अर्जुनायन गणराज्य

भूमिका

अर्जुनयान (Arjunayana) एक प्राचीन गणराज्य था। अर्जुनायन गणराज्य पंजाब अथवा उत्तर-पूर्वी राजस्थान में स्थित था। इनकी शासन व्यवस्था गणतंत्रात्मक थी। अर्जुनायन गण मौर्योत्तर काल में एक शक्ति के रूप उभरे। इनका उल्लेख हमें समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति में मिलता है। गुप्तकाल के ज्योतिषविद् वाराहमिहिर की कृति बृहत्संहिता में इनका उल्लेख मिलता है।

डॉ० बुद्ध प्रकाश के अनुसार कौटिल्य कृत अर्थशास्त्र में उल्लिखित उत्तरी भारत के प्राज्जुनक ही अर्जुनायन है। विन्सेंट स्मिथ ने अर्जुनायन गणराज्य की स्थिति राजस्थान के अलवर और भरतपुर राज्यों में बताया। परन्तु आर० सी० मजूमदार, विन्सेंट स्मिथ से असहमत है। चतुर्थ शताब्दी ईसा पूर्व सिकन्दर के आक्रमण के समय साहित्यिक स्रोतों में अफगानिस्तान में उनका उल्लेख मिलता है।

मौर्योत्तर काल में अर्जुनायन गण का उल्लेख साहित्यिक स्रोतों में मिलता है और साथ ही उनके सिक्के आगरा, मथुरा व दक्षिणी हरियाणा वाले क्षेत्रों से मिले हैं।

अर्जुनायन गणराज्य

संक्षिप्त परिचय

  • समय — चतुर्थ शताब्दी ई० 
  • शासन क्षेत्र — जयपुर-आगरा-मथुरा
  • शासनतन्त्र — गणतन्त्र (कुलीन)
  • सिक्कों पर ‘अर्जुनायनान्’ तथा ‘अर्जुनायनानाम् जय’ अंकित है
  • प्रयाग प्रशस्ति में उल्लेख

उद्भव

अर्जुनयानों की उत्पत्ति अस्पष्ट है –

साहित्यिक साक्ष्य

पाणिनि ने अर्जुनायनों को अर्जुनव गणपथ कहकर एक भौगोलिक भू-भाग के रूप में वर्णित किया है।

पुरातात्त्विक साक्ष्य

  • उत्खनन से प्राप्त पुरातात्त्विक साक्ष्यों के अनुसार, इतिहास में अर्जुनायनों का प्रथम उल्लेख सिकंदर के आक्रमण के कुछ समय बाद मिलता है।
  • इनका प्रथम प्रमाण द्वितीय या प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व के सिक्कों से मिलता है।
  • अर्जुनवन, अर्जुनव से बना है। अर्जुनायन, अर्जुनवान या अर्जुनवायन के समान है।
  • सम्भवतया अर्जुनवन शब्द अर्जुनव से उत्पन्न हुआ है, जो अर्जुन और नव (युवा, आधुनिक या वंशज) का योग है।

यूनानी स्रोत

  • यूनानी इतिहासकार एरियन ने एक नगर एरिगियम या एरिगैओन (Arigaeum or Arigaeon/Arigaion) का उल्लेख किया है।
  • यह नगर उत्तर-पूर्वी अफगानिस्तान में कुनार और पंजकोर घाटियों को जोड़नेवाले मार्ग पर नियंत्रण रखता था।
  • यह कम्बोज क्षेत्र में था और अस्पासियोई (Aspasioi) जनजाति (अश्वक) का निवास स्थान था, जिन्हें एरियन भारतीय बर्बर कहता है।
  • इन लोगों ने ३२७ ईसा पूर्व में सिकन्दर को कड़ी टक्कर दी थी।
  • जब सिकन्दर की श्रेष्ठ सेनाओं के सामने वे अपने गढ़ की रक्षा करने में अक्षम हो गये, तो एरिगियम या एरिगैओन के निवासियों ने नगर रिक्त कर दिया। दुर्ग में आग लगा दी और सुरक्षित पर्वतीय दुर्गों की ओर चले गये।
  • सिकंदर अपनी सेना को दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र की ओर ले गया, जहाँ अधिकांश एरिगियम या एरिगैओन के निवासी एकत्र थे। एरिगियम या एरिगैओन औरअस्पासियन (Aspasians) लोगो के साथ एक कठिन मुकाबला हुआ।
  • एक तो दुर्गम भू-आकृति के कारण और दूसरे अस्पासियन इस क्षेत्र के अन्य भारतीय बर्बर लोगों की तरह नहीं थे, वरन वे अपने पड़ोसियों की तुलना में कहीं अधिक शक्तिशाली थे।
  • टॉलेमी इस तथ्य की पुष्टि करता है कि मेसीडोनियन सेना ने लगभग ४०,००० लोगों को पकड़ लिया था और उनमें से २३,००० से अधिक लोगों को सिकंदर ने चुनकर मेसीडोनिया भेज दिया था।

विश्लेषण

  • डॉ० वी० एस० अग्रवाल जैसे विद्वानों ने एरियन के एरिगियम या एरिगैओन को संस्कृत नाम अर्जुनव माना है, जिसका उल्लेख पाणिनि के गणपथ के साथ-साथ काशिका में भी मिलता है।
  • यदि डॉ० वी० एस० अग्रवाल जैसे विद्वानों की यह व्याख्या मान ली जाय और काशिका या पाणिनी के गणपथ का “अर्जुनव” को “एरिगियम या एरिगैओन” से समीकृत कर दिया जाय, तो अर्जुनायन की उत्पत्ति का अनुमान सम्भवतया लगाया जा सकता है।
  • अरिगैओन (अर्जुनव) नगर में रहने वाले अस्पासियन लोगों के वर्ग को सम्भवतः अर्जुनव लोग (Arjunavanas), अर्जुनवायन लोग(Arjunavayanas) या अर्जुनायन (Arjunayanas) (अर्जुनव से) के नाम से जाना जाता था।

भारतीय स्रोत

  • अर्जुनायन का संस्कृत में अर्जुनायनक नामक एक रूप है।
  • कौटिल्य कृत अर्थशास्त्र में प्राज्जुनक (Prajjunaka) लोगों का गांधारों के साथ उल्लेख मिलता है।
  • अर्थशास्त्र में प्राज्जुनकों के विदूषकों, शिल्पकारों, पेशेवर गायकों और अभिनेताओं का उल्लेख मिलता है।
  • गांधार एक प्राचीन सांस्कृतिक केंद्र था। अतः गांधारों के साथ प्राज्जुनकों का अर्थशास्त्र में उल्लेख होने से यह कहा जा सकता है कि उनकी (प्राज्जुनक) सांस्कृतिक विशेषताएँ गांधारों जैसी रही होगी।
  • अर्थशास्त्र के प्राज्जुनकों को कुछ विद्वानों ने संस्कृत के अर्जुनायनक (अर्जुनायन) का एक रूप माना है।
  • यदि यह सच है, तो अर्थशास्त्र प्रमाणित करता है कि अर्जुनायन (अर्जुनवन) गांधारों के पड़ोसी थे। यह संभवतः स्वात/कुनार घाटियों के अरिगैओन (अर्जुनव) के निवासियों को इंगित करता है।

अरिगैओनियन का स्थानान्तरण

  • ३२६ ईसा पूर्व में सिकंदर के नेतृत्व में यूनानी सेना से पराजय और उनके तथा दबाव के कारण के कारण अरिगैओनियन का एक वर्ग स्वात और कुनार घाटियों को छोड़ कर पंचनद को पार कर पंजाब और उससे आगे दक्षिण-पूर्व की ओर स्थानान्तरित हो गये।
  • तृतीय / चतुर्थ शताब्दी के बौद्ध तंत्र ग्रंथ महामायुरी में अर्जुनवन नामक एक स्थान का उल्लेख किया है, जिसका अध्यक्ष यक्ष अर्जुन था।
  • महामायुरी केअनुसार श्रुघ्न (सुघ, यमुनानगर, हरियाणा) का संरक्षक यक्ष दुर्योधन था।
  • महामायुरी के आधार पर, अर्जुनवन का स्थान श्रुघ्न के निकट था। यह दिल्ली-जयपुर-आगरा स्थलों द्वारा निर्मित त्रिभुज के भीतर कहीं स्थित है।
  • यह सम्भव है कि अरिगैओन से अलग हुआ समूह सिकंदर के दबाव में दक्षिण-पूर्व पंजाब और राजस्थान में आकर बस गया और उन्होंने अपने क्षेत्र का नाम अर्जुनवन (अर्जुनव से) रखा।
  • तृतीय  / चतुर्थ शताब्दी ई० के बौद्ध तंत्र ग्रंथ महामायुरी में इसी नाम (अर्जुनवन) का उल्लेख मिलता है।
  • पुरातत्त्वविद् जे० एफ० फ्लीट ने सिक्कों के आधार पर अर्जुनायन की पहचान कलचुरियों से की है। कलचुरि वंश को प्राचीन क्षत्रिय राजवंश हैहय के कार्तवीर्य अर्जुन से जोड़ा गया है।
  • डॉ० बुद्ध प्रकाश और कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार अर्जुनायन महाभारत के महानायक अर्जुन से सम्बन्धित थे।

अर्जुनायन के सिक्के

    • अर्जुनायनों के सिक्के दिल्ली-जयपुर-आगरा के स्थलों से मिलाने से निर्मित त्रिभुजाकार क्षेत्र के भीतर पाये गये हैं। दूसरे शब्दों में अर्जुनायन सिक्कों के वितरण से ज्ञात होता है कि उनके गणराज्य की सीमा मोटेतौर पर दिल्ली-जयपुर-आगरा द्वारा निर्मित त्रिभुज के भीतर स्थित रही होगी।

    • अर्जुनायन-सिक्के, यौधेय-सिक्कों से मिलते-जुलते हैं, जो उनकी समकालीनता को दर्शाते हैं।

    • अर्जुनायन सिक्कों के प्रकार —
      • एक प्रकार के सिक्के के मुखभाग / अग्रभाग पर एक वृषभ और पृष्ठभाग पर एक खड़ी देवी का अंकन है।

      • दूसरे प्रकार के सिक्के के मुखभाग / अग्रभाग पर वेदिका में वृक्ष के समक्ष एक वृषभ खड़ा है और पृष्ठभाग पर एक अन्य वृषभ को लिंग प्रतीक के समक्ष खड़ा दिखाया गया है, जिस पर अर्जुनायनजय अंकित है।

      • तीसरे प्रकार के सिक्के के मुखभाग / अग्रभाग पर एक वृषभ, स्वस्तिक और पृष्ठभाग पर शाखा या ताड़ का पत्ता और जनायन अंकित है।

    • सिक्कों से यह संकेत मिलता है कि अर्जुनायन भगवान शिव के भक्त थे।

    • विद्वानों ने एरियन के अरिगौम / अरिगैओन की व्याख्या संस्कृत अर्जुनव के साथ की है।

    • अर्जुनायन की उत्पत्ति और वंश का पता स्वात/कुनार क्षेत्रों के अरिगायोन (अर्जुनव) से लगाया जा सकता है।

    • अर्जुनायन सम्भवतः भारतीय ग्रंथों के अश्वकों के साथ जुड़े हो सकते हैं।

    • अश्वकों (अस्पासियोई और अस्साकेनोई) गणतंत्रवादी लोग थे, जैसा कि यूनानी इतिहासकारों ने प्रमाणित किया है।

    • अश्वक प्राचीन कम्बोज का एक भाग थे, जिन्हें पाणिनि ने अश्वयन और अश्वकाय के रूप में उल्लेख किया है।

    • अर्जुनायन भगवान शिव के भक्त थे, जो स्वात/कुनार घाटी, अश्वकों की भूमि के साथ उनके सम्भावित सम्बन्धों का संकेत देते हैं।

अर्जुन और अर्जुनायन

    • दूसरी शताब्दी के सिक्कों से ज्ञात होता है कि अर्जुनायन और यौधेय पड़ोसी जनजातियाँ थीं।

    • उन्होंने यवन, शक, पह्लव और कुषाणों जैसी विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध मिलकर लड़ाई की थी।

    • कुछ लोग मानते हैं कि अर्जुनायन और यौधेय सम्बद्ध जनजातियाँ थीं।

    • महाभारत के आदिपर्व में यौधेय को पाण्डव युधिष्ठिर के पुत्र के रूप में संदर्भित किया गया है।

    • विद्वानों ने अनुमान लगाया कि यौधेय, युधिष्ठिर के पुत्र यौधेय के वंशज थे।

    • इसी प्रकार, अर्जुनयान को महाभारत के नायक अर्जुन का वंशज माना गया।

आलोचना

    • यौधेय ने कौरवों की तरफ से कुरुक्षेत्र युद्ध में भाग लिया था।

    • यौधेय पाम्डवों के राजसूय यज्ञ में सम्मिलिक हुए थे और युधिष्ठिर के प्रति निष्ठा व्यक्त की थी।

    • अतः यौधेय और अर्जुनयान को पाण्डव वंश से जोड़ने का दावा निराधार है।

    • महाभारत, रामायण या किसी वैदिक ग्रंथ में अर्जुनायन का उल्लेख नहीं है।

    • यौधेय का उल्लेख पाणिनि के अयुधजीवी संघों की सूची में है, लेकिन अर्जुनयान का ऐसा कोई सन्दर्भ नहीं मिलता है।

    • यह अनुमान भी निराधार है कि कौटिल्य के अर्थशास्त्र के प्राज्जुनक, अर्जुनायन (या अर्जुनायनक) के समान हैं।

    • अर्जुनायन / अर्जुनवन या अर्जुनायनक सिकन्दर के आक्रमण के बाद की घटना है।

    • यह सम्भव है कि ये लोग कुनार / स्वात घाटियों के अरिगैओन (अर्जुनव) क्षेत्र से विस्थापित लोग हो। परन्तु यह भी एक सम्भावना ही है।

निष्कर्ष

    • गुप्त-पूर्व काल में इस गण जाति के लोग आगरा-जयपुर क्षेत्र में शासन करते थे।

    • प्रथम शताब्दी के लगभग के उनके, कुछ सिक्के मिले है जिन पर ‘अर्जुनायनान्’ तथा ‘अर्जुनायनानाम् जय’ अंकित है।

    • इससे सूचित होता है कि उनका भी अपना गणराज्य था।

    • समुद्रगुप्त ने उन्हें पराजित कर अपने अधीन कर लिया था।

“समतट-डवाक-कामरूप-नेपाल-कर्तृपुरादि-प्रत्यन्त-नृपतिभिर्म्मालवार्जुनायन-यौधेय-माद्रकाभीर-प्रार्जुन-सनकानीक-काक-खरपरिकादिभिश्च-सर्व्व-कर-दानाज्ञाकरण-प्रणामागम-”

प्रयाग प्रशस्ति, पं०- २२

मालव गणराज्य

शालंकायन वंश (Shalankayana Dynasty)

बृहत्पलायन वंश या बृहत्फलायन वंश

चुटु राजवंश या चुटुशातकर्णि राजवंश

आंध्र इक्ष्वाकु या विजयपुरी के इक्ष्वाकु

आभीर राजवंश (Abhira dynasty)

मघ राजवंश

बड़वा का मौखरि वंश (Maukhari Dynasty of Barwa)

नागवंश

यौधेय गणराज्य

लिच्छवि गणराज्य

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