भूमिका
एत्तुथोकै की रचना पहले से चली आ रही तमिल कविता परंपरा का ही अगला चरण था। तोलकाप्पियम् में अंतिम रूप से निर्धारित काव्य-रूढ़ियाँ तमिल संकलनों की प्रारंभिक कविताओं में लगभग अपनी पूर्णता को प्राप्त हो चुकी थीं। फिरभी एत्तुथोकै की शैली लोक साहित्य (folk literature) के बहुत करीब है, न कि दरबारी संस्कृत की शैली के। इन रचनाओं में किसान का जीवन और देहात के दृश्य, शहरों की हलचल और युद्ध की क्रूरता को यहाँ प्रत्यक्ष अनुभव से दर्शाया गया है। इन रचनाओं में किसी औपचारिक अवास्तविक आदर्शीकरण नहीं किया गया है।
एत्तुथोकै या अष्ट संग्रहों (Eight Anthologies) की कविताओं की भाषा इतनी पुरानी है कि आधुनिक शिक्षित तमिल लोग भी इसे विशेष अध्ययन के बिना नहीं पढ़ व समझ सकते।
संक्षिप्त परिचय
- नाम — एत्तुथोकै / एत्तुथोकई / इत्थुथोकै / इत्तुथोकै : अष्ट संग्रह (Ettuthokai : The Eight Collections The Eight Anthology)
- उपलब्ध कविताएँ — २,२८२
- कवि — २०० से अधिक
एत्तुथोकै : अष्ट संग्रह
इत्थथोकै में ८ संग्रह है।
- नत्रिनै / नत्रिणै / नत्रिनई (Natrinai) —
- नत्रिणै का अर्थ है — उत्कृष्ट तिणै (excellent tinai)
- अष्ट संग्रह (एट्टुथोकै) में से पहले संग्रह का नाम नत्रिनै है।
- इसमें अहवल छंद (ahaval metre) में ४०० लघु गीत हैं।
- इसकी प्रत्येक कविता ८ से १३ पंक्तियों की है।
- इसमें अगम (प्रणय) और पुरम (राजा की प्रशंसा) दोनों प्रकार की कविताएँ पायी जाती हैं।
- कुरुंथोकई (Kurunthokai) —
- इसका वर्ण विषय प्रणय (प्रेम) है।
- इसमें लगभग ४०० छंद हैं।
- कुरुंथोकई की रचना में लगभग २०० कवियों का योगदान है।
- ऐनकुरूनूरु / एनकुरुनूर (Ainkurunuru) –
- तृतीय संग्रह ऐनकुरूनूरु (Ainkurunuru) है।
- इसका वर्ण विषय प्रणय (प्रेम) है।
- इसमें ५०० प्रणय कविताओं का संग्रह है।
- इसकी रचना में पाँच अलग-अलग कवियों ने योगदान दिया है।
- तोल्काप्पियर (Tolkappiyar) ने अपने व्याकरण ग्रन्थ तोल्काप्पियम् (Tolkappiyam) के तृतीय भाग में प्रेम के पाँच पहलुओं पर चर्चा की है। ये हैं— मिलन (union), वियोग (separation), प्रतीक्षा (waiting), विलाप (lamenting) और नाराज़गी (sulking)। इन पाँच अवश्थाओं को उन्होंने उन्हें प्रकृति के संगत पहलुओं के साथ सम्बद्ध किया है— अर्थात् पर्वत (कुरिंची /kurinchi), रेगिस्तान (पलाई/palai), जंगल (मुल्लई/mullai), समुद्र तट (नेथल/neithal) और खेत (मरुथम/marutham)। ऐंकुरुनरु के ५०० छंदों को भी इसी प्रकार पाँच प्रकार के छंदों में विभाजित किया गया है, जिनमें से प्रत्येक एक अलग कवि द्वारा रचित है, तथा प्रत्येक छंद ऊपर वर्णित प्रेम के पाँच पहलुओं में से एक को समर्पित है।
- पदित्रुप्पाट्टू / पदित्रुप्पात्तु (Paditruppattu) —
- एट्टुथोकै का चौथा संग्रह ‘पदित्रुप्पट्टू’ है।
- इसको “दस दस” (Ten Tens) कहा जाता है, क्योंकि इसमें मूल रूप से दस छंद वाली दस कविताएँ शामिल थीं, लेकिन पहली और आखिरी कविताएँ अब उपलब्ध नहीं हैं।
- शेष आठ कविताएँ विभिन्न चेर राजाओं की सैन्य शक्ति या अन्य गुणों का विवरण देती हैं।
- संदर्भित राजा ईसाई युग की द्वितीय और तृतीय शताब्दी हैं।
- इसलिए हम इन कविताओं और उनके लेखकों, परनार (Paranar), कपिलर (Kapilar), पलाई कौथमनार (Palai Kauthamnar), कक्कई पदिनियर (Kakkai Padiniar) और बाकी को उसी अवधि का मान सकते हैं।
- पर्याप्त ऐतिहासिक महत्त्व के साथ साथ ये रचनाएँ सामाजिक इतिहासकारों के लिए भी रुचि का विषय रही हैं।
- इन कविताओं में कई विलक्षण रीति-रिवाजों के सन्दर्भ पाये जाते हैं।
- इस संग्रह में स्त्रियों और सैनिकों के शृंगार और मृतकों के संस्कार विधि का ज्ञान सुलभ होता है। जैसे—
- महिलाओं द्वारा अपने बालों की पाँच चोटियाँ या बेड़ियाँ बनाना (women braiding their hair into five parts)
- सैनिकों द्वारा अदरक और फूलों की माला पहनना (soldiers wearing garlands of ginger and flowers)
- मृतकों को कलश में पेड़ों के नीचे दफनाना (the burial of the dead in urns at the foot of tress)
- विद्वान श्री एम० श्रीनिवास अयंगर के अनुसार पदित्रुप्पाट्टू “प्रारंभिक पश्चिमी तमिल लोगों, जो मलयाली लोगों के पूर्वज थे, के अप्रचलित शब्दों और अभिव्यक्तियों, पुरातन व्याकरणिक रूपों और समापनों तथा अस्पष्ट रीति-रिवाजों और तौर-तरीकों का संग्रहालय है।” (Paditruppattu is “a museum of obsolete words and expressions, archaic grammatical forms and terminations, and obscure customs and manners of the early western Tamil people who were the ancestors of the Malayalis.” — Mr. M. Srinivasa Aiyangar)
- समूह का पाँचवाँ गीत चेर शासकों में सबसे महान राजा सेनगुट्टुवन की प्रशंसा में एक गीत है।
- समूह का छठा गीत महिला कवयित्री कक्कई पादिनियर (Kakkar Padiniar) द्वारा लिखा गया था।
- उल्लेखनीय है कि पादित्रुप्पाट्टु (Paditruppattu) में संस्कृत के भी कुछ शब्द प्राप्त होते हैं। लगभग १,८०० पंक्तियों में संस्कृत मूल के लगभग से एक दर्जन शब्द मिलते हैं।
- परिपाडल / परिपादल (Paripadal)—
- पाँचवें संग्रह परिपदल में मूल रूप से ७० कविताएँ थी, परन्तु वर्तमान में केवल २४ ही उपलब्ध हैं।
- यह तमिल साहित्य का प्रथम संगीत ग्रन्थ है।
- इनमें से कुछ रचनाएँ विभिन्न देवताओं की प्रशंसा में लिखे गये भजन (hymns) हैं।
- इसी संग्रह में इन्द्र द्वारा गौतम ऋषि की पत्नी के साथ किये गये दुर्व्यवहार एवं भक्त प्रह्लाद का वर्णन है।
- परिपादल संग्रह की वर्णनात्मक (descriptive) रचनाएँ भी कम प्रभावशाली नहीं हैं। उदाहरणार्थ एक गीत में मयूर नृत्य (the peacock’s dance) का स्वाभाविक वर्णन मिलता है—
“दोनों ओर
अपने पंख फैलाए हुए
जो ऊपर उठे हुए पंखों की तरह लगते हैं
जिसे लोग झलते हैं
रंगीन पनही को सुखाने के लिए,
रंगे-बिरंगे पूँछ के साथ ढलान पर नाचता है
लयबद्ध गड़गड़ाहट के लिए
घुमड़ते बादलों का।”
XXX
“On either side
Raising up his wings
Which seem like uplifted fans
Which people wave
To dry the painted sandal,
With the spotted tail Dances on the slope
To the rhythmic rumble
Of the rolling clouds.”
- कलित्तोगई / कलिथौके (Kalittogai / Kalithokai) —
- कलित्तोगई / कलिथौके अष्टसंग्रह (एत्तुथोकै) का छठा संग्रह है।
- इसमें १५० प्रणय गीत हैं।
- इन प्रणय गीतों की रचना काली या कलि छंद (Kali metre) में की गयी है।
- इन गीतों को तोलकाप्पियम् के शास्त्रीय श्रेणियों के अंतर्गत रखा गया है, जैसा कि ऐनकुरुनुरु की रचनाओं को रखा गया है। ये शास्त्रीय श्रेणियाँ हैं— कुरिंची (kurinchi), पलाई (palai), मुल्लई (mullai), नीथल (neithal) और मरुथम (marutham)।
- इसकी रचना का श्रेय कपिलर तथा अन्य चार व्यक्तियों को दिया जाता है।
- इसमें संगम युग के विवाह प्रथाओं का मिलता है।
- अहनानूर / नेडुनथोकई (Ahanuru / Nedunthokai) —
- अहनानूर / नेडुनथोकई अष्टसंग्रह (एत्तुथोकै) का सातवाँ संग्रह है।
- इसमें ४०० प्रणय गीत हैं अर्थात् इसकी विषयवस्तु भी प्रेम प्रसंग है।
- यह मुख्य रूप से परनार (Paranar) और मामुलानार (Mamulanar) की कृति है।
- इन गीतों को तोलकाप्पियम् के शास्त्रीय श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है, जैसा कि ऐनकुरुनुरु की रचनाओं को। ये शास्त्रीय श्रेणियाँ हैं— कुरिंची (kurinchi), पलाई (palai), मुल्लई (mullai), नीथल (neithal) और मरुथम (marutham)।
- हालाँकि पलाई (palai) या अलगाव (वियोग) से सम्बन्धित गीतों की संख्या अन्य चार शास्त्रीय श्रेणियों से संबंधित गीतों की तुलना में कहीं अधिक है।
- मदुरा निवासी रूद्रसरमन ने पाण्ड्य शासक उग्रपेरूअणुदि के संरक्षण में इसका संग्रह किया था।
- पुरनानूरू (Purananuru) —
- इसे पुरम् नाम से भी जाना जाता है।
- इसमें ४०० कविताएँ हैं।
- इन ४०० रचनाओं का रचनाकाल बहुत विस्तृत है, इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि इनमें से कुछ रचनाओं का श्रेय प्रथम संगम के कवियों को हो।
- इस संग्रह में सम्मिलित १५० कवियों में से सबसे महत्त्वपूर्ण हैं— कपिलर (Kapilar), अव्वाई (Avvai), कोवुर-किलर (Kovur-Kilar), पेरुंथलाई सट्टानार (Perunthalai Sattanar), पेरुम-सिट्टिरनार (Perum-Sittiranar) और उरैयूर एनिचरी मुदमोसियार (Uraiyur Enicheri Mudamosiyar)।
- ये कविताएँ राजाओं की प्रशंसा से सम्बन्धित हैं।
निष्कर्ष
इस तरह अष्टसंग्रह (एत्तुथोकै) में संगमयुगीन राजाओं की नामावली के साथ-साथ उस समय के जन-जीवन एवं आचार-विचार का विवरण भी प्राप्त होता है। ये प्राचीनतम तमिल साहित्य की सर्वोत्कृष्ट रचनायें हैं। इनमें कुल २,२८२ से भी अधिक कविताएँ हैं जो २०० से अधिक कवियों द्वारा विरचित है।
सुदूर दक्षिण के इतिहास की भौगोलिक पृष्ठभूमि
संगमयुग की तिथि या संगम साहित्य का रचनाकाल
द्वितीय संगम या द्वितीय तमिल संगम
शिलप्पदिकारम् (नूपुर की कहानी) / Shilappadikaram (The Ankle Bracelet)
मणिमेकलै (मणि-युक्त कंगन) / Manimekalai
जीवक चिन्तामणि (Jivaka Chintamani)
तोलकाप्पियम् (Tolkappiyam) – तोल्काप्पियर
एत्तुथोकै या अष्टसंग्रह (Ettuthokai or The Eight Collections)