भूमिका
अंकाई-तंकाई या अंकाई-टंकाई (Ankai-Tankai) का एक अन्य नाम अणकिटणकी है। यह स्थल जैन धर्म से सम्बन्धित है। यहाँ पर ७ गुफाएँ एक पहाड़ी में काटकर बनायी गयी। यहाँ पर आमने-सामने युगल गिरि-दुर्ग स्थिति है, जिनके नाम अंकाई दुर्ग और तंकाई दुर्ग है।
सामान्य परिचय
प्राचीन नाम | अणकिटणकी |
वर्तमान नाम | अंकाई-तंकाई (अंकाई-टंकाई) |
तालुका | येओला (Yeola) |
जनपद | नासिक |
राज्य | महाराष्ट्र |
देश | भारत |
उल्लेख | ‘विज्ञप्ति लेख संग्रह’ में |
दर्शनीय स्थल | ७ जैन गुफाएँ |
अंकाई और तंकाई के जुड़वा किले | |
मुख्य द्वार | |
मनमाड द्वार | |
ब्राह्मणी (हिंदू) गुफाएँ | |
महल और काशी तालाब | |
चट्टानों से निर्मित जलाशय | |
अंकाई-तंकाई किला | इसका निर्माण देवगिरी के यादवों ने मध्यकाल में करवाया था। |
ये दोनों आमने-सामने दो पहाड़ियों पर स्थित हैं। | |
अहमदनगर-निजामशाही के अधिकार में— १५२१ ई० से १५९४ ई० | |
मुगलों के अधिकार में— १५९४ ई० से १७३९ ई० | |
मराठों के अधिकार में— १७३९ ई० से १८१८ ई० | |
अँग्रेजों के अधिकार में— १८१८ ई० से १९४७ ई० | |
भारत के अधिकार में— १९४७ ई० से |
स्थिति
अणकिटणकी महाराष्ट्र के नासिक जनपद के येओला (Yeola) तालुका में स्थित है। यह सतमाला पहाड़ी श्रेणी में स्थित है।

नाम
इस स्थल का प्राचीन नाम ‘अणकिटणकी’ मिलता है। देवगिरी के यादवों ने मध्यकाल में यहाँ पर युगल दुर्गों का निर्माण करवाया। इनके नाम अंकाई और तंकाई दुर्ग हैं। इन्हीं युगल दुर्गों के नाम पर इसे ‘अंकाई-तंकाई’ या ‘अंकाई-टंकाई’ (Ankai-Tankai) कहा जाता है और यही इसका वर्तमान नाम है।
जैन गुफाएँ
‘अणकिटणकी’ नामक स्थल जैन धर्म से सम्बन्धित है। यहाँ पर ७ गुफाएँ एक पहाड़ी में काटकर बनायी गयी। इन गुफाओं में अनेक मूर्तियाँ बनी है। गुफाओं का अधिकांश भाग नष्ट हो चुका है। किंतु फिर भी अनेक मूर्तियाँ शिल्प की दृष्टि से प्रशंसनीय हैं। गुफाओं की अवशिष्ट भित्तियाँ सर्वत्र मूर्तिकारी से परिपूर्ण है।
अंकाई किले के तलहटी में स्थित जैन गुफाएँ दो स्तरों में फैली हुई हैं। निचले स्तर में दो गुफाएँ हैं, जिनमें कोई मूर्तियाँ नहीं हैं। ऊपरी स्तर में पाँच गुफाएँ हैं, जिनमें महावीर की मूर्तियाँ अच्छी अवस्था में मौजूद हैं। मुख्य गुफा में यक्ष, इंद्राणी, कमल और भगवान महावीर की सुंदर नक्काशी मौजूद है।
वर्तमान में ‘अंकाई-तंकाई’ नाम से प्रसिद्ध यह स्थल मध्यकालीन जैन संस्कृति का एक प्रसिद्ध केंद्र था। जैन कवि मेघविजय ने अपने एक विज्ञप्ति पत्र में इस स्थल का वर्णन इस प्रकार किया है—
“गत्वौत्सुक्येऽप्यणकि-टणकीदुर्गयोः स्थेयमेव, पार्श्वः स्वामी स इह विहृतः पुर्वमुर्वीशसेव्यः। जाग्रदूपे विपदि शरणं स्वर्गिलोकेऽभिवन्द्यम, अत्यादित्यं हुतवहमुखे संभृतं तद्धि तेजः॥”
—द्वितीय विभाग, क्रमांक ३, श्रीमेघविजयोपाध्याय-विरचितं मेघदूतसमस्यापूर्तिमयविज्ञप्तिपत्रम्, पद्य या श्लोक संख्या- ४७; विज्ञप्ति लेख संग्रह, पृ० १०१
अंकाई-तंकाई दुर्ग
अंकाई-तंकाई किला (Ankai-Tankai Fort) पश्चिमी भारत के सतमाला पर्वत शृंखला में स्थित एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है। यह महाराष्ट्र के नासिक जनपद के येओला तालुका (Yeola Taluka) में स्थित है। इस किले का निर्माण देवगिरी के यादवों द्वारा किया गया था और यह मनमाड के पास स्थित है।
इसकी एक खास विशेषता यह है कि अंकाई किला और टंकाई किला दो अलग-अलग किले हैं जो सटे हुए पहाड़ों पर बने हैं। दोनों को सुरक्षित रखने के लिए एक सामान्य किलेबंदी की गयी है। अंकाई किला एक पहाड़ी पर स्थित है, जिसके सभी किनारे खड़ी चट्टानों से घिरे हुए हैं, सिवाय एक संकीर्ण पूर्वी हिस्से के, जो इसे एक प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करता है।
इतिहास में अंकाई किला अहमदनगर सल्तनत, मुगलों, मराठों और ब्रिटिश शासन के अधीन रहा है। इस किले के नीचे जैन गुफाएँ मौजूद हैं, जिनमें महावीर की मूर्तियाँ और सुंदर नक्काशी देखने को मिलती हैं।
दुर्ग का इतिहास
इस किले का निर्माण करीब १,००० साल पहले देवगिरी के यादवों द्वारा किया गया था। यादवों से यह क्षेत्र दिल्ली सल्तनत, बहमनी सल्तनत, अहमदनगर-निजामशाही, मुगल साम्राज्य, मराठा साम्राज्य और अँग्रेजों के अधिकार में रहा है।
1635 में शाहजहाँ के सेनापति खान खाना के नेतृत्व में मुगलों ने इस किले को किले के कमांडर को रिश्वत देकर कब्जा कर लिया। 1665 में यात्री थेवेनॉट (Thevenot) ने अपनी यात्रा में सूरत और औरंगाबाद के बीच के रास्ते में इन किलों का उल्लेख किया था। बाद में मुगलों ने अंकाई किले पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया। 1752 में भलकी संधि के बाद यह किला मराठा साम्राज्य के अधीन आ गया। 1818 में इस किले पर ब्रिटिशों ने कब्जा कर लिया।
दर्शनीय स्थल
अंकाई किला कई ऐतिहासिक और वास्तुशिल्प स्थलों का अद्भुत संग्रह प्रस्तुत करता है:
- जैन गुफाएँ— ये गुफाएँ दो स्तरों में फैली हुई हैं। निचले स्तर में दो गुफाएँ हैं जिनमें कोई मूर्तियाँ नहीं हैं, जबकि ऊपरी स्तर में पाँच गुफाएँ हैं, जिनमें महावीर की मूर्तियाँ अच्छी अवस्था में मौजूद हैं। मुख्य गुफा में यक्ष, इंद्राणी, कमल और भगवान महावीर की सुंदर नक्काशी देखी जा सकती है।
- मुख्य द्वार— यह पहाड़ी के दक्षिण भाग में स्थित है और इसमें अच्छी स्थिति में लकड़ी का काम देखा जा सकता है।
- मनमाड द्वार— यह द्वार उत्तर दिशा में स्थित है और मनमाड शहर की ओर मुख किये हुए है।
- ब्राह्मणी (हिंदू) गुफाएँ— ये गुफाएँ अंकाई किले के ऊपरी पठार के प्रवेश द्वार के पास स्थित हैं। हालाँकि ये अब खंडहर में तब्दील हो चुकी हैं, फिर भी इनमें जय और विजय की चट्टानों पर उकेरी गई मूर्तियाँ, और एक शिवलिंग देखा जा सकता है।
- महल और काशी तालाब— पठार के पश्चिमी किनारे पर एक विकट अवस्था में पड़ा महल स्थित है, जिसमें केवल दीवारें बची हुई हैं। इस महल तक जाने के रास्ते में चट्टानों से काटकर बनाए गए जलाशयों में से एक काशी तालाब है, जिसमें केंद्र में एक शिला पर बनी तुलसी की पवित्र गमला उकेरी गयी है।
- चट्टानों से निर्मित जलाशय— किले के दक्षिणी भाग में एक शृंखला में बने जलाशय मौजूद हैं, जो प्राचीन जल संरक्षण तकनीकों को दर्शाते हैं।
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