किल्लिवलवान (Killivalavan)

भूमिका

हमारे पास किल्लिवलवान और उसके शासनकाल के सम्बन्ध में कोई निश्चित विवरण नहीं है। उसके सम्बन्ध में हमें पुरनानुरू (Purananuru) में बिखरे हुए अथवा अपूर्ण कविताओं (fragmentary poems) में मिलता विवरण प्राप्त होते हैं। पुरनानुरू एत्तुथोकै (अष्ट संग्रह) का भाग है।

संक्षिप्त विवरण

  • नाम — किल्लिवलवान या किलिवलवान (Killivalavan)
  • राजधानी — उरैयूर
  • राजवंश — चोल
  • समय — नालनकिल्ली व नेडुनकिल्ली का समकालीन
  • युद्ध — करूर विजय
  • स्रोत — पुरनानुरू (Purananuru)

किल्लिवलवान का शासन

किलिवलवान (Killivalavan) चोल शाखा का ही एक शासक था जिसने उरैयूर से शासन किया। यह नालनकिल्ली व नेडुनगिल्ली का समकालीन था।

वह एक शक्तिशाली शासक था जिसने चेरों को हराकर उनकी राजधानी करूर के ऊपर अधिकार कर लिया था।

क्या एक से अधिक किलिवलवान नाम के चोल शासक हुए हैं?

पूरनानुरू (Purananuru) में हमें एक से अधिक किलिवलवान की प्रशस्ति में कविताएँ मिलती हैं —

  • एक, कुलमुत्तरम (Kulamuttram) में मृत्यु को प्राप्त किलिवलवान, जिससे इनको कुलमुत्तराथु तुंजिया किलिवलवान (Kulamuttrathu Tunjiya Killivalavan) कहा गया। इनको कई कविताएँ समर्पित हैं।
  • द्वितीय, कुराप्पल्ली (Kurappalli) में मृत्यु को प्राप्त किलिवलवान। इनको केवल एक कविता समर्पित है।

चूँकि कोवूर किलर (Kovur Kilar) ही वह कवि है जिन्होंने इन दोनों के सम्बन्ध में लिखा है, इसलिए यह मानना ​​उचित है कि ये दोनों राजा एक ही हों। प्रसंगवश, पुरुनानुरू में ४०० कविताएँ हैं जिसे १५० कवियों ने लिखा है। इन १५० कवियों में से कोवूर किलर (Kovur Kilar) भी एक कवि हैं।

किल्लिवलवान को दस अलग-अलग कवियों द्वारा १८ गीतों में सम्मानित किया गया है। किलिवलवान स्वयं अपने मित्र पन्नन (Pannan) की प्रशंसा में लिखी गयी एक कविता के लेखक के रूप में चित्रित किया गया है।पन्नन सिरुकुडी (Sirukudi) का सरदार था। उरैयूर किल्लिवलवान की राजधानी थी। किल्लिवलवान एक योग्य, साहसी और उदार राजा था। परन्तु कुछ हद तक हठी भी था इसलिए कवियों ने उसे बहुत ही चतुराई से बहुत सारी अच्छी सलाह दी।

करूर विजय

चेर की राजधानी करूर (Karur) की घेराबंदी और उस पर अधिकार करना किल्लिवलवान के शासनकाल की सबसे बड़ी सैन्य उपलब्धि थी। करूर घेराबंदी और विजय कई कविताओं का विषय रहा है। कवि अलत्तुर किलार (Alattur Kilar) ने किल्लिवलवान के आक्रमण से करूर को बचाने के लिए उसका ध्यान भटकाने का प्रयास किया और उसे अपने पराक्रम के अयोग्य प्रतिद्वंद्वी के विरुद्ध युद्ध करने से झिड़का। परन्तु अलत्तुर किलार (Alattur Kilar) अपने प्रयास में विफल रहा और करूर नगर पर किल्लिवलवान ने अधिकार कर लिया।

अन्य सैन्य अभियान

करूर विजय के अतिरिक्त दो अन्य सैन्याभियानों का विवरण मिलता है। परन्तु ये सैन्याभिमान इतने स्पष्ट नहीं हैं। सम्भवतः ये काव्य का विजय है न कि इतिहास का। इनमें प्रमुख हैं —

  • पाण्ड्यों के विरुद्ध अभियान
  • मलयनाडु युद्ध

इनके संक्षिप्त विवरण अधोलिखित हैं —

पाण्ड्यों से युद्ध 

पुरनानुरू (Purananuru) की कविताएँ पांड्यों के विरुद्ध किल्लिवलवान के दक्षिण में अभियानों पर मौन हैं। लेकिन कवि नक्कीरर (Nakkirar) ने अकनानुरु (Akananuru) की एक कविता में पांड्य सेनापति पालयन मारन (Palayan Maran) के हाथों किल्लिवलवान की सेनाओं को मिली हार का उल्लेख किया है।

मलयनाडु युद्ध 

किल्लिवलवान ने मलयनाडु (Malainadu) के प्रमुख मलयमन तिरुमुदिक्करी (Malayaman Tirumudikkari) के विरुद्ध भी युद्ध लड़ा।मलयमन तिरुमुदिक्करी विद्वानों को उदारतापूर्वक संरक्षण देने के लिए प्रसिद्ध था। मलयनाडु प्रमुख युद्ध में मारा गया और उसके दो बच्चों को विजयी किल्लिवलवान द्वारा क्रूर मौत की सजा दी जाने वाली थी। कवि कोवुर किलर ( Kovur Kilar) द्वारा इन बच्चों के जीवनदान के लिए प्रार्थना की थी। ऐसा विवरण हमें पुरुनानुरू (Purananuru) में मिलता है।

निष्कर्ष

किल्लिवलवान या किलिवलवान (Killivalavan) का इतिहास बहुत ही उलझा हुआ है। संगम साहित्य में इसके विषय में जो भी विवरण मिलता है वह अधिकांश कपोल कल्पित और काव्य का विषय है। इस राजा के विषय में इतना सा ही ऐतिहासिक महत्त्व का तथ्य है कि— वह करिकाल का उत्तरवर्ती चोलवंशी संगमकालीन शासक था, उसकी राजधानी उरैयूर थी और उसने चेरों को पराजित करके करूर पर अधिकार कर लिया था।

करिकाल (Karikala)

तोंडैमान इलांडिरैयान (Tondaiman Ilandiraiyan)

नालनकिल्ली या नालंकिल्ली (Nalankilli)

चोल वंश या चोल राज्य : संगमकाल (The Cholas or The Chola’s Kingdom : The Sangam Age)

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