कनिष्क विद्वानों का संरक्षक और उसके समय साहित्यिक प्रगति

भूमिका

कनिष्क विद्वानों का संरक्षक का संरक्षक था। उसका शासन-काल साहित्य की उन्नति के लिये भी प्रसिद्ध है। वह विद्या का उदार संरक्षक था तथा उसके राजसभा में उच्चकोटि के विद्वान् तथा दार्शनिक निवास करते थे। जिनका विवरण अधोलिखित है।

अश्वघोष

कनिष्क की राजसभा में निवास करने वाले  विद्वानों में अश्वघोष का नाम सर्वप्रमुख है। वे कनिष्क के राजकवि थे। उनकी रचनाओं में तीन प्रमुख हैं —

  • बुद्धचरित – महाकाव्य
    • यह महाकाव्य अश्वघोष की कीर्ति का स्तम्भ है।
    • इसमें मूलतः २८ सर्ग थे, परन्तु वर्तमान में १७ सर्ग ही उपलब्ध हैं और इनमें से भी १३ या १४ सर्गों को ही प्रामाणिक माना गया है।
    • बुद्धचरित में गौतम बुद्ध के जीवन का सरल तथा सरस वर्णन मिलता है।
    • यह गौतम बुद्ध के गर्भस्थ होने से प्रारम्भ होता है और धातु युद्ध, प्रथम संगीति और सम्राट अशोक के राज्यकाल तक इसमें वर्णन मिलता है।
  • सौन्दरानन्द – महाकाव्य
    • इसमें १८ सर्ग हैं। यह ग्रन्थ अपने पूर्ण रूप में उपलब्ध होता है।
    • सौन्दरानन्द में बुद्ध के सौतेले भाई सुन्दर नन्द के सन्यास ग्रहण का वर्णन है।
    • यह सौन्दरान्द ने महात्मा बुद्ध के प्रभाव में आकर सांसारिक विषय-भोगों को त्यागने और प्रव्रज्या ग्रहण करने का काव्यात्मक विवरण किया गया है।
    • इसमें नन्द, उसकी पत्नी सुन्दर के मूक वेदनाओं के साथ-साथ बुद्ध के उपदेशों का सुन्दर व सरस वर्णन है।
  • शारिपुत्रप्रकरण – नाटक
    • शारिपुत्रप्रकरण ९ अंको का एक नाटक ग्रन्थ है जिसमें बुद्ध के शिष्य शारिपुत्र के बौद्ध धर्म में दीक्षित होने का नाटकीय विवरण प्रस्तुत किया गया है।
    • इसकी रचना नाट्यशास्त्र के अनुकूल की गयी है।
    • यद्यपि यह शृंगार प्रधान रचना है; फिरभी इसमें करुण व हास्य रसों का सुन्दर समावेश मिलता है।

कवि तथा नाटककार होने के साथ-साथ अश्वघोष एक महान् संगीतज्ञ, कथाकार, नीतिज्ञ तथा दार्शनिक भी थे। इस प्रकार उनकी प्रतिभा बहुमुखी थी। विद्वानों ने अश्वघोष की तुलना मिल्टन, गेटे, कान्ट तथा वाल्टेयर आदि से की है।

नागार्जुन

माध्यमिक दर्शन के प्रसिद्ध आचार्य नागार्जुन भी कनिष्क की राजसभा में निवास करते थे। उन्होंने ‘प्रज्ञापारमितासूत्र’ की रचना की थी जिसमें शून्यवाद (सापेक्ष्यवाद) के सिद्धान्त का प्रतिपादन है।

चरक

कनिष्क के ही दरबार में आयुर्वेद के विख्यात विद्वान् चरक निवास करते थे। वे कनिष्क के राजवैद्य थे जिन्होंने ‘चरक संहिता’ की रचना की थी। यह औषधिशास्त्र से सम्बन्धित उपलब्ध प्राचीनतम् रचना है। इसका अनुवाद अरबी तथा फारसी भाषाओं में बहुत पहले ही किया जा चुका है।

अन्य विद्वान

अन्य विद्वानों में पार्श्व, वसुमित्र, मातृचेट, संघरक्ष आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

  • संघरक्ष उनके पुरोहित थे।
  • वसुमित्र ने चतुर्थ बौद्ध संगीति की अध्यक्षता की तथा त्रिपिटकों का भाष्य तैयार करने में प्रमुख रूप से योगदान दिया था। विभाषाशास्त्र की रचना का श्रेय वसुमित्र को ही दिया जाता है।

बौद्ध धर्म और कनिष्क

कुषाणकालीन आर्थिक समृद्धि या कुषाणकाल में व्यापार-वाणिज्य की प्रगति

कुषाणों का योगदान (Contribution of the Kushanas)

कुषाण-शासनतंत्र (The Kushan Polity)

कुषाण राजवंश (The Kushan Dynasty) या कुषाण साम्राज्य (The Kushan Empire)

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