भूमिका
- इक्ष्वाकु वंश को पौराणिक इक्ष्वाकु से पार्थक्य और भ्रम से बचने के लिए “आंध्र इक्ष्वाकु” या “विजयपुरी के इक्ष्वाकु” के नाम से भी जाना जाता है।
- पुराणों में उन्हें श्रीपर्वतीय / श्रीपर्वतीय आंध्र (श्रीपर्वत का शासक) तथा ‘आन्ध्रभृत्य’ (आन्ध्रों का भृत्य / नौकर) कहा गया है। प्रसंगवश सातवाहनों के लिए भी पुराणों में ‘आन्ध्रभृत्य’ और आन्ध्रजातीय शब्द प्रयुक्त हुआ है।
- आंध्र इक्ष्वाकु वंश ने भारतवर्ष के पूर्वी कृष्णा नदी घाटी (निचली कृष्णा घाटी या कृष्णा-गुण्टूर) क्षेत्र में शासन किया।
- इनकी राजधानी विजयपुरी (Vijayapuri) थी। इसका एक नाम नागार्जुनीकोण्डा भी मिलता है।
- आंध्र इक्ष्वाकुओं ने गुप्त-पूर्व तृतीय और चतुर्थ शताब्दी ईस्वी के दौरान एक सदी से अधिक समय तक शासन किया।
- पहले वे सातवाहनों के सामन्त थे परन्तु उनके पतन के बाद उन्होंने अपनी स्वतन्त्रता घोषित कर दी।
- सम्बन्धित अभिलेख — रेंटल अभिलेख (Rentala inscriptions), केशनपल्ली अभिलेख (Kesanapalli inscriptions), वीरपुरुषदत्त का नागार्जुनकोंडा अभिलेख (Nagarjunakonda Inscription of Veerpurushdatta), पाटगंडिगुडेम ताम्रलेख (Patagandigudem copper-plate inscription)।
राजनीतिक इतिहास
“आंध्र इक्ष्वाकु” या “विजयपुरी के इक्ष्वाकु” राजवंश में हमें मुख्यतया ४ शासकों का विवरण प्राप्त होता है, जिनका संक्षिप्त विवरण अधोलिखित है —
श्रीशान्तमूल
- श्रीशान्तमूल इस वंश का संस्थापक था। इसका एक अन्य नाम वाशिष्ठीपुत्र श्रीशान्तमूल भी मिलता है।
- रेंटल अभिलेख (Rentala inscriptions) में उसे श्रीशान्तमूल कहा गया है।
- वीरपुरुषदत्त के नागार्जुनकोंडा अभिलेख (Nagarjunakonda Inscription of Veerpurushdatta) में उसे वाशिष्ठीपुत्र श्रीशान्तमूल (विसिठीपुतस इखाकुस सिरि-चातमूलस, अर्थात् वाशिष्ठीपुत्र इक्ष्वाकु वंशीय श्रीचन्तिमूल) कहा गया है।
- श्रीशान्तमूल के माता-पिता के सम्बन्ध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। हालाँकि यह अवश्य ज्ञात होता है कि उसकी कई विमाताएँ और बहनें थीं।
- श्रीशान्तमूल के दो सहोदर भाइयों के नाम मिलते हैं — शान्तश्री और हम्मश्री।
- शान्तश्री ने पुकीय परिवार की कन्या महातलवार स्कंदश्री से विवाह किया। पुकीय परिवार सेनापति और सामंत थे जिन्होंने एक बौद्ध महाचैत्य के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया था।
- श्रीशान्तमूल की कई पत्नियाँ थीं।
- श्रीशान्तमूल की पुत्री अदवी शान्तश्री (चांतिश्री) का धनक कुल के महासेनापति महातलवार दंडनायक खम्दविशाख (Khamdavishakha) से विवाह हुआ था।
- अपनी स्वतन्त्र सत्ता स्थापित करने के उपलक्ष्य में श्रीशान्तमूल ने अश्वमेध यज्ञ किया था।
- वीरपुरुषदत्त के नागार्जुनकोंडा अभिलेख (Nagarjunakonda Inscription of Veerpurushdatta) के अनुसार श्रीशान्तमूल ने अग्निहोत्र, अग्निष्ठोम, वायपेय और अश्वमेध यज्ञ किये थे।
“अगिहोता गिठीगितोम-वाजेपयासमेध-याजिस…”
- इस अश्वमेध यज्ञ की पुष्टि पुरातत्त्व से भी होती है, जिनमें श्रीशान्तमूल के अश्वमेध-प्रकार के सिक्के, अवभृथ समारोह के लिए उपयोग किया जाने वाला एक स्नान कुंड, कुर्म-चिति (कछुए के आकार का बलि वेदी) और एक अश्व कंकाल सम्मिलित हैं।
- श्रीशान्तमूल वैदिक धर्म का अनुयायी था।
वीरपुरुषदत्त
- श्रीशान्तमूल का पुत्र तथा उत्तराधिकारी माठरीपुत्र वीरपुरुषदत्त (Mathariputra Virapurushadatta) हुआ।
- वीरपुरुषदत्त का विवाह रुद्रभट्टारिका से हुआ था। रुद्रभट्टारिका को उज्जैन के महाराज की पुत्री बताया गया है। उज्जयिनी पर उस समय पश्चिमी क्षत्रपों (शकों) का शासन था। सम्भवतया रुद्रभट्टारिका शकों की शाखा पश्चिमी क्षत्रप के शासक रुद्रसेन द्वितीय की पुत्री थीं। इस तरह इक्ष्वाकुओं और शकों के मध्य वैवाहिक सम्बन्ध थे।
- नागार्जुनकोंडा के महल की वास्तुकला में शकों का प्रभाव परिलक्षित होता है —
- शक सैनिकों का भित्तिचित्र जिसमे वह टोपी और कोट पहने हुए हैं।
- नागार्जुनकोण्डा में एक शिलालेख के अनुसार इक्ष्वाकु राजाओं द्वारा नियुक्त शक सुरक्षाकर्मियों की एक टुकड़ी भी वहाँ तैनात थी।
- माठरीपुत्र वीरपुरुषदत्त ने २० या २४ वर्षों तक राज्य किया।
- अमरावती तथा नागार्जुनीकोंड से माठरीपुत्र वीरपुरुषदत्त के लेख मिलते हैं। इनमें बौद्ध संस्थाओं को दिये जाने वाले दान का विवरण है।
- वीरपुरुषदत्त के तीन संतान थी —
- एक पुत्री कोदबलिश्री (Kodabalishri) जिसका विवाह वनवास राज्य के शासक से हुआ था। विद्वानों ने इसका पहचान आधुनिक बनवासी के चुटु शासक से की है।
- दो पुत्र थे –
- एली एहवुलदास (Eli Ehavuladasa)। एली एहवुलदास की माता का नाम यखिलिनिका (Yakhilinika) मिलता है।
- एहुवाल चांतमूल (Ehuvala Chamtamula)। एहुवाल चांतमूल की माता खम्दुवुला (Khamduvula) थीं। यह वीरपुरुषदत्त का उत्तराधिकारी हुआ। इसे शान्तमूल द्वितीय भी कहा जाता है।
शान्तमूल द्वितीय
- वीरपुरुषदत्त का पुत्र तथा उत्तराधिकारी शान्तमूल द्वितीय (वशिष्ठीपुत्र एहुवाल चांतमूल) हुआ।
- शान्तमूल द्वितीय ने भी कम से कम २४ वर्षों तक शासन किया। उनके शासन के २, ८, ९, ११, १३, १६ और २४ वर्षों के मिले शिलालेखों द्वारा यह प्रमाणित होता है।
- शान्तमूल द्वितीय के शासनकाल के दौरान इक्ष्वाकु राज्य अपने चरम पर पहुँच गया।
- उनके शासनकाल के दौरान कई हिंदू और बौद्ध मंदिरों का निर्माण किया गया।
- उसका पाटगंडिगुडेम ताम्रलेख (Patagandigudem copper-plate inscription) भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे पुराना ज्ञात ताम्रपत्रादेश (copper-plate charter) है।
रुद्रपुरुषदत्त
- एहुवाल चांतमूल के बाद रुद्रपुरुषदत्त (Rudrapurushadatta) / वाशिष्ठीपुत्र रुद्रपुरुषदत्त ने गद्दी सँभाली।
- रुद्रपुरुषदत्त की माँ का नाम वाम्मभट्ट (Vammabhatta) मिलता है।
- वाम्मभट्ट एक महाक्षत्रप (पश्चिमी क्षत्रप शासक) की पुत्री थीं।
- अमेरिकी विद्वान रिचर्ड सोलोमन (Richard Salomon) के अनुसार, “राजा रुद्रपुरुषदत्त के समय के नागार्जुनकोण्डा स्मारक स्तम्भ शिलालेख पश्चिमी क्षत्रपों और नागार्जुनकोण्डा के इक्ष्वाकु शासकों के बीच वैवाहिक गठबंधन की पुष्टि करता है।”
पतन
- आभीर नरेश वाशिष्ठीपुत्र वसुसेन के ३०वें शासन वर्ष का एक शिलालेख नागार्जुनकोण्डा के खंडगृह अश्टभुज-स्वामिन मंदिर में मिला है। इससे यह अटकलें लगायी गयी हैं कि नासिक क्षेत्र पर शासन करने वाले आभिरों ने इक्ष्वाकु राज्य पर आक्रमण किया और उसपर अधिकार कर लिया। हालाँकि इसे निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है अथवा यह अतिशयोक्ति हो सकती है।
- इस वंश के राजाओं ने आन्ध्र की निचली कृष्णा घाटी में तृतीय शताब्दी के अन्त या चौथी शताब्दी के मध्य तक शासन किया। तत्पश्चात् उनका राज्य काञ्ची के पल्लवों के अधिकार में चला गया।
आंध्र इक्ष्वाकु राजवंश के शासनकाल का निर्धारण
नागार्जुनकोंडा से प्राप्त शिलालेखों और सिक्कों से हमें ४ इक्ष्वाकु शासकों के नाम ज्ञात होते हैं। इन राजाओं के शिलालेखों में तिथि-गणना उनके शासन वर्षों में अंकित हैं, न कि किसी प्रचलित सम्वत् काल गणना में। इसलिए उनके शासनकाल की सटीक तिथियाँ अनिश्चित हैं। फिरभी इतिहासकारों ने इनकी तिथियाँ निश्चित की हैं जो अधोलिखित हैं —
- के० आर० सुब्रमणियन के अनुसार इक्ष्वाकुओं ने लगभग २२५-३४० ई० तक शासन किया।
- के० कृष्णमूर्ति के अनुसार इक्ष्वाकुओं ने लगभग २२७-३०९ ई० तक शासन किया।
- उपिंदर सिंह के अनुसार इक्ष्वाकुओं ने लगभग २१०-३२५ ई० तक शासन किया।
इतिहासकार के० कृष्णमूर्ति के अनुसार, सातवाहन राजा पुलोम चतुर्थ (Puloma IV) की अंतिम तिथि २२७ ईस्वी मानते हुए यह सुझाते हैं कि यदि इक्ष्वाकु शासन तुरंत उसके बाद आरम्भ हो गया हो तो निम्नलिखित सम्भावित तिथियाँ हो सकती हैं —
- वाशिष्ठीपुत्र शांतमूल (श्रीशांतमूल), लगभग २२७-२५० ई०
- माठरीपुत्र वीरपुरुषदत्त (वीरपुरुषदत्त), लगभग २५०-२७४ ई०
- वाशिष्ठीपुत्र एहुवाल शांतमूल (वाशिष्ठीपुत्र एहुवाला चांतमूल), लगभग २७४-२९७ ई०
- वाशिष्ठीपुत्र रुद्रपुरुषदत्त (रुद्रपुरुषदत्त), लगभग २९७-३०९ ई०
इतिहासकार उपिंदर सिंह के अनुसार, इक्ष्वाकु शासकों के शासनकाल का अनुमान इस प्रकार है —
- श्रीशांतमूल (२१०-२५० ई०)
- वीरपुरुषदत्त (२५०-२७५ ई०)
- एहुवाल शांतमूल (२७५-२९७/३०० ई०)
- रुद्रपुरुषदत्त (३००-३२५ ई०)
शासक |
शासनकाल | |
के० कृष्णमूर्ति के अनुसार | उपिंदर सिंह के अनुसार | |
श्रीशांतमूल | ≈ २२७-२५० ई० | ≈ २१०-२५० ई० |
वीरपुरुषदत्त | ≈ २५०-२७४ ई० | ≈ २५०-२७५ ई० |
एहुवाल शांतमूल | ≈ २७४-२९७ ई० | ≈ २७५-२९७/३०० ई० |
रुद्रपुरुषदत्त | ≈ २९७-३०९ ई० | ≈ ३००-३२५ ई० |
राज्यक्षेत्र
- इक्ष्वाकु वंश के शिलालेखों के प्राप्ति स्थलों से उनके राज्यक्षेत्र का अनुमान लगाया जा सकता है।
- इक्ष्वाकु वंश के शिलालेख नागार्जुनकोंडा, जग्गय्यापेटा, कोट्टमपलुगु, गुरजाला, रेंटल और उप्पुगुंडुरु से मिले हैं।
- इक्ष्वाकु वंश ने वर्तमान आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कुछ हिस्सों पर शासन किया। मोटेतौर पर उन्होंने निचली कृष्णा घाटी के आसपास के क्षेत्रों पर शासन किया, जिसकी राजधानी नागार्जुनकोण्डा (विजयपुरी) थी।
धर्म
- इक्ष्वाकु लोग धर्म सहिष्णु थे।
- यह तथ्य उल्लेखनीय है कि ईक्ष्वाकु शासक ब्राह्मण धर्म के अनुयायी थे परन्तु उनकी रानियों की अनुरक्ति बौद्ध धर्म में थी।
- एक ओर जहाँ इक्ष्वाकुओं द्वारा वैदिक यज्ञ कराने का उल्लेख मिलता है, वहीं इक्ष्वाकु रानियों की अनुरक्ति बौद्ध धर्म में थी।
- रानियों की प्रेरणा से नागार्जुनीकोण्डा में बौद्ध स्तूपों का निर्माण करवाया गया। रानियों द्वारा निर्माण कार्य के लिये ‘नवकर्मिक’ नामक अधिकारियों की नियुक्ति की गयी थी।
बड़वा का मौखरि वंश (Maukhari Dynasty of Barwa)
चुटु राजवंश या चुटुशातकर्णि राजवंश
बृहत्पलायन वंश या बृहत्फलायन वंश