनर्तान् कालकूटांश्च कुलिन्दांश्च विजित्य सः।

सुमण्डलं च विजितं कृतवान् सहसैनिकम्॥४॥”

— २६ अध्याय, सभापर्व, महाभरत

सभा पर्व में अर्जुन द्वारा जीते गये कालकूटों और कुलिंदों का उल्लेख है। पाणिनि का कुलुना (Kuluna), कुलिंद और कुणिन्द के समान प्रतीत होता है। कुलिंद (ग्रीक: कुलिंद्रिनी / काइलिंड्रिन) को टॉलेमी द्वारा एक विस्तृत देश के रूप में जाना जाता था जिसमें ऊँचे पहाड़ों का क्षेत्र शामिल था जहाँ ब्यास, सतलुज, यमुना और गंगा का स्रोत था। कालकूट इस क्षेत्र में कहीं स्थित था, जिसका नाम आधुनिक कालका में शिमला पहाड़ियों में संभावित रूप से मिलता है।

महाभारत के कर्णपर्व के ८५वें अध्याय में कुलिंद राज्य के योद्धाओं का विवरण मिलता है जिन्होंने पाण्डव पक्ष से महाभारत युद्ध में भाग लिया था। कुलिंदों का विवरण कर्णपर्व के ८५वें अध्याय श्लोक संख्या ४, ६, ७, ८, १३, १५ इत्यादि में आता है, जैसे –

“तव नृप रिथवर्यांस्तान् दशैकं च वीरान्

नृवर शरवराग्रैस्ताडयन्तोऽभ्यरून्धन्।

नवजलदसवर्णैर्हस्तिभिस्तानुदीयु-

र्गिरशिखरनिकाशैर्भीमवेगैः कुलिदाः॥४॥”

सुकल्पिता हैमवता मदोत्कटा

रणाभिकामैः कृतिभिः समास्थिताः।

सुवर्णजालैर्वितता बभुर्गजा-

स्तथा यथा खे जलदाः सविद्युतः॥५॥”

– ८५ अध्याय, कर्णपर्व; महाभारत।

“सुकल्पिता हैमवता मदोत्कटा” वाक्यांश कुलिंदों की हाथियों के प्रयुक्त हुआ है, जिसका अर्थ है – हिमाचल प्रदेश के मदोन्मत्त हाथी अच्छी तरह सजाये गये थे।

इस तरह कुलिंद राज्य की स्थिति हिमालय प्रदेश में या उसके सन्निकट रही होगी। इस तरह यह अधिक सम्भावना है कि वाल्मीकि रामायण की कुलिंद नगर का सम्बन्ध महाभारत के कुलिंदों से हो।

कुणिंद गणराज्य के कुछ सिक्के देहरादून से जगाधरी तक के क्षेत्र में यमुना के उत्तर-पश्चिम की ओर पाये गये है।

इस तरह महाभारत के कुलिंद, रामायण की कुलिंग नगरी और कुणिंद का अन्तर्सम्बन्ध है।

निष्कर्ष

कुणिंद भारत का एक प्राचीन गणराज्य था। इनके स्वतंत्र गणराज्य का उल्लेख हमें गुप्त-पूर्व काल में मिलता है। कुषाणों के पतन में यौधेय, अर्जुनायन के साथ कुणिंदों का भी योगदान था।

रामायण और महाभारत में इनका उल्लेख मिलता है-

रामायण में उल्लेख

  • रामवनगमन और राजा दशरथ की मृत्यु के बाद ऋषि वशिष्ठ द्वारा भरत व शत्रुघ्न को ननिहाल से वापस अयोध्या बुलाने के लिए संदेशवाहक भेजे गये थे। कैकेय राज्य जाते हुए संदेशवाहकों ने कई नदी, पर्वत और राज्यों को पार किया था। इस यात्रा विवरण में शरदण्ड नदी को पार करके कुलिंग राज्य से होकर जाने का विवरण मिलता है। — श्लोक- १५, १६, सर्ग-६८; अयोध्याकाण्ड

महाभारत में उल्लेख

  • जरासंध से डरकर भागने का उल्लेख
  • अर्जुन की दिग्विजय यात्रा में उल्लेख
  • राजसूय यज्ञ में युधिष्ठिर के प्रति निष्ठा व्यक्त करना
  • महाभारत युद्ध में कुणिंदों द्वारा पाण्डव पक्ष से भाग लेना

विष्णु पुराण

  • विष्णु पुराण में कुणिन्दों को पर्वत घाटी का निवासी (कुलिन्दोपत्यकाः) कहा गया है। इससे संकेत मिलता है कि कुणिन्दों का सम्बन्ध किसी पहाड़ी के समीपवर्ती प्रदेश से था।

टॉलेमी

  • टॉलेमी ने भी काइलिंड्रिन (Kylindrine) की चर्चा की है, जिसकी पहचान कुणिंदों से की गयी है।

इस तरह साहित्यिक सूत्रों के अनुसार कुणिंद गणराज्य सतलुज और व्यास के मध्य स्थित था। अर्थात् यह एक पर्वतीय गणराज्य था और मोटेतौर पर वर्तमान हिमाचल और उत्तराखंड के भू-भाग पर स्थित था।

राजनीतिक इतिहास

प्रथम कुणिंद शासक अमोघभूति था, जिसका नाम हमें ज्ञात है।

अमोघभूति ने यमुना और सतलज नदियों की घाटियों में शासन किया (वर्तमान का उत्तराखंड और दक्षिणी हिमाचल प्रदेश)।

इस पर एक दृष्टकोण यह भी हो सकता है कि सम्राट अशोक का कालसी (देहरादून) बृहद्-शिला-प्रज्ञापन इस क्षेत्र (कुणिंद) में उसकी नीतियों, सद्विचारों और बौद्ध धर्म के प्रसार करने के उद्देश्य के लिए स्थापित करवाया गया हो।

कुणिंद गणराज्य गुप्त साम्रज्य के उदय के पूर्व ही राजनीतिक रंगमंच से ओझल हो चुके थे। क्योंकि समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति में जहाँ यौधेय, अर्जुनायन और मालव सहित ९ गणराज्यों का विवरण मिलता है वहीं कुणिंदों का उल्लेख नहीं प्राप्त होता है।

समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति में कुणिंदों का विवरण न मिलने का एक सम्भावित कारण यह हो सकता है कि – द्वितीय-तृतीय शताब्दी में कुषाणों के विरुद्ध यौधेय, अर्जुनायन और कुणिंद गणराज्यों का संघ बना हुआ था। यौधेय और अर्जुनायन की अपेक्षा कुणिंद गणराज्य छोटा था। अतः यह सम्भावना है कि कुणिंद, यौधेय गणराज्य का अंग बन गया हो। इसीलिए कुणिंदों का उल्लेख समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति में नहीं मिलता है। इसकी पुष्टि इस तथ्य से भी होती है कि यौधेयों के सिक्कों पर यौधेयगणस्य जयः के बाद दुई (दो) और त्रि (तीन) अंकित मिलता है, जिसका अर्थ सम्भवतया यौधेय, अर्जुनायन और कुणिंद गणराज्यों के संघ से हो।

कुणिंद और यौधेय

  • सतलुज और व्यास की ऊपरी धारा के बीच के क्षेत्र में बसे कुणिंद (Kuninda) सम्भवतया यौधेयों के साथ मिलकर कुषाणों से संघर्षशील रहे थे।
  • एक कुणिद शासक छत्रेश्वर (Chhatreshvara) के सिक्के पाये गये हैं। ये सिक्के लगभग २०० ई० के लिपि में हैं और इसपर महात्मन् और भागवत की उपाधि अंकित है। ये सिक्के यौधेयों के कार्तिकेय-अंकित समकालीन सिक्कों से प्रकार, बनावट और आकार में काफी समान हैं।
  • इस उल्लेखनीय समानता से यह परिकल्पना कुछ हद तक प्रमाणित होती है कि कुणिंद और यौधेय समकालीन शक्तियाँ थीं और तीसरी शताब्दी ईस्वी की शुरुआत में अपनी स्वतंत्रता को पुनः प्राप्त करने में एक साथ काम कर रहे थे।
  • यौधेयों की तुलना में कुणिंद एक छोटा राज्य था और ऐसा लगता है कि वे अंततः उनके साथ मिल गये। क्योंकि हमें लगभग २५० ई० के बाद कुणिंद-सिक्के नहीं मिलते और न ही उनका उल्लेख समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति में है।

सिक्के

कुणिंद सिक्के
  • कुणिंद गणराज्य का रजत सिक्का
  • लगभग पहली शताब्दी ई०पू०
  • मुखभाग- दायीं ओर खड़ा हिरण, दो नागों का मुकुट धारण किये हुए, कमल पुष्प पकड़े लक्ष्मी। प्राकृत भाषा व ब्राह्मी लिपि में अंकित है- “राजनः कुणिंदस्य अमोघभूतिस्य महाराजस्य।”
  • पृष्ठभाग- बौद्ध प्रतीक त्रिरत्न द्वारा निर्मित स्तूप, एक स्वस्तिक, एक “Y” चिह्न और वेदिका में एक वृक्ष। खरोष्ठी लिपि में अंकित है- “राणा कुणिदास अमोघभूतिसा महाराजस।”

कुणिंद सिक्कों के दो प्रकार हैं-

  • पहला, लगभग पहली शताब्दी ईसा पूर्व में जारी किया गया था।
    • कुणिंदों के पहले प्रकार के सिक्के उनके पूर्ववर्ती इंडो-ग्रीक राज्यों के मुद्राओं से प्रभावित थे। इनपर बौद्ध और हिंदू प्रतीक अंकित मिलते हैं, जैसे – त्रिरत्न और लक्ष्मी। ये सिक्के सामान्यतया इंडो-ग्रीक भार और आकार मानकों (द्राख्म, लगभग २.१४ ग्राम भार और १९ मिमी व्यास) का पालन करते हैं। ये सिक्के प्रायः इंडो-ग्रीक सिक्कों के साथ में पाये गये हैं।
  • दूसरा लगभग दूसरी शताब्दी ईस्वी में।
    • एक कुणिंद शासक छत्रेश्वर (Chhatreshvara) के सिक्के पाये गये हैं। ये सिक्के लगभग २०० ई० के लिपि में हैं और इसपर महात्मन् और भागवत की उपाधि अंकित है। ये सिक्के यौधेयों के कार्तिकेय-अंकित समकालीन सिक्कों से प्रकार, बनावट और आकार में काफी समान हैं।

पाद-टिप्पड़ी और सन्दर्भ
  1. ऐतिहासिक स्थानावली, पृष्ठ संख्या २०९ ↩︎
  2. ऐतिहासिक स्थानावली, पृष्ठ संख्या २०९ ↩︎
  3. ऐतिहासिक स्थानावली, पृष्ठ संख्या २११ ↩︎
  4. India as known to Panini, p. 54 ↩︎
  5. India as known to Panini, p. 54 ↩︎
  6. Ancient India as described by Ptolemy, p. 109,110 ↩︎

सम्बन्धित लेख

यौधेय गणराज्य

अर्जुनायन

कुषाण राजवंश

शिबि या शिवि

लिच्छवि गणराज्य

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Index
Scroll to Top