भूमिका
आभीर राजवंश (Abhira dynasty) ने पश्चिमी दक्कन पर शासन किया। यह राजवंश सातवाहनों के ध्वंशावशेष पर स्थापित हुआ। गुप्त-पूर्व काल में आभीरों ने एक स्वतंत्र राज्य महाराष्ट्र, कोंकण, गुजरात और दक्षिणी मध्य प्रदेश के हिस्सों में था।
उद्भव
- यद्यपि प्राचीन भारतीय साहित्य में आभीरों का उल्लेख मिलता है, तथापि उनकी उत्पत्ति अस्पष्ट है।
- महाभारत के अनुसार आभीर गुजरात में समुद्र तट और सोमनाथ के पास सरस्वती नदी के किनारे रहते थे।
- पतंजलि कृत महाभाष्य में उनका आभीरों का उल्लेख शूद्रों से भिन्न जनजाति के रूप में किया गया है।
- पौराणिक ग्रंथ आभीरों को सौराष्ट्र और अवन्ति क्षेत्रों से सम्बद्ध करते हैं।
- बालकृष्ण गोखले कहते हैं कि महाकाव्य काल से ही आभीर लोग एक योद्धा जनजाति (martial tribe) के रूप में जाने जाते थे।
- के० पी० जयसवाल के अनुसार —
- भागवत में आभीरों को सौराष्ट्र और अवन्ति (सौराष्ट्र- अवन्ति-आभीरः) का शासक बताया गया है।
- विष्णु पुराण में कहा गया है कि आभीरों का राज्य सौराष्ट्र और अवन्ति पर था।
“The Bhagavata calls the Abhiras, ‘Saurashtra’ and ‘Avantya’ rulers (Saurashtra-Avanti Abhirah), and the Vishnu treats the Abhiras as occupying the Surashtra and Avanti provinces.”
— History of India 150 AD to 350, P. 148; K.P. Jayaswal.
सातवाहन और आभीर
- पुराणों के अनुसार आभीर राजवंश सातवाहनों के उत्तराधिकारी थे।
- आभीर को “आंध्र-भृत्य” भी कहा गया है और उन्हें सिमुक वंशावली का उत्तराधिकारी बताया गया है।
- आभिरों ने तीसरी शताब्दी ई० में सातवाहनों के पतन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।
शक और आभीर
- कुछ आभीर पश्चिमी शक क्षत्रपों की सैन्य सेवा में सम्मिलित हो गये थे। उन्होंने शकों के विजय अभियान में सहायता की थी।
- द्वितीय शताब्दी के उत्तरार्ध तक आभीरों ने शक क्षत्रपों की राजसभा में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया था।
- कुछ आभीर तो सेनापति के रूप में भी कार्य कर रहे थे।
- गुंडा शिलालेख शक सम्वत् १०३ (१८१ ई०) में आभीर रुद्रभूति (Rudrabhuti) को शक शासक रुद्रसिंह का सेनापति बताया गया है। गुंडा शिलालेख में रुद्रसिंह को महाक्षत्रप न कहकर एक क्षत्रप कहा गया है। सुधाकर चट्टोपाध्याय के अनुसार — इससे संकेत मिलता है कि आभीर सेनापति रुद्रभूति राज्य का वास्तविक शासक था। हालाँकि उसने कोई उच्च पदवी या उपाधि नहीं धारण की थी। इस शिलालेख में आभीर रुद्रभूति को सेनापति बपक (Bapaka) का पुत्र बताया गया है। आभीर राजवंश संभवतः आभीर रुद्रभूति से सम्बन्धित था।
- प्रोफेसर भगवान सिंह सूर्यवंशी के अनुसार आभीर प्रथम शताब्दी ई०पू० में दक्षिण-पश्चिमी राजस्थान और पूर्वोत्तर सिंध में बस गये थे। सम्भवतया इसीलिए क्षेत्र को अबिरिया (Abiria) कहा जाता था।
- पुरातत्त्वविद् भगवान लाल इंद्रजी का विचार है कि आभीर सम्भवतया सिंध से समुद्र के रास्ते आये और पश्चिमी तट को विजित करके अपरान्त में त्रिकुटा या त्रिकूट (Trikuta) को अपनी राजधानी बनाया। आभीर महाक्षत्रप ईश्वरदत्त (Isvaradatta) उनका नेता था। आभीरों ने सम्भवतया क्षत्रपों पर आक्रमण करके उनपर विजय प्राप्त की।
- विद्वान भगवान लाल इंद्रजी आगे बताते हैं कि आभीर महाक्षत्रप ईश्वरदत्त ने त्रैकुटक राजवंश (Traikutaka dynasty) की स्थापना की। इस उपलक्ष्य में कलचुरि-चेदि सम्वत् की शुरुवात हुई।
- विरदमन (Viradaman) के पुत्र रुद्रसेन (Rudrasena) के नेतृत्व में पश्चिमी क्षत्रपों ने त्रैकुटकों को हराकर शक शासन को पुनर्स्थापित किया।
- शकों द्वारा पराजित करके निकाले जाने के बाद त्रैकुटकों मध्य भारत चले गये और उन्होंने हैहय (Haihaya) या कलचुरी (Kalachuri) नाम अपना लिया।
- क्षत्रप शासन के अंतिम पतन के बाद, त्रैकुटकों ने त्रिकूट को पुनः प्राप्त कर लिया, लगभग उसी समय जब धरसेन (४५६ ई०) ने गद्दी सम्भाली।
राजनीतिक इतिहास
- आभीरों का इतिहास बहुत स्पष्ट नहीं है।
- वे महाराष्ट्र के नासिक क्षेत्र में सातवाहनों के बाद सत्ता में आये।
- उन्हें पश्चिमी क्षत्रपों (शक) से सहायता और सहमति मिली।
- आभीरों को गावली राजा (Gavali rajas) कहा जाता था, जिसका अर्थ है कि वे राजा बनने से पहले ग्वाल (cowherds) थे।
- इस वंश का संस्थापक ईश्वरसेन था।
- ईश्वरसेन ने २४८-४९ ई० के लगभग कलचुरिचेदि सम्वत् की स्थापना की।
- ईश्वरसेन के पिता का नाम शिवदत्त और माता का नाम माठरी मिलता है।
- नासिक में उसके शासनकाल के ९वें वर्ष का एक लेख प्राप्त हुआ है। यह इस बात का सूचक है कि नासिक क्षेत्र के ऊपर उसका अधिकार था।
- अपरान्त तथा लाट प्रदेश पर भी उसका प्रभाव था क्योंकि यहाँ कलचुरि-चेदि सम्वत् का प्रचलन मिलता है।
- महाराष्ट्र में दस आभीर राजाओं ने शासन किया, लेकिन उनके नाम पुराणों में नहीं मिलते।
- एक आभीर राजा ने फारस के ससानिद शासक नरसेह (Narseh) को बहराम तृतीय (Bahram III) के विरुद्ध जीत पर बधाई देने के लिए एक दूत-मण्डल भेजा था।
- आभीरों के शासन की अवधि अनिश्चित है। अधिकांश पुराणों में इसे ६७ वर्ष बताया गया है। हालाँकि वायुपुराण में इसे १६७ वर्ष बताया गया है।
- वी० वी० मिराशी (V Mirashi) के अनुसार आभीरों के सामन्त निम्नलिखित थे —
- वल्ख / वलखा का राजा (वर्तमान खरगोन जनपद के आसपास का क्षेत्र)
- महिष्मती का राजा
- त्रैकुटक
- ईश्वररत्न (?)
- आभीर अपभ्रंश बोलते थे लेकिन उन्होंने संस्कृत को भी संरक्षण प्रदान किया। ईश्वरसेन का नासिक गुफा शिलालेख संस्कृत प्रभावित प्राकृत भाषा व ब्राह्मी लिपि में है।
- वशिष्ठीपुत्र वसुसेन की मृत्यु के बाद आभीरों ने सम्भवतया अपनी सम्प्रभुता खो दी। आभीरों ने अपने अधिकांश क्षेत्र उभरते हुए वाकाटक (उत्तर) और कदंब (दक्षिण-पश्चिम) के हाथों खो दिये।
- आभीरों का शासन चौथी शती तक चलता रहा।
- प्रयाग प्रशस्ति में आभीरों का उल्लेख मिलता है जिन्हें समुद्रगुप्त ने करद बना लिया था —
“समतट-डवाक-कामरूप-नेपाल-कर्तृपुरादि-प्रत्यन्त-नृपतिभिर्म्मालवार्जुनायन-यौधेय-माद्रकाभीर-प्रार्जुन-सनकानीक-काक-खरपरिकादिभिश्च-सर्व्व-कर-दानाज्ञाकरण-प्रणामागमन”-
— प्रयाग प्रशास्ति, पं० – २२
बड़वा का मौखरि वंश (Maukhari Dynasty of Barwa)
आंध्र इक्ष्वाकु या विजयपुरी के इक्ष्वाकु
चुटु राजवंश या चुटुशातकर्णि राजवंश
बृहत्पलायन वंश या बृहत्फलायन वंश