करिकाल (Karikala)

भूमिका

संगम काल का सबसे महत्त्वपूर्ण शासक करिकाल (Karikal) है। प्रारम्भिक चोल शासकों में ही नहीं अपितु वह संगमकालीन शासकों में भी सबसे महान माना जाता है।

राजेंद्र चोल प्रथम की थिरुवलंगडु प्लेटों (Thiruvalangadu plates) में मध्यकालीन साम्राज्यवादी चोलों ने करिकाल को अपने पूर्वजों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया है।

संक्षिप्त परिचय

  • नाम — करिकाल (Karikal)
  • पिता — इलंजेतचिन्नि (Ilanjetchinni)
  • माता — अलुन्दुर (Alundur)
  • पत्नी — नांगुर
  • पुत्री — आदिमंदी (Adi Mandi)
  • पुत्र — तीन पुत्र थे—
  • शासनकाल — द्वितीय शताब्दी का उत्तरार्ध (≈ १९० ई०)
  • युद्ध व सैन्य अभियान
    • वेण्णि का युद्ध
    • वाहैप्परण्डले का युद्ध
    • हिमालय तक अभियान (कपोल कल्पना)
    • तोंडैनाडु पर अधिकार
    • सिंहल अभियान
  • प्रमुख कार्य
    • कावेरी नदी पर तटबंध का निर्माण व सिंचाई के लिए नहरें निकलवायी
    • पुहार पत्तन का निर्माण
    • पत्तिनप्पालै के रचयिता रुद्रनकन्नार को १६ लाख स्वर्ण मुद्राओं का पुरस्कार
    • वह वैदिक धर्म का अनुयायी था

स्रोत

करिकाल के इतिहास को जानने के दो साधन हैं —

  • एक, साहित्यिक स्रोत
  • दो, अभिलेखीय साक्ष्य

साहित्यिक साक्ष्यों में सर्वप्रमुख ‘संगम साहित्य’ है। इसके अतिरिक्त संगमकाल के बाद भी करिकाल का उल्लेख किया जाता रहा। संगम साहित्यों में जिनसे करिकाल के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है, उनमें से कुछ के नाम हैं — पत्तिनपालै (Pattinappalai), पोरुनारारुप्पतै (Porunararruppatai), अकनानूरु (Akananuru), पुरनुरू (Purananuru) इत्यादि।

अभिलेख साक्ष्यों में संगमकाल के बाद के कई अभिलेख वर्तमान तमिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश से मिले हैं जिनमें करिकाल से सम्बन्धित तथ्यों का उल्लेख किया गया है, जैसे— विजय अभियान, कावेरी नदी का तटबन्ध निर्माण इत्यादि।

करिकाल के होने वाले कई शासकों और छोटे सरदारों ने करिकाल को अपना पूर्वज होने का दावा किया और खुद को करिकाल के चोल वंश और कश्यप गोत्र से संबंधित बताया। इसके साथ ही साम्राज्यवादी चोलों ने भी करिकाल को अपना पूर्वज बताया है, उदाहरणार्थ — राजेंद्र चोल प्रथम की थिरुवलंगडु प्लेटों (Thiruvalangadu plates) में मध्यकालीन साम्राज्यवादी चोलों ने करिकाल को अपने पूर्वजों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया है।

रेनाडु चोल राजा पुण्यकुमार (Renadu Chola king Punyakumara) की मालेपाडु प्लेटों (the Malepadu plates) में करिकाल का उल्लेख मिलता है—

“दिनकर-कुल-मंदार-अचला-मंदार-पदपस्य
कावेरी-तनया-वेलोल्लमघनप्रसमन-प्रमुक्न-अद्यनक-अतिसय-कारिनः
त्रैराज्य-स्थितिम्-आत्मसात्-कृतवतः-करिकाल”

अर्थात् “करिकाल के कुल में, जो मंदार पर्वत पर मंदार वृक्ष था, अर्थात् सूर्यकुल; जो कावेरी की पुत्री को वश में करने जैसे अनेक आश्चर्यों का कर्ता था।”

प्रारम्भिक जीवन

करिकाल के पिता का नाम इलंजेतचिन्नि (Ilanjetchinni) और माता का नाम अलुन्दुर (Alundur) मिलता है। इलंजेतचिन्नि का अर्थ है— ‘कई सुंदर रथों वाला’ (‘of many beautiful chariots’)। करिकाल के प्रारम्भिक जीवन के विषय में जो सूचना मिलती है उसके अनुसार उसका बचपन बड़ी कठिनाई में व्यतीत हुआ। बचपन में उसका पैर जल गया था और करिकाल शब्द के अर्थ से भी संकेत मिलता है। करिकाल (करिकालन) का अर्थ है— जले हुए पैर वाला व्यक्ति (the man with the charred leg)।

बाद में वह अपने शत्रुओं द्वारा बन्दी बना कर कारागार में डाल दिया गया। इस प्रकार उसका पैतृक राज्य भी उससे छिन गया।

कुछ विद्वानों के अनुसार करिकाल (करिकालन) दो तमिल शब्दों से मिलकर बना है— करि + काल (कालन)। करि और काल का अर्थ है “हाथियों का वध करनेवाला” (slayer of elephants)। पोरुनारारुप्पटै (Porunararruppatai) ने इस घटना की पिछली मूल कथा का वर्णन इस प्रकार किया गया है —

“उरैयूर के राजा इलनजेतचिन्नि ने अलुन्दुर की एक वेलिर राजकुमारी से विवाह किया और वह गर्भवती हुई और करिकाल को जन्म दिया। इलनजेतचिन्नि की शीघ्र ही मृत्यु हो गयी। अपनी छोटी आयु के कारण, करिकाल के सिंहासन के अधिकार की अनदेखी की गयी और देश में राजनीतिक उथल-पुथल मच गयी। करिकाल को निर्वासित कर दिया गया। जब सामान्य स्थिति लौटी, तो चोल मंत्रियों ने राजकुमार की तलाश के लिए एक राजकीय हाथी भेजा। हाथी ने राजकुमार को करुवुर (करूर) में छिपा हुआ पाया। उनके राजनीतिक विरोधियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और कैद कर लिया। उस रात जेल में आग लगा दी गयी। करिकाल आग से बच निकला और अपने मामा इरुम-पिटर-थलैयन (Irum-pitar-thalaiyan) की सहायता से अपने शत्रुओं को पराजित कर दिया।”

पुराने संगम युग के शिलालेखों और मायावरम के पास परसालूर (Parasalur) के प्रसिद्ध प्राचीन शैव मंदिर के स्थल पुराण में कहा गया है कि षड्यंत्रकारियों द्वारा रची गयी हत्या के षड्यंत्र से बचने के लिये करिकाल वलवन (Karikal Valavan) ८  वर्षों तक एक वैदिक और आगम शास्त्र व्याख्याता के वेश में वहाँ रहा।

करिकाल की प्रशस्ति में लिखी गयी पत्तिनप्पालै (Pattinappalai) में भी इस घटना का वर्णन है, परन्तु जले हुए पैर का का उल्लेख नहीं है—

एक बार, घने जंगल में, एक युवा बाघ शावक को शिकारियों ने पकड़ लिया और उसे लकड़ी के पिंजरे में बंद कर दिया। पिंजरे के अंदर, वह चुपचाप बड़ा हुआ, उसके पंजे तेज़ होते गए और उसका शरीर ताकत और उद्देश्य से भर गया। हालाँकि वह बंद था, लेकिन उसने बाहर की दुनिया को देखा और अपने बंदी की दिनचर्या सीखी।

एक दिन, पास में ही एक शक्तिशाली हाथी गहरे गड्ढे में संघर्ष कर रहा था। अपनी विशाल सूंड का उपयोग करते हुए, हाथी ने जाल के किनारों को धक्का दिया, किनारों को नीचे गिरा दिया और खुद को मुक्त कर लिया। बाघ ने उस प्राणी के दृढ़ संकल्प और तरीके से प्रेरित होकर उसे करीब से देखा।

बाघ ने भी स्वतंत्र होने का दृढ़ निश्चय किया और समय की प्रतीक्षा की। उसने पिंजरे की संरचना में कमजोरी का अध्ययन किया और पहरेदारों के शांत होने की प्रतीक्षा की। फिर, अपने शक्तिशाली पंजों के तीक्ष्ण प्रहार से उसने लकड़ी की सलाखों को चीर दिया और पहरेदारों को चौंका दिया। अपनी नयी ताकत और कौशल से उन पर काबू पाकर, वह जंगल में कूद गया और अपनी स्वतंत्रता वापस पा ली, अपने अधिकार क्षेत्र में फलने-फूलने लगा।

युद्ध और विजय

करिकाल बड़ा ही साहसी तथा वीर था। १९० ई० के लगभग उसने अपने समस्त शत्रुओं को पराजित करके अपने राज्य पर पुन: अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् करिकाल का समकालीन चेर और पाण्ड्य राज्य से युद्ध हुआ। करिकाल ने दो युद्धों में विजय प्राप्त की जिसके कारण वह संगमकाल का प्रसिद्ध शासक बन बैठा, ये दो युद्ध हैं— वेणी / वेण्णि का युद्ध और वाहैप्परन्दलई / वाहैप्परण्डले का युद्ध। इसके अतिरिक्त हिमालय तक कपोल-कल्पित अभियान, सिंहल अभियान, तोंडैनाडु युद्ध का विवरण मिलता है।

वेणी / वेण्णि (Venni) का युद्ध

  • वेण्णि (तंजौर) के समीप उसने चेर-पाण्ड्य राजाओं सहित उनके सहयोगी ११ सामन्त शासकों के एक संघ को भी पराजित किया। इस युद्ध में चेर शासक उथियन चेरलथन या पेरुम चोट्टू उदयन (Uthiyan Cheralathan or Perum Chottu Uthiyan) ने अपनी पराजय के बाद आत्महत्या कर ली।
  • वेण्णि (Venni) को वेन्नीपरंदलाई (Vennipparandalai) के नाम से भी जाना जाता है और अब इसे कोविलवेन्नी (Kovilvenni) के नाम से जाना जाता है और यह तंजावुर से २५ किमी दूर नीदमंगलम (Needamangalam) के पास थिरुवारूर (Thiruvarur) जनपद में स्थित है।
  • इस युद्ध का उल्लेख विभिन्न लेखकों द्वारा कई कविताओं में किया गया है।

“Eleven rulers, velir and kings, lost their drums in the field; the Pandya and the Chera lost their glory, and the latter sustained the last disgrace that could befall a warrior—a wound on his back—and from a sense of profound shame he sat facing north, sword in hand, and starved himself to death.” — A History of South India, p. 119.

अर्थात्

११ शासकों, वेलिर और राजाओं ने मैदान में अपने ढोल खो दिए; पांड्य और चेर ने अपना गौरव खो दिया, और बाद वाले ने आखिरी अपमान सहा जो एक योद्धा को झेलना पड़ सकता था— उसकी पीठ पर एक घाव और गहरी शर्म की भावना से वह उत्तर की ओर मुँह करके, हाथ में तलवार लेकर बैठ गया, और खुद को भूखा मरने के लिए मजबूर कर दिया।

  • महत्त्व — इस प्रकार वेण्णि का युद्ध करिकाल के जीवन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है; उनकी विजय का अर्थ था उनके विरुद्ध गठित एक व्यापक संघ का भंग होना।

वाहैप्परण्डले (Vahaipparandalai) का युद्ध

  • वेण्णि युद्ध के बाद ‘वाहैप्परण्डले के युद्ध’ में करिकाल ने ९ शत्रु राजाओं के एक संघ को पराजित किया।
  • करिकाल के समकालीन परनार (Paranar) ने अगननुरु (Agananuru) से अपनी कविता में संघर्ष के कारण के बारे में कोई जानकारी दिए बिना इस घटना का उल्लेख किया है।

अन्य विजय अभियान

  • करिकाल की उपलब्धियों का अत्यन्त अतिशयोक्तिपूर्ण विवरण प्राप्त होता है।

हिमालय तक अभियान —

  • बताया गया है कि उसने हिमालय तक सैनिक अभियान किया तथा वज्र, मगध और अवन्ति राज्यों को जीत लिया।

सिंहल अभियान —

  • बताया जाता है कि करिकाल ने सिंहल से १२,००० युद्ध बन्दियों को लाकर पुहार के समुद्री बन्दरगाह के निर्माण में लगा दिया था। कावेरी नदी पर उसने १६० किलोमीटर लम्बा तटबन्ध इन्हीं युद्धबन्दियों से करवाया। करिकाल ने उरैयूर से अपनी राजधानी पुहार (कावेरीपत्तनम्) में स्थानान्तरित कर दी। यह नगर संगमकाल में व्यापार-वाणिज्य का बड़ा केन्द्र था। इसका गोदीबाड़ा बहुत विशाल था।

परन्तु इस प्रकार के विवरण काल्पना की उड़ान हैं। हिमालय तक की विजय निश्चित ही कोरी कल्पना है। हाँ सिंहल के साथ युद्ध हुआ हो इससे इंकार नहीं किया जा सकता पर इसमें भी अतिशयोक्ति ही है और इसे पुष्ट करने के लिये हमारे पास कोई प्रमाण नहीं है।

पल्लवों से युद्ध और टोंडैनाडु पर अधिकार—

  • आंध्र में पाये गये कई ग्रामीण अभिलेखों और तेलुगु-चोल शिलालेखों के आधार पर, करिकाल ने त्रिलोचन पल्लव या मुखंती पल्लव या मुखंती कडुवेट्टी (Trilochana Pallava or Mukhanti Pallava or Mukhanti Kaduvetti) नामक पल्लव राजा के विरुद्ध युद्ध किया।
  • टोडैनाडु में उत्तरी तमिलनाडु और दक्षिण आंध्र का भूभाग सम्मिलित था।
  • इस युद्ध में करिकाल ने टोंडैनाडु (Tondainadu) पर कब्जा कर लिया। हाँ दक्षिणी आंध्र पल्लवों के अधिकार में बना रहा।
  • इस लड़ाई में पल्लव राजा ने काँची को युद्ध में हारने के बाद राजधानी को कालाहस्ती (Kalahasti) में स्थानांतरित कर दिया।
  • शिलालेखों में यह भी कहा गया है कि करिकाल ने त्रिलोचन पल्लव को कावेरी नदी के किनारे बाढ़ के तटबंध बनाने में सहायता करने का आदेश दिया था। लेकिन कालाहस्ती से शासन कर रहे पल्लव राजा ने आज्ञा मानने से मना कर दिया, जिसके कारण करिकाल ने उनके विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। करिकाल ने युद्ध जीत लिया और तेलुगु देश पर कब्जा कर लिया।
  • उस समय के दौरान, दक्षिणी आंध्र बड़े जंगलों से ढका हुआ था जो खेती के लिए उपयुक्त नहीं था। इसलिए, करिकाल ने जंगलों को साफ कर दिया और कई गाँव बसाये।
  • उनमें से एक गाँव पोट्टापी (Pottapi) है, जो सबसे महत्त्वपूर्ण गाँव था और इसलिए पूरे क्षेत्र ने समय के साथ पोट्टापी नाडु (Pottapi Nadu) नाम प्राप्त कर लिया। करिकाल चोल ने न केवल ब्राह्मणों को बल्कि कृषकों को भी भूमि दान की।

युद्ध और सैन्याभियानों का महत्त्व

इन विजयों के परिणामस्वरूप कावेरी नदी घाटी में करिकाल की स्थिति अत्यन्त सुदृढ़ हो गयी। पत्तिनप्पालै (Pattinappalai) के कवि रुद्रनकन्नार कहते हैं कि “उनके विजयी अभियानों के परिणामस्वरूप, असंख्य ओलियार (Oliyar) ने उनके समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया, प्राचीन अरुवालर (Aruvalar) ने उनके आदेशों का पालन किया, उत्तरी लोगों ने वैभव खो दिया और पश्चिमी लोग उदास हो गये; दुश्मन राजाओं के किलों को चकनाचूर करने के लिए तैयार अपनी विशाल सेना की ताकत को महसूस करते हुए, करिकाल ने क्रोध से लाल होकर पांड्या की ओर अपना ध्यान केंद्रित किया, जिनकी ताकत जवाब दे गई; छोटे चरवाहों की पंक्ति समाप्त कर दी गई और इरुंगोवेल (Irungovel) का परिवार उजड़ गया।”

“As a result of his victorious campaigns, says the poet of Pattinappalai, the numerous Oliyar submitted to him, the ancient Aruvalar carried out his behests, the Northerners lost splendour, and the Westerners were depressed; conscious of the might of his large army ready to shatter the fortresses of enemy kings, Karikala turned his flushed look of anger against the Pandya, whose strength gave way; the line of low herdsmen was brought to an end, and the family of Irungovel, was uprooted.”— A History of South India, p. 120.

अरुवालर कावेरी डेल्टा के उत्तर में पेन्नार की निचली घाटी अरुवनद  (Aruvanad) के लोग थे। ऐसा कहा जाता है कि करिकाल ने लोगों को अपने प्रदेश से अन्य क्षेत्रों में जाने से रोका था, ऐसा उन्होंने उन्हें प्रलोभन देकर किया था।

अन्य कार्य

  • करिकाल ब्राह्मण मतानुयायी था तथा उसने इस धर्म को राजकीय संरक्षण प्रदान किया।
  • वह स्वयं एक विद्वान्, विद्वानों का आश्रयदाता तथा महान् निर्माता था।
  • पत्तिनपालै (पत्थुपात्तु) के रचयिता रुद्रनकन्नार को करिकाल ने १६ लाख स्वर्ण मुद्राएँ प्रदान की थीं। इस ग्रन्थ में कावेरीपत्तनम् के क्षेत्रों में उद्योग और व्यापार की उन्नति का विवरण सुरक्षित है।
  • पेरुनानुन्नुपादै में करिकाल को संगीत के सप्तस्वरों का विशेषज्ञ बताया गया है।
  • पुहार पत्तन का निर्माण इसी के समय में हुआ।
  • उसने कावेरी नदी के मुहाने पर बाँध बनवाया तथा उसके जल का उपयोग सिंचाई करने के उद्देश्य से नहरों का निर्माण करवाया था।
  • करिकाल ने अपने राज्य की आर्थिक उन्नति के लिए कृषि और व्यापार को पर्याप्त प्रोत्साहन दिया। जंगली भूमि को साफ करवाकर कृषि योग्य बनवाया, सिंचाई के लिए तालाब निर्मित कपवाये।
  • इस प्रकार करिकाल एक महान् विजेता एवं प्रजावत्सल शासक था। प्रारम्भिक चोल शासकों में वह महानतम् है।

अन्य तथ्य : पुत्री व जामाता

  • शिल्पादिकारम् महाकाव्य में करिकाल की पुत्री आदिमंदी (Adi Mandi) का उल्लेख मिलता है।
  • आदिमंदी का विवाह चेर राजकुमार आत्तन अत्ति (Attan Atti) से हुआ था।
  • ये दोनों पेशेवर नर्तक (Professional dancer) थे।
  • आत्तन (Attan) का अर्थ नर्तक होता है।
  • आत्तन अत्ति कावेरी नदी में डूबकर मर गया जिसे आदिमंदी ने अपने सतीत्व से पुनर्जीवित कर दिया था।

निष्कर्ष

प्रारम्भिक चोल शासकों में ही नहीं अपितु संगमकालीन शासकों में करिकाल का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उसके समय में कावेरीपत्तनम् (पुहार) व्यापार और वाणिज्य का प्रमुख केन्द्र बनकर उभरा। उसनें कृषि और व्यापार-वाणिज्य को बढ़ावा दिया। उसने वेण्णि और वाहैप्परण्डले के युद्धों में विजय प्राप्त करके सुदूर दक्षिण के अभिषिक्त शासकों में सर्वप्रमुख स्थान प्राप्त किया और लम्बे समय तक शासन किया। वह वैदिक धर्मावलम्बी था। कालान्तर के चोल शासक करिकाल को अपने पूर्वज के रूप में उल्लिखित करते हैं और साथ ही करिकाल के नाम से कई किंवदंतियाँ प्रचलित होती चली गयीं।

संगम साहित्य का ऐतिहासिक महत्त्व

तोंडैमान इलांडिरैयान (Tondaiman Ilandiraiyan)

नालनकिल्ली या नालंकिल्ली (Nalankilli)

किल्लिवलवान (Killivalavan)

चोल वंश या चोल राज्य : संगमकाल (The Cholas or The Chola’s Kingdom : The Sangam Age)

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Index
Scroll to Top